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सभ्य समाज के लिए आवारा भीड़ का खतरा गहरी चिंता का विषय है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 25 जून, 2017 06:27 PM
  • 25 जून, 2017 06:27 PM
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भारत जैसा मजबूत देश लगातार भीड़ की अराजकता का शिकार हो रहा है. देश में आवारा भीड़ से उत्पन्न हुए खतरों का ग्राफ लगातार बढता जा रहा है. देश भर में भीड़ जगह-जगह अपने तरीके से न्याय करने पर आमादा है.

जंगल में पशु वास करते हैं और समाज में मनुष्य. यही समाज और जंगल के बीच का मूल अंतर है. कहा जा सकता है कि जंगल के कानून अलग हैं, समाज के कानून अलग हैं. प्रायः ये देखा गया है कि जंगल में भूख के कारणवश ही एक पशु, दूसरे पशु का भक्षण करता है वरना जंगल में शांति ही वास करती है. हालांकि जंगल और समाज की तुलना बड़ी मुश्किल है मगर वर्तमान परिपेक्ष में जो हो रहा है वो ये कहने के लिए काफी है कि अब समाज जंगल बन रहा है. समाज में रह रही भीड़ एक दूसरे के खून की प्यासा हो रही है और लगातार इंसानियत को शर्मिंदा किये जा रही है.

टीवी, समाचारपत्र, वेबसाइटों के जरिये हम लगातार यहीं सुन रहे हैं कि जरा- जरा सी बात पर लोग अपना आपा खोकर एक-दूसरे को मौत के घाट उतारे जा रहे हैं. अब ये सुनना हमारे लिए एक आम सी बात है कि भीड़ द्वारा लगातार धर्म का सहारा लिया जा रहा है और लोगों को मारकर मानवता को शर्मसार किया जा रहा है.

हो सकता है उपरोक्त बातें को पढ़कर आप सोचने पर मजबूर हो जाएं कि आखिर ऐसा क्या हो गया जो हमें आज अचानक ही जंगल और समाज की याद आ गयी. क्यों हम इसके इर्द - गिर्द बातें का ताना बाना बुन रहे हैं. तो अखलाक से लेकर पहलू खां और डॉक्टर नारंग से लेकर जुनैद तक कई ऐसी बातें हैं जो ये बताने के लिए काफी है कि अब भारत भीड़ के द्वारा गर्त के अंधेरों में जा रहे हैं.

कहीं आवारा भीड़ के ये खतरे भारत को गर्त के अंधेरों में न ले जाएं

जी हां बिल्कुल सही सुना आपने भारत जैसा मजबूत देश लगातार भीड़ की अराजकता का शिकार हो रहा है. देश में आवारा भीड़ से उत्पन्न हुए खतरों का ग्राफ लगातार बढता जा रहा है. देश भर में आवारा भीड़ जगह-जगह अपने तरीके से न्याय करने पर आमादा है. पूर्व में हम देख चुके हैं कि कैसे भीड़ ने सिर्फ घर के फ्रिज में बीफ रखने की अफवाह से दादरी के अखलाख को मारा....

जंगल में पशु वास करते हैं और समाज में मनुष्य. यही समाज और जंगल के बीच का मूल अंतर है. कहा जा सकता है कि जंगल के कानून अलग हैं, समाज के कानून अलग हैं. प्रायः ये देखा गया है कि जंगल में भूख के कारणवश ही एक पशु, दूसरे पशु का भक्षण करता है वरना जंगल में शांति ही वास करती है. हालांकि जंगल और समाज की तुलना बड़ी मुश्किल है मगर वर्तमान परिपेक्ष में जो हो रहा है वो ये कहने के लिए काफी है कि अब समाज जंगल बन रहा है. समाज में रह रही भीड़ एक दूसरे के खून की प्यासा हो रही है और लगातार इंसानियत को शर्मिंदा किये जा रही है.

टीवी, समाचारपत्र, वेबसाइटों के जरिये हम लगातार यहीं सुन रहे हैं कि जरा- जरा सी बात पर लोग अपना आपा खोकर एक-दूसरे को मौत के घाट उतारे जा रहे हैं. अब ये सुनना हमारे लिए एक आम सी बात है कि भीड़ द्वारा लगातार धर्म का सहारा लिया जा रहा है और लोगों को मारकर मानवता को शर्मसार किया जा रहा है.

हो सकता है उपरोक्त बातें को पढ़कर आप सोचने पर मजबूर हो जाएं कि आखिर ऐसा क्या हो गया जो हमें आज अचानक ही जंगल और समाज की याद आ गयी. क्यों हम इसके इर्द - गिर्द बातें का ताना बाना बुन रहे हैं. तो अखलाक से लेकर पहलू खां और डॉक्टर नारंग से लेकर जुनैद तक कई ऐसी बातें हैं जो ये बताने के लिए काफी है कि अब भारत भीड़ के द्वारा गर्त के अंधेरों में जा रहे हैं.

