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रमजान के दौर चीन में रह रहे मुसलमानों की खुदा खैर करे

    • आईचौक
    • Updated: 18 मई, 2018 04:12 PM
  • 18 मई, 2018 04:12 PM
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चीन ने मुस्लिम बहुल इलाके में कुछ टॉर्चर कैम्प बनाए हैं जहां मुसलमानों को गिरफ्तार कर डाला जा रहा है. ये कैम्प नर्क से भी बद्तर हैं.

जरा सोचिए कैसा हो कि अपने ही देश में कोई कैद कर लिया जाए, हर दिन और दिन के हर घंटे किसी न किसी तरह का टॉर्चर दिया जाए और ऐसे हालात पैदा कर दिए जाएं कि मौत भी आसान लगे. कुछ ऐसा ही हो रहा है चीन के मुसलमानों के साथ. वो मुसलमान जिन्हें चीनी मत के प्रशिक्षण कैंप (indoctrination camps) में भेज दिया गया. उनका जुर्म सिर्फ इतना था कि वो मुसलमान थे.

मुस्लिम होने के कारण उन्हें हिरासत में लिया जा रहा है और उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जा रहा है. उन्हें अपने धर्म और अपने लोगों के प्रति नफरत पैदा करने, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को धन्यवाद देने और शी जिनपिंग की लंबी उम्र की कामना करना सिखाया जा रहा है.

बेकाली (एक कज़ाकिस्तानी मुसलमान) ने इन बातों को नहीं माना तो उन्हें पांच घंटे एक दीवार पर खड़े रहने को कहा, साथ ही एक हफ्ते बाद उन्हें एकांतवास में भेज दिया जहां 24 घंटे तक कोई खाना नहीं दिया गया. 20 दिन कैम्प में रहने के बाद उन्हें लगा कि उन्हें मर जाना चाहिए.

बेकाली का कहना है कि वहां मानसिक प्रताड़ना काफी ज्यादा होती है, लोगों को खुद को ही बुरा मानना पड़ता है, अपनी सोच को छोड़ना पड़ता है और अपने धर्म को भी. बेकाली का ये बयान एक रिपोर्ट के आधार पर है.

बेकाली का कहना है कि वो हर रात उसी कैंप के बारे में सोचते हैं. सूरज उगने तक सो नहीं पाते.

पिछले बसंत से चीनी अधिकारियों ने शिंजिएंग के मुस्लिम बहुल इलाके से हज़ारों चीनी मुसलमानों को यहां तक की विदेशी मुसलमानों को भी इन कैम्प में भेज दिया है. इसपर अमेरिकी कमिशन ने पिछले महीने बयान भी दिया था कि ये अल्पसंख्यकों को दबाने का सबसे बड़ा अभियान है आज के समय में.

चीन ने इस बारे में कोई भी बयान देने से मना कर दिया है, लेकिन कुछ अफसरों के मुताबिक ये जरूरी है ताकि इस्लामिक एक्ट्रीमिज्म...

जरा सोचिए कैसा हो कि अपने ही देश में कोई कैद कर लिया जाए, हर दिन और दिन के हर घंटे किसी न किसी तरह का टॉर्चर दिया जाए और ऐसे हालात पैदा कर दिए जाएं कि मौत भी आसान लगे. कुछ ऐसा ही हो रहा है चीन के मुसलमानों के साथ. वो मुसलमान जिन्हें चीनी मत के प्रशिक्षण कैंप (indoctrination camps) में भेज दिया गया. उनका जुर्म सिर्फ इतना था कि वो मुसलमान थे.

मुस्लिम होने के कारण उन्हें हिरासत में लिया जा रहा है और उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जा रहा है. उन्हें अपने धर्म और अपने लोगों के प्रति नफरत पैदा करने, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को धन्यवाद देने और शी जिनपिंग की लंबी उम्र की कामना करना सिखाया जा रहा है.

बेकाली (एक कज़ाकिस्तानी मुसलमान) ने इन बातों को नहीं माना तो उन्हें पांच घंटे एक दीवार पर खड़े रहने को कहा, साथ ही एक हफ्ते बाद उन्हें एकांतवास में भेज दिया जहां 24 घंटे तक कोई खाना नहीं दिया गया. 20 दिन कैम्प में रहने के बाद उन्हें लगा कि उन्हें मर जाना चाहिए.

