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बच्चों के दिल का दर्द बयां कर रही ये चिट्ठी हर मां-बाप को पढ़नी चाहिए

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 18 फरवरी, 2017 05:09 PM
  • 18 फरवरी, 2017 05:09 PM
offline
ढेर सारी हिम्मत जुटाकर कुछ बच्चों ने अपने पेरेंट्स को चिट्टी लिखी, और उसमें अपने दिल का सारा दर्द उड़ेल दिया. एग्जाम प्रेशर से जूझ रहे बच्चों की चिट्ठी हर माता-पिता को एक बार जरूर पढ़नी चाहिए.

मैं 10वीं और 12वीं बोर्ड का प्रेशर शायद जिंदगी भर भूल नहीं सकती. टीनएज में बच्चे पढ़ाई के प्रेशर से बाहर ही नहीं आ पाते. पेरेंट्स की अथाह उम्मीदें हमेशा दिमाग पर एक बोझ की तरह बसी रहती थीं. पढ़ते वक्त बस यही चिंता सताती रहती थी कि नंबर कम आए तो क्या होगा. उस वक्त पेर्ंट्स की मेहनत, पढ़ाई पर खर्च किया उनका पैसा, उम्मीदें, फलां की लड़की से तुलना, फलां के बच्चे की परिस्थितियां, सबकुछ आखों के सामने दिखाई देता था.

जिस वक्त दिमाग में नए-नए विचार आने चाहिए, क्रिएटिव आइडिया आने चाहिए उस वक्त दिमाग में सिर्फ चिंता, फिक्र, डर और गिल्ट बसे होते. मुझे लगता है कि हम सबकी जिंदगी का ये दौर ऐसे ही गुजरा होगा.

खैर आज ये सारी यादें एक वीडियो ने ताजा कर दीं. पर एक बात जो हैरान करती है, वो ये कि दशकों पहले जो कुछ भी एक टीनेजर की स्थिति थी, आज के दौर के बच्चे भी वही सब झेल रहे हैं. न पेरेंट्स बदले, और न बच्चों का तनाव.

पर जो हम कभी न कर पाए वो आज कुछ बच्चों ने किया, ढेर सारी हिम्मत जुटाकर अपने पेरेंट्स को चिट्टी लिखी, और उसमें अपने दिल का सारा दर्द उड़ेल दिया. चिट्ठी में बच्चों ने कुछ ऐसा कहा-

'आप केवल कंपटीशन और मार्क्स के बारे में बात करते हैं, मुझे लगता है मेरी जिंदगी अब रही ही नहीं.'

'मेरी क्षमताएं सीमित हैं. मैं लगातार 10 घंटे बैठकर नहीं पढ़ सकता. और उसपर आप हर आधा घंटे में मुझे चैक करने आती हो, इससे मेरा ध्यान बंटता है'

'मुझे घुटन महसूस होती है, मैं सबसे दूर जाना चाहती हूं'

'मैं टीवी पर फुटबॉल देखना चाहता...

मैं 10वीं और 12वीं बोर्ड का प्रेशर शायद जिंदगी भर भूल नहीं सकती. टीनएज में बच्चे पढ़ाई के प्रेशर से बाहर ही नहीं आ पाते. पेरेंट्स की अथाह उम्मीदें हमेशा दिमाग पर एक बोझ की तरह बसी रहती थीं. पढ़ते वक्त बस यही चिंता सताती रहती थी कि नंबर कम आए तो क्या होगा. उस वक्त पेर्ंट्स की मेहनत, पढ़ाई पर खर्च किया उनका पैसा, उम्मीदें, फलां की लड़की से तुलना, फलां के बच्चे की परिस्थितियां, सबकुछ आखों के सामने दिखाई देता था.

जिस वक्त दिमाग में नए-नए विचार आने चाहिए, क्रिएटिव आइडिया आने चाहिए उस वक्त दिमाग में सिर्फ चिंता, फिक्र, डर और गिल्ट बसे होते. मुझे लगता है कि हम सबकी जिंदगी का ये दौर ऐसे ही गुजरा होगा.

