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Farmers Protest: क्या चाहते हैं किसान और क्यों केंद्र सरकार उनसे सहमत नहीं 

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 20 जनवरी, 2021 07:17 PM
  • 20 जनवरी, 2021 07:17 PM
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किसान संगठनों के सदस्यों का कहना है कि New central farmers law हमारे हित में नहीं हैं. आखिर किसानों की ऐसी क्या मांगें है जो केंद्र सरकार पूरी नहीं कर रही और क्यों.

केंद्र सरकार एजेंसियां और पंजाब बीजेपी नेतृत्व को उस वक्त हैरानी हुई जब 26 नवंबर को किसानों के 20 संगठनों (Farmers Protest) ने पंजाब से दिल्ली मार्च निकाला और विरोध प्रदर्शन किया. संगठनों के सदस्यों का कहना है कि, नए केंद्रीय किसान कानून (New central farmers law) हमारे हित में नहीं हैं. इसलिए हम यहीं राजधानी दिल्ली में डटे रहेंगे ताकि सरकार (Government) पर दबाव बना सकें. अनुमान है कि आंदोलन में दो से तीन लाख किसानों ने भाग लिया जो दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर विराजमान हैं.

संसद में सितंबर महीने में किसान कानून पारित हुआ. जिसके बाद ही पंजाब में किसानों ने विरोध शुरू कर दिया था. 22 सितंबर से ही पंजाब के 10 लाख किसानों का प्रतिनिधि करने वाले 31 संगठनों ने सदस्यों ने रेल रोको और चक्का जाम आंदोलन की शुरुआत कर दी थी.

क्या लंबा चलेगा किसानों का आंदोलन

नए कृषि कानून के अुनसार, किसानों को APMC (Agriculture Product Market Committee) के बाहर और भीतर यानी कहीं भी अपनी फसल बेच सकते हैं. इसके अलावा व्यापारियों और फूड प्रोसेसिंग करने वाले लोगों से भी से सीधा करार करने का रास्ता भी साफ हुआ.

वहीं प्रदर्शन करने वाले किसानों का कहना है कि सरकार किसानों से गेंहू और धान जैसे फसलों को खरीदना बंद कर सकती है. जिससे उनको बाजार के भरोसे रहना होगा. डायरेक्ट बेनिफिट सिस्टम आने से उनको नुकसान होगा, क्योंकि अब तक केंद्र सरकार के धान खरीद से पंजाब के किसानों को काफी लाभ होता था. पंजाब की फसलों को 85 प्रतिशत एफसीआई (FCI) खरीदता है.

किसानों को इस बात का भी डर है कि इससे निजी कंपनियों को फ़ायदा होगा और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के ख़त्म होने से किसानों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं. इसलिए वे...

केंद्र सरकार एजेंसियां और पंजाब बीजेपी नेतृत्व को उस वक्त हैरानी हुई जब 26 नवंबर को किसानों के 20 संगठनों (Farmers Protest) ने पंजाब से दिल्ली मार्च निकाला और विरोध प्रदर्शन किया. संगठनों के सदस्यों का कहना है कि, नए केंद्रीय किसान कानून (New central farmers law) हमारे हित में नहीं हैं. इसलिए हम यहीं राजधानी दिल्ली में डटे रहेंगे ताकि सरकार (Government) पर दबाव बना सकें. अनुमान है कि आंदोलन में दो से तीन लाख किसानों ने भाग लिया जो दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर विराजमान हैं.

संसद में सितंबर महीने में किसान कानून पारित हुआ. जिसके बाद ही पंजाब में किसानों ने विरोध शुरू कर दिया था. 22 सितंबर से ही पंजाब के 10 लाख किसानों का प्रतिनिधि करने वाले 31 संगठनों ने सदस्यों ने रेल रोको और चक्का जाम आंदोलन की शुरुआत कर दी थी.

क्या लंबा चलेगा किसानों का आंदोलन

नए कृषि कानून के अुनसार, किसानों को APMC (Agriculture Product Market Committee) के बाहर और भीतर यानी कहीं भी अपनी फसल बेच सकते हैं. इसके अलावा व्यापारियों और फूड प्रोसेसिंग करने वाले लोगों से भी से सीधा करार करने का रास्ता भी साफ हुआ.

वहीं प्रदर्शन करने वाले किसानों का कहना है कि सरकार किसानों से गेंहू और धान जैसे फसलों को खरीदना बंद कर सकती है. जिससे उनको बाजार के भरोसे रहना होगा. डायरेक्ट बेनिफिट सिस्टम आने से उनको नुकसान होगा, क्योंकि अब तक केंद्र सरकार के धान खरीद से पंजाब के किसानों को काफी लाभ होता था. पंजाब की फसलों को 85 प्रतिशत एफसीआई (FCI) खरीदता है.

