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ये भीड़ है, एक इशारे पर जान ले भी सकती है और जान दे भी सकती है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 27 अगस्त, 2017 07:56 PM
  • 27 अगस्त, 2017 07:56 PM
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बाबा राम रहीम के समर्थकों की भीड़ ने जिस तरह बाबा के समर्थन में तबाही मचाई है वो ये साफ बताती है कि भीड़ भारत में कहीं की भी हो, उसका मूल स्वाभाव और स्वरूप बिल्कुल एक है.

जिस वक्त बाबा गुरमीत राम रहीम पर फैसला सुनाया जा रहा था उनके समर्थकों की भीड़ सड़कों पर थी. फैसले की घड़ी में, भीड़ बाबा की रिहाई चाहती थी. उन्हें पूरे सम्मान के साथ डेरे पर वापस देखना चाहती थी. भीड़ का बस एक उद्देश्य था कि उसका बाबा बाइज्जत बरी हो जाए और वो जश्न मनाएं. मगर अदालत ने उस भीड़ की भावनाओं की कोई परवाह नहीं की. 15 साल पहले अपने ही डेरे पर एक साध्वी के साथ हुए यौन शोषण के मामले में अदालत ने बाबा को दोषी करार करते हुए गिरफ्तार करने के आदेश दिए. बेड़ियों में जकड़े अपने चहेते बाबा की कल्पना भर से भीड़ उग्र हो गयी और फिर उसने जो किया उससे ये सिद्ध हो गया कि आवारा भीड़ के खतरों को हल्के में लेना एक बड़ी भूल है.

भीड़ चाहे जैसी भी हो इसका स्वरूप एक है

फैसला आने के बाद, क्या सिरसा क्या पंचकुला. भीड़ ने न सिर्फ हरियाणा और पंजाब में बल्कि दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश समेत कई स्थानों पर बाबा के समर्थन ने जगह जगह उग्र प्रदर्शन किये. बाबा के भक्तों ने तोड़ फोड़ की, गाडियां और रेलवे स्टेशन को आग के हवाले किया, पत्रकारों को गंभीर रूप से घायल किया उनकी ओबी वैन में आग लगाई. भीड़ ने बेबस तथा लाचार प्रशासन को ये बताया कि जब भीड़ उग्र होती है तो उसे संभालना दुनिया का सबसे चुनौतीपूर्ण कृत्य होता है.

हरियाणा में सरेआम कानून का मखौल उड़ाया गया है और आवारा भीड़ द्वारा ये बताने का प्रयास किया गया है कि जब बात हमारे अहम और भावना पर आती है तब न तो हमें अपने देश का ख्याल रहता है. न ही उसके लोगों और उसकी संपत्ति का. ऐसे वक्त कब हम इंसान से पशु बन हैवानियत पर उतर आते हैं ये हमें पता ही नहीं चलता.

हरियाणा में जो हुआ उसके बाद ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि ये भीड़ खतरनाक और जानलेवा है. ये वही भीड़ है जो एक इशारे पर बिना कुछ सोचे समझे, किसी की भी जान ले सकती है और...

जिस वक्त बाबा गुरमीत राम रहीम पर फैसला सुनाया जा रहा था उनके समर्थकों की भीड़ सड़कों पर थी. फैसले की घड़ी में, भीड़ बाबा की रिहाई चाहती थी. उन्हें पूरे सम्मान के साथ डेरे पर वापस देखना चाहती थी. भीड़ का बस एक उद्देश्य था कि उसका बाबा बाइज्जत बरी हो जाए और वो जश्न मनाएं. मगर अदालत ने उस भीड़ की भावनाओं की कोई परवाह नहीं की. 15 साल पहले अपने ही डेरे पर एक साध्वी के साथ हुए यौन शोषण के मामले में अदालत ने बाबा को दोषी करार करते हुए गिरफ्तार करने के आदेश दिए. बेड़ियों में जकड़े अपने चहेते बाबा की कल्पना भर से भीड़ उग्र हो गयी और फिर उसने जो किया उससे ये सिद्ध हो गया कि आवारा भीड़ के खतरों को हल्के में लेना एक बड़ी भूल है.

भीड़ चाहे जैसी भी हो इसका स्वरूप एक है

फैसला आने के बाद, क्या सिरसा क्या पंचकुला. भीड़ ने न सिर्फ हरियाणा और पंजाब में बल्कि दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश समेत कई स्थानों पर बाबा के समर्थन ने जगह जगह उग्र प्रदर्शन किये. बाबा के भक्तों ने तोड़ फोड़ की, गाडियां और रेलवे स्टेशन को आग के हवाले किया, पत्रकारों को गंभीर रूप से घायल किया उनकी ओबी वैन में आग लगाई. भीड़ ने बेबस तथा लाचार प्रशासन को ये बताया कि जब भीड़ उग्र होती है तो उसे संभालना दुनिया का सबसे चुनौतीपूर्ण कृत्य होता है.

