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स्‍कूल बस के ड्राइवर काका की आपबीती जिसने करणी सेना के गुंडों से बच्‍चों को बचाया

    • मौसमी सिंह
    • Updated: 25 जनवरी, 2018 06:59 PM
  • 25 जनवरी, 2018 06:31 PM
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बुधवार को भी तीन बजे तक बच्चे और टीचरों से पूरी बस भर गई था. फिर क्या था अपनी पीली धन्नो को उन्होंने चाभी भरी और वो दौड़ पड़ी सोहना रोड पर. मगर क्या मालूम था कि रोज़ की तरह आज का सफर सुहाना ना होगा.

गुरुग्राम का सोहना रोड स्थित जीडी गोयनका स्‍कूल. रोज की ही तरह ड्राइवर काका स्कूल की छुट्टी होने का इंतजार कर रहे थे. पिछले 14 साल से वो कुछ इसी तरह अपनी घड़ी की सुई की टिक टिक को टकटकी लगाए देखते थे. फिर एक बार समय सुस्त हो जाता और इंतज़ार मुश्किल. मगर सबसे ज़्यादा इंतजार तो उन नन्हें बच्चों का रहता है जिन्होंने स्कूल की दहलीज पर अभी कदम ही रखा था. आखिर ड्राइवर काका नर्सरी के बच्चों के सबसे प्रिय जो थे.

इसी तरह स्कूल और छात्रों के घर के बीच के फासले को तय करते करते बाल पक गय थे लेकिन चेहरे पर संतुष्टि है. आखिरी इस सफर के बगैर तो उनकी जिंदगी का सफर अधूरा था.

बुधवार को भी तीन बजे तक बच्चे और टीचरों से पूरी बस भर गई था. फिर क्या था अपनी पीली धन्नो को उन्होंने चाभी भरी और वो दौड़ पड़ी सोहना रोड पर. मगर क्या मालूम था कि रोज़ की तरह आज का सफर सुहाना ना होगा.

इनकी सूझबूझ ने बच्चों और टीचर की जान बचा दी

सड़क पर ट्रैफिक धीमे होते-होते थम सा गया था. बच्चे आपस मे खुसरफुसर कर रहे थे, टीचर भी बातचीत में मग्न थी. लेकिन इसके अलावा कुछ भी सामान्य नहीं था. ना सड़क का जाम और ना सड़क के दोनों तरफ खड़े लोगों की घूरती नज़रें. देखते ही देखते कुछ लोगों ने बस को घेर लिया. वो अपने शोर में गुम थे. ड्राइवर काका सहम गए. आखिर राहुल की मां उसकी राह देख रही होंगी. देर हुई तो सिया के दादा चिंता करेंगे और रवि की म्यूज़िक क्लास मिस हो जाएगी. फिर वो उनको क्या जवाब देंगे? ड्राइवर काका के चहरे पर चिंता चढ़ती जा रही थी.

वो इस सोच में डूबे ही थे कि एक जोरदार आवाज हुई और सामने का शीशा चिटक गया. फिर क्या था मानो खौफ का बड़ा बादल बच्चों पर फट गया हो. ड्राइवर काका ने कंडक्टर बिजेंदर को देखा तो वो पीछे भागा. बस में अफरा तफरी मची थी. बच्चों की रोने की आवाज़ मानो...

गुरुग्राम का सोहना रोड स्थित जीडी गोयनका स्‍कूल. रोज की ही तरह ड्राइवर काका स्कूल की छुट्टी होने का इंतजार कर रहे थे. पिछले 14 साल से वो कुछ इसी तरह अपनी घड़ी की सुई की टिक टिक को टकटकी लगाए देखते थे. फिर एक बार समय सुस्त हो जाता और इंतज़ार मुश्किल. मगर सबसे ज़्यादा इंतजार तो उन नन्हें बच्चों का रहता है जिन्होंने स्कूल की दहलीज पर अभी कदम ही रखा था. आखिर ड्राइवर काका नर्सरी के बच्चों के सबसे प्रिय जो थे.

