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उस बेटी की कहानी जिसने पिता की जान बचाने के लिए अपना लिवर दान कर दिया

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 22 फरवरी, 2023 05:19 PM
  • 22 फरवरी, 2023 05:19 PM
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केरल के त्रि‍शूर में 17 साल की बेटी ने बीमार पिता की जान बचाने के लिए अपना लिवर दान कर दिया. इस बेटी ने हिम्मत दिखाकर अपने पिता को नई जिंदगी और घरवालों के चेहरे पर मुस्कान दी है...

बेटियां बड़ी खुशकिस्मत वालों को नसीब होती हैं. वे भले ही शादी करके किसी दूसरे के घर चली जाएं मगर उनका दिल का एक हिस्सा उनके घर में छूट जाता है. वे दुनिया के किसी कोने में रहें मगर माता-पिता की चिंता करना नहीं छोड़ती हैं. माता-पिता के अंदर उनकी जान बसती है. ऐसा हम सिर्फ कह नहीं रहे हैं बल्कि कई बेटियों की ऐसी कहानी सुनी, देखी है.

लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य के बारे में तो आपने सुना ही होगा जिन्होंने अपनी पिता की जान बचाने के लिए अपनी किडनी दान कर दी. अब ऐसा ही एक मामला समाने आया है कि केरल के त्रशूर से जहां 17 साल की बेटी ने अपने बीमार पिता की जान बचाने के लिए अपने लिवर का एक हिस्सा दान कर दिया.

बेटी का नाम देवानंद है. लिवर देने के बाद उसका कहना है कि "मैं अपने पिता की जान बचाने के लिए यह किया है. इस बीमारी के दौरान हमने बहुत कुछ सहा है. किसी और परिवार को इस तरह की पीड़ा न झेलनी पड़े."

देवानंद का कहना है कि मैंने अपने पिता की जान बचाने के लिए ऐसा किया है

इस बात को साइंस ने भी माना है कि बेटियां पिता के करीब होती हैं, तभी तो इस बेटी ने पिता की जिंदगी बचाने के लिए अपने जान की भी परवाह नहीं की. उसने हिम्मत दिखाकर अपने पिता को नई जिंदगी दी और घरवालों के चेहरे पर मुस्कान. इतनी सी उम्र में इतनी हिम्मत करने वाली इस बेटी ने दुनिया को प्ररेणा दी है.

पिता की जिंदगी बचाने वाली देवानंद को फिलहाल कोई परेशानी नही है. पिता भी ठीक हैं. असल में केरल में कुछ सालों से ब्रेन-डेड लोगों के अंगों का दान कम हुआ है इसी के चलते उन्हें कोई डोनर नहीं मिला. जिसके बाद देवानंद ने अपने पिता को बचाने के लिए अपना लिवर दान का फैसला किया. जिसने भी यह कहानी सुनी बेटी पर गर्व करने लगा. लोगों का कहना है कि जिसके पास देवानंद जैसी बेटी...

बेटियां बड़ी खुशकिस्मत वालों को नसीब होती हैं. वे भले ही शादी करके किसी दूसरे के घर चली जाएं मगर उनका दिल का एक हिस्सा उनके घर में छूट जाता है. वे दुनिया के किसी कोने में रहें मगर माता-पिता की चिंता करना नहीं छोड़ती हैं. माता-पिता के अंदर उनकी जान बसती है. ऐसा हम सिर्फ कह नहीं रहे हैं बल्कि कई बेटियों की ऐसी कहानी सुनी, देखी है.

लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य के बारे में तो आपने सुना ही होगा जिन्होंने अपनी पिता की जान बचाने के लिए अपनी किडनी दान कर दी. अब ऐसा ही एक मामला समाने आया है कि केरल के त्रशूर से जहां 17 साल की बेटी ने अपने बीमार पिता की जान बचाने के लिए अपने लिवर का एक हिस्सा दान कर दिया.

बेटी का नाम देवानंद है. लिवर देने के बाद उसका कहना है कि "मैं अपने पिता की जान बचाने के लिए यह किया है. इस बीमारी के दौरान हमने बहुत कुछ सहा है. किसी और परिवार को इस तरह की पीड़ा न झेलनी पड़े."

देवानंद का कहना है कि मैंने अपने पिता की जान बचाने के लिए ऐसा किया है

इस बात को साइंस ने भी माना है कि बेटियां पिता के करीब होती हैं, तभी तो इस बेटी ने पिता की जिंदगी बचाने के लिए अपने जान की भी परवाह नहीं की. उसने हिम्मत दिखाकर अपने पिता को नई जिंदगी दी और घरवालों के चेहरे पर मुस्कान. इतनी सी उम्र में इतनी हिम्मत करने वाली इस बेटी ने दुनिया को प्ररेणा दी है.

पिता की जिंदगी बचाने वाली देवानंद को फिलहाल कोई परेशानी नही है. पिता भी ठीक हैं. असल में केरल में कुछ सालों से ब्रेन-डेड लोगों के अंगों का दान कम हुआ है इसी के चलते उन्हें कोई डोनर नहीं मिला. जिसके बाद देवानंद ने अपने पिता को बचाने के लिए अपना लिवर दान का फैसला किया. जिसने भी यह कहानी सुनी बेटी पर गर्व करने लगा. लोगों का कहना है कि जिसके पास देवानंद जैसी बेटी हो उसे भला किसी चीज की कमी है?

हालांकि अपने ही समाज के कुछ लोग ऐसे हैं जो बेटा-बेटी में अंतर करते हैं. वे हर जगह बेटे को प्राथमिकता देते हैं. उनके हिसाब से बेटा वंश बढ़ाता है. वह घर का चिराग होता है. वह संपत्ति का हकदार होता है. मगर आप बताइए क्या देवानंद जैसी बेटियां घर का चिराग नहीं होतीं?

इस बेटी ने तो अपने घऱ के मुखिया को बचाकर सबके सिर पर छांव दी है. धन्य है यह बेटी. हमारी प्रार्थना है कि पिता औऱ बेटी जल्द से जल्द स्वस्थ्य हो जाएं. वैसे इस बेटी के बारे में आपकी क्या राय है?

 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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