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खट्टर साहब कानून-व्यवस्था का काम आपसे ना हो पाएगा

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 26 अगस्त, 2017 01:10 PM
  • 26 अगस्त, 2017 01:10 PM
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बाबा गुरमीत राम रहीम की गिरफ्तारी के बाद बाबा समर्थकों द्वारा की गयी अराजकता इस बात की ओर साफ इशारा करती है कि इसकी जिम्मेदार खट्टर सरकार है.

'सांप निकले और लोगों को डंसने के बाद अपने बिल में चला जाये और फिर लोग आएं और लाठी पीटे' इतनी सी बात को किसी भी समझदार इंसान को बताइए. निश्चित ही, इसे सुनने के बाद व्यक्ति यही कहेगा कि, ये और कुछ नहीं बल्कि एक मूर्खता भरा कृत्य है. एक ऐसा कृत्य,जहां बेवकूफी को लीप पोत के उस के ऊपर पर्दा डाला जा रहा है. अब इस बात को पंजाब हरियाणा, दिल्ली, एनसीआर और उत्तर प्रदेश और डेरा सच्चा सौदा प्रमुख बाबा गुरमीत राम रहीम के सन्दर्भ में समझिये.

बाबा राम रहीम की गिरफ़्तारी के बाद हुई हिंसा से एक बात तो साफ है कि हरियाणा में कानून व्यवस्था अपने सबसे खराब दौर में है

अपने ही आश्रम की एक साध्वी से बलात्कार के मामले में आज 15 साल बाद बाबा गुरमीत राम रहीम को कोर्ट ने दोषी मान दिया है और गिरफ्तार कर लिया है. बाबा की गिरफ्तारी से उनके समर्थकों में रोष है जिसके फलस्वरूप उन्होंने हिंसक प्रदर्शन किये और पूरी कानून व्यवस्था को ध्वस्त करके रख दिया. बताया जा रहा है कि बाबा गुरमीत राम रहीम की गिरफ्तारी के बाद से चल रहे इस प्रदर्शन में 31 लोगों की मौत और 250 लोग घायल हुए हैं. मामले की गंभीरता देखते हुए पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि डेरा सच्चा सौदा प्रमुख और बलात्कार के आरोप में दोषी करार हो चुके गुरमीत राम रहीम की संपत्ति बेच कर राज्य को हुए नुकसान की भरपाई की जाए.

कह सकते हैं कि हरियाणा में न थमने वाला अराजकता का खुला खेल खेला जा रहा है. यदि इस पूरे प्रकरण को ध्यान से देखें तो मिलता है कि, केंद्र समेत राज्य सरकार को इंटेलिजेंस से इस सन्दर्भ में पुख्ता जानकारी दी गयी थी. इंटेलिजेंस ने सरकार को बताया था कि बाबा के समर्थन में, तमाम तरह के हथियारों और देसी बमों से लैस लोगों की एक बड़ी संख्या पंचकुला पहुंच चुकी है. साथ ही इंटेलिजेंस ने ये भी कहा था कि,...

'सांप निकले और लोगों को डंसने के बाद अपने बिल में चला जाये और फिर लोग आएं और लाठी पीटे' इतनी सी बात को किसी भी समझदार इंसान को बताइए. निश्चित ही, इसे सुनने के बाद व्यक्ति यही कहेगा कि, ये और कुछ नहीं बल्कि एक मूर्खता भरा कृत्य है. एक ऐसा कृत्य,जहां बेवकूफी को लीप पोत के उस के ऊपर पर्दा डाला जा रहा है. अब इस बात को पंजाब हरियाणा, दिल्ली, एनसीआर और उत्तर प्रदेश और डेरा सच्चा सौदा प्रमुख बाबा गुरमीत राम रहीम के सन्दर्भ में समझिये.

बाबा राम रहीम की गिरफ़्तारी के बाद हुई हिंसा से एक बात तो साफ है कि हरियाणा में कानून व्यवस्था अपने सबसे खराब दौर में है

अपने ही आश्रम की एक साध्वी से बलात्कार के मामले में आज 15 साल बाद बाबा गुरमीत राम रहीम को कोर्ट ने दोषी मान दिया है और गिरफ्तार कर लिया है. बाबा की गिरफ्तारी से उनके समर्थकों में रोष है जिसके फलस्वरूप उन्होंने हिंसक प्रदर्शन किये और पूरी कानून व्यवस्था को ध्वस्त करके रख दिया. बताया जा रहा है कि बाबा गुरमीत राम रहीम की गिरफ्तारी के बाद से चल रहे इस प्रदर्शन में 31 लोगों की मौत और 250 लोग घायल हुए हैं. मामले की गंभीरता देखते हुए पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि डेरा सच्चा सौदा प्रमुख और बलात्कार के आरोप में दोषी करार हो चुके गुरमीत राम रहीम की संपत्ति बेच कर राज्य को हुए नुकसान की भरपाई की जाए.

