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बिल्किस बानो के मुजरिम कम्युनल हैं, तो अंकिता सिंह के क्यों नहीं?

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 29 अगस्त, 2022 04:53 PM
  • 29 अगस्त, 2022 04:50 PM
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दुमका की अंकिता सिंह मुस्लिम बहुत क्षेत्र में रहती थी. वहां का शाहरुख अंकिता को लगातार धमका रहा था. आखिर उसने जान ले ही ली अंकिता की. सवाल उसकी दरिंदगी का नहीं है. सवाल उन खामोश चुप्पियों का भी है, जो बिल्किस बानो वाले मामले में ही शोर मचाती हैं. बिल्किस की तरह न्‍याय की आस तो अंकिता के परिजनों को भी है न?

तारीख, 23 अगस्त 2022...झारखंड के दुमका (Dumka) में 16 साल की अंकिता सिंह (Ankita singh) को शाहरुख हुसैन (Shahrukh Hussain) ने पेट्रोल छिड़कर जिंदा जला दिया, क्योंकि वह उससे फोन पर बात करने से इनकार कर रही थी. अंकिता 5 दिनों तक अस्पताल में तड़पती रही, मगर देश के किसी हिस्से में शोर नहीं मचा. सबके लिए यह एक मामूली सी खबर बनकर रह गई. सोशल एक्टिविस्ट और बुद्धिजीवियों ने इस घटना पर एकदम चुप्पी साध ली.

आखिरकार, अंकिता जिंदगी की जंग हार गई. उसने अपने बयान में कहा था कि "मैं जिस तरह से तड़प रही हूं इसी तरह वह भी तड़पे..." मगर फिर भी लोगों को अंकिता की तड़प का एहसास क्यों नहीं हुआ?

वो मुस्लिम बहुल क्षेत्र में रहती थी. उसे एक मुस्लिम युवक धमका रहा था जबर्दस्‍ती के लिए. वरना जान लेने की बात कह रहा था. और आखिर उसने वो कर दिखाया. सवाल उसकी दरिंदगी का ही नहीं है. सवाल उन खामोश चुप्पियों का भी है, जो बिल्किस बानो वाले मामले में ही शोर मचाती हैं. बिल्किस की तरह न्‍याय की आस तो अंकिता के परिजनों को भी है न? क्‍योंकि अंकिता तो अब इस दुनिया में है भी नहीं.

खुद को सांप्रदायिक कहने वाले लोगों ने बिल्किस और अंकिता में इतना अंतर क्यों बरता?

मां के गुजर जाने के बाद पिता और दादी ने अंकिता को संभाला. मगर वह तो खुद ही दादी अम्मा की तरह पिता को संभालती थी. हिंदू सहिष्णु हैं, तभी तो अंकिता के पिता ने शाहरुख को समझाने की बात की थी, ना की मारने-काटने की...

देश में दो तरह की घटनाएं हुईं. एक बिल्किस बानो की और दूसरी अंकिता सिंह की. दोनों में से कोई भी भी घटना, दूसरे से कम तकलीफदेह नहीं है. बस अंतर यही रहा कि बिल्किस बानो मामले पर लोगों ने आवाज उठाई और अंकिता...

तारीख, 23 अगस्त 2022...झारखंड के दुमका (Dumka) में 16 साल की अंकिता सिंह (Ankita singh) को शाहरुख हुसैन (Shahrukh Hussain) ने पेट्रोल छिड़कर जिंदा जला दिया, क्योंकि वह उससे फोन पर बात करने से इनकार कर रही थी. अंकिता 5 दिनों तक अस्पताल में तड़पती रही, मगर देश के किसी हिस्से में शोर नहीं मचा. सबके लिए यह एक मामूली सी खबर बनकर रह गई. सोशल एक्टिविस्ट और बुद्धिजीवियों ने इस घटना पर एकदम चुप्पी साध ली.

