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5 साल की बच्ची और 'चिड़िया का श्राप' आखिर किस समाज में जी रहे हैं हम?

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 22 जुलाई, 2018 12:07 PM
  • 22 जुलाई, 2018 12:07 PM
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एक 5 साल की बच्ची की गलती की वजह से पूरे गांव को लगने वाला श्राप था. इससे पूरे गांव पर मुसीबत आ सकती थी. ये एक टिटहरी की बददुआ थी. वो तो शुक्र है कि पंचायत ने बच्ची को सज़ा दे दी, वर्ना न जाने क्या अनर्थ हो जाता.

हिंदुस्तान में श्राप और पाप बहुत मश्हूर हैं. हर शहर, गांव, गलि, नुक्कड़ में कुछ ऐसे लोग मिल जाएंगे जो किसी न किसी अलग श्राप की बात सुनाएंगे और पाप-पुण्य की परिभाषा भी बताएंगे. हिंदुस्तानी श्रापों की लिस्ट में एक और नाम सामने आया है वो है 'चिड़िया का श्राप'.

ये भी कोई ऐसा-वैसा श्राप नहीं. एक 5 साल की बच्ची की गलती की वजह से पूरे गांव को लगने वाला श्राप था. इससे पूरे गांव पर मुसीबत आ सकती थी. ये एक टिटहरी की बददुआ थी. वो तो शुक्र है कि पंचायत ने बच्ची को सज़ा दे दी, वर्ना न जाने क्या अनर्थ हो जाता.

कहानी बड़ी दिलचस्प है..

अगर आप सोच रहे हैं कि ये मैं क्या लिखे जा रही हूं तो आपको पूरी कहानी जाननी होगी. इस कहानी की शुरुआत मीना रेहगर और उसकी 5 साल की बच्ची से होती है. मीना अपनी बच्ची को लेकर उसके स्कूल जाती है. राजस्थान के बूंदी जिले के हरीपुरा गांव का सरकारी स्कूल जहां वो 5 साल की बच्ची कक्षा 1 में पढ़ती है. उसने 15 दिन पहले ही स्कूल जाना शुरू किया है और अपने दोस्तों के साथ वो हंसी-मजाक कर रही है और स्कूल से मिलने वाले 1 ग्लास दूध का इंतजार कर रही है.

बच्ची खेल-खेल में एक टिटहरी का अंडा फोड़ देती है. बस यही पाप किया था उस बच्ची ने. गांव वाले बच्ची को घेर लेते हैं क्योंकि उनके लिए टिटहरी तो पवित्र होती है. मीना की बेटी से गलती नहीं गांव वालों की नजर में पाप हो गया था क्योंकि टिटहरी के अंडे को फोड़ना मतलब बारिश न होना और सूखा पड़ना.

उसी दिन पंचायत ने उस छोटी बच्ची का बहिष्कार कर दिया और सज़ा सुनाई की अपने पाप का प्राश्चित करने के लिए उसे 3 दिन तक घर के बाहर रहना होगा. वो अपने घर के अंदर नहीं जा सकती. बच्ची रोई, चिल्लाई, घर जाने के लिए दौड़ी, लेकिन फरमान तो फरमान था. बच्ची के पिता ने शराब के नशे में आकर पंचायत के फैसले के खिलाफ हंगामा...

हिंदुस्तान में श्राप और पाप बहुत मश्हूर हैं. हर शहर, गांव, गलि, नुक्कड़ में कुछ ऐसे लोग मिल जाएंगे जो किसी न किसी अलग श्राप की बात सुनाएंगे और पाप-पुण्य की परिभाषा भी बताएंगे. हिंदुस्तानी श्रापों की लिस्ट में एक और नाम सामने आया है वो है 'चिड़िया का श्राप'.

ये भी कोई ऐसा-वैसा श्राप नहीं. एक 5 साल की बच्ची की गलती की वजह से पूरे गांव को लगने वाला श्राप था. इससे पूरे गांव पर मुसीबत आ सकती थी. ये एक टिटहरी की बददुआ थी. वो तो शुक्र है कि पंचायत ने बच्ची को सज़ा दे दी, वर्ना न जाने क्या अनर्थ हो जाता.

कहानी बड़ी दिलचस्प है..

अगर आप सोच रहे हैं कि ये मैं क्या लिखे जा रही हूं तो आपको पूरी कहानी जाननी होगी. इस कहानी की शुरुआत मीना रेहगर और उसकी 5 साल की बच्ची से होती है. मीना अपनी बच्ची को लेकर उसके स्कूल जाती है. राजस्थान के बूंदी जिले के हरीपुरा गांव का सरकारी स्कूल जहां वो 5 साल की बच्ची कक्षा 1 में पढ़ती है. उसने 15 दिन पहले ही स्कूल जाना शुरू किया है और अपने दोस्तों के साथ वो हंसी-मजाक कर रही है और स्कूल से मिलने वाले 1 ग्लास दूध का इंतजार कर रही है.

बच्ची खेल-खेल में एक टिटहरी का अंडा फोड़ देती है. बस यही पाप किया था उस बच्ची ने. गांव वाले बच्ची को घेर लेते हैं क्योंकि उनके लिए टिटहरी तो पवित्र होती है. मीना की बेटी से गलती नहीं गांव वालों की नजर में पाप हो गया था क्योंकि टिटहरी के अंडे को फोड़ना मतलब बारिश न होना और सूखा पड़ना.

