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सुसाइड सिटी में बच्चों की जान बचाने के लिए बस ये एक काम करने की जरूरत है !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 23 जनवरी, 2018 06:01 PM
  • 23 जनवरी, 2018 06:00 PM
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'फीयरलेस कोटा' नाम का एक विज्ञापन बनाया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि इन बच्चों को 'इमोशनल न्यूट्रिशन' की जरूरत है. विज्ञापन के अनुसार यह ऐसा न्यूट्रिशन है, जिसे किसी लैब या फैक्ट्री में बनाया नहीं जा सकता.

कोटा वो जगह है, जिसे डॉक्टर और इंजीनियर बनाने के लिए जाना जाता है. हर साल लाखों छात्र कोटा से कोचिंग लेकर आईआईटी, इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रतियोगिता परीक्षाएं पास करते हैं. जहां एक ओर कोटा इंजीनियर और डॉक्टर बनाने के लिए लोकप्रिय है, वहीं इसका एक भयावह चेहरा भी है. कोटा को सुसाइड सिटी भी कहा जाता है, क्योंकि यहां पर सबसे अधिक संख्या में छात्र-छात्राएं सुसाइड करते हैं. सभी स्टूडेंट आंखों में डॉक्टर या इंजीनियर बनने का सपने लिए कोटा आते हैं, लेकिन कई छात्रों का ये सपना पूरा नहीं होता. बहुत से छात्र दोबारा कोशिश करते हैं या फिर किसी न किसी संस्थान में दाखिला लेकर अपनी पढ़ाई करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो असफलता बर्दाश्त नहीं कर पाते और मौत को गले लगा लेते हैं. आखिर इन बच्चों की पढ़ाई-लिखाई या परवरिश में क्या कमी रह जाती है, जिसके चलते वह ऐसा कदम उठा लेते हैं? हाल ही में एक कंपनी ने विज्ञापन के माध्यम से इस मुद्दे को उठाते हुए इससे निपटने का एक अच्छा समाधान बताया है.

इमोशनल न्यूट्रिशन देने की है जरूरत

'फीयरलेस कोटा' (Fearless Kota) नाम का एक विज्ञापन बनाया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि इन बच्चों को 'इमोशनल न्यूट्रिशन' की जरूरत है. फीयरलेस कोटा नाम इसलिए दिया गया है ताकि जो कोटा कुछ बच्चों के मन में डर पैदा करता है, वे बच्चे उससे डरें नहीं. विज्ञापन के अनुसार यह ऐसा न्यूट्रिशन है, जिसे किसी लैब या फैक्ट्री में बनाया नहीं जा सकता. दरअसल, मां के प्यार और उनके हाथ से बने खाने की बात की जा रही है. देखा जाए तो वाकई बहुत से बच्चों को मां-बाप के प्यार की कमी होती है, जिसके चलते वह मौत को गले लगा लेते हैं. विज्ञापन के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि बच्चों की पढ़ाई के दौरान कभी-कभी मां-बाप को उनसे मिलने जाना चाहिए. बच्चों के प्रति अपना प्यार जताना चाहिए और बताना चाहिए कि सफलता और असफलता दोनों ही जिंदगी के दो पहलू हैं. मां-बाप को कोशिश करनी चाहिए कि बच्चों पर बन रहे साइकोलोजिकल दबाव को कम किया जा सके.

कोटा वो जगह है, जिसे डॉक्टर और इंजीनियर बनाने के लिए जाना जाता है. हर साल लाखों छात्र कोटा से कोचिंग लेकर आईआईटी, इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रतियोगिता परीक्षाएं पास करते हैं. जहां एक ओर कोटा इंजीनियर और डॉक्टर बनाने के लिए लोकप्रिय है, वहीं इसका एक भयावह चेहरा भी है. कोटा को सुसाइड सिटी भी कहा जाता है, क्योंकि यहां पर सबसे अधिक संख्या में छात्र-छात्राएं सुसाइड करते हैं. सभी स्टूडेंट आंखों में डॉक्टर या इंजीनियर बनने का सपने लिए कोटा आते हैं, लेकिन कई छात्रों का ये सपना पूरा नहीं होता. बहुत से छात्र दोबारा कोशिश करते हैं या फिर किसी न किसी संस्थान में दाखिला लेकर अपनी पढ़ाई करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो असफलता बर्दाश्त नहीं कर पाते और मौत को गले लगा लेते हैं. आखिर इन बच्चों की पढ़ाई-लिखाई या परवरिश में क्या कमी रह जाती है, जिसके चलते वह ऐसा कदम उठा लेते हैं? हाल ही में एक कंपनी ने विज्ञापन के माध्यम से इस मुद्दे को उठाते हुए इससे निपटने का एक अच्छा समाधान बताया है.

