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दुनियाभर की सेनाओं में क्या हैं समलैंगिकता को लेकर नियम?

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 12 जनवरी, 2019 05:54 PM
  • 12 जनवरी, 2019 05:54 PM
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जब कभी बात सेना की होती है तो ये नहीं भूलना चाहिए कि लड़ाइयां मूंछों पर ताव देकर लड़ी जाती हैं. यानी मर्दानगी दिखाते हुए. ऐसे में बिपिन रावत बिल्कुल नहीं चाहते की सेना की मर्दानगी कमजोर पड़े और कोई गे या समलैंगिक सेना का हिस्सा बने.

पिछले ही साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दी, जिसे एक बड़ा कदम कहा गया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर सेना प्रमुख जनरल बिपन रावत की कुछ अलग ही राय है. उनका कहना है कि सेना के अपने नियम-कानून हैं और सेना में समलैंगिकता या गे सेक्स को कानूनी नहीं किया जाएगा. उन्होंने साफ किया कि सेना बहुत ही रूढ़ीवादी है और सीमा पर तैनात सैनिक अपने परिवार की चिंता करते हुए नहीं लड़ सकते. उन्होंने साफ किया कि सेना में समलैंगिकता अभी भी एक अपराध ही है और इसे मान्यता नहीं दी जाएगी.

बिपिन रावत का सेना को रूढ़ीवादी कहना ये दिखाता है कि वह मानते हैं अगर सेना में कोई गे है तो उसे एक तरह से नामर्द की तरह देखा जाएगा. जब कभी बात सेना की होती है तो ये नहीं भूलना चाहिए कि लड़ाइयां मूंछों पर ताव देकर लड़ी जाती हैं. यानी मर्दानगी दिखाते हुए. ऐसे में बिपिन रावत बिल्कुल नहीं चाहते की सेना की मर्दानगी कमजोर पड़े और कोई गे या समलैंगिक सेना का हिस्सा बने. यानी ये तय है कि भारतीय सेना में समलैंगिकता एक अपराध है, लेकिन अन्य देशों का क्या? चलिए शुरू करते हैं अपने पड़ोसी मुल्क से.

बिपिन रावत ने साफ किया है कि सेना में समलैंगिकता या गे सेक्स को कानूनी नहीं किया जाएगा.

पाकिस्तान में 10 साल जेल

बात अगर पाकिस्तान की करें तो यहां पर समलैंगिकता को एक बड़ा अपराध माना जाता है. बल्कि यूं कहें कि इसे 'पाप' से कम नहीं समझा जाता है. समलैंगिकता के लिए पाकिस्तान पीनल कोड 1860 के तहत 2-10 साल तक का कारावास या उम्रकैद और जुर्माने का प्रावधान है. अब जिस देश में ही समलैंगिकता अपराध है, उसकी सेना में तो किसी के समलैंगिक होने का सवाल ही पैदा नहीं होता.

चीन के हालात भी भारत जैसे

जिस तरह भारत में समलैंगिकता कानूनी तो है,...

पिछले ही साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दी, जिसे एक बड़ा कदम कहा गया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर सेना प्रमुख जनरल बिपन रावत की कुछ अलग ही राय है. उनका कहना है कि सेना के अपने नियम-कानून हैं और सेना में समलैंगिकता या गे सेक्स को कानूनी नहीं किया जाएगा. उन्होंने साफ किया कि सेना बहुत ही रूढ़ीवादी है और सीमा पर तैनात सैनिक अपने परिवार की चिंता करते हुए नहीं लड़ सकते. उन्होंने साफ किया कि सेना में समलैंगिकता अभी भी एक अपराध ही है और इसे मान्यता नहीं दी जाएगी.

बिपिन रावत का सेना को रूढ़ीवादी कहना ये दिखाता है कि वह मानते हैं अगर सेना में कोई गे है तो उसे एक तरह से नामर्द की तरह देखा जाएगा. जब कभी बात सेना की होती है तो ये नहीं भूलना चाहिए कि लड़ाइयां मूंछों पर ताव देकर लड़ी जाती हैं. यानी मर्दानगी दिखाते हुए. ऐसे में बिपिन रावत बिल्कुल नहीं चाहते की सेना की मर्दानगी कमजोर पड़े और कोई गे या समलैंगिक सेना का हिस्सा बने. यानी ये तय है कि भारतीय सेना में समलैंगिकता एक अपराध है, लेकिन अन्य देशों का क्या? चलिए शुरू करते हैं अपने पड़ोसी मुल्क से.

बिपिन रावत ने साफ किया है कि सेना में समलैंगिकता या गे सेक्स को कानूनी नहीं किया जाएगा.

