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Year Ender 2020 : तुमको कोई नहीं भूल पाएगा 2020, जाओ अलविदा!

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 31 दिसम्बर, 2020 11:32 PM
  • 31 दिसम्बर, 2020 11:32 PM
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साल 2020 को याद रखा जाए या भुला दिया जाए ये मुमकिन नहीं है. साल 2020 एक ऐसा साल है जो हर इंसान भूलना तो चाहता है मगर भूल नहीं सकता है. आइये बात करते हैं हर महीने घटे ऐसे घटनाक्रम की जिसने भारत को ज़ख्म दिए हैं.

यूं तो हर साल नए साल का स्वागत होता है और पुराने साल को अलविदा कहा जाता है. हर बीता हुआ साल कुछ न कुछ यादें ज़रूर देकर जाता है और आने वाले नए साल से हज़ार तरह की उम्मीदें रहती हैं. इसे रस्म समझिए या फिर परंपरा लेकिन सच्चाई यही है कि हमेशा नए साल का स्वागत धूमधाम से ही किया जाता है. साल 2020 गुज़र चुका है. इक्कीसवीं सदी के 21वें साल का आज पहला दिन है. साल 2020 की यादें इतनी डरावनी है कि लोग हर कीमत पर इस साल पर मिले ज़ख्म को भुला देना चाहते हैं. वैसे तो अकेले वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (Corona Virus) ही साल के दर्द को बयां करने के लिए काफी है लेकिन भारत को कई और ऐसे ज़ख्म साल 2020 ने दिए हैं जिसे भारत के नागरिक आसानी के साथ तो नहीं भुला सकते हैं. भारत में साल 2020 के हर महीने में कोई न कोई घटनाक्रम तो ऐसा हुआ ही है जिसने सिवाय आंसू के कुछ और नहीं दिया है. साल 2020 की शुरूआत को कुछ ही दिन गुज़रे थे कि भारत की एक बड़ी प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जामिया में ज़बरदस्त हिंसा (Jamia Violence) हुयी. जनवरी के महीने में ही पूरे भारत में बवाल मचा हुआ था. सीएए और नागरिकता कानून (Anti CAA Protest) को लेकर साल का पहला महीना बहुत ही नाज़ुक तरीके से गुज़रा. साल का दूसरा महीना शुरू हुआ तो देश की राजधानी जल उठी (Delhi Riots). दिल्ली में इतना भीषण दंगा हुआ कि 70 से ज़्यादा लोगों का मौत हो गई. दंगे के बाद हफ्तों तक एक बड़े नाले से लाश ही लाश निकलती रही. दिल्ली में नजाने कितने घर बर्बाद हो गए जलकर राख हो गए. कितनी कोख़ सूनी हो गई कितनी मांगे उजड़ गई.

2020 में ऐसा बहुत कुछ था जिसके चलते हम इसे शायद ही भूल पाएं

साल का दूसरा महीना दिल्ली के लिए आफत बनकर आया लेकिन साल का तीसरा महीना एक और बड़ी मुसीबत देने को मानो तैयार बैठा था. तीसरा महीना यानी मार्च...

यूं तो हर साल नए साल का स्वागत होता है और पुराने साल को अलविदा कहा जाता है. हर बीता हुआ साल कुछ न कुछ यादें ज़रूर देकर जाता है और आने वाले नए साल से हज़ार तरह की उम्मीदें रहती हैं. इसे रस्म समझिए या फिर परंपरा लेकिन सच्चाई यही है कि हमेशा नए साल का स्वागत धूमधाम से ही किया जाता है. साल 2020 गुज़र चुका है. इक्कीसवीं सदी के 21वें साल का आज पहला दिन है. साल 2020 की यादें इतनी डरावनी है कि लोग हर कीमत पर इस साल पर मिले ज़ख्म को भुला देना चाहते हैं. वैसे तो अकेले वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (Corona Virus) ही साल के दर्द को बयां करने के लिए काफी है लेकिन भारत को कई और ऐसे ज़ख्म साल 2020 ने दिए हैं जिसे भारत के नागरिक आसानी के साथ तो नहीं भुला सकते हैं. भारत में साल 2020 के हर महीने में कोई न कोई घटनाक्रम तो ऐसा हुआ ही है जिसने सिवाय आंसू के कुछ और नहीं दिया है. साल 2020 की शुरूआत को कुछ ही दिन गुज़रे थे कि भारत की एक बड़ी प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जामिया में ज़बरदस्त हिंसा (Jamia Violence) हुयी. जनवरी के महीने में ही पूरे भारत में बवाल मचा हुआ था. सीएए और नागरिकता कानून (Anti CAA Protest) को लेकर साल का पहला महीना बहुत ही नाज़ुक तरीके से गुज़रा. साल का दूसरा महीना शुरू हुआ तो देश की राजधानी जल उठी (Delhi Riots). दिल्ली में इतना भीषण दंगा हुआ कि 70 से ज़्यादा लोगों का मौत हो गई. दंगे के बाद हफ्तों तक एक बड़े नाले से लाश ही लाश निकलती रही. दिल्ली में नजाने कितने घर बर्बाद हो गए जलकर राख हो गए. कितनी कोख़ सूनी हो गई कितनी मांगे उजड़ गई.

