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शराब से होने वाली मौतों के लिए सरकार कितनी जिम्‍मेदार ?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 10 जुलाई, 2017 06:54 PM
  • 10 जुलाई, 2017 06:54 PM
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जब सरकार शराब से भारी राजस्व कमा सकती है, तो उसके कारण होने वाली मौतों पर जवाबदेही भी उसकी है.

रेस्टोरेंट में कढ़ाई पनीर और बटर नान खाने से लेकर क्रेडिट कार्ड के बिल और खादी का कुर्ता सब जीएसटी के अन्दर आ चुका है. अब इस देश के एक आम आदमी को इनपर 5 प्रतिशत से 12 प्रतिशत तक टैक्स देना होगा. आज सरकार द्वारा जीएसटी के टैक्स स्लैब में लगभग सभी चीजों को शामिल कर लिया गया है मगर अब भी शराब इससे दूर है. इस लेख के लिखे जाने तक शराब जीएसटी से बाहर है. इसके पीछे तर्क यह है कि शराब से भारी कमाई होती है और हर राज्‍य को इससे अतिरिक्‍त कमाई का अधिकार है.

अब अगर सरकार के इस फैसले पर गौर करें और इस फैसले के दूसरे पहलूओं पर विचार करें तो मिलता है कि जहां एक तरफ इससे सरकार को भारी राजस्व प्राप्त हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ इससे हो रही या इसके चलते हो रहीं मौतों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है. टीवी और वेबसाइटों की स्क्रीन से लेकर अखबारों के पन्नों तक रोज हम ऐसा कुछ न कुछ जरूर पढ़ते हैं जिसमें या तो शराब से हुई मौतों का जिक्र होता है या फिर ये बताया जाता है कि कहीं शराब के प्रभाव से व्यक्ति ने हत्या, बलात्कार, लूट का प्रयास किया या वो सड़क हादसे से जुड़ी घटनाओं का शिकार हुआ.

आज बात शराब पर निकली है तो आगे बढ़ाने से पहले हम आपको एक खबर से अवगत कराना चाहेंगे. खबर है कि उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में कच्ची शराब पीने से 21 लोगों की मौत हो गयी है. हो सकता है इस बता को पढ़कर आप चंद मिनटों के लिए उन लोगों की मौत पर अफसोस जताएं और फिर इसे एक आम घटना मान कर भूल जाएं. मगर हम इसे एक आम घटना नहीं मानेंगे और यही कहेंगे कि ये एक गहरी चिंता का विषय है.

शराब खरीदने के लिए लोगों की लगी हुई भीड़चूंकि विषय शराब और उससे उत्पन्न होने वाला जोखिम है तो हम यहां कुछ आंकड़े भी प्रस्तुत करना चाहेंगे. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ ) द्वारा 2014 में शराब की खपत पर पेश की...

रेस्टोरेंट में कढ़ाई पनीर और बटर नान खाने से लेकर क्रेडिट कार्ड के बिल और खादी का कुर्ता सब जीएसटी के अन्दर आ चुका है. अब इस देश के एक आम आदमी को इनपर 5 प्रतिशत से 12 प्रतिशत तक टैक्स देना होगा. आज सरकार द्वारा जीएसटी के टैक्स स्लैब में लगभग सभी चीजों को शामिल कर लिया गया है मगर अब भी शराब इससे दूर है. इस लेख के लिखे जाने तक शराब जीएसटी से बाहर है. इसके पीछे तर्क यह है कि शराब से भारी कमाई होती है और हर राज्‍य को इससे अतिरिक्‍त कमाई का अधिकार है.

अब अगर सरकार के इस फैसले पर गौर करें और इस फैसले के दूसरे पहलूओं पर विचार करें तो मिलता है कि जहां एक तरफ इससे सरकार को भारी राजस्व प्राप्त हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ इससे हो रही या इसके चलते हो रहीं मौतों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है. टीवी और वेबसाइटों की स्क्रीन से लेकर अखबारों के पन्नों तक रोज हम ऐसा कुछ न कुछ जरूर पढ़ते हैं जिसमें या तो शराब से हुई मौतों का जिक्र होता है या फिर ये बताया जाता है कि कहीं शराब के प्रभाव से व्यक्ति ने हत्या, बलात्कार, लूट का प्रयास किया या वो सड़क हादसे से जुड़ी घटनाओं का शिकार हुआ.

आज बात शराब पर निकली है तो आगे बढ़ाने से पहले हम आपको एक खबर से अवगत कराना चाहेंगे. खबर है कि उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में कच्ची शराब पीने से 21 लोगों की मौत हो गयी है. हो सकता है इस बता को पढ़कर आप चंद मिनटों के लिए उन लोगों की मौत पर अफसोस जताएं और फिर इसे एक आम घटना मान कर भूल जाएं. मगर हम इसे एक आम घटना नहीं मानेंगे और यही कहेंगे कि ये एक गहरी चिंता का विषय है.

शराब खरीदने के लिए लोगों की लगी हुई भीड़चूंकि विषय शराब और उससे उत्पन्न होने वाला जोखिम है तो हम यहां कुछ आंकड़े भी प्रस्तुत करना चाहेंगे. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ ) द्वारा 2014 में शराब की खपत पर पेश की गयी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 30 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं जिसमें से 11 प्रतिशत लोग हद से ज्यादा शराब पीते हैं. अब अगर बात शराब की सालाना खपत पर की जाए तो एक औसत भारतीय एक साल में 4.3 लीटर और एक ग्रामीण भारतीय 11.4 लीटर शराब पीता है.

