• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

Coronavirus महामारी के डर से बंद हुआ, शादी के नाम लड़कियों से जबर्दस्ती न रुकी!

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 24 अप्रिल, 2021 10:53 PM
  • 24 अप्रिल, 2021 10:51 PM
offline
कोरोना महामारी (coronavirus Epidemic) के चलते मां-बाप कम उम्र की लड़कियों की शादी करवा दे रहे हैं. लड़कियों पर जुल्म की दूसरी लहर...

लड़कियों को 17-18 साल की उम्र में शिक्षा छोड़ शादी कर परिवार संभालने के लिए मजबूर किया जा रहा है. हम बात कर रहे हैं तेलंगाना (telangana) की, जहां महामारी (coronavirus Epidemic) के चलते मां-बाप कम उम्र की लड़कियों की शादी करवा दे रहे हैं. इस वजह से लड़कियों की पढ़ाई बीच में ही छूट जा रही है. कई मामले ऐसे आए हैं जिनमें लड़की 17 साल की हुई नहीं कि उसपर शादी के लिए दबाव बनाया जा रहा है.

कोरोना वायरस महामारी के चलते कई तरह की नई समस्याओं ने जन्म लिया है. जिसमें आर्थिक तंगी एक प्रमुख समस्या है. स्कूल और कॉलेज बंद होने की वजह से लड़कियां घर में ही रही हैं. माता पिता को उनका खर्चा उठाना पड़ रहा है इस वजह से वे उनकी शादी करा दे रहे ताकि उनका बोझ हल्का हो सके. 

इस बारे में 18 साल की मीरा का कहना है कि, “एक दिन, मेरे माता-पिता ने मुझे बताया कि मुझे जल्द से जल्द शादी करनी होगी, इससे ज्यादा देरी हुई तो वे कर्ज में डूब सकते हैं”. जब मीरा 17 साल की थी और कक्षा 12 की छात्रा थी. जब उसके माता-पिता ने अगस्त 2020 में उसकी शादी करवा दी. "मेरे माता-पिता ने न तो मेरी सहमति ली और ना ही मुझे इस बारे में बताया, बस मुझे बता दिया गया कि मेरी शादी हो रही है. उन्होंने कहा कि वे कुछ बोझ कम करना चाहते हैं, क्योंकि मेरी एक छोटी बहन भी है."

शादी होने के साथ ही मीरा के कॉलेज जाने और आगे की पढ़ाई करने की उम्मीद को कुचल दिया गया. मीरा ने कहा, "मुझे लगा कि ससुराल वाले मुझे पढ़ाई करने देंगे, लेकिन अब कोई भी मेरी शिक्षा के बारे में चर्चा करने को तैयार नहीं है. मैं अब घर के कामों में व्यस्त हो गई." मीरा, तेलंगाना और महाराष्ट्र की सीमा से लगे निर्मल जिले के भैंसा के पास एक दूरदराज गांव से है.

लड़कियों को शादी के लिए छोड़नी पढ़ रही है पढ़ाई...

लड़कियों को 17-18 साल की उम्र में शिक्षा छोड़ शादी कर परिवार संभालने के लिए मजबूर किया जा रहा है. हम बात कर रहे हैं तेलंगाना (telangana) की, जहां महामारी (coronavirus Epidemic) के चलते मां-बाप कम उम्र की लड़कियों की शादी करवा दे रहे हैं. इस वजह से लड़कियों की पढ़ाई बीच में ही छूट जा रही है. कई मामले ऐसे आए हैं जिनमें लड़की 17 साल की हुई नहीं कि उसपर शादी के लिए दबाव बनाया जा रहा है.

कोरोना वायरस महामारी के चलते कई तरह की नई समस्याओं ने जन्म लिया है. जिसमें आर्थिक तंगी एक प्रमुख समस्या है. स्कूल और कॉलेज बंद होने की वजह से लड़कियां घर में ही रही हैं. माता पिता को उनका खर्चा उठाना पड़ रहा है इस वजह से वे उनकी शादी करा दे रहे ताकि उनका बोझ हल्का हो सके. 

इस बारे में 18 साल की मीरा का कहना है कि, “एक दिन, मेरे माता-पिता ने मुझे बताया कि मुझे जल्द से जल्द शादी करनी होगी, इससे ज्यादा देरी हुई तो वे कर्ज में डूब सकते हैं”. जब मीरा 17 साल की थी और कक्षा 12 की छात्रा थी. जब उसके माता-पिता ने अगस्त 2020 में उसकी शादी करवा दी. "मेरे माता-पिता ने न तो मेरी सहमति ली और ना ही मुझे इस बारे में बताया, बस मुझे बता दिया गया कि मेरी शादी हो रही है. उन्होंने कहा कि वे कुछ बोझ कम करना चाहते हैं, क्योंकि मेरी एक छोटी बहन भी है."

शादी होने के साथ ही मीरा के कॉलेज जाने और आगे की पढ़ाई करने की उम्मीद को कुचल दिया गया. मीरा ने कहा, "मुझे लगा कि ससुराल वाले मुझे पढ़ाई करने देंगे, लेकिन अब कोई भी मेरी शिक्षा के बारे में चर्चा करने को तैयार नहीं है. मैं अब घर के कामों में व्यस्त हो गई." मीरा, तेलंगाना और महाराष्ट्र की सीमा से लगे निर्मल जिले के भैंसा के पास एक दूरदराज गांव से है.

