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बच्चों को ब्रांडेड क्रेच में डालिए, फिर ब्रांडेड वृद्धाश्रम का मजा लीजिए

    • सोनाली मिश्र
    • Updated: 05 फरवरी, 2018 11:43 AM
  • 05 फरवरी, 2018 11:43 AM
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सामाजिक अकेलेपन से बाहर निकलने के लिए आज परिवार के एक होने की आवश्यकता है. जरूरत है परिवार के एक एक तार को जोड़ने की. आज बच्चों को ऐसा साथ चाहिए जो उनकी तोतली भाषा को समझे. उनकी कल्पनाओं को उड़ान दे.

बरस दर बरस रियल एस्टेट में बूम आता जा रहा है और उसके साथ ही वृद्धाश्रम एवं क्रेच की संख्याओं में वृद्धि होती जा रही है. यह अजीब स्थिति है और शायद अब हमें अप्रत्याशित नहीं लगना चाहिए.. परिवार नामक संस्था निजता की भेंट चढ़ चुकी है. यह निजता क्या है और किसके लिए है, अब यह सोचने और विचारने का समय आ गया है.

कामकाजी मां, कामकाजी बहू और कामकाजी पिता के बीच आया ये क्रेच में पलता देश का भविष्य. सामाजिक स्तर पर यह बहुत ही भयावह स्थिति है. हालांकि आर्थिक स्तर पर यह स्थिति बहुत लुभावनी नजर आती है, जिसमें एक परिवार में बच्चों के सहित मात्र तीन लोग, जिसमें से दो लोग, बड़े पैकेज पर कमाने वाले. हर तरह का आर्थिक सुख, बड़ी बड़ी सोसाइटी में फ़्लैट, ब्रांडेड कपडे, यहां तक कि ब्रांडेड डॉग फ़ूड भी.

बच्चों का परिवार जब क्रेच ही हो जाए तो उनसे भावनाओं की उम्मीद कैसे करेंगे?

कभी कभी तो लगता ब्रांडेड मुस्कान, मगर इन सबमें बचपन? बचपन कहां है? क्या लडकियां देख पा रही हैं कि उनके बच्चे ने दिन में क्या किया? आज उसने कितनी बार उसे मां कहकर पुकारा, क्या उसने मां कहा भी या नहीं? ओह नहीं! समय नहीं है! समय नहीं है कि वह आगे बढ़कर अपने बच्चे की स्माइल को गिन ले! हर बार उसकी कैलकुलेशन गड़बड़ा जाती है. क्या किया जाए?

लड़की के लिए यह समय बहुत ही भ्रम और विसंगतियों का समय है, जहां पर एक तरफ उसके पढ़ लिख कर डिग्री हासिल कर लेने से बाहरी जगत में अपनी पहचान बनाने को लेकर संघर्ष है, तो वहीं दूसरी तरफ उन्हें रसोई से लेकर बच्चों की परवरिश भी संभालनी है, यह दोहरी नहीं तिहरी लड़ाई है. क्योंकि इन सबमें उन्हें अपना दाम्पत्य जीवन भी बचाए रखना है. अर्थात पति को भी हर समय संतुष्ट रखना है, नहीं तो पति बाहर चला जाएगा.

इस जटिल सामाजिक स्थिति में स्त्री के पास किसका सहयोग है?...

बरस दर बरस रियल एस्टेट में बूम आता जा रहा है और उसके साथ ही वृद्धाश्रम एवं क्रेच की संख्याओं में वृद्धि होती जा रही है. यह अजीब स्थिति है और शायद अब हमें अप्रत्याशित नहीं लगना चाहिए.. परिवार नामक संस्था निजता की भेंट चढ़ चुकी है. यह निजता क्या है और किसके लिए है, अब यह सोचने और विचारने का समय आ गया है.

कामकाजी मां, कामकाजी बहू और कामकाजी पिता के बीच आया ये क्रेच में पलता देश का भविष्य. सामाजिक स्तर पर यह बहुत ही भयावह स्थिति है. हालांकि आर्थिक स्तर पर यह स्थिति बहुत लुभावनी नजर आती है, जिसमें एक परिवार में बच्चों के सहित मात्र तीन लोग, जिसमें से दो लोग, बड़े पैकेज पर कमाने वाले. हर तरह का आर्थिक सुख, बड़ी बड़ी सोसाइटी में फ़्लैट, ब्रांडेड कपडे, यहां तक कि ब्रांडेड डॉग फ़ूड भी.

बच्चों का परिवार जब क्रेच ही हो जाए तो उनसे भावनाओं की उम्मीद कैसे करेंगे?

कभी कभी तो लगता ब्रांडेड मुस्कान, मगर इन सबमें बचपन? बचपन कहां है? क्या लडकियां देख पा रही हैं कि उनके बच्चे ने दिन में क्या किया? आज उसने कितनी बार उसे मां कहकर पुकारा, क्या उसने मां कहा भी या नहीं? ओह नहीं! समय नहीं है! समय नहीं है कि वह आगे बढ़कर अपने बच्चे की स्माइल को गिन ले! हर बार उसकी कैलकुलेशन गड़बड़ा जाती है. क्या किया जाए?

