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कहानी: साइकिल वाली लड़की

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 03 जून, 2021 10:04 PM
  • 03 जून, 2021 10:04 PM
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जरूरी नहीं है कि हर सपना बड़ा हो. कभी-कभी छोटे सपने भी हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन जाते हैं. उनसे प्रेम ही इतना होता है... आज इस कहानी के जरिए मैं एक ऐसे ही छोटे सपने के बारे में आपको बता रही हूं. जिसे एक लड़की रोज देखा करती थी.

मधु दिल्ली आ गई थी. एक अच्छी प्राइवेट कंपनी में उसकी नौकरी जो लग गई थी. कुछ दिन वह अपनी दोस्त के पास रूकी. 25-26 साल की मधु काफी स्मार्ट और मॉडर्न लड़की है. उसे जल्दी से अपने लिए किराए पर एक फ्लैट लेना था. सहेली के घर ज्यादा दिन रहना उसे ठीक नहीं लग रहा था. दो-तीन चक्कर लगाने के बाद बड़ी मुश्किल से उसे एक कमरे का घर मिला. संकरी गलियां जिन पर सैकड़ों केबल के तार लटक रहे थे.

सामने वाले मकान से एक आंटी खिड़की से झांकी और दो बार इधर-उधर देखने के बाद अंदर चली गईं. बाहर तेज धूप होने के बाद भी उस गली में धूप का कहीं कोई निशान नहीं था. पीछे की गली होने के कारण कोई चहल-पहल भी नहीं थी. दरवाजे के बाहर पुरानी कार खड़ी थी जिस पर कबूतरों का बसेरा था. मधु चुपचाप कभी गली को देखती तो कभी वहां लटके हुए तारों को. वह मन ही मन सोच रही थी कि मैं यहां कैसे रहूंगी.

तभी ब्रोकर ने आवाज लगाया, मैडम अंदर तो आ जाओ, मैं बता रहा हूं दिसंबर के समय में आपको ऐसा फ्लैट कहीं नहीं मिलेगा. इंडिपेंडेंट घर है, यहां आप कभी भी आराम से आओ-जाओ. कोई रोक-टोक नहीं है. मधु ने कहा वो तो ऑपिस शिफ्ट के लिए ठीक है भैया, लेकिन मुझे तो सेफ्टी की चिंता है.

ब्रोकर ने कहा मैडम, सेफ्टी की चिंता आप मत कीजिए, यहां ऐसी कोई घबराने वाली बात नहीं है और दरवाजा डबल है वो डबल लॉक के साथ. पास में ही केयर टेकर रहता है वह ध्यान रखेगा. 

मधु बिना मन के अंदर गई, लेकिन घर की सेटिंग देखकर थोड़ी राहत महसूस की. घर के अंदर सोफा, बेड, गद्दे, अलमारी और टीवी रखी हुई थी. छोटा सा किचन और साफ-सुथरा बाथरूम था. उसने ब्रोकर से कहा, भैया मैं आपको एडवांस रेंट दे देती हूं और आने वाले संडे को मैं शिफ्ट हो जाउंगी.

कुछ दिनों में वह घर में शिफ्ट हो गई लेकिन उसे अपने फैसले पर तब अफसोस हुआ जब उसे अपनी साइकिल की याद आई. वह मन ही मन सोचने लगी कि यहां तो ना साइकिल रखने की जगह है ना चलाने की. वह बिस्तर पर लेटी पहले अपने शहर और फिर अपने बचपन के दौर के अपने ख्वाब में खो...

मधु दिल्ली आ गई थी. एक अच्छी प्राइवेट कंपनी में उसकी नौकरी जो लग गई थी. कुछ दिन वह अपनी दोस्त के पास रूकी. 25-26 साल की मधु काफी स्मार्ट और मॉडर्न लड़की है. उसे जल्दी से अपने लिए किराए पर एक फ्लैट लेना था. सहेली के घर ज्यादा दिन रहना उसे ठीक नहीं लग रहा था. दो-तीन चक्कर लगाने के बाद बड़ी मुश्किल से उसे एक कमरे का घर मिला. संकरी गलियां जिन पर सैकड़ों केबल के तार लटक रहे थे.

