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बच्चों को एक ही डंडे से हांकने की जगह स्कूलों में उनके इंटरेस्ट का ध्यान रखें शिक्षक

    • अंकिता जैन
    • Updated: 14 नवम्बर, 2021 10:59 PM
  • 14 नवम्बर, 2021 10:59 PM
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हमें यह पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए कि हमारा बच्चा किस तरह जल्दी सीखता है. क्या वह सुनकर जल्दी सीखता, या वह पढ़कर या दोहराकर जल्दी सीखता है या फिर वह देखकर जल्दी सीखता है. यही कारण है कि क्लास में तो टीचर सबको एक जैसा पढ़ाते हैं लेकिन सब अलग-अलग क्षमता से उसे ग्रहण कर पाते हैं.

अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि वे किस माध्यम से जल्दी सीखते हैं. या ऐसी कोई भिन्नता होती भी है. ख़ुद के अलावा वे अपने बच्चों के बारे में भी यह पता करने की कोशिश नहीं करते. हम देखा-देखी के ज़माने में हैं. फलाने का बच्चा इतनी क्लासेस जाता है, इतना तेज़ी से सीखता है, ऐसा करता है तो मैं भी अपने बच्चे को वैसा ही कराऊं. बच्चों को एक्सट्रा करिकुलम के नाम पर ढेर सारी एक्टिविटी कराने में दिक्कत नहीं. दिक्कत है आपका यह ना जानना कि आपका बच्चा क्या और किस तरह जल्दी सीखेगा. हो सकता है वह विज़ुअल्स में अच्छा हो आप उसे रीडिंग में धकेल रहे हों.

बचपन में मम्मी मंदिर ले जाती थीं. प्रवचन सुनाने. बहन इधर-उधर भटककर भी सब सुन लेती थी और मैं एक जगह बैठकर भी जाने मन-मस्तिष्क से कहां कहां भटक रही होती थी. लगातार कुछ सुनते हुए मैं ज़्यादादेर तक उसमें ध्यान नहीं एकाग्र कर पाती. विचार भटका देते हैं और फिर पुनः पुनः सुनना पड़ता है. क्लासरूम में टीचर के लेक्चर हों या ऑडियो में कुछ भी मैं लगातार सुनते हुए कई बार भटक जाती हूं.

मां बाप को भी ये बात समझनी होगी कि बच्चे के लिए जितनी जरूरी लिखाई पढ़ाई है उतना ही जरूरी खेल कूद भी है

कानों में जा रही आवाज़ मस्तिष्क तक नहीं पहुंचती और इसलिए चंद सेकेंड पहले ही क्या सुना याद नहीं रहता. यही कारण है कि मैंने अब तक किसी ऑडियो बुक को ट्राय नहीं किया. उनके सैंपल सुनते हुए ही मैं कई बार भटक जाती हूं. यहां तक कि रेडियो पर जब अपनी ही लिखी कहानियां आती थीं मैं वे भी एक बार में ध्यान से पूरी नहीं सुन पाती थी.

बच्चों के लिए लर्निंग से कुछ बातें पढ़ रही थी तो जाना कि हम सभी के लर्न करने का यानि सीखने का अलग-अलग तरीक़ा होता है. कोई पढ़कर या बोलकर यानी रीडिंग या रिसाइटिंग से, कोई देखकर यानि विज़ुअल्स से और कोई सुनकर यानि लिसनिंग...

अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि वे किस माध्यम से जल्दी सीखते हैं. या ऐसी कोई भिन्नता होती भी है. ख़ुद के अलावा वे अपने बच्चों के बारे में भी यह पता करने की कोशिश नहीं करते. हम देखा-देखी के ज़माने में हैं. फलाने का बच्चा इतनी क्लासेस जाता है, इतना तेज़ी से सीखता है, ऐसा करता है तो मैं भी अपने बच्चे को वैसा ही कराऊं. बच्चों को एक्सट्रा करिकुलम के नाम पर ढेर सारी एक्टिविटी कराने में दिक्कत नहीं. दिक्कत है आपका यह ना जानना कि आपका बच्चा क्या और किस तरह जल्दी सीखेगा. हो सकता है वह विज़ुअल्स में अच्छा हो आप उसे रीडिंग में धकेल रहे हों.

बचपन में मम्मी मंदिर ले जाती थीं. प्रवचन सुनाने. बहन इधर-उधर भटककर भी सब सुन लेती थी और मैं एक जगह बैठकर भी जाने मन-मस्तिष्क से कहां कहां भटक रही होती थी. लगातार कुछ सुनते हुए मैं ज़्यादादेर तक उसमें ध्यान नहीं एकाग्र कर पाती. विचार भटका देते हैं और फिर पुनः पुनः सुनना पड़ता है. क्लासरूम में टीचर के लेक्चर हों या ऑडियो में कुछ भी मैं लगातार सुनते हुए कई बार भटक जाती हूं.

मां बाप को भी ये बात समझनी होगी कि बच्चे के लिए जितनी जरूरी लिखाई पढ़ाई है उतना ही जरूरी खेल कूद भी है

कानों में जा रही आवाज़ मस्तिष्क तक नहीं पहुंचती और इसलिए चंद सेकेंड पहले ही क्या सुना याद नहीं रहता. यही कारण है कि मैंने अब तक किसी ऑडियो बुक को ट्राय नहीं किया. उनके सैंपल सुनते हुए ही मैं कई बार भटक जाती हूं. यहां तक कि रेडियो पर जब अपनी ही लिखी कहानियां आती थीं मैं वे भी एक बार में ध्यान से पूरी नहीं सुन पाती थी.

बच्चों के लिए लर्निंग से कुछ बातें पढ़ रही थी तो जाना कि हम सभी के लर्न करने का यानि सीखने का अलग-अलग तरीक़ा होता है. कोई पढ़कर या बोलकर यानी रीडिंग या रिसाइटिंग से, कोई देखकर यानि विज़ुअल्स से और कोई सुनकर यानि लिसनिंग से. हम सभी यदि अपने बारे में (चाहे जिस भी उम्र में आप हों) यदि यह पता कर लें कि हम सबसे ज़्यादा फ़ास्ट किस माध्यम से सीखते हैं तो हम उस माध्यम को चुनकर अपनी लर्निंग प्रॉसेस को आसान बना सकते हैं. इससे शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की मेहनत बचती है.

यही हमें अपने बच्चों के लिए भी करना चाहिए. यह पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए कि हमारा बच्चा किस तरह जल्दी सीखता है. क्या वह सुनकर जल्दी सीखता, या वह पढ़कर या दोहराकर जल्दी सीखता है या फिर वह देखकर जल्दी सीखता है. यही कारण है कि क्लास में तो टीचर सबको एक जैसा पढ़ाते हैं लेकिन सब अलग-अलग क्षमता से उसे ग्रहण कर पाते हैं.

हर बच्चे को एक ही डंडे से हांकने की जगह यदि स्कूल्स में भी शिक्षक इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर पढाएं तो अलग-अलग बच्चे की अधिकतम क्षमता का बेहतरीन इस्तेमाल किया जा सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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