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कोर्ट का एक ऐसा फैसला, जो रेप के कुछ मामलों का स्याह पहलू सामने लाता है

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 02 अप्रिल, 2018 06:00 PM
  • 02 अप्रिल, 2018 06:00 PM
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रेप करना अपराध है, लेकिन तब क्या जब दोनों के बीच गहरे प्रेम संबंधों के सबूत मौजूद हों? क्या तब भी दो लोगों के बीच बने शारीरिक संबंध को रेप ही कहा जाएगा? कोर्ट ऐसा नहीं मानता.

भारत में रेप एक बड़ी समस्या है, जिसका शिकार आए दिन कई महिलाएं बनती हैं. लेकिन रेप के ही एक मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा ब्रांच ने जो फैसला सुनाया है, उससे रेप के मामलों का वो स्याह पहलू भी सामने आता है, जिसकी चर्चा कभी नहीं होती है. अगर कभी होती भी है तो वो क्षणिक होती है. यहां बात की जा रही है उस यौन संबंध की, जिसे लड़का-लड़की सहमति से बनाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में इसे रेप की तरह प्रस्तुत किया जाता है. रेप करना अपराध है, लेकिन तब क्या जब दोनों के बीच गहरे प्रेम संबंधों के सबूत मौजूद हों? क्या तब भी दो लोगों के बीच बने शारीरिक संबंध को रेप ही कहा जाएगा? कोर्ट ऐसा नहीं मानता.

क्या फैसला दिया है कोर्ट ने?

बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा ब्रांच ने योगेश पालेकर के मामले में ये फैसला सुनाया है. इस मामले में कोर्ट ने कहा है कि किसी पुरुष को सिर्फ इसलिए रेप का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है कि उसने किसी महिला के साथ यौन संबंध बनाए हैं. कोर्ट ने साफ किया कि अगर दोनों के बीच 'गहरा प्रेम संबंध' होने के सबूत हों तो 'तथ्यों की गलत व्याख्या' के आधार पर पुरुष को रेप का दोषी नहीं मान सकते. कोर्ट के इस फैसले पर बहुत से लोग इसे नारी के अपमान से जोड़ देंगे या कोर्ट के फैसले पर सवाल खड़े करेंगे. वहीं दूसरी ओर कोर्ट के फैसले से रेप के कुछ मामलों का जो स्याह पहलू सामने आया है, उससे कुछ लोग सहमत भी जरूर होंगे. दिल्ली हाई कोर्ट के वकील अमित खेमका का भी कुछ ऐसा ही मानना है. खेमका के अनुसार शादी का झांसा देकर रेप करने के मामलों में सिर्फ लड़के को ही अकेला दोषी नहीं माना जा सकता है, क्योंकि शादी का वादा करके किसी लड़की को सेक्स के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.

दिल्ली में एक चौथाई मामले ऐसे

अगर सिर्फ दिल्ली की ही बात करें तो दिल्ली पुलिस के...

भारत में रेप एक बड़ी समस्या है, जिसका शिकार आए दिन कई महिलाएं बनती हैं. लेकिन रेप के ही एक मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा ब्रांच ने जो फैसला सुनाया है, उससे रेप के मामलों का वो स्याह पहलू भी सामने आता है, जिसकी चर्चा कभी नहीं होती है. अगर कभी होती भी है तो वो क्षणिक होती है. यहां बात की जा रही है उस यौन संबंध की, जिसे लड़का-लड़की सहमति से बनाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में इसे रेप की तरह प्रस्तुत किया जाता है. रेप करना अपराध है, लेकिन तब क्या जब दोनों के बीच गहरे प्रेम संबंधों के सबूत मौजूद हों? क्या तब भी दो लोगों के बीच बने शारीरिक संबंध को रेप ही कहा जाएगा? कोर्ट ऐसा नहीं मानता.

क्या फैसला दिया है कोर्ट ने?

बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा ब्रांच ने योगेश पालेकर के मामले में ये फैसला सुनाया है. इस मामले में कोर्ट ने कहा है कि किसी पुरुष को सिर्फ इसलिए रेप का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है कि उसने किसी महिला के साथ यौन संबंध बनाए हैं. कोर्ट ने साफ किया कि अगर दोनों के बीच 'गहरा प्रेम संबंध' होने के सबूत हों तो 'तथ्यों की गलत व्याख्या' के आधार पर पुरुष को रेप का दोषी नहीं मान सकते. कोर्ट के इस फैसले पर बहुत से लोग इसे नारी के अपमान से जोड़ देंगे या कोर्ट के फैसले पर सवाल खड़े करेंगे. वहीं दूसरी ओर कोर्ट के फैसले से रेप के कुछ मामलों का जो स्याह पहलू सामने आया है, उससे कुछ लोग सहमत भी जरूर होंगे. दिल्ली हाई कोर्ट के वकील अमित खेमका का भी कुछ ऐसा ही मानना है. खेमका के अनुसार शादी का झांसा देकर रेप करने के मामलों में सिर्फ लड़के को ही अकेला दोषी नहीं माना जा सकता है, क्योंकि शादी का वादा करके किसी लड़की को सेक्स के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.

