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बच्‍चों की परवरिश में खप जाने वाले 'सिंगल पेरेंट्स' के अपने सपनों का क्‍या?

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 22 दिसम्बर, 2022 05:38 PM
  • 22 दिसम्बर, 2022 05:38 PM
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बच्चों को पालने वाले चाहें एकल पुरुष हो या महिला, उनकी पहली प्राथमिकता बच्चा ही होता है. वे कुछ भी करने से पहले अपने बच्चे के बारे में सोचते हैं. उनकी दिनचर्या भी बच्चे के हिसाब से फिक्स हो जाती है. एक तरह से उनकी जिंदगी सिर्फ बच्चे के इर्द-गिर्द ही घूमती है. उनका अपना कुछ नहीं रह जाता है.

समाज में सिंगल पेरेंट्स की स्थिति बड़ी अजीब होती है. इनकी अलग-अलग कैटेगरी भी है. एक वो हैं जिन्‍होंने अपना जीवन साथी खो दिया. दूसरे वो हैं जिनका जीवन साथी समाज के सामने सिर्फ दिखावे का है. यानी वे शादी में इसलिए बने हुए हैं ताकि अपने बच्‍चे पाल सकें. लेकिन, बच्‍चों की परवरिश पूरी होने के बाद क्‍या उन्‍हें अपने सपनों को जीने का हक नहीं है?

बच्चे को पालने वाले चाहें एकल पुरुष हो या महिला, उनकी पहली प्राथमिकता बच्चा ही होता है. वे कुछ भी करने से पहले अपने बच्चे के बारे में सोचते हैं. उनकी दिनचर्या भी बच्चे के हिसाब से फिक्स हो जाती है. एक तरह से उनकी जिंदगी सिर्फ बच्चे के इर्द-गिर्द ही घूमती है. उनका अपना कुछ नहीं रह जाता है.

हालांकि कई बार ऐसा होता है कि विधुर या तलाकशुदा पुरुष इसलिए शादी कर लेते हैं कि उनके बच्चों को पालने में मदद मिल जाएगी. मगर महिलाओं के मामले में यह उल्टा हो जाता है. बच्चे के बड़े होने तक वे शादी नहीं कर पातीं, क्योंकि शादी करके अगर वे दूसरे के घर चली गईं तो उनके बच्चों का क्या होगा?

जबकि सच यही है कि अकेले बच्चों को पालना आसान नहीं होता. और बच्चे के बड़े होने के बाद सिंगल पैरेंट की उम्र हो जाती है. भला उम्रदराज महिला की शादी को समाज के लोग कहां पचा पात हैं? वे 10 तरह की बातें करनी शुरु कर देते हैं. वे एक बार भी यह नहीं सोचते कि सामने वाला भी इंसान ही है. आखिर कब तक अपनी जिंदगी को घुट-घुट कर जिएगा. कब तक अपने सपनों का गला घोटेगा? माता-पिता बनने के यह मतलब तो ही होता कि सामने वाले की जिंदगी ही खत्म हो गई.

कई बार ऐसा होता है कि बच्चे बड़े होकर अपनी दुनिया में खो जाते हैं और सिंगल मात या पिता अकेले पड़ जाते हैं. सच यह है कि उन्हें अकेलापन सताता है, उन्हें किसी की जरूरत होती है मगर समाज के जज किए जाने और तानों के डर से वे अपनी जिंदगी में किसी को शामिल करने से डरते हैं.

समाज में सिंगल पेरेंट्स की स्थिति बड़ी अजीब होती है. इनकी अलग-अलग कैटेगरी भी है. एक वो हैं जिन्‍होंने अपना जीवन साथी खो दिया. दूसरे वो हैं जिनका जीवन साथी समाज के सामने सिर्फ दिखावे का है. यानी वे शादी में इसलिए बने हुए हैं ताकि अपने बच्‍चे पाल सकें. लेकिन, बच्‍चों की परवरिश पूरी होने के बाद क्‍या उन्‍हें अपने सपनों को जीने का हक नहीं है?

बच्चे को पालने वाले चाहें एकल पुरुष हो या महिला, उनकी पहली प्राथमिकता बच्चा ही होता है. वे कुछ भी करने से पहले अपने बच्चे के बारे में सोचते हैं. उनकी दिनचर्या भी बच्चे के हिसाब से फिक्स हो जाती है. एक तरह से उनकी जिंदगी सिर्फ बच्चे के इर्द-गिर्द ही घूमती है. उनका अपना कुछ नहीं रह जाता है.