हरियाणा में सरेआम कानून का मखौल उड़ाया गया है और आवारा भीड़ द्वारा ये बताने का प्रयास किया गया है कि जब बात हमारे अहम और भावना पर आती है तब न तो हमें अपने देश का ख्याल रहता है. न ही उसके लोगों और उसकी संपत्ति का. ऐसे वक्त कब हम इंसान से पशु बन हैवानियत पर उतर आते हैं ये हमें पता ही नहीं चलता.

हरियाणा में जो हुआ उसके बाद ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि ये भीड़ खतरनाक और जानलेवा है. ये वही भीड़ है जो एक इशारे पर बिना कुछ सोचे समझे, किसी की भी जान ले सकती है और किसी के एक इशारे पर जान दे भी सकती है. बाबा गुरमीत राम रहीम की गिरफ्तारी को लेकर लोगों की इसी भीड़ में से 38 लोग इस दुनिया को छोड़ कर जा चुके हैं 300 लोग घायल हैं. इन मौतों और इन घायलों को देखने के बाद कुछ सवाल अपने आप जहन में आते हैं. ऐसे सवाल जो हमारे अस्तित्व से जुड़े हैं, ऐसे सवाल जिनका सीधा सम्बन्ध देश के हर उस एक नागरिक से है जो ये सोचता है कि उसका देश आगे बढ़े और विकास की नई इबारतों की रचना करे.

भले ही भीड़ अंधी हो मगर इसका विनाश करने का तरीका बिल्कुल एक जैसा है

कहा ये भी जा सकता है कि भले ही भीड़ का आकार और प्रकार कैसा भी हो मगर उसका और उस भीड़ में मौजूद लोगों की रगों में बहने वाले लहू का रंग एक जैसा ही होता है. यानी हरियाणा की भीड़ उतनी ही उग्र है जितनी तमिलनाडु की वो भीड़ जो जल्लीकट्टू के समर्थन के लिए सड़कों पर आई और उसने कोहराम मचाया. चाहे नॉट इन माय नेम की भीड़ हो चाहे इन माय नेम की भीड़, भीड़ केवल भीड़ है वो भीड़ जो खान पान या पशु हितों की बात करते हुए खफा होकर किसी को भी मौत के घाट उतार सकती है.

भीड़ की एक खास बात भी है ये परिस्थिति के अनुकूल होती हैं. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. भीड़ में सारा ताना बाना मौके और परिस्थितियां बनाती हैं. मौके ही भीड़ को नर्म करते हैं या गर्म करते हैं. हम हरियाणा की इस भीड़ को देख रहे हैं. हमें कर्नाटक की उस भीड़ को भी देखना चाहिए जिसने कावेरी के पानी के बंटवारे को लेकर सारे राज्य में हाहाकार मचा दिया. हमें तमिलनाडु की उस भीड़ को भी देखना चाहिए जिसने कर्नाटक से बदला लेने के लिए न सिर्फ कर्नाटक बल्कि केरल तक को प्रभावित किया.

भीड़ में स्त्री पुरुष नहीं होते, ये केवल भीड़ ही है

चाहे तेलंगाना को अलग राज्य बनाने की मांग करती उग्र भीड़ हो या फिर सैनिकों पर पत्थर बरसाती कश्मीरी युवाओं की हिंसक भीड़ ये उतनी ही घातक है जितनी अखलाक, पहलू खान और डॉक्टर नारंग को मारने वाली भीड़. बहरहाल, हरियाणा में बाबा समर्थकों की भीड़ हो या उसी हरियाणा के जाटों और गुज्जरों की भीड़, भारत भर के अलग अलग संघों और संगठनों की भीड़, इनका रंग, रूप, स्वरूप, आकर, प्रकार सब एक है. ये एक ही तरीके से काम करते हैं, ये एक ही तरीके से तबाही मचाते हैं. इनकी मोडस ऑपरेंडी एक है, इनका मरना और मारने का तरीका एक है.

भीड़ को याद रखना चाहिए कि वो और कुछ नहीं बस देश का नुकसान कर रही है

कभी सोचिये इस बात पर कि ये भीड़ ऐसी क्यों है. क्यों इसका स्वरूप इतना उग्र है. क्यों ये इस तरह हिंसक होकर तबाही की एक नई इबारत लिख देती है तो मिलता है कि इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह इसका हद से ज्यादा भावुक होना और भावुक होकर बेवकूफ बनना है.

अंत में इतना ही कि, हरियाणा को जलाती, पत्रकारों पर हमले करती, सरकारी और गैर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाती बाबा गुरमीत राम रहीम समर्थकों की इस भीड़ ने ये बात साफ तौर पर बता दी है कि भीड़ चेहरा नहीं है बल्कि वो समूह है जिसे न तो कानून की परवाह है और ही इस बात का खौफ कि उसकी की हुई हरकत उसके देश को दशकों पीछे ढकेल देगी. खैर हम तिल-तिल ही सही इंडिया से न्यू इंडिया की तरफ बढ़ रहे हैं. भीड़ के हाथों मजबूर न्यू इंडिया में आपका बहुत-बहुत स्वागत है.  

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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