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सरहद पर मौजूद हमारे जवानों का मजाक बनाने वाले नेताओं को एक बार ये कहानियां पढ़ लेनी चाहिए...

    • रिम्मी कुमारी
    • Updated: 04 जनवरी, 2018 06:20 PM
  • 02 जनवरी, 2018 05:09 PM
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या तो कारगिल पर तिरंगा फहरा कर आउंगा या फिर तिरंगे में लिपट कर आउंगा. पर आउंंगा जरुर- विक्रम बत्रा ने ये शब्द कहे थे. हम में से कितने मौत को सामने देखकर भी इस तरह की जांबाजी दिखा पाएंगे ये सोच कर देखिए.

रामपुर से भाजपा के सांसद नेपाल सिंह देश के सैनिकों पर विवादस्पद बयान देकर फंस गए हैं. बकौल सांसद महोदय- सेना में जवान तो रोज मरेंगे ही. ऐसा कोई देश है जहां सेना का जवान मरता नहीं हो? यहां तक कि गांव में झगड़ा हो जाता है, लट्ठबाजी हो जाती है, तो कोई न कोई घायल होता ही है.

सैनिकों का अपमान करने से पहले थोड़ा तो सोच लेते नेता जी

सौ फीसदी सही कहा महोदय आपने. जब मन किया सेना के जवानों पर उल्टे सीधे बयान जारी करना नेताओं का 'राजनैतिक अधिकार' है. हो भी क्यों न आखिर हमारे देश में जवानों की इज्जत ही क्या है? देखिए हमारे देश के कुछ गणमान्य व्यक्तियों के सैनिकों के प्रति विचार:

- मुंबई मामले में शहीद एनएसजी कमांडर संदीप उन्नीकृष्णण को श्रद्धांजलि देने के मामले में केरल के तात्कालिन मुख्यमंत्री का बयान था कि- 'उनके घर तो कुत्ता भी नहीं जाएगा.'

- सपा सांसद आजम खान कहते हैं- 'कश्मीर, झारखंड और असम में औरतें फौजियों को पीट रही हैं. रेप की घटनाओं के बदले में महिलाएं उनके निजी अंग काटकर ले गईं. इससे पूरे हिंदुस्तान को शर्मिंदा होना चाहिए और सोचना चाहिए कि हम पूरी दुनिया को क्या मुंह दिखाएंगे.'

- कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित आर्मी चीफ के लिए दिए अपने बयान पर घिर गए थे. उनका बयान था- आज मुझे बहुत बुरा लगा जब आर्मी चीफ विपिन रावत के मुंह से गली के गुंडों की भाषा सुनी.

तो इसमें कोई नई बात नहीं कि अगर कोई और नेता हमारी सेना के बारे में कुछ 'सात्विक विचार' व्यक्त कर दे. खैर इन नेताओं को शर्म तो है नहीं लेकिन फिर भी माननीय सांसद जी के बयान के बाद मेरा मन किया कि एक बार अपने सैनिकों की बहादुरी का कुछ नमुना उन्हें दिखा दूं. ये बहुत ही घिसापिटा डायलॉग लग सकता है लेकिन यकीन मानिए...

रामपुर से भाजपा के सांसद नेपाल सिंह देश के सैनिकों पर विवादस्पद बयान देकर फंस गए हैं. बकौल सांसद महोदय- सेना में जवान तो रोज मरेंगे ही. ऐसा कोई देश है जहां सेना का जवान मरता नहीं हो? यहां तक कि गांव में झगड़ा हो जाता है, लट्ठबाजी हो जाती है, तो कोई न कोई घायल होता ही है.

सैनिकों का अपमान करने से पहले थोड़ा तो सोच लेते नेता जी

सौ फीसदी सही कहा महोदय आपने. जब मन किया सेना के जवानों पर उल्टे सीधे बयान जारी करना नेताओं का 'राजनैतिक अधिकार' है. हो भी क्यों न आखिर हमारे देश में जवानों की इज्जत ही क्या है? देखिए हमारे देश के कुछ गणमान्य व्यक्तियों के सैनिकों के प्रति विचार:

- मुंबई मामले में शहीद एनएसजी कमांडर संदीप उन्नीकृष्णण को श्रद्धांजलि देने के मामले में केरल के तात्कालिन मुख्यमंत्री का बयान था कि- 'उनके घर तो कुत्ता भी नहीं जाएगा.'