आखिरकार, अंकिता जिंदगी की जंग हार गई. उसने अपने बयान में कहा था कि "मैं जिस तरह से तड़प रही हूं इसी तरह वह भी तड़पे..." मगर फिर भी लोगों को अंकिता की तड़प का एहसास क्यों नहीं हुआ?

वो मुस्लिम बहुल क्षेत्र में रहती थी. उसे एक मुस्लिम युवक धमका रहा था जबर्दस्‍ती के लिए. वरना जान लेने की बात कह रहा था. और आखिर उसने वो कर दिखाया. सवाल उसकी दरिंदगी का ही नहीं है. सवाल उन खामोश चुप्पियों का भी है, जो बिल्किस बानो वाले मामले में ही शोर मचाती हैं. बिल्किस की तरह न्‍याय की आस तो अंकिता के परिजनों को भी है न? क्‍योंकि अंकिता तो अब इस दुनिया में है भी नहीं.

खुद को सांप्रदायिक कहने वाले लोगों ने बिल्किस और अंकिता में इतना अंतर क्यों बरता?

मां के गुजर जाने के बाद पिता और दादी ने अंकिता को संभाला. मगर वह तो खुद ही दादी अम्मा की तरह पिता को संभालती थी. हिंदू सहिष्णु हैं, तभी तो अंकिता के पिता ने शाहरुख को समझाने की बात की थी, ना की मारने-काटने की...

देश में दो तरह की घटनाएं हुईं. एक बिल्किस बानो की और दूसरी अंकिता सिंह की. दोनों में से कोई भी भी घटना, दूसरे से कम तकलीफदेह नहीं है. बस अंतर यही रहा कि बिल्किस बानो मामले पर लोगों ने आवाज उठाई और अंकिता वाले पर खामोश हो गए. बिल्किस बानो के साथ जो हुआ वह नहीं होना चाहिए था. उनके दोषियों को छोड़ने का फैसला भी गलत हुआ, मगर क्या आपको नहीं लगता कि अंकिता को न्याय दिलाने के लिए चुप्पी साधने वालों को आवाज उठानी चाहिए थी? क्या अंकिता के मुजरिम को सजा दिलाने के लिए सभी को एक होकर दबाव बनाने की जरूरत नहीं लगी?

आखिर 5 दिनों तक अंकिता का मामला इतना शांत क्यों रहा? जिन लोगों ने बिल्किस बानो पर आवाज बुलंद की, क्या इन सामाजिक प्राणियों को अंकिता का दर्द महसूस नहीं हुआ? दोनों देश की बेटियां है, तो क्या अंकिता को इंसाफ नहीं मिलना चाहिए? मगर ऐसा होता दिख तो नहीं रहा है...अंकिता दुनिया छोड़ गई मगर शाहरुख मुस्कुराता रहा...मानो जैसे वह हमें चिढ़ा रहा हो कि मैंने तो मेरा काम कर दिया, तुम मेरा कुछ नहीं उखाड़ पाए...

अंकिता, ने 10वीं पास थी. वह बहुत निडर लड़की थी. तभी तो वह शाहरुख की धमकियों से नहीं डरी. अंकिता की दादी ने कहा है कि "वह धमकी देता था कि मैं तुम्हारी सुंदरता को बिगाड़ दूंगा. बाहर निकलो मैं तुम्हारा रूप खराब कर दूंगा... मेरी पोती नहीं डरती थी. वह कहती थी मैं तुम्हारे सामने झुकूंगी नहीं." शाहरुख ने अंकिता से कहा था कि अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो मैं तुम्हें जान से मान दूंगा और उसने अपनी धमकी को सच कर दिखाया...

मगर समाज के जागरूक लोग इस घटना को ऐसे पचा गए जैसे अंकिता का मरना महज एक हेडलाइन भर है. जो बल्किस बानो के साथ जो हुआ वह कहीं से भी माफी के लायक नहीं है. मगर एक मामले पर लोगों ने रिएक्ट किया और दूसरे मामले में चुप्पी साध ली. आखिर इस तरह का दो तरफा रवैया क्यों? अंकिता गुजर गई मगर उसकी आत्मा समाज के लोगों की खामोशी देखकर कहीं सिसक रही होगी...

