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Corona crisis: क्यों हमें 'ब्रेस्टफीडिंग मिल्क बैंक' की तरफ ध्यान देने की जरूरत है?

    • अंकिता जैन
    • Updated: 06 मई, 2021 09:06 PM
  • 06 मई, 2021 08:46 PM
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कोरोना की इस दूसरी लहर के बीच देश के कुछ ऐसे मंजर भी देखे हैं जिसमें प्रेग्नेंट महिला ने डिलीवरी के फ़ौरन बाद ही आखिरी सांस ली और नवजात को स्तनपान मिल सके इसके लिए स्तनपान करा सकने वाली मांओं को खोजने की आवश्यकता पड़ी. खुद सोचिये स्थिति जब ऐसी हो तो नवजात के लिए मां का दूध ढूंढने में कितनी दुश्वारियों का सामना करना पड़ा होगा.

इस वर्ष कोरोना के मामलों में कुछ ऐसे केसेस भी सामने आए जिनमें गर्भवतियों ने जन्म देते ही अंतिम सांस ली और नवजात को स्तनपान मिल सके इसके लिए स्तनपान करा सकने वाली माताओं खोजने की आवश्यकता पड़ी. इसमें भी यह उन्हें ही मिल पाया जिनकी किस्मत से उनके आसपास कोई माता उस समय उपस्थित हो. कई ऐसे बच्चे भी होंगे जिनसे इस महामारी ने मां तो छीनी ही अन्य किसी से भी उन्हें यह अतिआवश्यक भोजन नहीं मिल सका. आपमें से कइयों ने हो सकता है 'ब्रेस्टफीडिंग मिल्क बैंक' के बारे में सुना हो, कइयों ने ना सुना हो. भारत में यह बहुत प्रचलित नहीं. हमारे यहां एकल परिवारों का चलन पिछले तीस साल में ही बढ़ा है. उससे पहले तो संयुक्त परिवारों में यदि किसी बच्चे को उसकी मां का दूध न भी मिल पाए तो गांव-परिवार में कोई-न-कोई दूध पिला सकने वाली मां मिल ही जाती थी.

अब समय आ गया है जब हमें ब्रेस्टफीडिंग मिल्क बैंक की तरफ गंभीर हो जाना चाहिए

अब समय तो बदला ही है महामारी के इस भीषण दौर ने कई नई ज़रूरतें भी सामने ला दी हैं. मेरी नज़र में 'ब्रेस्टफीडिंग मिल्क बैंक' उनमें से ही एक है. अपने बेटे के समय में 'ब्रेस्टफीडिंग सपोर्ट फ़ॉर इंडियन मदर्स' नाम के एक ग्रुप से जुड़ी थी. बहुत ही अच्छा ग्रुप जिसमें कई सारी अनुभवी मांएं जो निजी अनुभव वहां साझा करतीं, एक दूसरे को गाइड करतीं. सबसे अच्छी बात कि वे माताएं आज की होकर भी ब्रेस्टफीडिंग को चार-पांच साल तक कराने की पैरवी करतीं जैसा कि हमारी दादी-नानी के ज़माने में होता रहा है.

वर्तमान में कई मॉडर्न माताएं छः महीने बाद ही बच्चे का दूध छुड़ाकर उसे पाउडर के दूध पर ले आती हैं. कई सारी बुजुर्ग महिलाओं को भी इसका पक्षधर देखा है जो बच्चे की सेहत को उसके वजन से मापती हैं बजाय उसकी फुर्ती और तंदुरुस्ती के.

ख़ैर, उसी ग्रुप के ज़रिए मुझे...

