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अमेरिका की पहली महिला पुजारी इतनी चर्चा में क्यों हैं?

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 17 फरवरी, 2022 06:47 PM
  • 17 फरवरी, 2022 06:47 PM
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दिमाग पर लाख जोर देने के बाद भी मुझे कोई महिला पुजारी की याद नहीं आई जिसने कोई धार्मिक अनुष्ठान या शादी करवाने के लिए मंत्रों का उच्चारण किया हो.

पुजारी शब्द सुनते ही किसी पुरुष की छवि दिमाग में उभर आती है. भारत में तो महिला पुरोहित बहुत कम मिलती हैं. आपने कितनी ऐसी शादियां देखी हैं जिसकी रस्में किसी महिला पंडित ने निभाई हों? दिमाग पर लाख जोर देने के बाद भी मुझे कोई महिला पुजारी की याद नहीं आई जिसने कोई धार्मिक अनुष्ठान या शादी करवाने के लिए मंत्रों का उच्चारण किया हो.

पुजारी शब्द सुनते ही किसी पुरुष की छवि दिमाग में उभर आती है

हां पिछली साल दिया मिर्जा की शादी में एक महिला पुजारी ने जरूर सबका ध्यान खींचा था. सामान्य घर की शादियों में या धार्मिक कार्यक्रम में पुजारी का मतलब पंडित जी से ही होता है.

ऐसे में अमेरिका की एक महिला पुजारी की चर्चा तो होनी है क्योंकि वह न सिर्फ महिला पुरोहित बनकर शादियां करा रहा हैं बल्कि उन्हें सभी ग्रंथों का अध्यन भी किया है. जिसमें से उन्होंने कुछ ऐसे मंत्रों का चुनाव किया जो जेंडर न्यूट्रल हों और किसी भी जाति, लिंग, नस्ल से ऊपर हों. जो सब पर सामान्य रूप से लागू होते हों. हम जिनकी बात कर रहे हैं उनका नाम सुषमा द्विवेदी है. सुषमा एक भारतीय परिवार से हैं जो अपने देश की मिट्टी और संस्कृति से जुड़ी हैं. हालांकि सुषमा का जन्म कैनाडा में हुआ था. सुषमा अपने दादी से प्रभावित रही हैं.

सुषमा चर्चा में क्यों हैं?

महिला पुजारी बनने का फैसला करने के साथ ही सुषमा ने हिंदू धर्म में एक बड़े बदलाव की शुरुआत की है. वे अमेरिका की पहली महिला पुरोहित हैं जो समलैंगिकों से लेकर हर जाति, संप्रदाय, रंग, नस्ल के लोगों के लिए पूजा-अनुष्ठान कराती हैं. वहीं जहां दूसरे लोगों को शादी कराने में 3 घंटे लगते हैं वहीं सुष्मा सिर्फ 35 मिनट में शादी कराती हैं. सुषमा ने पुरोहित बनने का सारा ज्ञान अपनी दादी से लिया है. दादी भले ही...

पुजारी शब्द सुनते ही किसी पुरुष की छवि दिमाग में उभर आती है. भारत में तो महिला पुरोहित बहुत कम मिलती हैं. आपने कितनी ऐसी शादियां देखी हैं जिसकी रस्में किसी महिला पंडित ने निभाई हों? दिमाग पर लाख जोर देने के बाद भी मुझे कोई महिला पुजारी की याद नहीं आई जिसने कोई धार्मिक अनुष्ठान या शादी करवाने के लिए मंत्रों का उच्चारण किया हो.

पुजारी शब्द सुनते ही किसी पुरुष की छवि दिमाग में उभर आती है

हां पिछली साल दिया मिर्जा की शादी में एक महिला पुजारी ने जरूर सबका ध्यान खींचा था. सामान्य घर की शादियों में या धार्मिक कार्यक्रम में पुजारी का मतलब पंडित जी से ही होता है.

ऐसे में अमेरिका की एक महिला पुजारी की चर्चा तो होनी है क्योंकि वह न सिर्फ महिला पुरोहित बनकर शादियां करा रहा हैं बल्कि उन्हें सभी ग्रंथों का अध्यन भी किया है. जिसमें से उन्होंने कुछ ऐसे मंत्रों का चुनाव किया जो जेंडर न्यूट्रल हों और किसी भी जाति, लिंग, नस्ल से ऊपर हों. जो सब पर सामान्य रूप से लागू होते हों. हम जिनकी बात कर रहे हैं उनका नाम सुषमा द्विवेदी है. सुषमा एक भारतीय परिवार से हैं जो अपने देश की मिट्टी और संस्कृति से जुड़ी हैं. हालांकि सुषमा का जन्म कैनाडा में हुआ था. सुषमा अपने दादी से प्रभावित रही हैं.

सुषमा चर्चा में क्यों हैं?

महिला पुजारी बनने का फैसला करने के साथ ही सुषमा ने हिंदू धर्म में एक बड़े बदलाव की शुरुआत की है. वे अमेरिका की पहली महिला पुरोहित हैं जो समलैंगिकों से लेकर हर जाति, संप्रदाय, रंग, नस्ल के लोगों के लिए पूजा-अनुष्ठान कराती हैं. वहीं जहां दूसरे लोगों को शादी कराने में 3 घंटे लगते हैं वहीं सुष्मा सिर्फ 35 मिनट में शादी कराती हैं. सुषमा ने पुरोहित बनने का सारा ज्ञान अपनी दादी से लिया है. दादी भले ही पुजारिन नहीं थी लेकिन उनके पास हर मंत्र और ग्रंथ की जानकारी थी.

'पर्पल पंडित प्रोजेक्ट' की स्थापना'

हमारे देश में जहां गे होना शर्म की बात मानी जाती है वहीं सुषमा ने 2016 में धार्मिक सेवाएं प्रदान करने वाले ग्रुप 'पर्पल पंडित प्रोजेक्ट' की स्थापना की. असल में दक्षिण एशिया में 'गे' समुदाय का प्रतिनिधि माना जाने वाला पर्पल को सुषमा ने अपनी धार्मिक संस्था के नाम के लिए चुना.

भारत की तरह अमेरिका में अब तक ऐसे अनुष्ठान पुरुष पुजारी ही कराते आए हैं लेकिन अब समय बदल रहा है. हिन्दू धर्म में महिलाएं बढ़-चढ़कर आगे आ रही हैं और सदियों से चले आ रहे हैं भेदभाव व कुरुतियां को समाप्त कर रही हैं. एक ऑर्गेनिक फूड कंपनी 'डेली हार्वेस्ट' की वाइस प्रेसिडेंट सुषमा भी इस पहल के साथ ही हिन्दू धर्म में हो रहे बड़े बदलाव का प्रतीक बन गई हैं. चाहें अंतिम संस्कार हो या फिर हवन-पूजन हिंदू धर्म की महिलाएं आगे बढ़ रही हैं और यह सही मायने में महिला अधिकार है. 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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