2020 में ऐसा बहुत कुछ था जिसके चलते हम इसे शायद ही भूल पाएं

साल का दूसरा महीना दिल्ली के लिए आफत बनकर आया लेकिन साल का तीसरा महीना एक और बड़ी मुसीबत देने को मानो तैयार बैठा था. तीसरा महीना यानी मार्च शुरु हुआ तो किसी ने सोचा भी न रहा होगा कि यह महीना एक ऐसा दर्द देने वाला है जो ज़िंदगी भर के लिए एक याद छोड़ जाएगा. वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने भारत में इसी महीने से पैर पसारना शुरू किया था. देश में तेज़ी के साथ कोरोना को फैलता देख भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशभर में संपूर्ण लाकडाउन का ऐलान कर दिया था. लाकडाउन का ऐलान होते ही हवाई जहाज से लेकर रेल और सड़क पर चलने वाली बस, कार सबके पहिए थम गए. जो जहां रह गया वहीं फंस गया. रोज़ाना काम करने वाले मजदूरों पर संकट खड़ा हो गया.

पूरा भारत एक साथ घर में कैद हो गया. कोई बाहर था वो थे हमारे योद्धा, जो अपनी ज़िंदगी पर खेल कर देश के हर नागरिक की जान बचाने के लिए निकले थे. तीसरे महीने के खत्म होते होते लोगों का सब्र खत्म हो गया था. जब रेल और बस के पहिए थम गए थे और हज़ार किलोमीटर का सफर तय कर घर पहुंचने का कोई रास्ता नहीं दिखा और जहां पर थे वहां पर रुकने और खाने पीने का भविष्य नज़र नहीं आया तो लोग अपने दोनों कदमों पर भरोसा कर एक ऐसे सफर पर निकल पड़े जिसकी शायद कभी किसी ने कल्पना भी न की होगी.

बड़े शहरों से प्रवासियों का घर जाने का जो सिलसिला शुरू हुआ वो साल के चौथे महीने तक जारी रहा. एक ऐसा सफर जिसमें रास्ता हज़ार किलोमीटर का पैदल ही तय करना हो और रास्ते में कहीं भी न आराम करने की जगह नसीब हो, न ही कोई खाना और पानी का इंतज़ाम हो. बस चलते जाना है और बचना है पुलिस की लाठीयों से और अपनी चलती हुयी सांसों के रुक जाने से या फिर कदमों के जवाब दे देने तक बस चलते ही जाना है. ऐसे सफर के बारे में सोचना भी समझ से परे है लेकिन प्रवासियों ने यह सफर तय किया है.

वो खुशनसीब थे जो अपने घर तक पहुंच गए लेकिन साल के चौथे महीने में ऐसी भी तस्वीरें आयी थी जहां कई लोग अपने घर की चौखट तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ गए. आपको याद होगा वो रेलवे ट्रैक पर प्रवासियों के कुचले जाने वाली खबर, कितने मज़दूर सोते हुए ट्रैक पर ट्रेन के नीचे आकर कट गए थे. आपको वो तस्वीर भी याद होगी जिसमें स्टेशन पर एक मरी हुयी मां की लाश पर बच्चे खेल रहे थे. कितनी दर्दनाक थी वो तस्वीरें, अबतक उस तस्वीर को याद कर इंसान सिहर जाता है.

ये साल के चौथे महीने का किस्सा था जो ज़िंदगी भर के लिए एक ऐसा ज़ख्म है जिसे याद कर सिवाय रोने के कुछ नहीं किया जा सकता है. साल 2020 का पांचवा महीना कोरोना वायरस से होने वाली मौतों के लिए याद किया जाएगा. हर दिन हज़ारों मौतें हो रही थी. मौत भी ऐसी मौत जिसमें अंतिम संस्कार से लेकर तमाम रस्म तमाम कानून बदल गए थे. बाप बेटे को कांधा नहीं दे पा रहा था तो बेटा मां की चिता के करीब नहीं पहुंच सकता था. हर उम्र के लोग बिछड़े किसी का बाप तो किसी की मां तो किसी का बेटा तो किसी की बेटी. किसी की मांग उजड़ गई तो किसी को उसकी पत्नी का साथ छूट गया.

अंतिम संस्कार क्या चीज़ है और मरने वालों को सांत्वना देना क्या होता इससे तो लोग अंजान ही रहे. कोरोना से होने वाली मौतों ने और उसकी बाद की तस्वीर अब तक झिंझोड़ रही है. साल 2020 सबसे ज़्यादा इसी के लिए जाना जाएगा और फिर जिनके अपने इस महामारी का शिकार हो गए उनके लिए तो बद से भी बदतर साल गुज़रा 2020. भारत में कोरोना की आफत के बीच एक और बड़ी आफत ने दस्तक दे दी. इस बार इसका शिकार हुए हमारी फौज के लोग जो कोरोना के खतरे के बावजूद सरहद पर हमारी रखवाली के लिए तैनात रहे थे.