- सपा सांसद आजम खान कहते हैं- 'कश्मीर, झारखंड और असम में औरतें फौजियों को पीट रही हैं. रेप की घटनाओं के बदले में महिलाएं उनके निजी अंग काटकर ले गईं. इससे पूरे हिंदुस्तान को शर्मिंदा होना चाहिए और सोचना चाहिए कि हम पूरी दुनिया को क्या मुंह दिखाएंगे.'

- कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित आर्मी चीफ के लिए दिए अपने बयान पर घिर गए थे. उनका बयान था- आज मुझे बहुत बुरा लगा जब आर्मी चीफ विपिन रावत के मुंह से गली के गुंडों की भाषा सुनी.

तो इसमें कोई नई बात नहीं कि अगर कोई और नेता हमारी सेना के बारे में कुछ 'सात्विक विचार' व्यक्त कर दे. खैर इन नेताओं को शर्म तो है नहीं लेकिन फिर भी माननीय सांसद जी के बयान के बाद मेरा मन किया कि एक बार अपने सैनिकों की बहादुरी का कुछ नमुना उन्हें दिखा दूं. ये बहुत ही घिसापिटा डायलॉग लग सकता है लेकिन यकीन मानिए सच्चाई यही है कि हम अपने अपने घरों में चैन से इसलिए सो पाते हैं क्योंकि सरहद पर हमारे वो सैनिक खड़े हैं.

चलिए सैनिकों की बहादुरी की कुछ वो कहानियां आपको बताएं जो सोशल मीडिया साइट कोरा पर खुद आमलोगों ने सुनाई है.

1. हर्ष पुरवार लिखते हैं- एक बार जनरल सैय्यद अता हसनैन हमारे स्कूल में वक्ता बनकर आए थे. उस वक्त उन्होंने आर्मी की कई कहानियां सुनाईं थी. उनमें से एक मैं बताता हूं. एक शाम सियाचिन ग्लेशियर पर आर्मी की एक टुकड़ी रूटीन पेट्रोलिंग कर रही थी. तभी एक जगह से बर्फ धंस गई और साथ में एक जवान उसमें गिर गया. वो जवान अपने आइस एक्स को उस गड्डे की दीवार में फंसाने में कामयाब रहा लेकिन वो इतना नीचे था कि साथी जवान उसे निकाल नहीं पा रहे थे. सूर्यास्त होने के कारण वहां का तापमान लगातार गिर रहा था. साथी जवान को निकालने के लिए जरुरी उपकरण नहीं मिल पाने के कारण घंटों तक मशक्कत करने के बाद भी टुकड़ी के जवान अपने साथी को उस गड्डे से निकालने में कामयाब नहीं हुए.

जनरल सईद हमारी सेना के सितारे रहे हैं

अब क्योंकि वहां का तापमान लगातार गिरता जा रहा था. और उन्हें ये तय करना था कि अपने साथी को वहीं छोड़कर बेस कैंप वापस चलें जाएं या फिर वहीं रुकें. बेस कैंप वापस जाना जरुरी था क्योंकि हाड़ कंपाने वाली ठंड में वहां रहने से बाकी साथियों की जान का खतरा था. लेकिन उन सैनिकों की अंतर्आत्मा अपने साथी को इस तरह मुसीबत में छोड़कर जाने को तैयार नहीं थी. अंतत: उन्होंने वहीं रुकना तय किया.

अब एक मिनट को ठहरकर सोचिए की इस परिस्थिति में आप और हम क्या करते? हम तो ऐसे इंसान हैं जो सड़क पर तड़पते इंसान को उठाकर अस्पताल ले जाना तो दूर, ठहरकर उसे देखते तक नहीं. और उन सैनिकों ने अपने साथी के लिए मरना स्वीकार कर लिया पर उसे छोड़कर नहीं गए.

2. मुदित विनायक पांडे के रिश्तेदार आर्मी में हैं और उन्होंने अपनी एक घटना उनके साथ साझा की थी. एक आर्मी का जवान दुश्मन की गोली से घायल हो गया था. यहां आने जाने का कोई साधन उपलब्ध नहीं था तो जवान को हैलीकॉप्टर से वापस लाना था. हैलिकॉप्टर जब घटनास्थल पर पहुंचा तो घायल सैनिक दो और सैनिकों के साथ उनका इंतजार कर रहा था.