पाकिस्तान में 10 साल जेल

बात अगर पाकिस्तान की करें तो यहां पर समलैंगिकता को एक बड़ा अपराध माना जाता है. बल्कि यूं कहें कि इसे 'पाप' से कम नहीं समझा जाता है. समलैंगिकता के लिए पाकिस्तान पीनल कोड 1860 के तहत 2-10 साल तक का कारावास या उम्रकैद और जुर्माने का प्रावधान है. अब जिस देश में ही समलैंगिकता अपराध है, उसकी सेना में तो किसी के समलैंगिक होने का सवाल ही पैदा नहीं होता.

चीन के हालात भी भारत जैसे

जिस तरह भारत में समलैंगिकता कानूनी तो है, लेकिन सेना में नहीं, वैसा ही चीन में भी है. चीन में तो 1997 से ही समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिल गई थी, लेकिन सेना में समलैंगिक लोगों के लिए कोई जगह नहीं है. सेना के अधिकारी साफ कहते हैं कि सेना में कोई भी समलैंगिक नहीं है और अगर होंगे भी तो इक्के-दुक्के. तोपखाना रेजिमेंट के एक कर्नल के अनुसार, पश्चिमी देशों की तरह चीन में सेना में समलैंगिकता मुमकिन नहीं है. सेना की शर्तें बहुत ही शख्त होती हैं और एक गे या समलैंगिक उन्हें स्वीकार नहीं कर सकता. उनका कहना है कि हो सकता है सेना में कुछ गे हों, लेकिन खुलेतौर पर वह खुद को गे नहीं दिखा सकते.

वहीं दूसरी ओर साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में छपी एक खबर के अनुसार चीन के एक जूनियर रैंक के सैनिक की मानें तो सेना में गुपचुप गे सेक्स मौजूद है. वह सैनिक कहता है कि इंटरनेट उसके जैसे लोगों के लिए बहुत मददगार है. वह बताता है कि कैसे सेना में आने के बाद एक गे सैनिक का पहला उद्देश्य यही होता है कि वह कोई गे पार्टनर ढूंढ़े जो उसका ख्याल रख सके. किसी का फेवरेट होना कोई गुनाह नहीं है, ऐसे में किसी को शक नहीं होता है, अगर कोई सैनिक किसी अधिकारी का फेवरेट भी हो.

अमेरिकी सेना में समलैंगिक, लेकिन ट्रांसजेंडर नहीं

अमेरिका में 1993 में तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 'Don't ask, don't tell' नाम की एक पॉलिसी लागू की थी. इसके तहत सेना में अगर कोई समलैंगिक शख्स भर्ती होना चाहता है तो उसे अपनी समलैंगिकता की पहचान को छुपा कर रखना होगा. अगर इसका पता चलता है तो उसे सेना से निकाल दिया जाएगा. इसे लेकर समलैंगिक समुदाय लगातार विरोध करता रहा, जिसे बराब ओबामा ने राष्ट्रपति बने ही पलट दिया. उन्होंने इस नियम को सितंबर 2011 में खत्म कर दिया और सेना में भी समलैंगिक लोगों की सेवाओं को कानूनी कर दिया, जिसकी पूरी दुनिया में सराहना की गई. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में आने के बाद से ही इसका विरोध कर रहे हैं और कह रहे हैं कि पुराने नियम को दोबारा लागू किया जाएगा. हो सकता है आने वाले दिनों में इस नियम को फिर से पलट दिया जाए और दोबारा से 'Don't ask, don't tell' की पॉलिसी लागू कर दी जाए. वह ट्रांसजेंडर्स के सेना में सेवाएं देने पर तो मार्च 2018 में ही बैन लगा भी चुके हैं.

समलैंगिक लोगों के ब्रिटेन सबसे बेहतर

ब्रिटेन में सन् 2000 में समलैंगिक लोगों को सेना में भर्ती होने की आजादी मिली, हालांकि देश में 1967 में ही समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिल गई थी. इस समय पूरी दुनिया में अगर समलैंगिकता की बात करें तो सबसे अच्छे हालात और नियम-कानून ब्रिटेन में ही हैं. यहां तक कि जिन लोगों को पुराने कानून के हिसाब से समलैंगिक होने की वजह से दोषी पाया गया था अब वह दोषमुक्त हो चुके हैं और वह चाहे तो समलैंगिकता की वजह से बने क्रिमिनल रिकॉर्ड को मिटवा भी सकते हैं.

अगर देखा जाए तो पश्चिम देशों में तो सेना में समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिली है, लेकिन भारत समेत चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में ये आजादी नहीं है. हालांकि, समलैंगिक लोगों को भले ही कानूनी मान्यता मिल गई है, लेकिन पूरी दुनिया में ही उन्हें सामाजिक विरोध झेलना पड़ता है. अब अगर बिपिन रावत के बयान की बात करें तो जब अमेरिका जैसे देश में समलैंगिक लोगों का सेना में भर्ती होना विवादों में बना हुआ है, तो भारत जैसे देश की सेना में समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिलता दूर की कौड़ी ही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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