इस वर्ष कोरोना के मामलों में कुछ ऐसे केसेस भी सामने आए जिनमें गर्भवतियों ने जन्म देते ही अंतिम सांस ली और नवजात को स्तनपान मिल सके इसके लिए स्तनपान करा सकने वाली माताओं खोजने की आवश्यकता पड़ी. इसमें भी यह उन्हें ही मिल पाया जिनकी किस्मत से उनके आसपास कोई माता उस समय उपस्थित हो. कई ऐसे बच्चे भी होंगे जिनसे इस महामारी ने मां तो छीनी ही अन्य किसी से भी उन्हें यह अतिआवश्यक भोजन नहीं मिल सका. आपमें से कइयों ने हो सकता है 'ब्रेस्टफीडिंग मिल्क बैंक' के बारे में सुना हो, कइयों ने ना सुना हो. भारत में यह बहुत प्रचलित नहीं. हमारे यहां एकल परिवारों का चलन पिछले तीस साल में ही बढ़ा है. उससे पहले तो संयुक्त परिवारों में यदि किसी बच्चे को उसकी मां का दूध न भी मिल पाए तो गांव-परिवार में कोई-न-कोई दूध पिला सकने वाली मां मिल ही जाती थी.

अब समय आ गया है जब हमें ब्रेस्टफीडिंग मिल्क बैंक की तरफ गंभीर हो जाना चाहिए

अब समय तो बदला ही है महामारी के इस भीषण दौर ने कई नई ज़रूरतें भी सामने ला दी हैं. मेरी नज़र में 'ब्रेस्टफीडिंग मिल्क बैंक' उनमें से ही एक है. अपने बेटे के समय में 'ब्रेस्टफीडिंग सपोर्ट फ़ॉर इंडियन मदर्स' नाम के एक ग्रुप से जुड़ी थी. बहुत ही अच्छा ग्रुप जिसमें कई सारी अनुभवी मांएं जो निजी अनुभव वहां साझा करतीं, एक दूसरे को गाइड करतीं. सबसे अच्छी बात कि वे माताएं आज की होकर भी ब्रेस्टफीडिंग को चार-पांच साल तक कराने की पैरवी करतीं जैसा कि हमारी दादी-नानी के ज़माने में होता रहा है.

वर्तमान में कई मॉडर्न माताएं छः महीने बाद ही बच्चे का दूध छुड़ाकर उसे पाउडर के दूध पर ले आती हैं. कई सारी बुजुर्ग महिलाओं को भी इसका पक्षधर देखा है जो बच्चे की सेहत को उसके वजन से मापती हैं बजाय उसकी फुर्ती और तंदुरुस्ती के.

ख़ैर, उसी ग्रुप के ज़रिए मुझे पहली बार विदेशों में चल रहे 'ब्रेस्टफीडिंग मिल्क बैंक' के बारे में पता चला था. साथ ही यह भी कि ब्रेस्टमिल्क को भी लंबे समय तक स्टोर करके रखा जा सकता है ताकि यह वंचित नवजातों के काम आ सके. ब्रेस्टमिल्क क्यों ज़रुरी है, इसकी गुणवत्ता क्या है इस पर मैं तो ख़ैर पहले भी लिख चुकी हूं, आपको गूगल करने से भी बहुत कुछ मिल जाएगा.

हमें अपने-अपने स्तर पर जिला प्रसाशन, राज्य या केंद्र को भी इस बारे में कहना चाहिए. इसकी मांग की जानी चाहिए. इसके बारे में जागरूकता बढ़ानी चाहिए. कई माताओं के साथ ऐसा होता है कि बच्चे बड़े होने लगते हैं तो अधिक दूध नहीं पीते मां का, मगर मां को दूध बनता है ऐसे में वह उस दूध को दान कर सकती है. यह कोई जबरदस्ती का काम नहीं है.  स्वैच्छिक है. लेकिन इसके लिए जागरूकता बढ़ानी होगी.

महिला आयोग को इस बारे में विचार करना चाहिए ताकि धीमे-धीमे ही सही ऐसे बैंक अस्पतालों में बन सकें और फिर कोई बच्चा इस पोषण से वंचित ना रहे. वर्तमान हालातों में भी यह कैसे किया जा सकता है, स्टोरेज कैसे होगा, इसके लिए जागरूकता बढ़ाकर छोटे स्तर पर ही सही यह काम शुरू किया जा सकता है. भारत में शायद फोर्टिस गुड़गांव में पहला ब्रेस्टफीडिंग मिल्क बैंक कुछ समय पहले खुला था. कोई और भी हो तो मेरी जानकारी में नहीं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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