• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

मर्दों वाली दुनिया को झन्नाटेदार थप्पड़ है गंगूबाई काठियावाड़ी!

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 08 फरवरी, 2022 01:30 PM
  • 08 फरवरी, 2022 01:20 PM
offline
गंगूबाई काठियावाड़ी ट्रेलर में कहती हैं कि 'शक्ति, सदबुद्धि और संपत्ति जब तीनों ही औरतें हैं तो इन मर्दों को किस बात का गुरूर? कोठे पर अपनी इज्जत खोने वाली इस महिला में इतनी शक्ति थी कि लोग उसका सम्मान करते थे और उसके सामने इज्जत से पुरुष भी सिर झुका देते थे.

'शक्ति, सदबुद्धि और संपत्ति जब तीनों ही औरतें हैं तो इन मर्दों को किस बात का गुरूर?' यह हम नहीं बल्कि फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' के ट्रेलर (Gangubai Kathiawadi Trailer) में आलिया भट्ट बड़े ही दमदार अंदाज में कहते हुए दिख रही हैं. वैसे यह फिल्म काल्पनिक नहीं है. यह फिल्म उस महिला की जिंदगी पर बनी है जो उस दुनिया पर राज करती थी, जहां औरतों के खड़े होने पर ही उसे बदचलन कहा जाता है.

हम बात कर रहे हैं मुंबई 'माफिया क्वीन' की बेखौफ गंगूबाई की. एक कोठेवाली की असल कहानी उन मर्दों की बदचलन दुनिया की हकीकत को बयां करती है जो महिलाओं की इज्जत के साथ खेलते हैं.

मुंबई अंडरवर्ल्ड की दुनिया में गंगूबाई ने अपना कद इतना बढ़ा लिया था कि कोठे पर उनकी मर्जी के बिना बड़े से बड़ा गैंगस्टर भी कदम रखने की हिम्मत नहीं रखता था

वे पुरुष जो खुद कोठे पर जाते हैं और बदनाम कोठेवाली को करते हैं. ये सिर्फ गंगूबाई थीं जिनकी मर्जी के बिना कोई पुरुष किसी तवायफ के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकता था. ऐसे पुरुषों को गंगूबाई काठियावाड़ी ने अपने समय में अच्छा सबक सिखाया. कोठे पर अपनी इज्जत खोने वाली इस महिला में इतनी शक्ति थी कि लोग उसका सम्मान करते थे और उसके सामने इज्जत से पुरुष भी सिर झुका देते थे.

ट्रेलर में देख सकते हैं कि जब गंगूबाई कहती हैं 'एक बात बोलती हूं थोड़ा कड़वी लगेगी ध्यान से सुनना...आपकी इज्जत एक बार गई तो गई...हम तो रोज रात को इज्जत भेजेत हैं शाली खत्म ही नहीं होती...'जिसकी बातों में इतनी ताकत है उसकी जगह कमाठीपुरा में अमावस की रात कैसे हो सकती है?

'शक्ति, सदबुद्धि और संपत्ति जब तीनों ही औरतें हैं तो इन मर्दों को किस बात का गुरूर?' यह हम नहीं बल्कि फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' के ट्रेलर (Gangubai Kathiawadi Trailer) में आलिया भट्ट बड़े ही दमदार अंदाज में कहते हुए दिख रही हैं. वैसे यह फिल्म काल्पनिक नहीं है. यह फिल्म उस महिला की जिंदगी पर बनी है जो उस दुनिया पर राज करती थी, जहां औरतों के खड़े होने पर ही उसे बदचलन कहा जाता है.

हम बात कर रहे हैं मुंबई 'माफिया क्वीन' की बेखौफ गंगूबाई की. एक कोठेवाली की असल कहानी उन मर्दों की बदचलन दुनिया की हकीकत को बयां करती है जो महिलाओं की इज्जत के साथ खेलते हैं.

मुंबई अंडरवर्ल्ड की दुनिया में गंगूबाई ने अपना कद इतना बढ़ा लिया था कि कोठे पर उनकी मर्जी के बिना बड़े से बड़ा गैंगस्टर भी कदम रखने की हिम्मत नहीं रखता था

वे पुरुष जो खुद कोठे पर जाते हैं और बदनाम कोठेवाली को करते हैं. ये सिर्फ गंगूबाई थीं जिनकी मर्जी के बिना कोई पुरुष किसी तवायफ के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकता था. ऐसे पुरुषों को गंगूबाई काठियावाड़ी ने अपने समय में अच्छा सबक सिखाया. कोठे पर अपनी इज्जत खोने वाली इस महिला में इतनी शक्ति थी कि लोग उसका सम्मान करते थे और उसके सामने इज्जत से पुरुष भी सिर झुका देते थे.

ट्रेलर में देख सकते हैं कि जब गंगूबाई कहती हैं 'एक बात बोलती हूं थोड़ा कड़वी लगेगी ध्यान से सुनना...आपकी इज्जत एक बार गई तो गई...हम तो रोज रात को इज्जत भेजेत हैं शाली खत्म ही नहीं होती...'जिसकी बातों में इतनी ताकत है उसकी जगह कमाठीपुरा में अमावस की रात कैसे हो सकती है?

