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खाने पीने की वो गलतियां जो शरीर पर भारी पड़ रही हैं

    • कविता देवगन
    • Updated: 26 मई, 2018 05:28 PM
  • 26 मई, 2018 05:28 PM
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ये पीढ़ी बहुत डिमांडिंग है. उन्हें हर चीज अपने हिसाब की चाहिए. ये अपने सामने उपलब्ध चीजों में से बेस्ट ऑप्शन चाहते हैं. इस चक्कर में अपने शरीर का कितना नुकसान कर रहे हैं ये भी उन्हें नहीं मालूम.

80 और 90 के दशक में पैदा हुए कई लोगों से हमारा परिचय होगा. इस पीढ़ी को वाई (y) जेनेरेशन या फिर नेट जेनेरेशन कहते हैं. मैं खुद भी इसी जेनेरेशन के एक बच्चे की मां हूं. और मेरे बेटे के अलावा उसके कजिन और दोस्तों के साथ इस उम्र के कई लोगों से अपनी प्रैक्टिस के दौरान मिलती हूं.

इस पीढ़ी को मैं "मी जेनेरेशन" या यूं कहूं कि "मी मी मी मी जेनेरेशन" कहती हूं. साथ ही ये वो पीढ़ी है जो डिजिटल हुआ. और ये उन्हें उनके पहले की पीढ़ियों से अलग करता है. इसमें कोई शक नहीं कि ये पीढ़ी बाकी सभी से अलग है और इनकी अपनी खासियत है. इस पीढ़ी को हमने एक पैनल डिसक्शन में समझने की कोशिश की.

इस पैनल में एक नींद स्पेशलिस्ट, एक डेंटल सर्जन और एक सॉफ्ट स्किल एक्सपर्ट थे. साथ ही कई सारे जेनेरेशन वाई के दुखी माता पिता दर्शक बनकर आए थे. इसमें इस बात पर चर्चा की गई कि वाई जेनेरेशन के ये लोग कितना सोते हैं (या सोते ही नहीं हैं), उनके सामने आने वाली सामाजिक दिक्कतें (सोशल मीडिया पर उनकी निर्भरता और सॉफ्ट स्किल की कमी), दांतों की सफाई के प्रति उनकी बेरुखी (ये लोग दांतों और मुंह को साफ रखने को बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेते हैं), कैसे उनके खाने के पैटर्न और विकल्प काफी अलग है, और अपने अनोखे न्यूट्रीशनल चैलेंज जिसका ये पीढ़ी विशेष रूप से सामना करती है.

कुछ बातें हमने माता-पिता के लिए भी छोड़ दीं. आखिर ये जाहिर सी बात है कि जेनेरेशन वाई के माता पिता कनफ्यूज्ड हैं. ये माता पिता अपने बच्चों को उनके माता-पिता की तुलना में अधिक समय दे रहें और ध्यान रख रहे हैं. लेकिन फिर भी उनके इस कार्य को न तो कोई स्वीकार करता था और न ही उनकी प्रशंसा ही करता था. ये विचार दर्शकों के माध्यम से आया था (और पैनलिस्ट से भी जो सभी वाई जेनेरेशन के बच्चों की मां थीं).

Y जेनेरेशन के बच्चों के पास समय की कमी है...

80 और 90 के दशक में पैदा हुए कई लोगों से हमारा परिचय होगा. इस पीढ़ी को वाई (y) जेनेरेशन या फिर नेट जेनेरेशन कहते हैं. मैं खुद भी इसी जेनेरेशन के एक बच्चे की मां हूं. और मेरे बेटे के अलावा उसके कजिन और दोस्तों के साथ इस उम्र के कई लोगों से अपनी प्रैक्टिस के दौरान मिलती हूं.

इस पीढ़ी को मैं "मी जेनेरेशन" या यूं कहूं कि "मी मी मी मी जेनेरेशन" कहती हूं. साथ ही ये वो पीढ़ी है जो डिजिटल हुआ. और ये उन्हें उनके पहले की पीढ़ियों से अलग करता है. इसमें कोई शक नहीं कि ये पीढ़ी बाकी सभी से अलग है और इनकी अपनी खासियत है. इस पीढ़ी को हमने एक पैनल डिसक्शन में समझने की कोशिश की.

इस पैनल में एक नींद स्पेशलिस्ट, एक डेंटल सर्जन और एक सॉफ्ट स्किल एक्सपर्ट थे. साथ ही कई सारे जेनेरेशन वाई के दुखी माता पिता दर्शक बनकर आए थे. इसमें इस बात पर चर्चा की गई कि वाई जेनेरेशन के ये लोग कितना सोते हैं (या सोते ही नहीं हैं), उनके सामने आने वाली सामाजिक दिक्कतें (सोशल मीडिया पर उनकी निर्भरता और सॉफ्ट स्किल की कमी), दांतों की सफाई के प्रति उनकी बेरुखी (ये लोग दांतों और मुंह को साफ रखने को बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेते हैं), कैसे उनके खाने के पैटर्न और विकल्प काफी अलग है, और अपने अनोखे न्यूट्रीशनल चैलेंज जिसका ये पीढ़ी विशेष रूप से सामना करती है.

