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गंगा विलास रिवर क्रूज़ अति धनाढ्य वर्ग को ख़ुश करने की कोशिशें भर नहीं हैं?

    • अणु शक्ति सिंह
    • Updated: 17 जनवरी, 2023 07:37 PM
  • 17 जनवरी, 2023 07:37 PM
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समुद्र विशाल होता है. इतना विशाल कि गंगा जैसी सैकड़ों नदियां उदरस्थ कर लेता है और आह भी नहीं भरता. केवल 270 क्रूज़ शिप के बाद उस समंदर के हालात ऐसे हैं तो गंगा की दशा क्या होगी? जनवरी 2021 में उत्तर प्रदेश का जल बोर्ड गंगा के पानी को पीने योग्य जल की सूची से बाहर कर चुका है. गंगा का प्रदूषण इतनी बड़ी समस्या बन चुकी है कि अलग से नमामी गंगे विभाग का गठन किया गया है.

रिवर क्रूज़… क्रूज़ बेहद फ़ैसिनेटिंग शब्द है. ‘टाइटैनिक’के छलावे से लेकर ‘कहो न प्यार है’के भुलावे तक, बचपन और तरुणाई के दो बेहद महत्वपूर्ण पड़ाव इस रास्ते से गुज़रे हैं. पानी के मध्य उसके शोर को सुनते हुए सुख-सुविधा में डूबे रहना. यह घोर कैपिटलिस्ट स्वप्न एक-बारगी ख़ूब सुहाना लगता है पर सुख यूं कहां हासिल होता है. सुख की सेज के पीछे होता है दुःख का बड़ा इतिहास. जब बात क्रूज़ की हो तो यह दुःख समंदर अपनी छाती पर झेलता है. थोड़ा रिसर्च करने पर पता चलता है अरबों गैलन कचरा इन क्रूज़ से निकलकर समंदर के पेट में जाता है.

समुद्री जीवों के प्लास्टिक या ह्यूमन वेस्ट में फंसे होने की तस्वीरें आम हो गई हैं. फ़ोर्ब्स की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ लक्ज़री क्रूज़ पर एक आदमी ज़मीन के मुक़ाबले तीन गुणा अधिक कार्बन एमिशन करता है. तीन गुणा इसी रिपोर्ट में आगे दर्ज है कि किस तरह इन क्रूज़ से ज़हरीले तेल समंदर में फैलते हैं. ये तेल सबसे ख़राब प्रदूषक हैं.

भले ही गंगा में क्रूज उतार दिया गया हो लेकिन हमें उसके संरक्षण के बारे में भी सोचना होगा

उनके द्वारा केवल पानी ही प्रदूषित नहीं होता बल्कि पैदा किया हुआ शोर भी बेहद ख़तरनाक होता है और कई शांत समुद्री जीवों की ज़िंदगी लील जाता है. इन कमबख़्त क्रूज़ की वजह से समुद्रों का ऑक्सीजन स्तर गिरता जा रहा है और इसके पहले शिकार हुए हैं शैवालों और मूंगों के चट्टान. वे लगातार ख़त्म होते जा रहे हैं.

बेलूगा व्हेल. इस जीव को देखते ही प्यार हो जाएगा. छोटा मुंह, मिचमिची पानीदार आंखें जैसे एक मुस्कुराहट चस्पां हो चेहरे पर. कुछ दिनों बाद यह जीव शायद डायनॉसोर की तरह क़िस्सों में ही नज़र आए कारण? अब बस ग़ायब होने की कगार पर है. सील, समुद्री शेर और कई तरह के समुद्री...

रिवर क्रूज़… क्रूज़ बेहद फ़ैसिनेटिंग शब्द है. ‘टाइटैनिक’के छलावे से लेकर ‘कहो न प्यार है’के भुलावे तक, बचपन और तरुणाई के दो बेहद महत्वपूर्ण पड़ाव इस रास्ते से गुज़रे हैं. पानी के मध्य उसके शोर को सुनते हुए सुख-सुविधा में डूबे रहना. यह घोर कैपिटलिस्ट स्वप्न एक-बारगी ख़ूब सुहाना लगता है पर सुख यूं कहां हासिल होता है. सुख की सेज के पीछे होता है दुःख का बड़ा इतिहास. जब बात क्रूज़ की हो तो यह दुःख समंदर अपनी छाती पर झेलता है. थोड़ा रिसर्च करने पर पता चलता है अरबों गैलन कचरा इन क्रूज़ से निकलकर समंदर के पेट में जाता है.

