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बाइक की 'डिक्की' में मासूम का शव लेकर कलेक्टर पहुंचा शख्स हालात का नहीं, सिस्टम का मारा है!

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 21 अक्टूबर, 2022 06:38 PM
  • 21 अक्टूबर, 2022 06:38 PM
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एक पिता के लिए इससे दर्दनाक अनुभव कुछ हो ही नहीं सकता. सोचिए मृत नवजात को बाइक की डिक्की में ले जाने वाला पिता किस हद की पीड़ा से गुजरा होगा?

बेटे के शव को बाइक की डिग्गी में रखकर कलेक्टर के पास पहुंचने वाले पिता का दिल कैसा होगा? शायद पत्थर... जिस बच्चे की आने की खुशी में उसने नौ महीने बिताए होंगे आज उसके शव को लेकर दर-दर भटक रहा है. डिलीवरी से पहले भी वह जिला अस्पताल में पत्नी को लेकर चक्कर लगाता रहा. उससे जैसा करने को कहा गया उसने वैसा ही किया. उससे एक डॉक्टर ने कहा कि पत्नी का टेस्ट एक क्लीनिक से करा लाओ. वह वहां से क्लीनिक गया और 5 हजार देकर पत्नी के जांच कराए.

इसके बाद वह दोबारा जिला अस्पताल पहुंचा जहां पत्नी से मरा हुआ बच्चा हुआ. उसने तो भरपूर कोशिश की थी, मगर अपने बच्चे को नहीं बचा पाया. यह मामला सरासर लापरवाही का लग रहा है. अगर उसकी पत्नी की हालात पर अस्पताल के कर्मचारियों ने समय रहते ध्यान दे दिया होता तो शायद एक मजबूर पिता का बेटा आज जिंदा होता.

बेटे के शव को बाइक की डिग्गी में रखकर कलेक्टर के पास पहुंचने वाला पिता का दिल कैसा होगा?

कहते हैं कि एक मां की प्रसव पीड़ा जन्म देने के बाद बच्चे का चेहरा भर देखने से ख़त्म हो जाती है. बच्चे की ममता में मां अपनी तकलीफ भुला देती है. मगर आज उस मां पर क्या बीत रही होगी- कल्पना करना मुश्किल नहीं है. मरे बेटे को गोद में लेकर शायद पिता के हाथ कांप रहे होंगे. उसने अस्पताल के स्वास्थ्य अफसरों और कर्मचारियों से एंबुलेंस की मांगा, मगर किसी ने उसकी ना सुनी. पत्नी दर्द में तड़प रही थी. बेटे के मरने का गम अलग था. जब उसे पत्नी और बच्चे के शव को घर ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिला तो कुछ नहीं सूझा. वह शव को बाइक की डिक्की में रखकर कलेक्टर के ऑफिस पहुंच गया.

जब उसने डिक्की से बच्चे के शव को बाहर निकाला और अपनी आपबीती सुनाई तो वहां मौजूद लोगों की आखों में आंसू आ गए. मामला मध्य प्रदेश के सिंगरौली अस्पताल का है. सोनभद्र का...

बेटे के शव को बाइक की डिग्गी में रखकर कलेक्टर के पास पहुंचने वाले पिता का दिल कैसा होगा? शायद पत्थर... जिस बच्चे की आने की खुशी में उसने नौ महीने बिताए होंगे आज उसके शव को लेकर दर-दर भटक रहा है. डिलीवरी से पहले भी वह जिला अस्पताल में पत्नी को लेकर चक्कर लगाता रहा. उससे जैसा करने को कहा गया उसने वैसा ही किया. उससे एक डॉक्टर ने कहा कि पत्नी का टेस्ट एक क्लीनिक से करा लाओ. वह वहां से क्लीनिक गया और 5 हजार देकर पत्नी के जांच कराए.

इसके बाद वह दोबारा जिला अस्पताल पहुंचा जहां पत्नी से मरा हुआ बच्चा हुआ. उसने तो भरपूर कोशिश की थी, मगर अपने बच्चे को नहीं बचा पाया. यह मामला सरासर लापरवाही का लग रहा है. अगर उसकी पत्नी की हालात पर अस्पताल के कर्मचारियों ने समय रहते ध्यान दे दिया होता तो शायद एक मजबूर पिता का बेटा आज जिंदा होता.

बेटे के शव को बाइक की डिग्गी में रखकर कलेक्टर के पास पहुंचने वाला पिता का दिल कैसा होगा?

कहते हैं कि एक मां की प्रसव पीड़ा जन्म देने के बाद बच्चे का चेहरा भर देखने से ख़त्म हो जाती है. बच्चे की ममता में मां अपनी तकलीफ भुला देती है. मगर आज उस मां पर क्या बीत रही होगी- कल्पना करना मुश्किल नहीं है. मरे बेटे को गोद में लेकर शायद पिता के हाथ कांप रहे होंगे. उसने अस्पताल के स्वास्थ्य अफसरों और कर्मचारियों से एंबुलेंस की मांगा, मगर किसी ने उसकी ना सुनी. पत्नी दर्द में तड़प रही थी. बेटे के मरने का गम अलग था. जब उसे पत्नी और बच्चे के शव को घर ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिला तो कुछ नहीं सूझा. वह शव को बाइक की डिक्की में रखकर कलेक्टर के ऑफिस पहुंच गया.

जब उसने डिक्की से बच्चे के शव को बाहर निकाला और अपनी आपबीती सुनाई तो वहां मौजूद लोगों की आखों में आंसू आ गए. मामला मध्य प्रदेश के सिंगरौली अस्पताल का है. सोनभद्र का रहने वाला दिनेश भारती अपनी पत्नी की डिलीवरी के लिए आया था. जरा सोचिए, नौ महीने पहले जब पत्नी ने दिनेश से कहा होगा, सुनते हो तुम पापा बनने वाले हो...तो वह कितना खुश हुआ होगा? उसे लग रहा होगा कि उसका ओहदा बढ़ जाएगा. वह दोबारा से अपने बच्चे के साथ बचपन को जिएगा. नौ महीने से वह पत्नी के साथ बच्चे का इस दुनिया में आने का इंतजार कर रहा होगा. मगर उसने कहां सोचा होगा कि उसकी तमाम खुशियां महज कुछ सेकेंड में मातम में बदल जाएंगी. वह चाहता था कि उसके बच्चे को कुछ ना हो और उसने अपने संसाधनों में वह सबकुछ किया जो डॉक्टरों ने उससे कहा.

अब सिंगरौली के कलेक्टर राजीव रंजन मीणा भले आरोपियों के खिलाफ जांच के लिए टीम गठित कर दें. हो सकता है कि आरोपियों पर सख्त कार्रवाई भी हो जाए. मगर कड़वा सच तो यही है कि अब उनका बेटा वापस नहीं आने वाला. हालात के मारे पिता का दिल पत्थर हो गया होगा. उस पर जो बीती है सिर्फ वही समझ सकता है. सच्ची बात यह है कि दुनिया में गरीब होना सच में पाप है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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