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हरियाणा सरकार का टीचर्स के लिए वो नोटिस जो जारी नहीं हो पाया !

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 11 जून, 2016 07:01 PM
  • 11 जून, 2016 07:01 PM
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हरियाणा सरकार ने खाप पंचायतों की तरह ही एक तुगलकी फरमान जारी किया है. स्कूल के टीचर्स अब जींस नहीं पहन सकते क्योंकि जींस पहनने से बच्चों पर बुरा असर पड़ता है.

अभी हाल ही में हरियाणा ने स्कूली पाठ्यक्रम से राज्य के महापुरुषों की जीवनियां हटवाईं और उन्हें फिर से लागू किया, फिर पाठ्यक्रम में भगवत गीता भी शामिल कर दी गईं. जब और भी कुछ तूफानी करने का मन किया तो स्कूली टीचर्स के जींस पहनने पर रोक लगा दी गई. वैसे हरियाणा में तो जींस काफी विवादित मुद्दा रहा है. खाप पंचायतों को तो यूं समझिए कि नफरत ही है जींस से. लड़कियां जींस न पहनें, मोबाइल न रखें, इसको लेकर खाप के लोग हमेशा एक्टिव दिखाई देते हैं. पर अब लगता है कि खाप पंचायत हो या हरियाणा सरकार, सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं. 

 हरियाणा और जींस का बैर पुराना है

शिक्षा विभाग के इस तुगलकी फरमान में कहा गया है कि- 'राजकीय प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक विद्यालयों में जींस पैंट पहन कर आते हैं. साथ ही किसी कार्य की वजह से अगर निदेशालय भी जाते हैं तो वहां भी जींस पहनकर ही चले जाते हैं, जो उचित नहीं है, इसलिए सुनिश्चित करें कि कोई भी अध्यापक जींस पहनकर ना आएं. अध्यापक फॉर्मल कपड़े ही पहनें.' इतना ही नहीं ये भी निर्देश दिए गए हैं कि इस बात की निगरानी करनी होगी कि कोई भी शिक्षक भड़काऊ रंगों में न आए जैसे लाल रंग या फिर बड़े बड़े प्रिंट वाली शर्ट न पहनने पाए. शर्ट के सारे बटन भी लगे होने चाहिए.

अब यूं ही कोई फरमान तो जारी नहीं करेगा न, इसकी कुछ वजहें बताई जा रही हैं-

     - कई बार विभाग को टीचर्स के साथ छेड़खानी जैसी कुछ शि‍कायतें मिली थीं, जिसके बाद सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची कि चूंकि महिला शिक्षक ने जींस पहनी थी इसलिए उसके साथ छेड़खानी हुई. लिहाजा...

अभी हाल ही में हरियाणा ने स्कूली पाठ्यक्रम से राज्य के महापुरुषों की जीवनियां हटवाईं और उन्हें फिर से लागू किया, फिर पाठ्यक्रम में भगवत गीता भी शामिल कर दी गईं. जब और भी कुछ तूफानी करने का मन किया तो स्कूली टीचर्स के जींस पहनने पर रोक लगा दी गई. वैसे हरियाणा में तो जींस काफी विवादित मुद्दा रहा है. खाप पंचायतों को तो यूं समझिए कि नफरत ही है जींस से. लड़कियां जींस न पहनें, मोबाइल न रखें, इसको लेकर खाप के लोग हमेशा एक्टिव दिखाई देते हैं. पर अब लगता है कि खाप पंचायत हो या हरियाणा सरकार, सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं. 

 हरियाणा और जींस का बैर पुराना है

शिक्षा विभाग के इस तुगलकी फरमान में कहा गया है कि- 'राजकीय प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक विद्यालयों में जींस पैंट पहन कर आते हैं. साथ ही किसी कार्य की वजह से अगर निदेशालय भी जाते हैं तो वहां भी जींस पहनकर ही चले जाते हैं, जो उचित नहीं है, इसलिए सुनिश्चित करें कि कोई भी अध्यापक जींस पहनकर ना आएं. अध्यापक फॉर्मल कपड़े ही पहनें.' इतना ही नहीं ये भी निर्देश दिए गए हैं कि इस बात की निगरानी करनी होगी कि कोई भी शिक्षक भड़काऊ रंगों में न आए जैसे लाल रंग या फिर बड़े बड़े प्रिंट वाली शर्ट न पहनने पाए. शर्ट के सारे बटन भी लगे होने चाहिए.

अब यूं ही कोई फरमान तो जारी नहीं करेगा न, इसकी कुछ वजहें बताई जा रही हैं-

     - कई बार विभाग को टीचर्स के साथ छेड़खानी जैसी कुछ शि‍कायतें मिली थीं, जिसके बाद सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची कि चूंकि महिला शिक्षक ने जींस पहनी थी इसलिए उसके साथ छेड़खानी हुई. लिहाजा टीचर्स को जींस ही मत पहने दी जाए, सारे फसाद की जड़ जींस ही तो है, तो बैन की जाए जींस, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.