दिल्ली में एक चौथाई मामले ऐसे

अगर सिर्फ दिल्ली की ही बात करें तो दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के अनुसार रेप के कुल मामलों में से एक चौथाई मामले ऐसे ही होते हैं, जिनमें शादी का झांसा देकर रेप करने की शिकायत आती है. अगर बात सिर्फ 2016 की करें तो पूरे देश में करीब 41,761 रेप में मामले दर्ज हुए थे, जिनमें से करीब 33 फीसदी यानी 13,803 मामले सिर्फ दिल्ली के थे. इस तरह ये कहा जा सकता है कि इसका एक चौथाई लगभग 3500 केस सिर्फ दिल्ली में ऐसे थे, जो शादी का झांसा देकर रेप करने के थे.

तो आखिर रेप क्या है?

रेप का सीधा सा मतलब है कि अगर कोई शख्स किसी महिला के साथ बिना उसकी सहमति के सेक्स करे. इंडियन पीनल कोड की धारा 375 में भी रेप की इसी परिभाषा को थोड़ा विस्तृत रूप में लिखा गया है. ऐसे में अगर दो लोगों के बीच सहमति से सेक्स हो तो फिर उसे रेप कैसे कहा जा सकता है?

इसी को लेकर कोर्ट ने गहरा प्रेम संबंध होने के सबूत की बात कही है. यानी अगर कोई शख्स शादी का झांसा देकर सेक्स करे तो उसे रेप कहेंगे, लेकिन अगर दोनों में गहरे प्रेम संबंध हों और किसी विवाद के चलते दोनों की शादी न हो सके तो उसे रेप नहीं कहेंगे.

अब वो मामला भी जान लीजिए, जिसमें कोर्ट ने ये फैसला दिया है

यह फैसला योगेश पालेकर के एक मामले में सुनाया गया है, जिस पर एक महिला के साथ शादी का वादा कर के रेप करने का आरोप है. इसे लेकर योगेश को 7 साल की जेल और 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया जा चुका है. कोर्ट ने 2013 के इस मामले में आरोपी की सजा और जुर्माने को हटा दिया है. आपको बता दें कि योगेश एक कसीनो में शेप का काम करते थे. वहीं पर काम करने वाली एक लड़की के साथ उनका अफेयर हो गया. महिला ने आरोप लगाया कि योगेश घरवालों से मिलाने के नाम पर उसे घर ले गया और उसके साथ संबंध बनाए. इसके बाद भी दोनों में संबंध बने. महिला ने बाद में योगेश के खिलाफ रेप की शिकायत दर्ज की.

पहले भी आया था एक ऐसा ही मामला

शादी के नाम पर रेप का ये कोई पहला मामला नहीं है, ना ही कोर्ट ने ऐसा फैसला पहली बार दिया है. मार्च 2016 में भी एक ऐसा ही फैसला सामने आया था, जिसमें एक महिला ने मुंबई के गोरेगांव पुलिस स्टेशन में शादी का झांसा देकर रेप करने की शिकायत दर्ज कराई थी. उस मामले में जस्टिस मृदुला भटकर ने कहा था कि यह रेप नहीं हैं और आरोपी को जमानत दे दी गई थी. कोर्ट का तर्क था कि लड़की पढ़ी-लिखी थी और शारीरिक संबंध के लिए मना भी कर सकती थी.

समझिए किन मामलों में 'शादी का झांसा देकर रेप' माना जा सकता है

जस्टिस मृदुला भटकर के अनुसार, अगर किसी मामले में धोखे से किसी महिला की सेक्स के लिए सहमति ली जाए तो उसे झांसा देकर रेप माना जाएगा. यानी अगर कोई शख्स पहले से ही शादीशुदा है और बिना बताए किसी लड़की को शादी का झांसा देकर उसके साथ सेक्स करे तो उसे रेप माना जाएगा. साथ ही, अगर कोई महिला अनपढ़ है और उसे शादी का झांसा देकर उसके साथ सेक्स संबंध स्थापित किया जाए तो इसे भी रेप माना जाएगा. लेकिन अगर लड़की पढ़ी-लिखी है और किसी लड़के के साथ उसे प्यार होता है और उसी प्यार में वो दोनों संबंध बनाते हैं तो इसे एक-दूसरे की सहमति माना जाएगा. ऐसे में मामले में लड़की ये नहीं कह सकती कि उसे शादी का झांसा देकर उसके साथ रेप किया गया है, क्योंकि वह पढ़ी-लिखी है और सेक्स के लिए 'ना' भी कह सकती थी.

ऐसे मामलों में क्यों होता है कंफ्यूजन?

दरअसल, जब कभी कोई महिला शादी के नाम पर रेप करने का आरोप लगाती है तो पुलिस को मामला दर्ज करना पड़ता है और फिर मामला पहुंचता है कोर्ट में. अब बारी आती है सबूत पेश करने की. सबूत के तौर पर यह तो सुनिश्चित आसानी से हो जाता है कि उस शख्स ने महिला के साथ सेक्स किया है, लेकिन उसमें महिला की सहमति थी या नहीं, इसे साबित करना बेहद मुश्किल होता है. मुश्किल का सबसे बड़ा कारण यह है कि यह बेहद निजी पल होते हैं, जिन्हें इंसान अकेले में यानी किसी ऐसा जगह बिताता है जहां लड़का-लड़की के अलावा कोई तीसरा मौजूद ना हो. ऐसे में सहमति थी या नहीं, यह साबित करना लगभग नामुमकिन है, जब तक कि महिला खुद अपना तर्क न रखे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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