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दिल्ली में 10 साल के बच्चे के साथ गैंगरेप, लड़कों का यह दर्द कौन समझेगा?

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 27 सितम्बर, 2022 07:50 PM
  • 27 सितम्बर, 2022 07:46 PM
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दिल्ली के सीलमपुर इलाके में एक 10 साल के बच्चे के साथ तीन लोगों ने गैंगरेप किया है. इस जमाने ने लड़कों को मजबूती की संज्ञा देकर कठोर बना दिया. इतना कठोर की वे अपने दर्द को जमाने के सामने लाने से डरते हैं. वे अपने आंसुओं को गालों पर गिरने से पहले ही आंखों में पी जाते हैं.

दिल्ली के सीलमपुर इलाके में एक 10 साल के बच्चे के साथ तीन लोगों ने गैंगरेप किया है. आरोपियों ने बच्चे को लाठी-डंडों से बुरी तरह से मारा-पीटा और उसके प्राइवेट पार्ट में रॉड डाल दी. उन्हें लगा कि वह बच्चा मर गया है इसलिए उसे सड़क किनारे फेंक कर चले गए. फिलहाल बच्चा अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ रहा है.

यह अपराध लड़के के साथ हुआ है, इसका मतलब यह नहीं है कि यह अपराध कहीं से भी कम है. ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी लड़के का रेप हुआ है. इसके पहले भी लड़कों के साथ दुष्कर्म जैसी घटनाएं होती रहती हैं. मगर इन पीड़ित लड़कों के लिए किसी प्रकार जुलूस नहीं निकलता, शोर नहीं मचता...लड़कियां तो रोकर, चिल्ला कर अपनी तकलीफ को बयां कर देती हैं. वे बता देती हैं कि उनके साथ क्या हुआ. मगर लड़के ऐसे मामलों में खामोश हो जाते हैं. अच्छा, उनके साथ कुछ हो भी जाए तो कोई इतना ध्यान भी नहीं देता...

परिवार के लोग भी लड़कों की सुरक्षा को लेकर इतने सजग नहीं रहते हैं. जिस तरह घरवाले लड़कियों की फिक्र करते हैं. उनका ध्यान रखते हैं उस तरह वे लड़कों की परवाह नहीं करते हैं. परिवार वालों के दिमाग में रहता है कि लड़का है कहीं घूम रहा होगा. उन्हें लगता है कि लड़कों को केयर और अटेंशन की जरूरत नहीं है.

लड़का कहीं बाहर से पिटकर आ जाए, भले ही उसके प्राइवेट पार्ट पर चोट क्यों न लगी हो तो भी घरवालों को लगता है कि दोस्तों के साथ लड़ लिया होगा. वे लड़कों के यौन उत्पीड़न को लेकर इतने चिंतित नहीं रहते जितने लड़कियों के...यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि बाल यौन उत्पीड़न का कानून लड़का और लड़की दोनों के लिए समान है.

किसी लड़के साथ अगर कुछ गलत होता है तो वह किसी से कुछ कह नहीं पाता बल्कि खुद ही खुद में लड़ते रहता है. वह परेशानियों से खुद ही निपटने की कोशिश करता है. वह दूसरों के सामने शर्मिंदा नहीं होना चाहता...

दिल्ली के सीलमपुर इलाके में एक 10 साल के बच्चे के साथ तीन लोगों ने गैंगरेप किया है. आरोपियों ने बच्चे को लाठी-डंडों से बुरी तरह से मारा-पीटा और उसके प्राइवेट पार्ट में रॉड डाल दी. उन्हें लगा कि वह बच्चा मर गया है इसलिए उसे सड़क किनारे फेंक कर चले गए. फिलहाल बच्चा अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ रहा है.

यह अपराध लड़के के साथ हुआ है, इसका मतलब यह नहीं है कि यह अपराध कहीं से भी कम है. ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी लड़के का रेप हुआ है. इसके पहले भी लड़कों के साथ दुष्कर्म जैसी घटनाएं होती रहती हैं. मगर इन पीड़ित लड़कों के लिए किसी प्रकार जुलूस नहीं निकलता, शोर नहीं मचता...लड़कियां तो रोकर, चिल्ला कर अपनी तकलीफ को बयां कर देती हैं. वे बता देती हैं कि उनके साथ क्या हुआ. मगर लड़के ऐसे मामलों में खामोश हो जाते हैं. अच्छा, उनके साथ कुछ हो भी जाए तो कोई इतना ध्यान भी नहीं देता...

परिवार के लोग भी लड़कों की सुरक्षा को लेकर इतने सजग नहीं रहते हैं. जिस तरह घरवाले लड़कियों की फिक्र करते हैं. उनका ध्यान रखते हैं उस तरह वे लड़कों की परवाह नहीं करते हैं. परिवार वालों के दिमाग में रहता है कि लड़का है कहीं घूम रहा होगा. उन्हें लगता है कि लड़कों को केयर और अटेंशन की जरूरत नहीं है.

लड़का कहीं बाहर से पिटकर आ जाए, भले ही उसके प्राइवेट पार्ट पर चोट क्यों न लगी हो तो भी घरवालों को लगता है कि दोस्तों के साथ लड़ लिया होगा. वे लड़कों के यौन उत्पीड़न को लेकर इतने चिंतित नहीं रहते जितने लड़कियों के...यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि बाल यौन उत्पीड़न का कानून लड़का और लड़की दोनों के लिए समान है.

किसी लड़के साथ अगर कुछ गलत होता है तो वह किसी से कुछ कह नहीं पाता बल्कि खुद ही खुद में लड़ते रहता है. वह परेशानियों से खुद ही निपटने की कोशिश करता है. वह दूसरों के सामने शर्मिंदा नहीं होना चाहता...

परिवार के लोग भी लड़कों की सुरक्षा को लेकर इतने सजग नहीं रहते हैं

कुछ लोग कहते हैं कि अरे लड़का होकर लड़की की तरह रोता है, लड़का लड़की की तरह डरता है...क्यों भाई क्या लड़कों को दर्द नहीं होता है क्या? लड़कों के पास भी लड़कियों की तरह दिल है, जहान है और जख्म है.

इस जमाने ने ही उन्हें मजबूत की संज्ञा देकर कठोर बना दिया. इतना कठोर की वे अपने दर्द को जमाने के सामने लाने से डरते हैं. वे अपने आंसुओं को गालो पर गिरने से पहले ही आंखों में पी जाते हैं. उन्हें पता है कि जमाना उनके दर्द का मजाक बनाएगा, उनके तकलीफ की जगहंसाई की जाएगी. इसलिए वे अपनी तकलीफ को सीने में दफन किए फिरते हैं. वे भले ही कितने दुखी क्यों ना हों अपने चेहरे की उदासी को अपनी हंसी भी छिपा लेते हैं.

सोचिए, इस जमाने ने पुरुषों के साथ कितना बड़ा गुनाह किया है कि ये अपने अंदर के जख्म को दुनिया को बताने में डरते हैं. दुनिया की रीत में बेटा, भाई, पति और पिता कभी कमजोर नहीं हो सकते, क्योंकि वे अपने परिवार की ढाल होते हैं...ऐसे में इस बच्चे के मन पर आज क्या बीत रही होगी, इसका अंदाजा हम और आप नहीं लगा सकते हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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