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भीड़ का इंसाफः इंडियाज डॉटर, जया बच्चन और नागालैंड

    • नदीम असरार
    • Updated: 26 मार्च, 2015 09:13 AM
  • 26 मार्च, 2015 09:13 AM
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अभिनेता से नेता बनी जया बच्चन ने सरकार से कहा कि 16 दिसंबर के बलात्कारी को उनके हवाले कर दिया जाए, वो उसका 'ख्याल' रखेंगी.

अभिनेता से नेता बनी जया बच्चन ने सरकार से कहा कि 16 दिसंबर के बलात्कारी को उनके हवाले कर दिया जाए, वो उसका 'ख्याल' रखेंगी. दीमापुर में भीड़ ने बलात्कार के एक आरोपी को जेल से निकाल कर उसे नग्न अवस्था में पूरे शहर में घुमाया और तब तक पीटा जब तक उसकी मौत नहीं हो गई. बाद में उसकी लाश को एक दिवार पर लगी रेलिंग साथ बांधकर मोबाइल से तस्वीरें ली गई.

सैयद फरीद खान के रूप में पहचान हो जाने पर 36 वर्षीय उस आदमी की हत्या और आसान हो गई जबकि वह कोई अवैध बांग्लादेशी नहीं था. कुछ देशभक्तों की गलत धारणा को उस वक्त सदमा लगा जब ये बात सामने आई कि असम से मृतक के परिवार ने भारतीय सेना को कई सैनिक दिए थे.

लेकिन क्या यह केवल नकली नाराजगी थी या भारत में भीड़ के इंसाफ की शक्ल में कुछ सियासी माहौल में पनपे सनकियों की हरकत जो एक उदाहरण बन गई. भारत में सबसे चौंकाने वाले बलात्कार पर बनी प्रतिबंधित ब्रिटिश फिल्म के मामले पर हम अपने सिर को कपड़े में लपेटकर ये समझते हैं कि शायद इस पर कम चर्चा होगी. और नागालैंड में एक संदिग्ध बलात्कार का बदला लेने के लिए एक आदमी की हत्या कर दी जाती है.

'इंडियाज डॉटर' के फिल्म निर्माता ने अपनी फिल्म का बचाव किया, जो कि हमारी तरफ से होना चाहिए था. अब उन पर दो साल पहले दिसम्बर की ठंडी रात में 23 वर्षीय मेडिकल प्रशिक्षु के साथ वहशियाना व्यवहार करने वाले छह बलात्कारियों में से एक को मशहूर बनाने का आरोप लगाया गया है. क्योंकि उन्होंने यह जानने की कोशिश नहीं की कि भारत को इसकी तुलना में क्या पंसद है.लेस्ली की फिल्म में बलात्कारी मुकेश सिंह मृतक महिला पर रात में अपने एक पुरुष दोस्त के साथ बाहर जाने को गलत बता कर अपने जघन्य कृत्य को सही ठहरा रहा है. यह उस तरह की सोच को दर्शाता है जिसे भारत में महिलाओं के प्रति संक्रीण मानसिकता रखने वाले एक बड़े वर्ग का समर्थन हासिल है. लेकिन जब बात यौन हिंसा की आती है, तो भारत में मुख्यधारा फिर क्या है? एक राष्ट्र के रूप में हमें कानूनों का उल्लंघन बताकर बांध दिया जाता है लेकिन अपराध करने...

अभिनेता से नेता बनी जया बच्चन ने सरकार से कहा कि 16 दिसंबर के बलात्कारी को उनके हवाले कर दिया जाए, वो उसका 'ख्याल' रखेंगी. दीमापुर में भीड़ ने बलात्कार के एक आरोपी को जेल से निकाल कर उसे नग्न अवस्था में पूरे शहर में घुमाया और तब तक पीटा जब तक उसकी मौत नहीं हो गई. बाद में उसकी लाश को एक दिवार पर लगी रेलिंग साथ बांधकर मोबाइल से तस्वीरें ली गई.

सैयद फरीद खान के रूप में पहचान हो जाने पर 36 वर्षीय उस आदमी की हत्या और आसान हो गई जबकि वह कोई अवैध बांग्लादेशी नहीं था. कुछ देशभक्तों की गलत धारणा को उस वक्त सदमा लगा जब ये बात सामने आई कि असम से मृतक के परिवार ने भारतीय सेना को कई सैनिक दिए थे.

लेकिन क्या यह केवल नकली नाराजगी थी या भारत में भीड़ के इंसाफ की शक्ल में कुछ सियासी माहौल में पनपे सनकियों की हरकत जो एक उदाहरण बन गई. भारत में सबसे चौंकाने वाले बलात्कार पर बनी प्रतिबंधित ब्रिटिश फिल्म के मामले पर हम अपने सिर को कपड़े में लपेटकर ये समझते हैं कि शायद इस पर कम चर्चा होगी. और नागालैंड में एक संदिग्ध बलात्कार का बदला लेने के लिए एक आदमी की हत्या कर दी जाती है.

'इंडियाज डॉटर' के फिल्म निर्माता ने अपनी फिल्म का बचाव किया, जो कि हमारी तरफ से होना चाहिए था. अब उन पर दो साल पहले दिसम्बर की ठंडी रात में 23 वर्षीय मेडिकल प्रशिक्षु के साथ वहशियाना व्यवहार करने वाले छह बलात्कारियों में से एक को मशहूर बनाने का आरोप लगाया गया है. क्योंकि उन्होंने यह जानने की कोशिश नहीं की कि भारत को इसकी तुलना में क्या पंसद है.लेस्ली की फिल्म में बलात्कारी मुकेश सिंह मृतक महिला पर रात में अपने एक पुरुष दोस्त के साथ बाहर जाने को गलत बता कर अपने जघन्य कृत्य को सही ठहरा रहा है. यह उस तरह की सोच को दर्शाता है जिसे भारत में महिलाओं के प्रति संक्रीण मानसिकता रखने वाले एक बड़े वर्ग का समर्थन हासिल है. लेकिन जब बात यौन हिंसा की आती है, तो भारत में मुख्यधारा फिर क्या है? एक राष्ट्र के रूप में हमें कानूनों का उल्लंघन बताकर बांध दिया जाता है लेकिन अपराध करने की लालची इच्छा का क्या. ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि लज्जा और सम्मान का विचार बार-बार बदला लेने के लिए प्रेरित करता है.

यही शर्म और सम्मान की धारणा है जिसने जया बच्चन को अदालत के बाहर मुकेश सिंह को उनके हवाले किए जाने का बयान देने के लिए उकसाया और उन्हें खड़ा किया. इस मामले में अभी भी सुनवाई चल रही है.

गैरकानूनी हालातों पर संवैधानिक स्थिति जो भी हो, लेकिन अब ध्यान देने वाली बात ये है कि चयनात्मक आक्रोश अब विरोध की आवाज़ बनाता जा रहा है. इंडियाज डॉटर के मामले पर लगभग संसद ठप है. क्यों नहीं नगालैंड हत्या करता?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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