• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

15 अगस्त को भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई धक्का मुक्की आगे किस हद तक जाएगी

    • अमित अरोड़ा
    • Updated: 21 अगस्त, 2017 11:45 PM
  • 21 अगस्त, 2017 11:45 PM
offline
अभी तक तो चीनी मीडिया की तरफ से आने वाले बयानों को भारतीय रक्षा विश्लेषक केवल गीदड़ भभकी मानकर नजरअंदाज़ कर रहे थे. लेकिन इस हादसे के बाद चीन के बयानों और राजनीतिक प्रतिक्रियों को हल्के में लेना बेवकूफी होगा.

15 अगस्त को भारत और चीन के सैनिकों के बीच, पांगोंग झील के निकट हुई धक्का-मुक्की का विश्लेषण किस प्रकार किया जा सकता हैं? क्या यह माना जाए की सारे कूटनीतिक प्रयास विफल हो गए हैं? सारी उच्च स्तरीय बैठकें, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग की अब तक की सारी वार्ताएं व्यर्थ हो गईं?

प्रथम दृष्टया सभी कूटनीतिक प्रयास व्यर्थ साबित होते नजर आते हैं. अभी तक तो चीनी मीडिया की तरफ से आने वाले बयानों को भारतीय रक्षा विश्लेषक केवल गीदड़ भभकी मानकर नजरअंदाज़ कर रहे थे. उन्हें लगता था कि चीन सिर्फ दबाव बनाने के लिए यह सब कर रहा है. लेकिन इस हादसे के बाद चीन के बयानों और राजनीतिक प्रतिक्रियों को हल्के में लेना बेवकूफी होगा.

15 अगस्त को भरतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प

पहले ही चीन जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों पर अपना दावा ठोकता रहा है. अरुणांचल प्रदेश को चीन अपने देश का हिस्सा मानता है और वहां के निवासियों को अपना नागरिक कहता है. अब डोकलाम विवाद के बाद भारत चीन की लगभग पूरी सीमा, विवाद और तनाव के क्षेत्र में परिवर्तित हो गई है.

भारत पर दबाव डालने के लिए चीन डोकलाम और कश्मीर विवाद की आपस में तुलना कर चुका है. कुछ समय पहले चीन के सरकारी मीडिया द्वारा यह कहा गया था कि जिस प्रकार भूटान-चीन के बीच डोकलाम मुद्दे पर भारत हस्तक्षेप कर रहा है, उसी प्रकार चीन भी भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे में हस्तक्षेप करने में स्वतंत्र है. शायद उस समय कुछ लोगों ने चीन की बात को सिर्फ राजनीतिक पैंतरा समझा हो पर आज हम चीन के किसी भी बयान को नजरअंदाज़ नहीं कर सकते. भारत के पूर्व में चीन और पश्चिम में पाकिस्तान है. ऐसी भौगोलिक स्थिति में भारत दोनों ओर से लड़ाई मोल नहीं ले सकता.

भारत की...

15 अगस्त को भारत और चीन के सैनिकों के बीच, पांगोंग झील के निकट हुई धक्का-मुक्की का विश्लेषण किस प्रकार किया जा सकता हैं? क्या यह माना जाए की सारे कूटनीतिक प्रयास विफल हो गए हैं? सारी उच्च स्तरीय बैठकें, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग की अब तक की सारी वार्ताएं व्यर्थ हो गईं?

प्रथम दृष्टया सभी कूटनीतिक प्रयास व्यर्थ साबित होते नजर आते हैं. अभी तक तो चीनी मीडिया की तरफ से आने वाले बयानों को भारतीय रक्षा विश्लेषक केवल गीदड़ भभकी मानकर नजरअंदाज़ कर रहे थे. उन्हें लगता था कि चीन सिर्फ दबाव बनाने के लिए यह सब कर रहा है. लेकिन इस हादसे के बाद चीन के बयानों और राजनीतिक प्रतिक्रियों को हल्के में लेना बेवकूफी होगा.

15 अगस्त को भरतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प

पहले ही चीन जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों पर अपना दावा ठोकता रहा है. अरुणांचल प्रदेश को चीन अपने देश का हिस्सा मानता है और वहां के निवासियों को अपना नागरिक कहता है. अब डोकलाम विवाद के बाद भारत चीन की लगभग पूरी सीमा, विवाद और तनाव के क्षेत्र में परिवर्तित हो गई है.

भारत पर दबाव डालने के लिए चीन डोकलाम और कश्मीर विवाद की आपस में तुलना कर चुका है. कुछ समय पहले चीन के सरकारी मीडिया द्वारा यह कहा गया था कि जिस प्रकार भूटान-चीन के बीच डोकलाम मुद्दे पर भारत हस्तक्षेप कर रहा है, उसी प्रकार चीन भी भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे में हस्तक्षेप करने में स्वतंत्र है. शायद उस समय कुछ लोगों ने चीन की बात को सिर्फ राजनीतिक पैंतरा समझा हो पर आज हम चीन के किसी भी बयान को नजरअंदाज़ नहीं कर सकते. भारत के पूर्व में चीन और पश्चिम में पाकिस्तान है. ऐसी भौगोलिक स्थिति में भारत दोनों ओर से लड़ाई मोल नहीं ले सकता.

भारत की रणनीति यही होनी चाहिए कि वह अपने सीमा क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाएं सुधारे, अपनी सीमावर्ती सड़कों, पुलों, रेल मार्गों का विकास करे और चीन के मुकाबले का बनाए. भारत भी एक नाभिकीय देश है, जिस बात को चीन कतई नहीं भूल सकता. 1962 और 2017 के भारत में बहुत फर्क है. आज भारत विश्व का एक शक्ति संपन्न देश है. भारत-चीन की इतनी लंबी सीमा होने के कारण चीन पूरी की पूरी सीमा पर कोई बेवकूफी नहीं करेगा. जिस प्रकार भारत ने 15 अगस्त को चीन के सैनिकों को जवाब दिया, उसी प्रकार भारत को चीन की हर चुनौती का जवाब देने के लिए सैनिक तैयारी कर लेनी चाहिए.

यह 1962 का नहीं 2017 का भारत है, जो पाकिस्तान और म्यानमार में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक कर चुका है. चीन को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए.

ये भी पढ़ें-

लद्दाख में चीन की घुसपैठ का सच

ड्रैगन को डोकलाम का सपना नहीं अपने दीवार में लगी दीमक से बचना चाहिए

चीन के दूसरे कोने पर परमाणु युद्ध के बादल !

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