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मानसिक रूप से स्वस्थ रहना है तो गुड सेंस ऑफ़ ह्यूमर ज़रूरी है!

    • prakash kumar jain
    • Updated: 12 जनवरी, 2023 06:40 PM
  • 12 जनवरी, 2023 06:40 PM
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जब आप मॉरल हाई ग्राउंड लेते हुए स्वयं को सबसे अलग बताते हो तो आपका वाचाल होना भारी पड़ता है.आप स्वयं ही मजाक का पात्र बन जाते हैं. आज पॉलिटिकल डिस्कोर्स में यही हो रहा है, युगांतर को गौण रखते हुए माइथोलॉजिकल किरदारों का अवतरण हो रहा है.

कल ही की बात है मनोवैज्ञानिक 'हास्य' को नकारते थे क्योंकि उनकी दृष्टि में हास्य श्रेष्ठता, अश्लीलता, फ्रायडियन आईडी संघर्ष, या किसी की सच्ची भावनाओं को छिपाने के लिए एक कवच है. उनकी मान्यता थी एक व्यक्ति हास्य का उपयोग दूसरों को नीचा दिखाने के लिए या अपने स्वयं के मूल्य को बढ़ाने के लिए करता है. सो इंसान को इस अवांक्षनीय व्यवहार से भरसक बचना चाहिए. लेकिन समय ने करवट ली, रिसर्च हुए और पता चला कि इंसान का विनोदी स्वभाव तो उसकी चारित्रिक शक्ति है, विशेषता है. दरअसल विधा यानि साइंस कोई भी हो, उनके विशेषज्ञ सक्षम होते है अपना पॉइंट ऑफ़ व्यू समझाने में जो पॉजिटिव भी होता है तो नेगेटिव भी हो सकता है. तो मनोविज्ञान को बांटा जा सकता है - नकारात्मक मनोविज्ञान और सकारात्मक मनोविज्ञान। अपनी अपनी फाइंडिंग विद प्रॉपर सपोर्टिंग निकलती है लेकिन सवाल है कन्विंसिंग कौन सी है ? जब सकारात्मक मनोविज्ञान ने बताया कि हास्य का उपयोग दूसरों को अच्छा महसूस कराने, अंतरंगता हासिल करने या अत्यधिक तनाव में मदद करने के लिए किया जा सकता है, तो बात कन्विंसिंग लगी। कृतज्ञता, आशा और आध्यात्मिकता के साथ, हास्य की भावना उन श्रेष्ठ शक्तियों के समूह से ही है जो हमें दुनिया से संबंध बनाने और जीवन को अर्थ प्रदान करने में मदद करते हैं.

अब तो शोध में भी आ गया है इसलिए जितना हो सके इंसान को हंसना चाहिए

हास्य की उपयोगिता ज्ञान अर्जन में भी है. लर्निंग प्रोसेस में भी है. बात फील करने की है और हरेक फील करता भी है कि ह्यूमर एक्टिविटी हो या एक्सरसाइज, इंसान इमोशनली स्ट्रांग होकर उभरता है, और आशायें भी पुनर्जीवित होती हैं. और फिर हास्य ज्ञान के साथ भी जुड़ा हुआ है - एक बुद्धिमान व्यक्ति जानता है कि हास्य का उपयोग कैसे करना है या खुद पर कब हंसना है! एक अध्ययन बताता है वे...

कल ही की बात है मनोवैज्ञानिक 'हास्य' को नकारते थे क्योंकि उनकी दृष्टि में हास्य श्रेष्ठता, अश्लीलता, फ्रायडियन आईडी संघर्ष, या किसी की सच्ची भावनाओं को छिपाने के लिए एक कवच है. उनकी मान्यता थी एक व्यक्ति हास्य का उपयोग दूसरों को नीचा दिखाने के लिए या अपने स्वयं के मूल्य को बढ़ाने के लिए करता है. सो इंसान को इस अवांक्षनीय व्यवहार से भरसक बचना चाहिए. लेकिन समय ने करवट ली, रिसर्च हुए और पता चला कि इंसान का विनोदी स्वभाव तो उसकी चारित्रिक शक्ति है, विशेषता है. दरअसल विधा यानि साइंस कोई भी हो, उनके विशेषज्ञ सक्षम होते है अपना पॉइंट ऑफ़ व्यू समझाने में जो पॉजिटिव भी होता है तो नेगेटिव भी हो सकता है. तो मनोविज्ञान को बांटा जा सकता है - नकारात्मक मनोविज्ञान और सकारात्मक मनोविज्ञान। अपनी अपनी फाइंडिंग विद प्रॉपर सपोर्टिंग निकलती है लेकिन सवाल है कन्विंसिंग कौन सी है ? जब सकारात्मक मनोविज्ञान ने बताया कि हास्य का उपयोग दूसरों को अच्छा महसूस कराने, अंतरंगता हासिल करने या अत्यधिक तनाव में मदद करने के लिए किया जा सकता है, तो बात कन्विंसिंग लगी। कृतज्ञता, आशा और आध्यात्मिकता के साथ, हास्य की भावना उन श्रेष्ठ शक्तियों के समूह से ही है जो हमें दुनिया से संबंध बनाने और जीवन को अर्थ प्रदान करने में मदद करते हैं.

