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क्‍या हमारे देश में भी ऐसे निर्दयी मौजूद हैं?

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 08 सितम्बर, 2018 03:03 PM
  • 08 सितम्बर, 2018 03:03 PM
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लंदन की एक महिला ने अपनी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है जिसमें वो अपने 6 महीने के बच्चे को ट्रेन में 'खड़े होकर' ब्रेस्टफीड करा रही हैं. क्योंकि वहां मौजूद किसी भी शख्स ने उन्हें बैठने के लिए सीट नहीं दी.

मेट्रो या बस से सफर करते हुए कई बार गर्भवती महिलाओं से भी सामना होता है. ऐसे में अक्सर देखा गया है कि कोई न कोई शख्स उन गर्भवती महिलाओं को  देखते ही उन्हें बैठने के लिए सीट दे देता है. जाहिर है ये एक सामान्य शिष्टाचार है. लेकिन बहुत से लोग अक्सर इस शिष्टाचार पर यकीन नहीं करते.

लंदन की एक महिला ने अपनी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है जिसमें वो अपने 6 महीने के बच्चे को ट्रेन में 'खड़े होकर' ब्रेस्टफीड करा रही हैं. ये तस्वीर एक सामान्य तस्वीर नहीं है क्योंकि कोई भी महिला अपने बच्चे को खड़े होकर दूध नहीं पिलाती. 32 साल की केट हिचन्स ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वहां मौजूद किसी भी शख्स ने उन्हें बैठने के लिए सीट नहीं दी. केट विकफोर्ड से लंदन जा रही थीं, और समय भीड़-भाड़ वाला था. लेकिन सीट न होने की वजह से उन्हें आधे घंटे तक बच्चे को गोद में लिए खड़े रहना पड़ा, और बच्चे को उसी अवस्था में दूध भी पिलाना पड़ा. केट ने अपने इस अनुभव को इंस्टाग्राम पर शेयर किया है.

खड़े होकर बच्चे को दूध पिलाना पड़ा

केट लिखती हैं-

''ये दुनिया कहां आ गई है, एक मां को एक चलती ट्रेन में खड़े होकर 6 महीने के बच्चे को ब्रेस्टफीड कराना पड़ रहा है. यहां समस्या ये नहीं कि मेरे लिए इस तरह दूध पिलाना मुश्किल था (हालांकि ये काफी मुश्किल था), बात ये है कि किसी भी इंसान ने एक मां को जो एक बच्चे को उठाए हुए है उसे आधे घंटे तक सीट नहीं दी.

मैं सीट मांग सकती थी, लेकिन मैंने मांगी नहीं. मुझे ऐसा करना बेवकूफी लगा. मुझे लगा मुझे पूछना नहीं चाहिए. शायद लोगों ने मुझे देखा नहीं. लेकिन कुछ ने देखा, आंख भी मिलाई और मुझे देखकर मुस्कुराई भी. एक महिला किताब पढ़ रही थी, उसने मुझे देखते ही सीट ऑफर की, लेकिन तभी एक दूसरी महिला उसपर बैठ...

मेट्रो या बस से सफर करते हुए कई बार गर्भवती महिलाओं से भी सामना होता है. ऐसे में अक्सर देखा गया है कि कोई न कोई शख्स उन गर्भवती महिलाओं को  देखते ही उन्हें बैठने के लिए सीट दे देता है. जाहिर है ये एक सामान्य शिष्टाचार है. लेकिन बहुत से लोग अक्सर इस शिष्टाचार पर यकीन नहीं करते.

लंदन की एक महिला ने अपनी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है जिसमें वो अपने 6 महीने के बच्चे को ट्रेन में 'खड़े होकर' ब्रेस्टफीड करा रही हैं. ये तस्वीर एक सामान्य तस्वीर नहीं है क्योंकि कोई भी महिला अपने बच्चे को खड़े होकर दूध नहीं पिलाती. 32 साल की केट हिचन्स ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वहां मौजूद किसी भी शख्स ने उन्हें बैठने के लिए सीट नहीं दी. केट विकफोर्ड से लंदन जा रही थीं, और समय भीड़-भाड़ वाला था. लेकिन सीट न होने की वजह से उन्हें आधे घंटे तक बच्चे को गोद में लिए खड़े रहना पड़ा, और बच्चे को उसी अवस्था में दूध भी पिलाना पड़ा. केट ने अपने इस अनुभव को इंस्टाग्राम पर शेयर किया है.

खड़े होकर बच्चे को दूध पिलाना पड़ा

केट लिखती हैं-

''ये दुनिया कहां आ गई है, एक मां को एक चलती ट्रेन में खड़े होकर 6 महीने के बच्चे को ब्रेस्टफीड कराना पड़ रहा है. यहां समस्या ये नहीं कि मेरे लिए इस तरह दूध पिलाना मुश्किल था (हालांकि ये काफी मुश्किल था), बात ये है कि किसी भी इंसान ने एक मां को जो एक बच्चे को उठाए हुए है उसे आधे घंटे तक सीट नहीं दी.

मैं सीट मांग सकती थी, लेकिन मैंने मांगी नहीं. मुझे ऐसा करना बेवकूफी लगा. मुझे लगा मुझे पूछना नहीं चाहिए. शायद लोगों ने मुझे देखा नहीं. लेकिन कुछ ने देखा, आंख भी मिलाई और मुझे देखकर मुस्कुराई भी. एक महिला किताब पढ़ रही थी, उसने मुझे देखते ही सीट ऑफर की, लेकिन तभी एक दूसरी महिला उसपर बैठ गई. और जब उस महिला ने कहा 'दरअसल ये सीट उस महिला को दी थी जो बच्चे के साथ हैं.' लेकिन उस महिला ने कानों में ईयरफोन लगाए और आंखे बंद कर लीं. मुझे लगा शायद उसे उस सीट की जरूरत मुझसे ज्यादा थी. शायद वो अभी अभी प्रेगनेंट हुई थी, शायद वो थकी हुई थी या फिर वो बीमार है.