इसी तरह स्कूल और छात्रों के घर के बीच के फासले को तय करते करते बाल पक गय थे लेकिन चेहरे पर संतुष्टि है. आखिरी इस सफर के बगैर तो उनकी जिंदगी का सफर अधूरा था.

बुधवार को भी तीन बजे तक बच्चे और टीचरों से पूरी बस भर गई था. फिर क्या था अपनी पीली धन्नो को उन्होंने चाभी भरी और वो दौड़ पड़ी सोहना रोड पर. मगर क्या मालूम था कि रोज़ की तरह आज का सफर सुहाना ना होगा.

इनकी सूझबूझ ने बच्चों और टीचर की जान बचा दी

सड़क पर ट्रैफिक धीमे होते-होते थम सा गया था. बच्चे आपस मे खुसरफुसर कर रहे थे, टीचर भी बातचीत में मग्न थी. लेकिन इसके अलावा कुछ भी सामान्य नहीं था. ना सड़क का जाम और ना सड़क के दोनों तरफ खड़े लोगों की घूरती नज़रें. देखते ही देखते कुछ लोगों ने बस को घेर लिया. वो अपने शोर में गुम थे. ड्राइवर काका सहम गए. आखिर राहुल की मां उसकी राह देख रही होंगी. देर हुई तो सिया के दादा चिंता करेंगे और रवि की म्यूज़िक क्लास मिस हो जाएगी. फिर वो उनको क्या जवाब देंगे? ड्राइवर काका के चहरे पर चिंता चढ़ती जा रही थी.

वो इस सोच में डूबे ही थे कि एक जोरदार आवाज हुई और सामने का शीशा चिटक गया. फिर क्या था मानो खौफ का बड़ा बादल बच्चों पर फट गया हो. ड्राइवर काका ने कंडक्टर बिजेंदर को देखा तो वो पीछे भागा. बस में अफरा तफरी मची थी. बच्चों की रोने की आवाज़ मानो उनके कलेजे को चीर रही हो. टीचर ने बचाव में छोटे बच्चों को घेर रखा था. घड़ी की सुई मानों सुपर फास्ट चल रही हो और समय रेत की तरह फिसल रहा था. तभी कांच के टुकड़े पुरी बस में बिखर गए. एक और खिड़की का शीशा चकनाचूर हो गया था.

इनके लिए कर्म पूजा नहीं जीवन है

ड्राइवर काका ने हमलावरों को देखा. ये वो लम्हा था कि उनकी एक हरकत 28 जानों को खतरे में डाल सकती थी. ड्राइवर काका की आंखों के सामने छात्रों के खिलखिलाते चेहरे थे. नन्हें मासूमों की हंसी कानों में गूंज रही थी. एकाएक उन्होंने हाथ जोड़ बस में बैठे बच्चों की ओर इशारा किया. अगले दस मिनट तक बच्चों की दुहाई और हाथ जोड़े ड्राइवर काका की तस्वीर. उस वक्त चिंता सिर्फ इस बात की थी कि कैसे इन नन्हीं जानों को सुरक्षित उनके परिजनों तक पहुंचाया जाए.

फिर क्या था उनकी गुहार मानो काम कर गई हो. बस आगे बढ़ने लगी और ड्राइवर काका ने फिर तब तक बस में ब्रेक नहीं लगाया जब तक उन्होंने छात्रों को महफूज उनके मां बाप तक नहीं पहुंचा दिया.

ड्राइवर काका के लिए आज एक बहुत बड़ा दिन था. सिर्फ इसलिए नहीं की सिया के दादा और राहुल की मां को उन्होंने निराश नहीं किया. बल्कि इसलिए भी की उनको एहसास हुआ कि कर्म सिर्फ पूजा नहीं बल्कि उनकी जिंदगी भी है. और अपने कर्तव्य की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा सकते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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