सामने वाले मकान से एक आंटी खिड़की से झांकी और दो बार इधर-उधर देखने के बाद अंदर चली गईं. बाहर तेज धूप होने के बाद भी उस गली में धूप का कहीं कोई निशान नहीं था. पीछे की गली होने के कारण कोई चहल-पहल भी नहीं थी. दरवाजे के बाहर पुरानी कार खड़ी थी जिस पर कबूतरों का बसेरा था. मधु चुपचाप कभी गली को देखती तो कभी वहां लटके हुए तारों को. वह मन ही मन सोच रही थी कि मैं यहां कैसे रहूंगी.

तभी ब्रोकर ने आवाज लगाया, मैडम अंदर तो आ जाओ, मैं बता रहा हूं दिसंबर के समय में आपको ऐसा फ्लैट कहीं नहीं मिलेगा. इंडिपेंडेंट घर है, यहां आप कभी भी आराम से आओ-जाओ. कोई रोक-टोक नहीं है. मधु ने कहा वो तो ऑपिस शिफ्ट के लिए ठीक है भैया, लेकिन मुझे तो सेफ्टी की चिंता है.

ब्रोकर ने कहा मैडम, सेफ्टी की चिंता आप मत कीजिए, यहां ऐसी कोई घबराने वाली बात नहीं है और दरवाजा डबल है वो डबल लॉक के साथ. पास में ही केयर टेकर रहता है वह ध्यान रखेगा. 

मधु बिना मन के अंदर गई, लेकिन घर की सेटिंग देखकर थोड़ी राहत महसूस की. घर के अंदर सोफा, बेड, गद्दे, अलमारी और टीवी रखी हुई थी. छोटा सा किचन और साफ-सुथरा बाथरूम था. उसने ब्रोकर से कहा, भैया मैं आपको एडवांस रेंट दे देती हूं और आने वाले संडे को मैं शिफ्ट हो जाउंगी.

कुछ दिनों में वह घर में शिफ्ट हो गई लेकिन उसे अपने फैसले पर तब अफसोस हुआ जब उसे अपनी साइकिल की याद आई. वह मन ही मन सोचने लगी कि यहां तो ना साइकिल रखने की जगह है ना चलाने की. वह बिस्तर पर लेटी पहले अपने शहर और फिर अपने बचपन के दौर के अपने ख्वाब में खो गई.

नए जमाने में पुराने ख्यालों वाली लड़की जिसका साइकिल पहला प्यार है

किसी को बाइक चलाना पसंद होता है तो किसी को कार, लेकिन मधु बचपन से साइकिल चलाना बहुत पसंद है. जब वह तीसरी कक्षा में पढ़ती थी तो दीदी की साइकिल चुराकर बाहर मोहल्ले में लेकर जाती और फिर चलाने की कोशिश करती. यह देखकर उसकी दीदी रैना उसे टोकती, चला तो रही हो लेकिन अगर साइकिल को खरोंच भी आई तो तेरी टांग तोड़ दूंगी.

आखिरकार मधु की कोशिश एक दिन कामयाब हुई और वह धीरे-धीरे साइकिल चलाना सीखने लगी. एक दिन सामने रहने वाले चाचा ने मधु से कहा, साइकिल सीखते वक्त गिरना अच्छी बात है बेटा, चोट लगना बहुत जरूरी है, क्योंकि गिरने के बाद तुम दोगुनी तााकत के साथ उठोगी और साइकिल चलाना सीख जाओगी. अब क्या एक दिन मधु साइकिल सीखते वक्त गिरी लेकिन किसी को बताया नहीं. उसे मन ही मन ये जरूर लगा कि अब वह साइकिल चला लेगी.

हुआ भी ऐसा ही मधु अब साइकिल चालाना सीख गई. मधु के खुशी का ठिकाना नहीं था वह अपनी उम्र से बड़े बच्चों को भी पीछे सीट पर बिठाती और पूरी ताकत से साइकिल दौड़ाती. 

एक दिन मधु स्कूल के लिए लेट हो गई और उसकी स्कूल बस छूट गई. उस दिन वह दीदी के साथ साइकिल की पीछे वाली सीट पर बैठकर स्कूल गई और फिर उसने दोबारा कभी बस नहीं पकड़ी. अब मधु को सिर्फ उस दिन का इंतजार था कि कब वह 9वीं कक्षा में जाती क्योंकि तब उसके लिए नई साइकिल खरीदी जाएगी. उस समय मधु के परिवार में जो भी बच्चा 9वीं में जाता उसे साइकिल दी जाती थी.