किसानों को इस बात का भी डर है कि इससे निजी कंपनियों को फ़ायदा होगा और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के ख़त्म होने से किसानों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं. इसलिए वे (MSP) की मांग पर अड़े हैं, जो की सरकार को जम नहीं रही है. पिछले साल की ही बात करें तो क्रेंद्र सरकार एजेसिंयों ने पंजाबी किसानों से 54,000 करोड़ का अनाज खरीदा था.   

हालांकि मसलों का हल निकालने के लिए 13 नवंबर को किसानों और सरकार के बीच बातचीत हुई थी. जहां किसान नेताओं ने राजनाथ सिंह, नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल से मुलाकात की थी. ऐसा लगा था कि अब विवाद थम गया है क्योंकि 18 नवंबर को किसानों ने रेलवे और रोड जाम खत्म कर दिया था. साथ ही दोनों पक्ष 3 दिसंबर को अगले मुलाकात के लिए सहमत भी हो गए थे.

किसानों ने सभी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ ही समस्याओं के हल के लिए विशेष ट्रिब्यूनल व अदालतों के गठन, जिला कलेक्टर को Appellate Authority  बनाने और सस्ती स्टोरेज सुविधाएं देने की मांग की. केंद्र सरकार इनकी ज्यादातर मांगों पर सहमत है और इन्हें नियमों का हिस्सा बनाने की बात भी कह रही है.

प्रधानमंत्री मोदी और तोमर दोनों ने साफ कर दिया है कि हरियाणा, पंजाब, पश्चिम उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दूसरे राज्यों से भी गेहूं, धान और अन्य फसलों की खरीद को आसान बनाएंगे. लेकिन पंजाब के किसान इस पर सहमत नहीं है. 

हरियाणा सरकार ने पुलिस बल तैयार कर आंदोलनकारी किसानों को दिल्ली जाने से रोका तो पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को खरी-खरी सुनाई. उन्होंने पूछा कि आखिर हरियाणा सरकार किसानों को दिल्ली जाने से क्यों रोकना चाहती है. दूसरी तरफ किसानोंं जिस तरह राशन सप्लाई के साथ पहंच रहे हैं उससे शंका जताई जा कही है कि यह आंदोलन लंबे अरसे तक चलने वाला है. क्योंकि किसानों ने रबी (जाड़े की फसल) की बुआई कर ली है और किटनाशक छिड़के जाने तक फ्री हैं.  

दूसरी तरफ आखिरकार केंद्रीय गृहमंत्री अमितशाह ने मोर्चा संभालते हुए किसानों से निवेदन किया कि 3 दिसंबर की वार्ता से पहले वे अपना डेरा दिल्ली के बाहर बुराड़ी के मैदान में शिफ्ट कर लें. दरअसल, बीजेपी का पंजाब के किसानों के बीच प्रतिनिधित्व सीमित है. यही वजह है कि भाजपा किसान मोर्चे को रोक पाने में असफल रही है. राज्य बीजेपी का काडर 12500 में से सिर्फ 4,500 गांवों में ही है.

साथ ही पार्टी के पास कोई जाट समुदाय का नेता भी नहीं है. इस कमी को पूरा करने के लिए बीजेपी 23 सालों से एनडीए के पूर्व पार्टनर शिरोमणि अकाली दल पर निर्भर है. दरअसल, अकाली दल ने कृषि कानून पारित होने के बाद ही अपना विरोध जताते हुए एनडीए से पार्टनरशिप खत्म कर दी थी.

इसके बाद बीजेपी नेताओं ने अमरिंदर पर आरोप लगाया कि उन्होंने किसानों को गलत सूचना दी और उनको भड़काने का काम किया. साथ ही पंजाब और देश की राजधानी दिल्ली में कानूनी समस्याएं बढ़ाने का काम किया. दूसरी तरफ अमरिंदर ने किसानों के आंदोलन को समर्थन दिया है. क्रेंद्र सरकार सारा दोष अमरिंदर पर भी लगा सकता क्योंकि क्रेंद्र ने किसानों की समस्याओं पर अपना पक्ष रखने की बात कही है और थोड़ा समय मांगा है.

फिलहाल किसान तीनों क़ानूनों को पूरी तरह वापस लेने की करने की मांग कर रहे हैं. वे किसी भी तरह के संशोधन के लिए भी तैयार नहीं हैं. किसान नेताओं को यह मानना है कि दिल्ली में बॉडर सील कर उन्होंने केंद्र सरकार पर दबाव बना दिया है. अब देखना है कि केंद्र सरकार किसानों की बात मानती है या कोई और हल निकालती है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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