साल के छठवें महीने में चीन से सटे गलवान घाटी पर भारत और चीन की सेना के बीच झड़प हो गई. हमारे कई जवान इस देश पर कुर्बान हो गए. पूरा देश आगबबूला हो गया था ये नया दर्द था जिसपर हरेक भारतवासी की आंख में आंसू थे. हमारी सेना के कई जवान इस झड़प में शहीद हो गए. भारत चीन की सीमा पर तनाव फैल गया जो अबतक सामान्य नहीं हो सका है और बातचीत का सिलसिला अभी तक जारी है. जवानों के खोने का दर्द अबतक बना हुआ है. देश में कोरोना वायरस और सीमा पर तनाव के बीच साल के सातवें महीने में एक और मुसीबत ने इंट्री कर ली. इस महीने बिहार बाढ़ ने लोगों को सताना शुरू कर दिया.

महीनों तक बाढ़ अपने उफान पर रही. बिहार के नागरिक बाढ़ का सामना ऐसे वक्त में कर रहे थे जब उनकी कोई कमाई नहीं थी रोज़मर्रा की ज़िंदगी लाकडाउन की वजह से बंद चल रही थी. ऐसे में किस तरह से बाढ़ का सामना किया और किस तरह से अपनी ज़िंदगी का पहिया घुमाया यह सोचा भी नहीं जा सकता है.

साल का आठवां महीना भारत के एक बेहतरीन कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या को लेकर सुर्खियां बटोरता रहा. एक काबिल अभिनेता के आत्महत्या की ख़बर सुन कर उस कलाकार के चाहने वालों के लिए सब्र कर पाना मुश्किल था. लोग हत्या की आशंका जता रहे थे खूब बवाल भी मचा था. ये महीना खासतौर पर महाराष्ट्र के नाम रहा जहां सुशांत सिंह राजपूत को लेकर खूब बवाल मचा हुआ था. बालीवुड से ड्रग्स का संबध भी निकलने लगा जिसपर देश की निगाहें टिकी रही.

साल का नवां महीना उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के नाम रहा. हाथरस में गैंगरेप के बाद एक दलित युवती की हत्या कर दी गई थी जिसका अंतिम संस्कार भी बिना परिवार वालों की मर्ज़ी के कर दिया गया था. पुलिस पर सवाल खड़े हुए थे. पीड़ित युवती के प्रति पूरे देश को हमदर्दी थी. ख़ासतौर पर बालात्कार के खिलाफ लोग क्रोधित थे. साल का दसवां महीना अक्टूबर कुछ राहत भरा ज़रूर था लेकिन देश की इकोनामिक हालत इस महीने पस्त हो चुकी थी. जीडीपी अपने इतिहास के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई थी जिसका खामियाजा देश के हर नागरिक को भुगतना पड़ेगा.

साल 2020 का ग्यारहवां महीना किसानों के नाम रहा. नए कृषि कानून के खिलाफ किसानों हल्ला बोल दिया जो अबतक जारी है. पंजाब और हरियाणा के लाखों किसान अपना घर छोड़ सड़क पर अबतक बैठे हुए हैं. सरकार से बातचीत जारी है लेकिन मामला सुलझ नहीं पा रहा है. इस आंदोलम में अबतक 50 से ज़्यादा लोगों की जान भी जा चुकी है लेकिन आंदोलन जारी है. ये दर्दनाक है कृषि प्रधान देश में किसान सड़क पर उतरे हुए हैं.

साल का आखिरी महीना भी सुकून देने में नाकाम रहा. किसान सड़क पर बैठे रहे तो बंगाल से लेकर मध्य प्रदेश तक में माहौल खराब हुआ. खेल प्रेमियों के लिए भी ये महीना ख़राब गुज़रा. भारत अपने इतिहास के सबसे कम स्कोर बना कर मैच बुरी तरह से हार गया. साल के हर महीने में ये बड़ी घटनाएं हुयी जिससे लोग आहत हुए लेकिन इसके साथ ही भारत ने कुछ अनमोल रत्नों को भी खो दिया जो हमेशा याद रखे जाएंगें.

इनमें कुछ बड़े नाम पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, कलाकार इरफान खान, श्रषि कपूर, सुशांत सिंह राजपूत, ऊषा गांगुली, कवि राहत इंदौरी, जसवंत सिंह, तरुण गगोई और अहमद पटेल जैसे बड़े नेता रहे. साल 2020 ने हमसे बहुत कुछ छीना है दाग दिए हैं दर्द दिए हैं. कुछ सीख भी दिए हैं जिसकी चर्चा फिर होगी फिलहाल साल 2021 से हम सबको एक नई उम्मीदे हैं. साल 2020 को भुला पाना लगभग नामुमकिन है इस साल में हरेक को बड़ी परेशानियों से दो चार ज़रूर होना पड़ा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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