आखिरकार मधु का 9वीं में जाने का समय आ गया. उसने पापा से कहा, मैं खुद मेरी साइकिल पसंद करूंगी, क्योंकि मैं चाहती हूं कि मेरी साइकिल सबसे अच्छी हो. मधु ने सबसे लेटेस्ट पिंक कलर की साइकिल ली थी. जिसमें बास्केट लगी थी. अगले दिन मधु को स्कूल जाने की इतनी जल्दी थी कि उसका दिन ही नहीं कट रहा था. मधु रोज अपनी साइकिल को पोछती, उसके लिए की की रिंग खरीदती और दोस्तों के घर उनसे मिलने भी साइकिल से जाती.

मधु के इस सिलसिले पर 12वीं के बाद अचानक तब ब्रेक लग गया. जब आगे की पढ़ाई के लिए उसे अपने शहर से दूर जाना पड़ा. वह अक्सर फोन पर मां से पूछती, मम्मी मेरी साइकिल ठीक तो है. उसे भाई को चलाने मत देना. एक दिन अचानक मम्मी ने मधु को बयाता कि, मैनें तुम्हारी साइकिल दर्जी अंकल को दे दी है. वह रखे-रखे खराब हो रही थी. उससे अंकल की बेटी अब स्कूल जाएगी. पहले तो मधु को गुस्सा आया फिर उसने खुद को यह कहकर समझा लिया कि कोई नहीं जब मैं नौकरी करूंगी तो दूसरी साइकिल जरूर खरीदूंगी.

एक वो दिन था और एक आज का दिन, वो पहले वाली मधु जिंदगी की भागदौड़ में कहीं गुम सी हो गई थी. मधु खुद से किए वादे को कहीं भूल सी गई थी. उसने अभी तक साइकिल नहीं खरीदी थी. पहले पढ़ाई फिर जॉब के सिलसिले में कई शहर बदले, जिंदगी भागती चली गई लेकिन मधु का साइकिल प्रेम नहीं गया.

अचानक मधु के फोन की घंटी बजी. दूसरी से आवाज पापा की थी.

'मधु तुम पहुंच गई रूम पर, कैसा है वहां?'

मधु ने धीरे से कहा पापा, "सब तो है लेकिन साइकिल रखने की कहीं जगह नहीं है. ना पार्किंग है ना घर के आगे ऐसी जगह, अब मैं साइकिल कैसे खरीदूंगी?'

पापा ने कहा अभी-अभी तो नए शहर में गई हो पहले ऑफिस तो जाओ फिर कोई दूसरा घर ले लेना. यह सुनकर मधु ने बस 'हम्म' कहा. अगले दिन जल्दी उठकर वह ऑफिस गई, पता चला उसका ऑफिस के पास बहुत बड़ा साइकिल मार्केट है. उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था. लंच या काम से फुर्सत होने पर उसे जब मौका मिलता, वो इस बाजार में घुस आती. बस अलग-अलग साइकिल को देखती रहती. आंखों में चमक लिए. जैसे कोई बच्चा चिड़ियाघर में घूम रहा हो. रंग बिरंगी साइकिलों को बारी बारी से देख, वह उनके साथ अपने सपने को जोड़ती. जैसे बचपन लौट आया था उसका. उस चहल-पहल बाजार के बीच चहकती, चिल्लाती और साइकिल पर भागती हुई छुटकू मधु दिखने लगती. ऑफिस जाने की तरह साइकिल मार्केट से गुजरना उसकी अनुशासित दिनचर्या का हिस्सा बन गया था. कभी कभी तो लगता कि शायद वह उस मार्केट जाने की गरज से ही ऑफिस जाती है. उसके मन में साइकिल खरीदने का ख्याल रोज आता, लेकिन मजबूरी यह कि वह जहां रहती थी वहां साइकिल रखने की जगह नहीं थी.

एक दिन ऑफिस से लौटते हुए मधु को सड़क की ओर वो ब्रोकर दिखाई दे गया.

मधु ने लपक कर आवाज लगाई, 'ओ भइया, सुनो'.

'क्या हुआ मैडम, घर मस्त है न?', सड़क क्रॉस करते हुए ब्रॉकर मानो मधु से फीडबैक ले रहा था.

'घर तो ठीक है, लेकिन उसको बदलना है. जो नया घर चाहिए, उसमें पार्किंग होना चाहिए', मधु ने इस बार 'पार्किंग' पर जोर दिया था.

ब्रोकर ने पूछा, 'मैडम क्या रखना है- टू व्हीलर या फोर व्हीलर?'