हालांकि कई बार ऐसा होता है कि विधुर या तलाकशुदा पुरुष इसलिए शादी कर लेते हैं कि उनके बच्चों को पालने में मदद मिल जाएगी. मगर महिलाओं के मामले में यह उल्टा हो जाता है. बच्चे के बड़े होने तक वे शादी नहीं कर पातीं, क्योंकि शादी करके अगर वे दूसरे के घर चली गईं तो उनके बच्चों का क्या होगा?

जबकि सच यही है कि अकेले बच्चों को पालना आसान नहीं होता. और बच्चे के बड़े होने के बाद सिंगल पैरेंट की उम्र हो जाती है. भला उम्रदराज महिला की शादी को समाज के लोग कहां पचा पात हैं? वे 10 तरह की बातें करनी शुरु कर देते हैं. वे एक बार भी यह नहीं सोचते कि सामने वाला भी इंसान ही है. आखिर कब तक अपनी जिंदगी को घुट-घुट कर जिएगा. कब तक अपने सपनों का गला घोटेगा? माता-पिता बनने के यह मतलब तो ही होता कि सामने वाले की जिंदगी ही खत्म हो गई.

कई बार ऐसा होता है कि बच्चे बड़े होकर अपनी दुनिया में खो जाते हैं और सिंगल मात या पिता अकेले पड़ जाते हैं. सच यह है कि उन्हें अकेलापन सताता है, उन्हें किसी की जरूरत होती है मगर समाज के जज किए जाने और तानों के डर से वे अपनी जिंदगी में किसी को शामिल करने से डरते हैं.

एक बेटी ने अपनी 50 साल की विधवा मां की दोबारा शादी कराई है

यह बात इसलिए हो रही है, क्योंकि एक बेटी ने अपनी 50 साल की विधवा मां की दोबारा शादी कराई है. मां-बेटी मूल रूप से मेघालय के शिलॉन्ग की रहने वाली है. मां का नाम मौशुमी चक्रवर्ती है और बेटी का नाम देबार्ती चक्रवर्ती है जो फिलहाल मुंबई में रहती हैं. 27 साल की देबार्ती ने यह कहानी अपने इंस्टाग्राम पर शेयर की है.

उसने बताया है कि मेरी मां 25 साल की उम्र में विधवा हो गई थीं, तब मैं दो साल की थी. मेरी परवरिश के कारण मां ने दोबारा किसी के साथ रिश्ते में आने के बारे में नहीं सोचा. मां ने मुझे अकेले ही पाला-पोषा. मैं मां से कहती थी कि तुम शादी कर लो. तब वो जवाब देती हैं मैं शादी करके चली गई तो तुम्हारा क्या होगा? इसके बाद मैंने बड़ी मुश्किल से मां को पहले दोस्ती करने और फिर शादी करने के लिए राजी किया. अब मां अपनी दूसरी शादी से खुश हैं. हम सब एक परिवार की तरह रहते हैं. ऐसा नहीं है कि समाज के लोगों ने कुछ कहा नहीं, मगर उनकी परवाह कौन करता है? अब समय आ गया है कि समाज के लोग भी इस बात को समझ लें.

सोचने वाली बात यह कि जिन लोगों ने बच्चे की परवरिश के लिए अपनी पूरी जिंदगी खफा दी क्या उन्हें अपने लिए जीने का हक नहीं है. मैंने ऐसी कई महिलाओं को जानती हूं जिनके पति कम उम्र में गुजर गए मगर उन्होंने बच्चे की खातिर दूसरी शादी नहीं की. ऐसी कई महिलाएं हैं जो अपने बच्चों को अकेले पाल रही हैं. कई ऐसे लोग हैं जो सिर्फ बच्चों की परवरिश के खातिर साथ में रहने के लिए मजबूर हैं. ऐसे में अगर वे अपनी जिंदगी को दोबारा मौका देना चाहते हैं तो इसें हर्ज क्या है?

देबार्ती चक्रवर्ती अगर समाज की परवाह करतीं तो उनकी मां को दोबारा जिंदगी की खुशी कभी नहीं मिलती. सिंगल पैरेंट के भी सपने होते हैं, अरमान होते हैं जो समाज के दबाव की वजह से अधूरे रह जाते हैं.

 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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