कुछ बातें हमने माता-पिता के लिए भी छोड़ दीं. आखिर ये जाहिर सी बात है कि जेनेरेशन वाई के माता पिता कनफ्यूज्ड हैं. ये माता पिता अपने बच्चों को उनके माता-पिता की तुलना में अधिक समय दे रहें और ध्यान रख रहे हैं. लेकिन फिर भी उनके इस कार्य को न तो कोई स्वीकार करता था और न ही उनकी प्रशंसा ही करता था. ये विचार दर्शकों के माध्यम से आया था (और पैनलिस्ट से भी जो सभी वाई जेनेरेशन के बच्चों की मां थीं).

Y जेनेरेशन के बच्चों के पास समय की कमी है लेकिन शरीर को खराब करना कहां की समझदारी है?

जब खाने की बात आती है, तो मुझे लगता है कि एक तरफ जहां ये पीढ़ी बहुत डिमांडिंग है. उन्हें हर चीज अपने हिसाब की चाहिए. ये अपने सामने उपलब्ध चीजों में से बेस्ट ऑप्शन चाहते हैं. ये बहुत उत्सुक किस्म के लोग हैं. अपने खाने में प्रयोग करने से भी नहीं हिचकते और ये सब कुछ ट्राई कर लेना चाहते हैं. फिर चाहे वो अंतरराष्ट्रीय स्तर का ही क्यों न हो. यहां तक तो सब ठीक था. लेकिन इस चक्कर में वो अपने खाने की पोषण में बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं.

यहां मैं आपको वो 5 बड़ी गलतियां बताती हूं जो इतने सालों में मैंने महसूस किया-

पहली दिक्कत इसलिए उत्पन्न होती है क्योंकि यह पीढ़ी सब कुछ आसानी से चाहती है. सुविधा इनकी कमजोरी है. और इसका असर उनके खाने के पसंद पर भी दिखता है. इसी कारण से ये लोग पैकेज्ड फूड और रेडी टू ईट खानों के बहुत बड़े उपभोक्ता है. उनके खाने की इसी अनियमिता के कारण और जीवनशैली की गलतियों के कारण युवाओं में मधुमेह, उच्च रक्तचाप आदि बीमारियां देखने को मिल रही हैं. खाने का यह तरीका कई तरह के पौष्टिकता की कमी, सूजन जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

दूसरा, इन सबों के पास समय की कमी होती है. और चलते फिरते खाने की प्रवृत्ति बना ली है. नाश्ता छोड़ना इनकी आदत में शुमार है. शायद ही कभी खाना पकाते हैं. उनकी जीवनशैली में खाना पकाने की जगह नहीं होती. यह एक बहुत बुरी आदत है.

तीसरी बात ये अधिकतर लोग इस गलतफहमी के शिकार होते हैं कि अगर वो कम कार्बोहाइड्रेट वाला खाना खाएंगे तो वजन नहीं बढ़ेगा. या फिर वजन घटाने का जादुई इलाज है. ये आपको मनचाहा रिजल्ट तो नहीं देता उल्टा थकान, चिड़चिड़ाहट, चक्कर आना, सिरदर्द और कब्ज की शिकायत होने लगती है.

इस पीढ़ी के लोगों में ये दिक्कत आपने अक्सर देखी होंगी. है न?

कैलोरी को लेकर भी इनके मन में ऐसा ही जुनून होता है. और इसे जरुरत से ज्यादा महत्व देते हैं. समस्या यह है कि वे खाने को एक पूरी इकाई के रूप में नहीं देखते हैं. और अपना ज्यादातर समय या तो प्रोटीन लेने या फिर जड़ी बूटी के माध्यम से अपने दिमाग की शक्ति को बढ़ावा देने की कोशिश में खर्च करते हैं.

छोटी छोटी चीजों पर ध्यान देने के चक्कर में वो बड़ी बातों की तरफ देखना भूल जाते हैं. भोजन को इस तरीके से देखना भयानक है. इसके अलावा कैलोरी खाने के बारे में लगातार चिंता करने से भोजन के साथ नकारात्मक मनोवैज्ञानिक संबंध बनता है. जिससे खाने के तौर तरीकों में और ज्यादा खराबी होती है. और जब से टेक्नोलॉजी से इनकी दोस्ती हुई है तो सोशल मीडिया पर मौजूद हजारों नीम हकीम "न्यूट्रीशन स्पेशलिस्ट" से ये पोषण की सलाह लेते हैं और उन पर भरोसा करते हैं. इन्स्टाग्राम पर मौजूद स्टार्स को ही देख लीजिए जिनके बड़ी संख्या में फॉलोवर होते हैं. ये स्टार विज्ञापन द्वारा ही अपनी आजीविका चलाते हैं. इन लोगों के फॉलोअर और उनके कमेंट एक बार पढ़ लीजिएगा आपको समझ आ जाएगा कि मैं क्या कहना चाह रही हूं. आधी अधूरी जानकारी घातक साबित हो सकती है.

ये पीढ़ी तर्कों पर काम करती है. ये बहुत अच्छी बात है. मुझे उम्मीद है कि यह भोजन के सभी सही पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे, और खाने के सही तरीकों से सीखेंगे. इससे उन्हें अपने स्वास्थ्य-हानिकारक और पोषण में गलतियों से स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने का मौका मिलेगा. साथ अपने शरीर का ध्यान रख पाएंगे.

(DailyO से साभार)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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