अब तो शोध में भी आ गया है इसलिए जितना हो सके इंसान को हंसना चाहिए

हास्य की उपयोगिता ज्ञान अर्जन में भी है. लर्निंग प्रोसेस में भी है. बात फील करने की है और हरेक फील करता भी है कि ह्यूमर एक्टिविटी हो या एक्सरसाइज, इंसान इमोशनली स्ट्रांग होकर उभरता है, और आशायें भी पुनर्जीवित होती हैं. और फिर हास्य ज्ञान के साथ भी जुड़ा हुआ है - एक बुद्धिमान व्यक्ति जानता है कि हास्य का उपयोग कैसे करना है या खुद पर कब हंसना है! एक अध्ययन बताता है वे लोग, जिनका अतीत के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रहता है, ह्यूमर का सकारात्मक उपयोग करते हैं.

और जिनकी अतीत के प्रति निराशावादी सोच हैं, उनका हास्य भी एक प्रकार से आत्मघाती ही होता है. आजकल खूब सुनते हैं लाफ्टर थेरेपी; और कुछ नहीं ह्यूमर थेरेपी ही तो है जो इलाज में सहायक होती है. ह्यूमर पर बात अचानक ही नहीं उठाई है बल्कि ऐसा करने के लिए प्रेरित किया था साउथ अफ्रीका के एक्स स्पिनर बॉलर रॉबिन पीटरसन के गुड सेंस ऑफ़ ह्यूमर से ओतप्रोत ट्वीट ने.

क्रिकेट हो या कोई और खेल, हर जगह ये कहावत फिट बैठती है कि रिकॉर्ड बनते ही हैं टूटने के लिए. लेकिन अगर आपके नाम कोई शर्मनाक रिकॉर्ड दर्ज हो, जो कि जिंदगी भर के लिए शायद ही आपके नाम से हट पाए और अगर वह रिकॉर्ड टूट जाए, तो जाहिर सी बात है आप खुश होंगे. पीटरसन ने इसी ख़ुशी को बड़े ही संतुलित ह्यूमर के साथ प्रकट किया, 'Sad to lose my record today. oh well, records are made to be broken I guess.

Onto the next one #ENGvIND' उनके नाम टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में सबसे महंगा ओवर फेंकने का वर्ल्ड रिकॉर्ड था, जिसे वेस्टइंडीज के दिग्गज ब्रायन लारा ने बनाया था. इंग्लैंड के खिलाफ जारी पांचवें टेस्ट मैच के दूसरे दिन भारतीय कप्तान जसप्रीत बुमराह ने स्टुअर्ट ब्रॉड पर 29 रन बनाकर टेस्ट क्रिकेट में एक ही ओवर में सर्वाधिक रन बनाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया और महान क्रिकेटर ब्रायन लारा की उपलब्धि को एक रन से पीछे छोड़ दिया. पीटरसन के ट्वीट को पढ़कर तो एकबारगी स्टुअर्ट भी मन ही मन मुस्करा उठे होंगे।

उनका ट्वीट है -'आज अपना रिकॉर्ड खोने का दुख है ओह ठीक है, रिकॉर्ड तोड़े जाने के लिए बनते हैं मुझे लगता है। अब अगले पर।' ब्राड ने पिछले साल की श्रृंखला के पांचवें टेस्ट में भारत की पहली पारी के 84 वें ओवर में 35 रन लुटा दिये थे जिसमें छह अतिरिक्त रन (पांच वाइड और एक नो बॉल) भी शामिल थे। भारतीय कप्तान बुमराह 16 गेंद में चार चौके और दो छक्कों से 31 रन बनाकर नाबाद रहे थे. अब जब क्रिकेट की बात हो रही है तो बुमराह की इसी इनिंग पर सचिन का अंदाज भी सकारात्मक ह्यूमर के ही अनुरूप था।