मैं ये तो समझती हूं कि लोग अपने से ज्यादा उम्र के लोगों को सीट इसलिए नहीं देते कि कहीं वो नाराज न हो जाएं, कि उन्हें बूढ़ा समझा है क्या. किसी गर्भनती महिला को सीट न देना भी समझ सकती हूं कि क्या पता वो सच में प्रेगनेंट हो ही न या फिर उनका शरीर ही ऐसा है. शायद आप चिंता करते हैं कि आप उन्हें नाराज कर देंगे.

मैं किसी भी पेरेंट को देखते हुए भी सीट ऑफर न करते हुए अपना सिर नहीं घुमा सकती. अगली बार अगर आप ट्रेन में किसी को बच्चे के साथ देखें तो अगर आप स्वस्थ हैं, हट्टे-कट्टे हैं तो प्लीज़ अपनी सीट उन्हें दे दें.''

केट की ऑरिजनल पोस्ट यहां पढ़ी जा सकती है.

क्या आप भी ऐसा ही सोचते हैं?

इस महिला को लेकर आप लोगों के मन में भी कई विचार आ रहे होंगे. बहुत से लोगों के मन में आए. बहुतों ने केट का समर्थन किया और बहुतों ने केट की आलोचना भी की. लोगों का कहना था-

'अगर सीट नहीं मिली तो मांग लेनी चाहिए थी'

'खड़ी नहीं हो पा रही थीं, लेकिन फोटो आराम से खींच ली'

'मेरे पति अच्छे भले दिखते हैं, लेकिन उन्हें हार्ट की बीमारी है, वो खड़े नहीं हो सकते. हो सकता है वहां भी लोगों को इस तरह की कोई समस्या हो. '

'अपने बच्चे के साथ जाना और एक व्यस्त ट्रेन चुनना, और बच्चे को तुरंत दूध पिलाना, फेक है या सच, आजकल के जमाने में ये समझना मुश्किल है.'

एक महिला ने तो इन सबके लिए केट को ही जिम्मेदार बता दिया कि उसने इतने छोट बच्चे के साथ व्यस्त समय में ट्रेन से जाना ही क्यों चुना, जबकि बच्चे को बार-बार भूख लगती है.

भारत हो या फिर कोई और देश, एक जरूरतमंद महिला या वृद्ध को सीट देना शिष्टाचार होता है. और जो लोग ये नहीं जानते उनके लिए भारत की मेट्रो में तो इश्तेहार की तरह सीटों के ऊपर लिखा भी जाता है कि अपनी सीट आपसे ज्यादा जरूरतमंद को दें. कुछ लोग मानते हैं लेकिन कुछ लोग जानते हुए भी ऐसे शिष्टाचार पर यकीन नहीं करते. कुछ लोग जानबूझकर ऐसे लोगों से नजरें चुराते हैं, क्योंकि नजरें मिलीं तो सीट देनी पड़ जाएगी क्योंकि 'शिष्टाचार भी कोई चीज़ है', 'लोग क्या कहेंगे'.

ऐसा नहीं कि मेट्रो में सीट पर बैठा हर शख्स मोबाइल या फिर किताबों में ही व्यस्त रहता है, कि उसे आसपास वाले जरूरतमंद लोग नजर नहीं आते. लेकिन ऐसे भी लोग आपको मिल जाएंगे जो बैठते हैं और इधर उधर नजर फिरा लेते हैं कि कहीं उनसे ज्यादा जरूरतमंद तो आसपास नहीं है. लेकिन बहुत से लोग अपना आराम छोड़ने से बचते हैं और बुरा बनने की जरा भी फिक्र नहीं करते. कौन सा मेट्रो में रोज मिलना है. ज्यादातर लोगों के विचार भी ऊपर लिखे विचारों से मेल खाते होंगे.

जरूरतमंदों से नजरे चुराते हैं लोग

दो महीने पहले ही लंदन की एक ब्लॉगर एना व्हाइटहाउस ने लोगों के आचार और विचार जानने के लिए एक सोशल एक्सपेरिमेंट किया. और प्रेगनेंट बनकर ट्रेन में चढ़ीं ये जानने के लिए कि कितने प्रतिशत लोग एक गर्भवती महिला को सीट देते हैं. अपने एक्सपेरिमेंट में उन्होंने पाया कि- केवल 60% लोग ही गर्भवती महिलाओं को अपनी सीट देते हैं, आधे से ज्यादा ये दिखाते हैं कि वो अपने फोन में बहुत ज्यादा व्यस्त हैं, दो तिहाई ने माना कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट में लोग ज्यादा लापरवाह होते हैं.

देखिए और खुद ही समझिए-

खैर, मदद एक ऐसी चीज़ है जो जबरदस्ती करवाई नहीं जा सकती. आप भले ही मर रहे हों लेकिन आपकी जान बचाना है या नहीं ये सामने वाले के व्यवहार पर ही निर्भर करता है. वो चाहे बुजुर्ग हों, गर्भवती हों या फिर बच्चों वाली महिलाएं उन्हें जरूरत हो या न हो, लेकिन उनके लिए फिक्र दिखाकर आप सिर्फ अपने संस्कार दिखाते हैं.

इस महिला की बात पर आपका क्या कहना है, हमसे साझा जरूर कीजिए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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