लड़की के लिए यह समय बहुत ही भ्रम और विसंगतियों का समय है, जहां पर एक तरफ उसके पढ़ लिख कर डिग्री हासिल कर लेने से बाहरी जगत में अपनी पहचान बनाने को लेकर संघर्ष है, तो वहीं दूसरी तरफ उन्हें रसोई से लेकर बच्चों की परवरिश भी संभालनी है, यह दोहरी नहीं तिहरी लड़ाई है. क्योंकि इन सबमें उन्हें अपना दाम्पत्य जीवन भी बचाए रखना है. अर्थात पति को भी हर समय संतुष्ट रखना है, नहीं तो पति बाहर चला जाएगा.

इस जटिल सामाजिक स्थिति में स्त्री के पास किसका सहयोग है? निजता की आड़ में या कहें निजता की होड़ में हर तरह के जतन के माध्यम से नव विवाहित दंपत्ति अपने माता पिता से अलग रहना शुरू कर देते हैं, या कहें अपनी प्राइवेसी खोजने लगते हैं. यह प्राइवेसी बच्चे के आते ही खंडित होना आरम्भ हो जाती है. और उसके बाद कामकाजी लड़कियों की असली परीक्षा शुरू होती है. लड़कियों के लिए बहुत कुछ बदल जाता है और तब उनके सामने एक ही विकल्प होता है. और वह है, अपनी नौकरी छोड़ना.

दरअसल बच्चे पालना अभी भी केवल और केवल स्त्रियों के ही कंधे पर है. जहां पर संयुक्त परिवार हैं, वहां पर समस्या नहीं है. मगर जहां पर संयुक्त परिवार नहीं हैं, वहां पर स्थिति भयावह है. बच्चों को क्रेच में छोड़कर नौकरी की जा रही है. ऐसे में क्रेच में बच्चे के साथ क्या हो रहा है? आजकल हाईफाई क्रेच का जमाना है. ऐसे में बच्चों को ब्रांडेड और इम्पोर्टेड फ़ूड ही दिया जाता है.

बच्चे शुरू से ही अपने दादा दादी से दूर हैं, बच्चों के लिए उनका क्रेच ही परिवार है. वे अकेलेपन की ऐसी सुरंग में फंसे होते हैं, जहां से उनका परिवार की तरफ लौटना बहुत कठिन है. और कई परिवार ऐसे भी हैं, जहां पर दादा दादी सब हैं. मगर वे अपने नाती पोतों की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते हैं. यह तथ्य हालांकि कई लोगों के लिए अविश्वनीय हो सकता है, मगर यह सत्य है.

दरअसल कई बार परिवार की परिभाषा ही भ्रामक लगने लगती है. क्या है परिवार? और क्यों है परिवार? सामाजिक बदलावों का परिवार संस्था पर बहुत ही प्रभाव पड़ा है. निजता ने यदि इस पीढी को प्रभावित किया है तो इससे पिछली पीढ़ी भी कथित निजता का मुलम्मा ओढ़कर ही जीवन संग्राम में कूदी होगी? और क्या वह पीढ़ी अपने नाती पोतों के लिए अपनी निजता का त्याग करने के लिए तैयार है?

क्रेच की संख्या बढ़ने पर वृद्धाश्रम भी बढ़ेंगे ही

आज हमें वृद्धाश्रम की बढ़ती संख्याओं से भय लगता है. तो जरा सोचिये कि आखिर इन संख्याओं के लिए उत्तरदायी कौन है? क्या आत्मकेंद्रित और आत्ममुग्ध लोग नहीं? क्या हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि जिस पूरी एक पीढ़ी ने अपनी संतानों को नौकरी आदि के लिए प्रताड़ित किया और उसे केवल अपना बुढ़ापा सुरक्षित मानने वाला निवेश समझा, वह प्रेम की परिभाषा क्या जानेगी?

बच्चों के पैदा होते ही उनके कैरियर सोच लेना, उसे उसी के अनुसार प्रशिक्षित करने वाली पीढ़ी के सामने जब परिवार और करियर को चुनने की बात आती है तो वह करियर को चुनेगी और करियर को चुनने वाली पीढ़ी के सामने जब बच्चा पैदा होने के बाद वाली समस्याएं आती हैं, तब वह हिल जाती है. और उस समस्या से निकलने के उपाय सोचती है.

इस सामाजिक अकेलेपन से बाहर निकलने के लिए आज परिवार के एक होने की आवश्यकता है. जरूरत है परिवार के एक एक तार को जोड़ने की. आज बच्चों को ऐसा साथ चाहिए जो उनकी तोतली भाषा को समझे. उनकी कल्पनाओं को उड़ान दे.

बच्चों को ब्रांडेड क्रेच का ब्रांडेड लाड़ देंगे, तो ब्रांडेड वृद्धाश्रम ही अन्ततोगत्वा बूम में आएंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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