समुद्री जीवों के प्लास्टिक या ह्यूमन वेस्ट में फंसे होने की तस्वीरें आम हो गई हैं. फ़ोर्ब्स की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ लक्ज़री क्रूज़ पर एक आदमी ज़मीन के मुक़ाबले तीन गुणा अधिक कार्बन एमिशन करता है. तीन गुणा इसी रिपोर्ट में आगे दर्ज है कि किस तरह इन क्रूज़ से ज़हरीले तेल समंदर में फैलते हैं. ये तेल सबसे ख़राब प्रदूषक हैं.

भले ही गंगा में क्रूज उतार दिया गया हो लेकिन हमें उसके संरक्षण के बारे में भी सोचना होगा

उनके द्वारा केवल पानी ही प्रदूषित नहीं होता बल्कि पैदा किया हुआ शोर भी बेहद ख़तरनाक होता है और कई शांत समुद्री जीवों की ज़िंदगी लील जाता है. इन कमबख़्त क्रूज़ की वजह से समुद्रों का ऑक्सीजन स्तर गिरता जा रहा है और इसके पहले शिकार हुए हैं शैवालों और मूंगों के चट्टान. वे लगातार ख़त्म होते जा रहे हैं.

बेलूगा व्हेल. इस जीव को देखते ही प्यार हो जाएगा. छोटा मुंह, मिचमिची पानीदार आंखें जैसे एक मुस्कुराहट चस्पां हो चेहरे पर. कुछ दिनों बाद यह जीव शायद डायनॉसोर की तरह क़िस्सों में ही नज़र आए कारण? अब बस ग़ायब होने की कगार पर है. सील, समुद्री शेर और कई तरह के समुद्री पक्षी भी इसी शृंखला में हैं.

समुद्र विशाल होता है. इतना विशाल कि गंगा जैसी सैकड़ों नदियां  उदरस्थ कर लेता है और आह भी नहीं भरता. केवल 270 क्रूज़ शिप के बाद उस समंदर के हालात ऐसे हैं तो गंगा की दशा क्या होगी? जनवरी 2021 में उत्तर प्रदेश का जल बोर्ड गंगा के पानी को पीने योग्य जल की सूची से बाहर कर चुका है. गंगा का प्रदूषण इतनी बड़ी समस्या बन चुकी है कि अलग से नमामी गंगे विभाग का गठन किया गया है.

गंगा केवल नदी नहीं है. यह देश वासियों की भावना होने के अतिरिक्त कई जलीय जीवों का घर है. भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव गंगा में पाया जाने वाला सूंस यानी डॉल्फिन है. गंगा का प्रदूषण इस डॉल्फिन की ज़िंदगी पर लगातार भारी पड़ रहा है और रोज़ इनकी संख्या घट रही है. सोचने की बात है क्रूज़ शिप का कचरा और ध्वनि प्रदूषण इनका क्या करेगा?

मैंने इंटरनेट पर गंगा विलास रिवर क्रूज़ ट्रैश मैनेजमेंट खोजने की कोशिश की अर्थात् रिवर क्रूज़ के कचरे का क्या होगा यह जानने की कोशिश की. आर ओ प्लांट और इंजिन नॉइज़ मफ़लर जैसा कुछ था जिसके दावे तमाम क्रूज़ वाले करते हैं. क्या किसी भी तरह से पेट्रोलियम से चलने वाली मशीन को प्रदूषण मुक्त क़रार दिया जा सकता है? सरकार कैसे इसे ग्रीन सेवा कह सकती है?

इसका मुझे कोई जवाब नहीं मिला. कोई जवाब नहीं था क्योंकि यह बात सरकार की प्रायोरिटी लिस्ट में नहीं है. इसे एड्रेस ही नहीं किया गया है. इसपर ध्यान देकर अपना नुक़सान क्यों करेगी सरकार? जनता तो बस चमक-दमक से प्रभावित होती है. रिवर इकॉनमी! इस क्रूज़ से कितना पैसा और रोज़गार पैदा हो जाएगा? क्या वह इतना काफ़ी होगा कि नदी की बर्बाद होती ज़िंदगी की भरपाई कर दे?

लगभग तेरह लाख रुपये प्रति व्यक्ति (संपूर्ण ट्रिप) खर्च वाला यह क्रूज़ क्या केवल अति धनाढ़्य वर्ग को ख़ुश करने की कोशिशें भर नहीं हैं? चाहे प्रकृति का कुछ भी हो जाए! शहरों का दुःख समेट रही गंगा यूं ही वक़्त के आगे फीकी पड़ रही है. उस पर यह और थोड़ा अत्याचार कितना उचित है? शायद सरकारें भूल चुकी हैं कि गंगा इस देश में जीवन का दूसरा नाम है. सरकारें भूल चुकी हैं और रंगीनियों में मत्त जनता अपने ही खोते जीवन को लेकर हर्षित है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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