वे कह बैठे -'क्या ये युवी हैं या बुमराह ? 2007 की याद दिला दी !' क्या खूब उन्होंने अतीत को याद करते हुए युवी का जिक्र किया ! क्यों किया, उनका क्या मंतव्य था, सभी समझ गए और उनके अंदाज के मुरीद हो गए ! दोनों ओवरों में कॉमन क्या था - स्टुअर्ट ! आजकल प्रमोशन का ज़माना हैं, फिल्म हो , कोई खेल आयोजन हो, कोई लाइन ऑफ़ बिज़नेस ही क्यों ना हों ! मकसद लोगों को आकर्षित करना होता है तो प्रमोशनल एक्टिविटी में थोड़ा बहुत पॉजिटिव हास्य का पुट डाल दें, सोने पे सुहागा वाली बात हो जाती है.

दुर्भाग्य ही है डालते सब हैं लेकिन वे पॉजिटिव ह्यूमर क्वालीफाई नहीं करते. नतीजन लोगों पर क्षणिक प्रभाव ही पड़ता है. हालांकि एकाध बार ऐसा भी हो जाता है कि पॉजिटिव हास्य भी अपेक्षित इम्पैक्ट क्रिएट नहीं कर पाता क्योंकि अन्य वजहें हावी हो जाती है. पिछले साल ही रणवीर कपूर का अपनी फिल्म 'शमशेरा' का प्रमोशन स्टाइल सकारात्मक हास्य लिए हुए था जब वे कहते हैं, 'मैं भी नेगेटिव रोल करना चाहता हूं ताकि लोग बच्चों से कहें- सो जा वरना रणबीर आ जाएगा !'

बकौल रणबीर, "हम हमेशा हीरो की साइड लेते हैं पर...विलेन के बिना हीरो...अपनी हीरोगिरी कहां दिखाएगा।' लेकिन कुछेक ही सकारात्मकता लिए हास्य होते हैं वरना तो विडंबना ही है कि हास्य के नाम पर फूहड़पन परोसा जा रहा है, लाफ्टर शो होते हैं और टारगेट जिनको किया जाता है और जिस प्रकार किया जाता है। कदापि स्वागत योग्य नहीं है. पॉलिटिकल डिस्कोर्स में भी आलोचना के लिए तंज भरी बेहूदी बातें की जाती हैं.

समझ नहीं आता हास्य के पुट के साथ आलोचनाएं असंयत क्यों हो जाती है ? यही तो नकारात्मक सोच है. एक होड़ सी मची हुई है परस्पर कीचड़ उछालने की, नीचा दिखाने की इस लॉजिक के साथ कि तुमने भी तो कल ऐसा कहा था ! मतलब तू भी तो गलत था, मैंने गलत किया तो क्या हर्ज ? बात संयत रहने की हो रही है तो एक बार फिर क्रिकेटर की याद आ जाती है, दिनेश कार्तिक की प्रशंसा करनी पड़ती है जब वे कहते हैं, 'इतने मनोरंजक व रोमांचक दिन के खेल के बाद...

मुझे यकीन है कि शीर्षक...इससे कहीं बेहतर...हो सकता था।' दरअसल वे इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड की आलोचना कर रहे थे जिन्होंने पंत के आउट होने को हेड लाइन दी, 'जो रूट ने प्रभावशाली पंत को आउट किया !' और जब आप मॉरल हाई ग्राउंड लेते हुए स्वयं को सबसे अलग बताते हो तो आपका वाचाल होना भारी पड़ता है, आप स्वयं ही मजाक का पात्र बन जाते हैं. आज पॉलिटिकल डिस्कोर्स में यही हो रहा है, युगांतर को गौण रखते हुए तमाम माइथोलॉजिकल किरदारों का अवतरण हो रहा है, कुल मिलाकर हास्य वही होना चाहिए जिससे सकारात्मकता का वातावरण बनें ! हास्य में फूहड़ता और किसी को नीचा दिखाने के मकसद से चरित्र हनन आदि क्षणिक सनसनी भर फैला सकते हैं, और कुछ नहीं ! 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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