बेकाली का कहना है कि वहां मानसिक प्रताड़ना काफी ज्यादा होती है, लोगों को खुद को ही बुरा मानना पड़ता है, अपनी सोच को छोड़ना पड़ता है और अपने धर्म को भी. बेकाली का ये बयान एक रिपोर्ट के आधार पर है.

बेकाली का कहना है कि वो हर रात उसी कैंप के बारे में सोचते हैं. सूरज उगने तक सो नहीं पाते.

पिछले बसंत से चीनी अधिकारियों ने शिंजिएंग के मुस्लिम बहुल इलाके से हज़ारों चीनी मुसलमानों को यहां तक की विदेशी मुसलमानों को भी इन कैम्प में भेज दिया है. इसपर अमेरिकी कमिशन ने पिछले महीने बयान भी दिया था कि ये अल्पसंख्यकों को दबाने का सबसे बड़ा अभियान है आज के समय में.

चीन ने इस बारे में कोई भी बयान देने से मना कर दिया है, लेकिन कुछ अफसरों के मुताबिक ये जरूरी है ताकि इस्लामिक एक्ट्रीमिज्म को खत्म किया जा सके. विद्रोही मुसलमानों ने हज़ारों को मारा है पिथले कुछ सालों में और चीन इसे एक खतरे के तौर पर ले रहा है. इसे शांति स्थापित करने का एक तरीका मान रहा है उस जगह जहां अधिकतर लोग हैन चाइनीज (Han Chinese) हैं.

ये प्रोग्राम उन लोगों की सामाजिक, राजनीतिक सोच और इस्लामिक धारणाओं को मिटाने के लिए बनाया गया है. और उन्हें एक अलग जीवन देने के लिए बनाया है. पिछले एक साल में इन कैम्प की संख्या काफी बढ़ी है. इनमें न ही कोई कानूनी कार्यवाही होती है और न ही कोई पेपरवर्क. जो लोग डिटेन किए जाते हैं उनके साथ अलग-अलग तरह का व्यवहार होता है.

जो लोग इस्लाम को सबसे ज्यादा बुरा कहते हैं उन्हें वो चीज़े दी जाती हैं जो उन्हें सबसे ज्यादा पसंद हैं और जो लोग बात नहीं मानते उन्हें दंड दिया जाता है, पीटा जाता है, भूखा रखा जाता है.

बेकाली का ये बयान अभी तक इन कैम्प से आया सबसे विभत्स्य और सबसे सजीव बयान है. कई लोगों ने सिर्फ अपने परिवारों को बचाने के लिए मुंह नहीं खोला.

बेकाली का केस अलग है क्योंकि वो चीनी नहीं बल्कि कज़ाकिस्तान का है और चीनी सुरक्षा एजेंसियों ने उसे आठ महीने के लिए डिटेन कर लिया था बिना पूछे-जांचे. बाकी डिटेल्स तो नहीं पता लेकिन कज़ाकिस्तान से इसकी पुष्टी हो गई है कि बेकाली को 7 महीने से ज्यादा वक्त के लिए डिटेन किया गया था.

ये डिटेंशन प्रोग्राम चीन की सुरक्षा और नीतियों का एक जीता जागता नमूना है. चीन अपने देश में किसी भी तरह का दख्ल बर्दाश्त नहीं करता और न ही किसी अलग धर्म की सोच. राष्ट्रपति शी जिनपिंग के काल में नियम और सख्त हो गए हैं. चीनी मान्यता के अनुसार दंड और शिक्षा से लोगों की सोच बदलना सही माना जाता है. शी जिनपिंग के काम भी चीनी लीडर माओ ज़ेडॉन्ग की तरह काम करते हैं जो अपने आप में काफी क्रूर थे.

शिंजिएंग की समस्या को खत्म करने का ये एक तरीका माना जा रहा है. ऐसे कहना है जेम्स मिलवार्ड (एक चीनी इतिहासकार का है). चीन का ये कैम्प मानवाधिकार का हनन ही है.

क्या हुआ था बेकाली के साथ...

बेकाली 23 मार्च, 2017 को चीनी बॉर्डर के पास गए थे. उनका घर कज़ाकिस्तान में था. अपने कज़ाक पासपोर्ट में स्टैंप भी लगवाया और काम के सिलसिले में चले गए चीन. 2006 में ही बेकाली कज़ाकिस्तान में रहने लगा और वहां की नागरिकता हासिल की. कज़ाक सरकार ने आखिरकार बेकाली की आज़ादी चीन से ले ही ली और उसे बच्चों और पत्नी के पास जाने की इज़ाजत दे दी. बेकाली की सारी प्रॉपर्टी सरकार ने जब्त कर ली. $190,000 डॉलर की संपत्ती, घर आदि जब्त कर उसे सिर्फ 500 चीनी युआन दिए गए जो 80 डॉलर के बराबर थे.