     - टीचर्स द्वारा जींस पहने जाने पर वहां की छात्राओं पर भी बुरा असर पड़ता है, जींस पहनने से गलत संदेश जाता है. अगर महिला शिक्षक जींस पहनकर आएंगी, तो उन्हें देख देखककर बच्चियों को भी जींस पहनने का मन करेगा. आखिर टीचर तो रोल मॉडल होती है, वो भला ऐसा कैसे कर सकती है. कल को अगर कोई बच्ची जींस पहनेगी तो, क्या फॉर्वर्ड या मॉडर्न न कहलाएगी??

     - शिक्षकों को शिष्ट कपड़ों में आना चाहिए. जींस तो अशिष्ट है, भड़काऊ है, ये चुस्त होती है तो इसमें पैरों का आकार साफ साफ दिखता है. उससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये कंफर्टेबल होती है कि नहीं. क्योंकि वहां के धोती पहनने वाले बूढ़ों के लिए तो वही सबसे ज्यादा कंफर्टेबल पहनावा है.

ये भी पढ़ें- ऐसी खाप धो सकती हैं सारे पाप!

पर ये समझ नहीं आया कि अभी तक महिलाओं के खिलाफ फरमानबाजी करने वाले हरियाणवियों ने इस बार पुरुषों को अपना शिकार कैसे बना लिया. भला पुरुषों की जींस किस तरह से अशिष्ट हो गई. जींस अगर अशिष्ट है तो वो तो महिलाओं की ही है न. पर देखिए हरियाणा सरकार अब महिलाओं और पुरुषों में फर्क नहीं करती, इस फरमान से ये सिद्ध हो गया है. लोग बेकार में ही सोशल मीडिया पर हरियाणा सरकार का मजाक बनाए जा रहे हैं. लेकिन इस बात से भी बचा जा सकता था.

बेहतर तो ये होता कि सरकार शिक्षकों के लिए अपनी पसंद के रंग और अपनी पसंद के कपड़े की कोई यूनिफॉर्म ही अनिवार्य कर देती. जैसे पुरुष शिक्षकों के लिए खादी का कुर्ता और पायजामा, और महिला शिक्षकों के लिए खादी की साड़ी. जिसके साथ खादी से बना झोला अनिवार्य होता. और हां, जूते नहीं सिर्फ चप्पलें. पुलिस, नेवी, आर्मी जैसे विभागों में भी तो लोग वर्दी पहनते हैं, तो फिर शिक्षक क्यों नहीं. क्या पता बाकी राज्य भी हरियाणा के इस क्रांतिकारी परिवर्तन से प्रेरित हो जाते.  खैर..

लेकिन हरियाणा सरकार का टीचर्स के लिए वो नोटिस जो अब तक जारी नहीं हो पाया, वो इस प्रकार है-

- चूंकि अब टीचर्स जींस नही पहन रहे हैं तो, हरियाणा में कोई भी पुरुष किसी को भी छेड़ता नहीं पाया जाएगा.

- चूंकि अब टीचर्स जींस नही पहन रहे हैं तो, हरियाणा में रेप का एक भी मामला सामने नहीं आना चाहिए.

- चूंकि अब टीचर्स जींस नही पहन रहे हैं तो, हरियाणा में लड़कियों की शिक्षा दर सबसे ज्यादा होनी चाहिए.

- चूंकि अब टीचर्स जींस नही पहन रहे हैं तो, हरियाणा से भी आईएएस और पीसीएस के टॉपर सामने आने चाहिए.

- चूंकि अब टीचर्स जींस नही पहन रहे हैं तो, हरियाणा में कोई भी पुरुष अब कन्या भ्रूण हत्या जैसा पाप नहीं करेगा.

- चूंकि अब टीचर्स जींस नही पहन रहे हैं तो, हरियाणा में रोजाना दर्ज हो रहे महिला अपराधों के 87 मामलों की संख्या शून्य हो जाएगी.

- चूंकि अब टीचर्स जींस नही पहन रहे हैं तो, हरियाणा में पुरुष अब महिलाओं को बराबरी का दर्जा देंगे.

- चूंकि अब टीचर्स जींस नही पहन रहे हैं तो, हरियाणा के सभी फरमान सुनाने वाले नेता लोगों के लिए आदर्श बनेंगे और खुद भी धोती कुर्ता पहनेंगे.

- चूंकि अब टीचर्स जींस नही पहन रहे हैं तो, हरियाणा के सभी अधिकारीगण अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाएंगे.

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खैर हरियाणा सरकार का मानना है कि हर चीज के लिए जींस ही जिम्मेदार है. अगर जींस बैन करके ये सारे बदलाव आ जाते हैं, तो जींस पर बैन लगाना बिल्कुल जायज है. ऐसे में सही मायने में अगर धरती पर कहीं स्वर्ग होगा तो वो हरियाणा में ही होगा, देश में अगर अच्छे दिन कहीं आएंगे, तो वो हरियाणा में ही आएंगे. 

जय हरियाणा !!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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