उसी दिन पंचायत ने उस छोटी बच्ची का बहिष्कार कर दिया और सज़ा सुनाई की अपने पाप का प्राश्चित करने के लिए उसे 3 दिन तक घर के बाहर रहना होगा. वो अपने घर के अंदर नहीं जा सकती. बच्ची रोई, चिल्लाई, घर जाने के लिए दौड़ी, लेकिन फरमान तो फरमान था. बच्ची के पिता ने शराब के नशे में आकर पंचायत के फैसले के खिलाफ हंगामा मचाया तो सज़ा को 11 दिन तक बढ़ा दिया गया. 9 दिन तक बच्ची घर के बाहर रही कुछ दिन उसके घरवाले भी बाहर रहे.

9वें दिन स्थानीय पुलिस ने दखल दी और बच्ची को घर के अंदर लिया गया. मीना अभी भी डरी हुई हैं क्योंकि गांववालों ने उन्हें धमकी दी है कि कोई भी मीना के तीसरे बच्चे को जन्म देने में मीना की मदद नहीं करेगा क्योंकि वो श्रापित है. मीना का तीसरा बच्चा अगले माह पैदा हो सकता है.

शराब और पछतावे की कहानी...

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक मीना के पति हुकुमचंद को जैसे ही इस बात का पता चला वो घर आ गया. वो गांव से 10 किलोमीटर दूर एक गौशाला में काम करता है. उसने अपनी जात की पंचायत से मदद मांगी, लेकिन उन लोगों ने पहले तो हुकुमचंद को 1500 रुपए देने को कहा जो वो तीन साल पहले उधार ले चुका था. और उसके बाद एक बोतल कच्ची शराब भी मांगी ताकि बच्ची के पाप को खत्म किया जा सके.

हुकुमचंद ने शराब, कुछ चने और एक पैकेट नमकीन देने को तो कहा, लेकिन 1500 देने की हैसियत में वो न था. वो अपनी पत्नी की डिलिवरी के बाद देगा.

जितने मुंह उतनी बातें...

रेहगर समाज की पंचायत के ही एक सदस्य का कहना है कि हुकुमचंद झूठ बोल रहा है और पंचायत ने लड़की को मंदिर ले जाकर नहलाने और सभी पंचों को चने का भोज करवाने की बात कही थी. साथ ही हुकुमचंद जब आया था तब उसने शराब पी हुई थी और वो उधार लिए हुए पैसे देने से मना कर रहा था.

ये थी पंचायत वालों की बातें, लेकिन गांव के लोगों के अनुसार बच्ची को काफी कठोर सज़ा दी गई थी. अब बात सिर्फ इतनी सी है कि क्या टिटहरी का अंडा फोड़ने के बाद बच्ची को कोई भी सज़ा देनी चाहिए थी? बच्ची को क्या पता कि कौन सी चिड़िया पवित्र है कौन सी नहीं. बच्ची तो ये भी नहीं जानती कि उसने क्या किया है. टिटहरी अपने अंडे जमीन पर देती है ऐसे में किसी भी छोटे बच्चे या बड़े के लिए ये हरकत बहुत आम हो जाती है.

गांव वालों ने कहा कि टिटहरी के अंडे फोड़ने का मतलब है कि बारिश नहीं होती, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक टिटहरी का अंडा फूट उसके कुछ ही देर बाद बारिश हो गई फिर इसे क्या कहा जाए?

 राजस्थान स्टेट कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट की सदस्य मनन चतुर्वेदी उस छोटी बच्ची के साथ

ये घटना थी 2 जुलाई की और 11 जुलाई तक बच्ची कथित तौर पर घर के बाहर रही. उसे 12 जुलाई को घर के अंदर किया गया और जैसे ही ये मामला सामने आया 19 जुलाई तक राजस्थान की राज्य ह्यूमन राइट्स कमिशन ने रिपोर्ट मांग ली थी. लगातार ये मामला चर्चा में बना हुआ है. जैसे-जैसे ये बात फैल रही है प्रशासन हरकत में आ रहा है.

12 जुलाई को जब बच्ची को घर के अंदर भेजा गया तब राज्य सरकार #EmpoweringRuralWomen हैशटैग चला रही थी. यानी गांव की महिलाओं का सशक्तिकरण.

उस दिन ये हैशटैग ट्रेंड कर रहा था. राजस्थान में गाहे-बगाहे ये खबरें आती रहती हैं कि वहां अंधविश्वास के चलते कुछ न कुछ हो गया है, ऐसे में कितना एम्पावरमेंट हो रहा है महिलाओं का या ग्रामीण इलाकों का जहां एक बच्ची को 9 दिन तक घर के बाहर रखा जाता है, बारिश के मौसम में और किसी को भनक भी नहीं लगती. उसकी सज़ा पूरी होने के समय इस बात की तफ्तीश की जा रही है. लोगों को जागरुक करने वाले अभियान क्यों देश के कोने-कोने तक नहीं पहुंच पाते.

2018 चल रहा है 21वीं सदी है और देश तरक्की कर रहा है. ऐसे समय में भी देश की सच्चाई यही है कि लोग यहां न तो अंधविश्वास से ऊपर उठकर आ पाए हैं और न ही वो किसी तरह के विकास का हिस्सा बन पाए हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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