'साइकिकल', आंखों में उमंग लिए मधु ने जवाब तो दे दिया, लेकिन थोडी देर के लिए दोनों खामोश हो गए. ब्रोकर ने चुप्पी तोड़ी. बोला, 'मिल तो जाएगा ऐसा फ्लैट लेकिन किराया ज्यादा लगेगा.' मधु की इतनी सैलरी भी नहीं थी कि वह इतना मंहगा घर अकेले ले लेती. घऱवाले पहले से ही किसी अनजान के साथ रहने के लिए मना कर चुके थे. मधु के एरिया में ज्यादातर 2 रूम के सेट ही थे जो की मंहगे थे. 

कुछ दिन यूं ही गुजरे. फिर एक दिन लंच टाइम में मधु की साथी प्रभा ने कहा, आज जल्दी लंच कर लेते हैं. मुझे एक्चुअली साइकिल खरीदनी है. इतना सुनते ही बहुत खुशी हुई. उसे लगा चलो कोई तो उसकी भावना को अच्छे से समझ सकता है. मधु ने कहा चलो अभी चलते हैं. साइकिल मार्केट तो वैसे ही मधु की फेवरेट डेस्टिनेशन थी. उसने प्रभा की साइकिल खुद पसंद की.

उसी रात मधु खुद से बात करती हुई यूं करवट बदलती रही. सबसे पहले घर बदलूंगी फिर अपनी साइकिल के साथ अपने सपने को जीउंगी... क्योंकि जब मैं साइकिल चलाती हूं तो लगता है पूरी दुनिया को पीछे छोड़ मैं हवा में उड़ रही हूं. कोई मजबूरी मुझे बांध नहीं सकती. उस वक्त ना कोई तनाव होता है ना कोई गुस्सा. वो वक्त सिर्फ मेरा होता है….

लेकिन मधु के ख्वाब को सच होने में अभी समय लगने वाला था. मधु के कान में कुछ इन्फेक्शन हो गया. डॉक्टर को दिखाया गया तो पता चला कि एक छोटे से ऑपरेशन की जरूरत है. ऑपरेशन के बाद 6 महीने तक पूरा करना होगा. यानी रनिंग, स्विमिंग, साइकिलिंग जैेसी यदि कोई एक्टिविटी करती हो, तो बंद कर देना. मधु ने खुद को समझा लिया कि अब ठीक होने के बाद ही वह साइकिल के बारे में सोचेगी.

एक दिन उसके भाई का कॉल आया, उसने कहा कि मैं दिल्ली आ रहा हूं. मेरा ट्रांसफर हो गया है. तेरे ऑपरेशन से पहले घर बदलना पड़ेगा, क्योंकि मैं वहां नहीं रह सकता. घर बदलने की बात की खुशी ने मधु के दिमाग से ऑपरेशन की चिंता दूर कर दी. उसे फिर साइकिल दिख रही थी. मधु जब ऑपरेशन थियेटर में व्हीलचेयर पर जा रही थी तो उससे भाई और दोस्तों ने पूछा, ठीक होने के बाद क्या चाहिए. उसने हंसते हुए कहा, साइकिल. डॉक्टर ने भी कहा, इतनी बहादुर मरीज पहले नहीं देखा. 

जब वह अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर आई तो उसका रहने का ठिकाना बदल गया था. उसकी सोसाइटी में बहुत बड़ी पार्किंग थी. उसके फ्लैट में भी काफी जगह थी. वहां जाते ही उसने सोचा अब वह साइकिल खरीद सकती है. दिन बीत गए, 6 महीने बाद अब वह ठीक होकर साइकिल की दुकान पर अपने दोस्त और भाई के साथ खड़ी थी. वो भी अपने ऑफिस के पास वाले मार्केट में.

मधु सोच रही थी सपने सच होते हैं. आखिरकार इतने लंबे इंतजार के बाद उसका बचपन लौट रहा था. वह साइकिल खरीद रही थी, किसी और के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए.

जब कैब वाले अंकल ने थोड़े गुस्से भरे लहजे में कहा कि इतनी दूर साइकिल लेकर मैं नहीं जाऊंगा, एक्स्ट्रा पैसे लगेंगे. मधु ने झट से हां कह दिया और कहा अंकल मिठाई भी ले जाना... आज शायद उसके पांव जमीन पर नहीं थे. मन ही मन वो गा रही थी, आज मैं ऊपर आसमां नीचे, आज मैं आगे जमाना है पीछे...

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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