लड़कियों को शादी के लिए छोड़नी पढ़ रही है पढ़ाई

मीरा की तरह श्रावणी भी तेलंगाना में एक राजकीय महाविद्यालय में दूसरे साल की छात्रा थी. तभी उसके माता-पिता ने साल 2020 में उसकी शादी करवा दी. तब वह 18 साल और कुछ महीने की थी. "श्रावणी ने कहा, मुझे शादी में कोई दिलचस्पी नहीं थी क्योंकि इससे मेरी पढ़ाई में बाधा हो रही थी, लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे विश्वास दिलाया कि शादी के बाद भी मैं पढ़ाई जारी रख सकती हूं. मैं भाग्यशाली हूं कि अपनी पढ़ाई जारी रख पा रही हूं.

कई अन्य छात्राओं ने बताया कि इस साल की शुरुआत में उनकी शादी करवा दी गई थी जब वे अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल कर रही थीं. राज्य में संचालित समाज कल्याण आवासीय डिग्री कॉलेजों में कई महिला छात्रों की शादी हो चुकी है, क्योंकि महामारी के कारण स्कूल और कॉलेज बंद थे. लगभग 30 महिला छात्रों के पहली, दूसरी और तीसरी वर्ष की पढ़ाई करने के बाद यह मामला सामने आया है. कुछ छात्राएं तो सिर्फ 18 साल की थीं और कॉलेज में फर्स्ट ईयर कर रही थीं.

इसे रोकने के लिए कई छात्राओं के माता-पिता की काउंसलिंग की गई. कुछ मामलों का जानकारी पहले मिलने पर शादियों को रोक दिया गया. असल में अलग-अलग धर्मों में विवाह के लिए व्यक्तिगत कानून हैं, जो रीति-रिवाजों के अनुसार अलग होते हैं. वहीं माता-पिता को कुछ कानूनी संरक्षण प्राप्त होते हैं. जैसे- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 के अनुसार, शादी के समय दूल्हा और दुल्हन की आयु न्यूनतम 18 वर्ष और 21 वर्ष होनी चाहिए.

वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, जिस लड़की ने युवावस्था प्राप्त कर ली है, वह शादी कर सकती है. हाल ही में, केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक टास्क फोर्स ने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए महिलाओं की विवाह योग्य आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने की सिफारिश की थी, हालांकि उन्होंने कहा था कि सहमति की आयु 18 वर्ष ही होनी चाहिए.

तेलंगाना बाल अधिकार कार्यकर्ता और अन्य अधिकारी ऐसी शादियों को रोकने की कोशिश करते हैं. वे माता-पिता को सलाह देकर ऐसी शादियों को रोकते हैं. दरअसल, महामारी की वजह से परिवारों ने अपनी आजीविका खो दी, वहीं स्कूल और कॉलेज बंद हो गए.

सच्चा शिक्षक संघ (टीटीए) की उपाध्यक्ष कविता पुली एक संगठन के साथ मिलकर बालिका शिक्षा के लिए काम करती हैं. इनका कहना है कि, “महामारी से पहले, हमें पता होता था कि दूरदराज के क्षेत्रों में क्या हो रहा है, खासकर छात्राओं के साथ. इस महामारी ने अब एक अंतर पैदा कर दिया है, ज्यादातर लड़कियों के माता-पिता छोटे पैमाने के व्यवसायों में घरेलू मजदूर के रूप में काम करते हैं, उन्हें लगता है कि लड़की की शादी करने से किसी तरह से उनका बोझ कम हो जाएगा.”

कविता पुली, हैदराबाद में एक सरकारी हाई स्कूल शिक्षक हैं, वो कहती हैं कि, 2020 में उन्होंने हैदराबाद के राजेंद्र नगर में सात परिवारों की काउंसलिंग की. जिन्होंने 14 से 17 साल की उम्र के बीच अपनी बेटियों की शादी करने की कोशिश की. "ये सभी सात लड़कियां प्रवासी परिवारों से हैं जो आजीविका की तलाश में दूरदराज के गांवों से आई थीं."

इस मामले में बाल अधिकार कार्यकर्ता और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की पूर्व अध्यक्ष शांता सिन्हा का कहना है कि राज्य सरकार ने बाल संरक्षण इकाइयों को तैनात किया है जो ग्राम पंचायतों के साथ संपर्क करेंगे. साथ ही वे हर बच्चे को ट्रैक करेंगे और माता-पिता को सख्त चेतावनी देंगे कि वे कानून का उल्लंघन ना करें.

यह समस्या इतनी छोटी नहीं है जितनी दिख रही है. बच्चियों के पास ऐसी सुविधा होनी चाहिए जहां वे अपनी आजाव उठा सकें. इसके साथ ही उनके माता-पिता के पास रोजगार के साधन होने चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर रह सकें, जिससे वे बच्चियों को बोझ न समझें.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