इमोशनल न्यूट्रिशन देने की है जरूरत

'फीयरलेस कोटा' (Fearless Kota) नाम का एक विज्ञापन बनाया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि इन बच्चों को 'इमोशनल न्यूट्रिशन' की जरूरत है. फीयरलेस कोटा नाम इसलिए दिया गया है ताकि जो कोटा कुछ बच्चों के मन में डर पैदा करता है, वे बच्चे उससे डरें नहीं. विज्ञापन के अनुसार यह ऐसा न्यूट्रिशन है, जिसे किसी लैब या फैक्ट्री में बनाया नहीं जा सकता. दरअसल, मां के प्यार और उनके हाथ से बने खाने की बात की जा रही है. देखा जाए तो वाकई बहुत से बच्चों को मां-बाप के प्यार की कमी होती है, जिसके चलते वह मौत को गले लगा लेते हैं. विज्ञापन के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि बच्चों की पढ़ाई के दौरान कभी-कभी मां-बाप को उनसे मिलने जाना चाहिए. बच्चों के प्रति अपना प्यार जताना चाहिए और बताना चाहिए कि सफलता और असफलता दोनों ही जिंदगी के दो पहलू हैं. मां-बाप को कोशिश करनी चाहिए कि बच्चों पर बन रहे साइकोलोजिकल दबाव को कम किया जा सके.

क्यों जरूरी है ये?

दरअसल, बहुत से मां-बाप अपने बच्चों का भविष्य अच्छा बनाने की होड़ में यह भूल जाते हैं कि बच्चों की अपनी भी कुछ इच्छाएं होती हैं. हर मां-बाप बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर ही बनाना चाहते हैं. कभी बच्चों से यह नहीं पूछते कि वह क्या बनना चाहते हैं. वहीं दूसरी ओर, बहुत से मां-बाप अपने बच्चों को कर्ज लेकर पढ़ाने भेजते हैं, जिसकी वजह से बच्चों के दिमाग पर एक दबाव बना रहता है. ऐसे में अगर वह असफल हो जाते हैं तो खुद को अपराधी महसूस करते हैं और मौत को गले लगाने जैसे कदम उठा लेते हैं. ऐसे में अगर बच्चों से उनके मां-बाप बीच-बीच में मिलने जाएं तो इससे बच्चों के दिमाग पर पड़ने वाला अतिरिक्त दबाव कम होगा.

ये हैं कोटा के भयावह आंकड़े

कोटा में हर साल लगभग 1.5 लाख स्टूडेंट कोचिंग के लिए आते हैं. पिछले चार सालों में लगभग 88 स्टूडेंट सुसाइड कर चुके हैं. मार्च 2016 से अब तक कोटा सुसाइड हेल्पलाइन पर कुल 1464 फोन आ चुके हैं. इतने सारे बच्चों के मन में आत्महत्या का ख्याल आना कोटा का एक भयावह चेहरा दिखाता है. कोटा में सन् 2000 से लेकर अब तक करीब 285 कोचिंग छात्रों ने आत्महत्या जैसे कदम उठाए हैं.

आत्महत्या रोकने के ये भी हैं उपाय

  1. समय समय पर बच्चों की काउंसलिंग करना जरूरी है.
  2. कोचिंग सेंटरों में मनोवैज्ञानिक भी एक लैक्चर दें, जिससे बच्चे अपने मन की बात कर सकें.
  3. शहर में मन बहलाने की जगह बनें, जो बच्चों को ध्यान में रखकर बनी हों, जैसे आउटडोर गेम वगैरह.
  4. हॉस्टल में खाने-पीने की चीजों पर निगरानी हो. साथ ही बच्चों की पसंद का भी ख्याल रखा जाए.
  5. कोचिंग में हर महीने पेरेंट्स मीटिंग हो जिससे वो भी अपने बच्चों की प्रोग्रेस पर नजर रख सकें.
  6. छात्र अगर कोचिंग बदलना चाहें तो उसकी फीस रीफंड की जाए.
  7. कोटा में बेलगाम किराया वसूलने वाले हॉस्टल और मैस रेगुलेट किए जाएं.
  8. साथ ही कोचिंग सेंटर की फीस भी रेगुलेट हो.
  9. स्कूल और कॉलेजों में शिक्षा का स्तर सुधारा जाए जिससे कोचिंग जाने की जरूरत ही न पड़े.
  10. माता-पिता अपने सपने पूरा करने के लिए बच्चों का सहारा न लें. बच्चों के सपने पूरा करने में ही खुशी महसूस करें.

इस विज्ञापन के जरिए कोटा में हो रही आत्महत्याओं को रोकने के लिए मां-बाप को अपने बच्चों से मिलते रहने का अहम सुझाव दिया गया है. देखा जाए तो भाग-दौड़ की जिंदगी में मां-बाप इतने व्यस्त हो जाते हैं कि बच्चों पर ठीक से ध्यान नहीं दे पाते. बच्चों की उम्र ऐसी होती है, जब वह मौज-मस्ती और मां-बाप का प्यार ढूंढ़ते हैं. ऐसे में अगर मां-बाप कुछ समय निकाल कर बच्चों के साथ कोई खेल खेलें तो इससे सेहत भी सही रहेगी और बच्चों को मां-बाप का साथ भी मिल सकेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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