आज यह अंकिता के साथ हुआ है कल किसी और बेटी के साथ भी हो सकता है. मगर लोगों को एक बेटी की तकलीफ दिखी और दूसरे की नहीं...इससे अधिक शर्मनाक बात और क्या होगी? कहां गईं महिला अधिकार की बात करने वाली वो फेमिनिस्ट दीदियां, जो माथे पर बड़ी बिंदी लगाकर, सिगरेट पीकर खुद को महिला सशक्तिकरण का उदाहरण कहती हैं. तो क्या इनकी नजर में अंकिता लड़की नहीं थी?

अरे, अंकिता तो इतना बहादुर थी कि जब तक वह होश में रही शाहरुख उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाया. वह अकेले ही शाहरुख पर भारी ती मगर कायर ने उसके नींद में होने का फायदा उठाया. उसके पीठ पीछे से वार किया...

सनकी को जब अंकिता ने दुत्कार दिया तो उसने कहीं से अंकिता का नंबर जुगाड़ कर लिया. वह अंकिता से सो कॉल्ड एक तरफा प्यार करता था. वह कभी भी फोन करके अंकिता ने दोस्ती करने की बात करता था. मगर अंकिता ने उससे हर बार दोस्ती करने से मना कर दिया था. उसने शाहरुख से साफ कह दिया है कि तुम दूसरे मुस्लिम धर्म से हो मैं तुमसे दोस्ती करने में रुचि नहीं रखती हूं...मगर वह बुरी तरह अंकिता के पीछे पड़ गया था.

अंकिता को वह अपनी बात नहीं मनवा पाया तो उससे बदला लेने की सोचने लगा. वह अपने घर में गहरी नींद में सो रही थी. उसने कमरे का दरवाजा बंद कर रखा था, मगर खिड़की खोल रखी थी. शाहरुख खिड़की सेही अंदर आया था.

अस्पताल में जो भी अंकिता से मिलने आ रहा था वह उससे पूछ रही थी कि "सच बताओ मैं जिंदा बचूंगी या नहीं? वह जीना चाहती थी मगर उसके सपने अधूरे रह गए. वह अपने रूप, गुण और लोगों की खोमोशी को साथ लिए चली गई. वह कभी भी शाहरुख से डरी नहीं थी तभी तो उसके लाख धमकी देने के बाद भी वह घर में दुबक कर नहीं रही. वह अपने शरीर को फिट रख रही , क्योंकि वह पुलिस में भर्ती होना चाह रही थी.

पूरा शरीर जलने के बाद भी उसने जीने की उम्मीद नहीं छोड़ी थी. वह बड़ी ही बहादुरी के साथ अपना बयान दर्ज करवा रही थी. मगर लिबरल तामाशा देखते रह गए.

आखिर इस सो कॉल्ड समाजसेवियों को सिर्फ एक कौम की ही तकलीफ क्यों दिखती है? एक भी बॉलीवुड सेलेब ने अंकिता सिंह के साथ जो हुआ उसकी निंदा नहीं की, क्यों? हम बल्किस बानों की दोषियों के लिए कड़ी सजा चाहते हैं...मगर क्या अंकिता के साथ गलत नहीं हुआ? क्या अंकिता को इंसाफ नहीं मिलता चाहिए? फिर सांप्रदायिक लोगों ने बिल्किस और अंकिता में इतना अंतर क्यों बरता?

 Famous placard activists on Maun vrat after Shahrukh Hussain killed Jharkhand girl Ankita by pouring petrol and setting her ablaze. pic.twitter.com/BkmZpMIQYI

— Rishi Bagree (@rishibagree) August 29, 2022

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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