कह सकते हैं कि हरियाणा में न थमने वाला अराजकता का खुला खेल खेला जा रहा है. यदि इस पूरे प्रकरण को ध्यान से देखें तो मिलता है कि, केंद्र समेत राज्य सरकार को इंटेलिजेंस से इस सन्दर्भ में पुख्ता जानकारी दी गयी थी. इंटेलिजेंस ने सरकार को बताया था कि बाबा के समर्थन में, तमाम तरह के हथियारों और देसी बमों से लैस लोगों की एक बड़ी संख्या पंचकुला पहुंच चुकी है. साथ ही इंटेलिजेंस ने ये भी कहा था कि, यदि बाबा को सजा होती है तो ये भीड़ उग्र रूप लेकर जान माल के अलावा सरकारी-गैरसरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा सकती है.

आपको बताते चलें कि पंजाब के डीजीपी (कानून व्यवस्था) ने कुछ दिनों पूर्व हरियाणा सरकार को एक पत्र के माध्यम से जानकारी दी थी कि डेरा सच्चा सौदा समर्थकों की एक बड़ी संख्या ड्रमों में ज्वलनशील प्रदार्थ और धारधार हथियारों के साथ हरियाणा पहुंच चुकी है. दिलचस्प बात ये है कि न तो हरियाणा सरकार ने और न ही हरियाणा पुलिस ने पंजाब के डीजीपी की बात को गंभीरता से लिया और उसके बाद जो हुआ उसका नतीजा हमारे सामने है.

हरियाणा में हुए इस प्रदर्शन में 29 लोगों की मौत हुई है और 250 लोग घायल हुए हैं

कहा जा सकता है कि यदि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर चाहते तो पूरे राज्य भर में डेरा समर्थकों के इस कोहराम को बड़ी ही आसानी के साथ रोका जा सकता था. खट्टर सरकार का प्रदेश की सुरक्षा जैसे अहम मसले पर इतना सुस्त रवैया ये बताने के लिए काफी है कि न तो उन्हें प्रदेश की सुरक्षा से मतलब है और न ही उन्हें राज्य की बदहाल कानून व्यवस्था का ख्याल है.

देखा जाए तो हरियाणा के मुख्यमंत्री के लिए, ऐसे प्रदर्शन और ऐसे प्रदर्शनों के दौरान हुई आम आदमी की मौत कोई नई बात नहीं है. पूर्व में भी हम राज्य की लचर कानून व्यवस्था के गिरते स्तर को तब देख चुके हैं जब आरक्षण की मांग को लेकर राज्य भर के जाट उग्र हुए थे. बात गत वर्ष की है जब सरकारी नौकरियों में आरक्षण न मिलने से खफा जाटों ने हरियाणा के कई भागों में आग लगा दी थी. सबसे ज्यादा हालात खराब झज्जर और रोहतक में हुए थे जहां जाटों द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोगों को घरों से निकाल-निकल के मारा गया था. आपको बताते चलें कि उस जाट आंदोलन में करीब 30 लोगों की मौत और 100 से ऊपर लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे.

अब निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को नैतिकता के नाते इस्तीफा दे देना चाहिए

बात अगर प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के सम्बन्ध में हो तो ये कहना बिल्कुल दुरुस्त होगा कि राज्य की स्थिति बिल्कुल भी ठीक नहीं है. राज्य में अपराध अपने चरम पर हैं. कानून व्यवस्था का ग्राफ अपने सबसे निचले पायदान पर है और इन सब के बाद अगर इतने बड़े राज्य का मुख्यमंत्री अपनी सारी अहम जिम्मेदारियां का निर्वाह केवल गौ हितों और गौ रक्षा की बातें कर करे तो वाकई स्थिति गंभीर है.

बहरहाल, कह ये भी सकते हैं कि गाय के लिए एम्बुलेंस चलवाने और उसकी हत्या करने वाले लोगों के लिए लगातार सदन में दोषियों के लिए फांसी की मांग करने वाले मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर यदि आम लोगों की सुरक्षा के लिए इतने गंभीर होते तो शायद आज राज्य और कानून व्यवस्था की हालत इतनी बद से बदतर न रहती.

अंत में इतना ही कि, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को अब कम से कम नैतिकता के नाते ही ही सही प्रधानमंत्री को अपना इस्तीफा सौफ देना चाहिए. साथ ही उन्हें बिल्कुल एकांत में बैठकर आत्मसात करना चाहिए कि यदि वो सच में राज्य के लोगों के प्रति इतना कर्मठ थे तो फिर लगातार एक के बाद एक राज्य में ऐसी घटनाएं क्यों हुई. क्यों राज्य में इतने बेगुनाह लोग मरे. क्यों हर बार उन्होंने कानून व्यवस्था जैसे अहम मुद्दे पर इतना लचर रवैया रखा. क्यों वो एक असफल मुख्यमंत्री साबित हुए.  

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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