गंगूबाई का असली नाम हरजीवन दास था जो गुजरात के एक समृद्ध परिवार से थीं

मुंबई अंडरवर्ल्ड की दुनिया में गंगूबाई ने अपना कद इतना बढ़ा लिया था कि कोठे पर उनकी मर्जी के बिना बड़े से बड़ा गैंगस्टर भी कदम रखने की हिम्मत नहीं रखता था. गंगूबाई सेक्स वर्कर्स और अनाथ बच्चों के हित में भी काम करती थीं. उनकी बातों में इतना दम था कि जब उन्होंने आजाद मैदान में भाषण दिया तो अगली सुबह हर अखबार में उन्हें जगह दी थी. यह 60 के दशक का दौर था, जब अचानक से पुरुषों की दुनिया में उस महिला का दबदबा कायम हुआ जिसने कोठे पर रोज मर्दों को इज्जत बेचने को मजबूर हुई थी. ट्रेलर में जब गंगूबाई कहती है कि, 'कल लिख देना अखबार में कि आजाद मैदान में गंगूबाई ने आंखें झुकाकर नहीं, आंखें मिलाकर अपने हक की बात की है.' जब ताली और सीटी बजाने का मन करता है.

हरजीवन दास हुई धोखे और शोषण की शिकार

असल में किसी भी अपराधी के पीछे कोई कहानी छिपी होती है. गंगूबाई के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. उनके माता-पिता की वो लाडली थीं. गंगूबाई का असली नाम हरजीवन दास था. जो गुजरात के एक समृद्ध परिवार से थीं. वह एक्ट्रेस बनना चाहती थीं. उन्हें अपने पिताजी के अकाउंटेंट रमनिक से प्यार हो गया. उनके परिवार वाले इस रिश्ते के खिलाफ थे. इसलिए वे अपने प्रेमी के साथ भागकर मुंबई आ गईं. इसके बाद दोनों ने शादी कर ली. वे सुनहरे सपने लेकर मुंबई आईं थीं, लेकिन हकीकत को कुछ ही मंजूर था.

  एक मासूम लड़की से रेड लाइट एरिया की क्वीन बनने तक का सफर

गंगूबाई पर मुसीबतों का ऐसा पहाड़ टूटेगा जिसकी कल्पना भी उन्होंने नहीं की थी. गंगूबाई के पति ने उन्हें 500 रूपए में कोठे पर बेच दिया. धोखे और शोषण ने इस पवित्र गंगा से उसकी मासूमियत छीन ली. इसके बाद वे मुंबई की डॉन और वेश्यालय की मालकिन बन गईं. जिस पुलिस, समाज और गैंगस्टर्स ने उन्हें दर्द दिया वे उसे सोई चुभोने के लिए ललकारने लगीं कि दम है तो मेरे बिना मर्जी के यहां आकर दिखा. यह फिल्म लेखक एस हुसैन जैदी की किताब 'माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई' के आधार पर बनाई गई है. जिसमें गंगूबाई के एक मासूम लड़की से रेड लाइट एरिया की क्वीन बनने तक के सफर को दिखाया गया है.

गंगू बाई की जिंदगी में आया मोड़

गंगू बाई की जिंदगी तब बदली जब वे अपने साथ हुए अन्याय के लिए इंसाफ मांगने कमाठीपुरा के माफिया डॉन करीम लाला से इंसाफ मांगने गईं थीं. उस वक्त करीम लाला का सिक्का चलता था. फिल्म में अजय देवगन ने करीम लाला का रोल निभाया है. वे 60 के दशक का गुंडा जरूर था लेकिन उसका दिल नेक था. अजय देवगन ट्रेलर में कहते हैं कि 'लाला को घर बसते हुए देखना पसंद है, उजड़ते हुए नहीं.'

उस समय करीम लाला के एक गुंडे की नजर गंगा पर पड़ी और उसने गंगा का रेप किया. करीम लाला को जब यह बात पता चली तो उन्होंने गंगा के साथ इंसाफ करते हुए गंगा को अपनी मुंहबोली बहन मान लिया. करीम लाला से मिलने के बाद गंगा की जिंदगी बदल गई. इसके बाद वे गंगा के गंगूबाई काठियावाड़ी बनने की राह पर चल पड़ीं.

. गंगूबाई के पति ने उन्हें 500 रूपए में कोठे पर बेच दिया

इसके बाद गंगा ने गुंडों, गैंगस्टर और बालात्कारियों को उनकी औकात याद दिला दी. गंगूबाई ने उस जमाने में कोठे पर बैठने वाली महिलाओं को उनकी कोई इज्जत दिलाई, क्योंकि गंगूबाई ने अपने वेश्यालय में कभी किसी लड़की के साथ जबरदस्ती नहीं होने दी. वह उसी को कोठे पर रखती थीं जो अपनी मर्जी से आती थी. गंगूबाई सेक्स वर्कस के अधिकारों के लिए एक आवाज बन गईं. गंगूबाई ने उन मर्दों को झुका दिया जो महिलाओं को अपने पांव की जूती समझते थे, क्योंकि समाज के लोग कहां वेश्याओं की इज्जत करते हैं?

आलिया का अंदाज चुनौती दे रहा है- 


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