बेकाली के साथ एक और कज़ाक आदमी को कैम्प ले जाया गया था. अब दोनों ही अपने देश वापस चले गए. दोनों ने एक जैसे ही बयान दिए थे. उनका कहना था कि वहां का खाना बहुत बेकार होता था और फूड पॉइजनिंग होना कोई बड़ी बात नहीं थी. वहां रहने वालों को कई बार सुअर का मांस खाने को दिया जाता था जो इस्लाम में हराम माना जाता है.

हालांकि, चीनी सरकार ने ऐसे किसी भी कैम्प के मौजूद होने की बात को नकार दिया है, लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे 73 ठिकानों के बारे में पता किया गया है जिन्हें बनाने के लिए 100 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा खर्च किए गए हैं. इसके लिए नौकरियों के नोटिस और बाकी दस्तावेज़ भी तैयार किए गए थे.

चीन का Id Kah मस्जिद

मार्च 2017 से ऐसे कैम्प के बारे में जानकारी सामने आई, लोगों का कहना है कि ये कैम्प सिर्फ कड़ी शिक्षा के कारण सोच बदलने की बात करते हैं. इनके लिए Chen Quanguo को शिंजिएन का पार्टी सेक्रेटरी बना दिया गया, जिन्हें तिब्बत से लाया गया था. चेन का ट्रांसफर अगस्त 2016 में किया गया था और उन्हें तिब्बत में भी इसी तरह का काम दिया गया था जो सोशल कंट्रोल से जुड़ा हुआ था.

चेन ने इन कैम्प में सुरक्षा की जिम्मेदारी देखी, कैमरा, दीवारें, कंपाउंड, जेल, दीवारों के ऊपर का तार, वॉचटावर आदि सब उन्हीं के संरक्षण में हुआ है.

किसी भी तरह का कोई डेटा इन कैम्प के लिए मौजूद नहीं है. न ही कोई आंकड़े, न नंबर, न ही किसी तरह की कोई और जानकारी. ये सारी जानकारी Jamestown Foundation द्वारा पब्लिश की गई एक रिपोर्ट में सामने आई है. रिपोर्ट में लिखा गया है कि इन कैम्प में कैदियों की संख्या कुछ हज़ार से 10 लाख तर हो सकती है.

10 लाख का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा रहा है कि एक रिपोर्ट में ये बताया गया है कि शिंजिएन की 11.5 प्रतिशत आबादी लगभग इन कैम्प में है. जून 2017 में पब्लिश किया गया एक पेपर जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी स्कूल की रिपोर्ट थी उसमें कहा गया था कि 588 डिटेन हुए लोगों को ये भी नहीं पता था कि उनके साथ ये क्यों किया जा रहा है, लेकिन जाते वक्त 98.8 प्रतिशत लोगों को उनकी गलती के बारे में पता था.

बेकाली का कहना है कि इन कैम्प में डॉक्टल, वकील, टीचर सभी थे. 80 साल के बिजनेसमैन से लेकर बच्चे को दूध पिलाती मां तक सभी कोई.

डिटेन हुए लोगों में एक उईघुर जाती का सॉकर प्लेयर भी शामिल था. जो सिर्फ 19 साल का था और चीन की यूथ सॉकर टीम का हिस्सा. रेडियो फ्री एशिया के पत्रकारों के परिवारों तक को कैद कर लिया गया था. इनमें से दो रिपोर्टर मूल निवासी अमेरिका के हैं और उन्हें लगता है कि रेडियो फ्री एशिया के लिए रिपोर्टिंग के कारण ही उन्हें डिटेन किया गया है.

RFA की ही एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन इन कैम्प को सही ठहरा रहा है और कोई ठोस कारण भी नहीं दिया जा रहा. एक अधिकारी का कहना था कि खेत में लगी खरपतवार को हटाने के लिए उनपर कैमिकल डालना होता है और उन्हें मारना होता है. यही इन कैम्प में किया जा रहा है. ज़रा से शक के कारण भी लोगों को डिटेन किया जा रहा है और उन्हें खरपतवार की तरह हटाया जा रहा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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