खैर आज ये सारी यादें एक वीडियो ने ताजा कर दीं. पर एक बात जो हैरान करती है, वो ये कि दशकों पहले जो कुछ भी एक टीनेजर की स्थिति थी, आज के दौर के बच्चे भी वही सब झेल रहे हैं. न पेरेंट्स बदले, और न बच्चों का तनाव.

पर जो हम कभी न कर पाए वो आज कुछ बच्चों ने किया, ढेर सारी हिम्मत जुटाकर अपने पेरेंट्स को चिट्टी लिखी, और उसमें अपने दिल का सारा दर्द उड़ेल दिया. चिट्ठी में बच्चों ने कुछ ऐसा कहा-

'आप केवल कंपटीशन और मार्क्स के बारे में बात करते हैं, मुझे लगता है मेरी जिंदगी अब रही ही नहीं.'

'मेरी क्षमताएं सीमित हैं. मैं लगातार 10 घंटे बैठकर नहीं पढ़ सकता. और उसपर आप हर आधा घंटे में मुझे चैक करने आती हो, इससे मेरा ध्यान बंटता है'

'मुझे घुटन महसूस होती है, मैं सबसे दूर जाना चाहती हूं'

'मैं टीवी पर फुटबॉल देखना चाहता हूं, लेकिन आपने टीवी का कनेक्शन हटवा दिया. कभी कभी मैं इतना परेशान हो जाता हूं कि मन करता है बाथरूम में खुद को लॉक कर लूं, और किसी से न बोलूं'

'मुझे नहीं पता आप मुझे मेरे दोस्तों से मिलने क्यों नहीं देते, मुझे कैद महसूस होती है. मेरे एग्जाम के दौरान आप इतने तनाव में होते हैं कि मैं नर्वस हो जाती हूं'

'आप हमेशा मुझपर चीखते चिल्लाते हैं, मैं रातों को सो नहीं पाती हूं'

और इसके बाद पेरेंट्स को उनके बच्चों की चिट्ठियां पढ़वाई गईं. जिसे पढ़कर सारे पेरेंट्स की आंखे नम हो गईं.

पर दाद देनी होगी 'मिरिंडा' की, कि आज #ReleaseThePressure नाम के वीडियो के माध्यम से उन्होंने बच्चों के मन की बात उनके पेरेंट्स तक पहुंचाई, और न जाने कितने ही पेरेंट्स को एक बार फिर सोचने पर मजबूर किया.

हैशटैग #ReleaseThePressure सिर्फ ट्रेंड हो ये मकसद नहीं, मकसद है कि लोग अपने बच्चों और उनकी काबीलियत पर भरोसा करें, और उन्हें सिर्फ पढ़ने दें, सीखने दें. नंबर, कंपटीशन और उम्मीदों का बोझ उनके कंधों पर न डालें. क्योंकि एग्जाम और उम्मीदों का प्रेशर झेलने के बाद जब ये बच्चे पास हो जाएंगे, तब उनपर कंपटीशन और एनट्रेंस एग्जाम का प्रेशर लादा जाएगा, कोचिंग क्लासेज भेज भेजकर उनसे सलेक्शन की उम्मीदें की जाएंगी. जो बच्चे झेल गए तो ठीक, नहीं तो फिर कुछ खबरें अखबारों में पढ़ने मिल जाएंगी.

क्योंकि वीडियो के आखिर में ये भी बताया गया है कि 'नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बताती हैं कि एग्जाम प्रेशर और अच्छा परफॉर्म करने का प्रेशर बच्चों में डिप्रेशन और सुसाइड करने की प्रवृत्ति के सबसे बड़े कारणों में से है'. अब फैसला आपके हाथ है...क्योंकि हर बच्चा चिट्ठी लिखकर अपने मन की बात नहीं बताता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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