सौभाग्य से उस वक्त घायल सैनिक के लिए एक मेडिकल ऑफिसर को भी भेजा गया था. मेजर ने देखा कि दो सैनिक तो सावधान की मुद्रा में खड़े थे लेकिन तीसरे ने अपने दोनों हाथ कमर पर रखे हुए थे. उसे इस तरीके से खड़ा देख ऑफिसर आग बबूला हो उठा क्योंकि सीनियर के सामने इस तरह से खड़े होना अनुशासनहीनता कहलाती है.

मेजर सैनिक पर चिल्लाया- 'क्यों बे ज्यादा तेज मची है? मेरे सामने ऐसे खड़ा रहेगा?'

सैनिक ने जवाब दिया- ' साहब जी गोली लगी और कमर से आर पार हो गई. खुन रुक नहीं रहा था तो अपनी उंगलियां छेद पर लगा रखी हैं.'

इतना सुनते ही मेजर का गुस्सा खत्म हो गया और वो ग्लानि से भर गया. बिना एक शब्द कहे उन्होंने सैनिक को स्ट्रेचर पर लेटाया और तुरंत अपने साथ लेकर चले गए. वो सैनिक पूरे दिन बेहोश रहा और वो मेडिकल ऑफिसर उसका चेहरा देखता रहा. किसी भी ऑफिसर के सर्विस करियर में ऐसे मौके बहुत ही कम आते हैं जब उसे अपने से नीचे रैंक के जवान को सलामी ठोकने का मन करे. उस ऑफिसर के जीवन का वो वही पल था. उसकी बहादुरी पर मेजर उसको सलामी देना चाहता था.

इस बहादुरी की कोई मिसाल हो सकती है कभी?

3. अभिनव प्रकाश के चाचा जी आर्मी में हैं तो आर्मी के किस्सों कहानियों से उनका रोज का साबका है. ऐसी ही एक कहानी उन्होंने कोरा पर बताई.

घटना 2004 की है. सभी सैनिक छुट्टियों के बाद जम्मू और कश्मीर के बीच बसे छोटे से कस्बे रामबन वापस लौट रहे थे. उस रास्ते में बस को चिनाब नदी पर बनी एक खास्ताहाल पुल को पार करना होता था. तो जब भी बस,पुल के पास पहुंचती तो सैनिक बस से नीचे उतर जाते ताकि बस का वजन कम कर दिया जाए. और सैनिक पैदल पुल पार करते.

उस दिन भी यही किया गया. लेकिन सैनिकों को जरा भी अंदाजा नहीं था कि उपर पहाड़ की चोटी से दुश्मनों ने उस रास्ते पर नजर रखी हुई है. तीन आतंकवादियों ने सैनिकों पर गोलियां दागनी शुरु कर दी. हमारे निहत्थे सैनिक जवाबी कार्रवाई भी नहीं कर पाए क्योंकि उनके हथियार बस में रखे हुए थे. कई सैनिक गोली से घायल हो गए. और जो बच गए वो चिनाब नदी में कूद गए. लेकिन दुर्भाग्य से किसी को बचाया नहीं जा सका. उस घटना में कुल 50 सैनिक मारे गए.

इस घटना से आहत सैनिकों ने दुश्मनों के खिलाफ सर्च ऑपरेशन जारी किया और उन्हें उनके बिल से खोज निकाला. दुश्मनों को मारने के बाद बीच चौराहे पर उनकी लाश टांगी गई. अपने 50 साथियों की मौत का बदला ले लिया गया था.

4. कारगिल हादसे में शहीद कैप्टेन विक्रम बत्रा का नाम तो हम सभी ने सुना है. वो अपनी हाजिरजवाबी की वजह से मशहूर थे. कारगिल हमले के समय दोनों तरफ से दनादन गोलियां चल रही थी. तभी पाकिस्तानी आतंकी ने हमारे सैनिकों पर ताना कसा- हमें माधुरी दे दो. हम तुम्हारा प्वाइंट छोड़ देंगे. कैप्टेन विक्रम बत्रा ने अपने मशीन गन से फायरिंग करते हुए जवाब दिया- with love from Madhuri.

सैनिक ही मौत को सामने देखकर भी जांबाजी दिखा सकता है

मौत को सामने देखकर भी अगर कोई अपनी हाजिरजवाबी, कर्तव्य और निष्ठा को बचाकर रख सकता है तो वो सिर्फ हमारे जवान ही हैं.

काश ये नेता, अभिनेता या कोई भी इंसान सैनिकों पर सवाल उठाने, उनका मजाक बनाने से पहले एक घंटे के लिए उनकी जिंदगी, उनके त्याग के बारे में सोच लेता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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