कहीं आवारा भीड़ के ये खतरे भारत को गर्त के अंधेरों में न ले जाएं

जी हां बिल्कुल सही सुना आपने भारत जैसा मजबूत देश लगातार भीड़ की अराजकता का शिकार हो रहा है. देश में आवारा भीड़ से उत्पन्न हुए खतरों का ग्राफ लगातार बढता जा रहा है. देश भर में आवारा भीड़ जगह-जगह अपने तरीके से न्याय करने पर आमादा है. पूर्व में हम देख चुके हैं कि कैसे भीड़ ने सिर्फ घर के फ्रिज में बीफ रखने की अफवाह से दादरी के अखलाख को मारा. हमने ये भी देखा जब सिर्फ थोड़ी सी जगह मांगने के चक्कर में बेगुनाह डॉक्टर नारंग को भीड़ द्वाराअपनी जान से हाथ धोना पड़ा.

हम अपनी - अपनी टीवी स्क्रीन पर भीड़ द्वारा बुजुर्ग पहलू खान की पिटाई भी देखा चुके हैं और अब हमनें हरियाणा स्थित बल्लभगढ़ के जुनैद की मौत को भी देख लिया है. हम इन मौतों को देख चुके हैं और नकार भी चुके हैं. इन मौतों पर हमारे अपने तर्क हैं. हम जहां एक तरफ इसे क्रिया की प्रतिक्रिया मान रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ हम इन मौतों से अपने समुदाय को बलशाली और दूसरे के समुदाय को कमजोर सिद्ध करने में लगे हुए हैं.

आगे बढ़ने से पहले हम आपको हरिशंकर परसाई के एक निबंध 'आवारा भीड़ के खतरे' की कुछ पंक्तियों से अवगत कराना चाहेंगे. परसाई ने भीड़ के विषय में बड़ी अच्छी बात लिखी है. परसाई लिखते हैं कि 'दिशाहीन, बेकार, हताश, नकारवादी, विध्वंसवादी बेकार युवकों की यह भीड़ खतरनाक होती है. इसका प्रयोग महत्वाकांक्षी खतरनाक विचारधारा वाले व्यक्ति और समूह कर सकते हैं. इस भीड़ का उपयोग नेपोलियन, हिटलर और मुसोलिनी ने किया था. यह भीड़ धार्मिक उन्मादियों के पीछे चलने लगती है. यह भीड़ किसी भी ऐसे संगठन के साथ हो सकती है जो उनमें उन्माद और तनाव पैदा कर दे. फिर इस भीड़ से विध्वंसक काम कराए जा सकते हैं. यह भीड़ फासिस्टों का हथियार बन सकती है. हमारे देश में यह भीड़ बढ़ रही है. इसका उपयोग भी हो रहा है. आगे इस  भीड़ का उपयोग सारे राष्ट्रीय और मानव मूल्यों के विनाश के लिए, लोकतंत्र के नाश के लिए करवाया जा सकता है.'

भीड़ जिस तरह लोगों के प्राण ले रही है वो बेहद चिंता का विषय है

परसाई ने ये बात 1991 में कही थी, हम 2017 में रह रहे हैं, आज उस बात को कहे हुए 26 वर्ष हो चुके हैं मगर इस बात का कोई असर नहीं हुआ है. हां बस भीड़ के स्वभाव  में फर्क आया है. कह सकते हैं कि पूर्व की अपेक्षा आज की भीड़ ज्यादा उग्र और हिंसक है.

ये हिंसक क्यों है यदि इस बिंदु पर नज़र डालें तो मिलता है कि इसके उग्र होने की एक बड़ी वजह आज का मीडिया खासकर सोशल मीडिया है. सोशल मीडिया पर एक समुदाय दूसरे पर, दूसरा समुदाय तीसरे पर, तीसरा समुदाय चौथे पर लगातार भद्दे आरोप लगा रहा है, गाली गलौज चल रही है, बहसबाजी हो रही है जो बिल्कुल भी सही नहीं है और जिसका नतीजा आज हमारे सामने हैं.

ध्यान रहे कि मौत कभी भी सुखद नहीं होती और ये अधिक कष्टदायी तब हो जाती है जब मौत का कारण लोगों की भीड़ और उनके अन्दर का रोष हो. अंत में हम इतना ही कहेंगे कि चाहे डॉक्टर नारंग हों या पहलू खां और जुनैद आवारा भीड़ के खतरे एक गहरी चिंता का विषय हैं जो ये बताने के लिए काफी हैं कि यदि ऐसा ही चलता रहा और भीड़ अगर ऐसे ही कानून हाथ में लेने लगी तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ लाशों के ढेर होंगे. और तब हम उन लाशों पर अफसोस के सिवा कुछ न कर पाएंगे.   

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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