शराब से हुई मौतों पर चर्चा की जाये तो डब्लूएचओ के आंकड़ों के अनुसार 2014 तक 3.3 मिलियन लोग शराब पीने से मर चुके हैं. ध्यान रहे कि  सिर्फ शराब पीने से ही 2009 में हुए एक हादसे में गुजरात में 136 और 2015 में महाराष्ट्र में 94 लोग मर चुके हैं और वर्तमान में  उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में शराब पीने के चलते हुई 18 लोगों की मौत हमारे सामने है.

अब तक हम डब्लूएचओ के आंकड़ों को आधार बनाकर बात कर रहे हैं अब हम आपको राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के डाटा से अवगत कराएंगे जो निश्चित तौर पर आपको हैरत में डाल देगा. एनसीआरबी के डाटा के अनुसार महिलाओं के साथ होने वाले 70 से 85 प्रतिशत अपराधों में कहीं न कहीं शराब या उसके प्रभावों का हाथ होता है. 2015 में एनसीआरबी द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार केवल 2014 में 2026 महिलाओं का यौन शोषण हुआ, 1423 महिलाओं के अपरहण का मामला प्रकास में आया, 1286 महिलाएं बलात्कार का शिकार हुईं साथ ही 11,206 महिलाओं ने हिंसा और अपराध को किसी न किसी रूप में देखा. इस पूरे सर्वे की खास बात ये थी कि इन सभी मामलों में शराब सक्रिय रूप से जुड़ी हुई है.

गौरतलब है कि शराब की बोतल से लेकर पान मसाले की पुडिया और सिगरेट के रैपर पर एक वैधानिक चेतावनी देखने को मिलती है जिसमें इसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानते हुए मौत का कारण माना गया है. इनको खा पीकर लोगों का मरना आम बात हो गयी है और इस पूरे प्रकरण में सरकार की नाक के नीचे इनका विक्रय इस बात की ओर साफ इशारा करता है कि सरकार को लोगों की मौत से कोई मतलब नहीं है और उसे बस अपने भारी राजस्व की चिंता है.

जिस तरह शराब बेचीं जा रही है उससे साफ पता चलता है कि सरकार को जनता की बिल्कुल भी परवाह नहीं हैसरकारें इस बात को बेहतर ढंग से जानती हैं कि यदि उन्होंने शराब या उन उत्पादों के इस्तेमाल और उनके क्रय - विक्रय पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया तो उन्हें भारी नुकसान होगा. अब प्रश्न उठता है कि चूंकि ये सब सरकार की अगुवाही में हो रहा है और इससे लोग मर रहे हैं तो क्या इन मौतों की जिम्मेदार सरकार है ? अगर उत्तर प्रदेश, कर्नाटक या मध्य प्रदेश में शराब के सेवन से कोई मरता है तो क्या वहां के मुख्यमंत्री को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए क्या उस मौत पर उस राज्य के शासक पर 302 का मुकदमा दर्ज होना चाहिए?

बात बहुत सीधी सी है जिस तरह गुड टेररिज्म बैड टेररिज्म जैसा कुछ नहीं होता वैसे ही नशे में भी नहीं होता. कोई नशा न अच्छा होता है न बुरा नशा बस नशा होता है. यदि सरकार शराब, पान मसाले और सिगरेट को वैधानिक चेतावनी के साथ बेच सकती है तो फिर उसे चरस, गांजे, भांग, कोकेन, हेरोइन, ब्राउन शुगर जैसी चीजों को भी खुले बाजार में बेचना चाहिए. क्यों सरकार इनके बेचने पर इतना हो हल्ला मचाती है.

बहरहाल, जिस तरह आजमगढ़ में शराब पीने से 18 लोगों की मौत हुई वो न सिर्फ एक शर्मसार करने वाली घटना है बल्कि ये भी बताने के लिए काफी है कि न ही केंद्र को और न ही राज्य सरकारों को एम आम आदमी की मौत से कोई मतलब है. लोग पहले भी शराब पी कर मर रहे थे आगे भी मरेंगे. सरकार तब भी पैसा कमा रही थी आगे भी कमाएगी. हम इस तरह राजस्व कमाने के लिए न तो सरकार की निंदा कर रहे हैं और न ही आलोचना.

यदि सरकार नशे के अन्य उत्पादों पर प्रतिबंध लगा चुकी है तो उसे शराब को भी प्रतिबंधित करना चाहिएहम बस इतना जानने के इच्छुक हैं कि आखिर आज तक उसने उन 33 लाख परिवारों के साथ क्या किया जिन्होंने शराब के चलते अपनी जान गंवाई है. हो सकता है इस बात से आप असहमत हों मगर सत्य यही है कि प्रत्येक नागरिक के लिए सरकार ही जिम्मेदार है. शराब पीने से मरता तो केवल एक व्यक्ति है मगर अब तक हमने कभी उन बिन्दुओं पर नहीं सोचा कि आखिर उस परिवार का क्या होता होगा जिसने एक बुरी लत के चलते किसी अपने को खोया है.

शराब से या फिर उसके प्रभाव से हुई मौतों पर हम यही कहेंगे कि अगर सरकार इन मौतों पर अपना रुख साफ नहीं कर सकती है तो फिर उसे अपने को इन मौतों का दोषी मानते हुए कोर्ट के सामने हाजिर हो जाना चाहिए और ये कबूल कर लेना चाहिए कि इन मौतों पर उसकी जिम्मेदारी है.

अंत में हम यही कहेंगे कि यदि सरकार वाकई लोगों के लिए गंभीर है तो फिर उसे शराब से लेकर हेरोइन कोकेन तक किसी भी तरह के नशे पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए और ये मान लेना चाहिए कि नशा सिर्फ नशा है इसमें अच्छा बुरा कुछ नहीं है और इससे विकास न होकर केवल विनाश ही होता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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