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Bihar में फिर घोटाला पैदा हुआ... एक ही महिला के नाम 18 महीने में 13 बच्चों का जन्म

    • अनु रॉय
    • Updated: 25 अगस्त, 2020 09:45 PM
  • 25 अगस्त, 2020 09:45 PM
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बिहार में जल्द ही चुनाव (Bihar Elections) होने हैं. ऐसे में इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी के नाम पर जो घोटाला (Institutional Delivery Scam) आशा-वर्कर (Asha Workers) और उनके एजेंट कर रहे हैं. वो ये बताने के लिए काफी है कि बिहार शायद ही कभी विकास के मार्ग पर कंधे से कंधा मिलाकर चल पाए.

क्या आपने कभी सुना है कि किसी महिला (Woman) ने 18 महीने में 13 बच्चों को जन्म दिया हो? नहीं सुना हो तो सुन लीजिए, बिहार में 65 साल की एक महिला ने यह कारनामा कर दिखाया है. वैसे जिन्होंने इन 13 बच्चों को जन्म दिया है उनको भी नहीं पता कि आख़िर ये कांड हुआ कैसे? उनको तो पता भी तब चला जब सरकार ने उनके एसबीआई बैंक अकाउंट में 1400 रुपए भेजे और उनका पैसा किसी और के अकाउंट में चला गया. उस स्थिति में बैंक का एक आदमी कुछ जरूरी कागजों पर अंगूठा लगाने के लिए उनके घर गया तब जाकर मालूम चला कि ऐसा भी कुछ हुआ है. कर्मचारी ने बताया कि बिहार सरकार गर्भवती महिलाओं (Delivery Scam in Bihar) को जो 1400 रुपए इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी के नाम पर देती है वो पैसा किसी दूसरे के अकाउंट में चला गया है. बता दें कि सिर्फ़ गर्भवती महिला को ही 1400 रुपए नहीं मिलते बल्कि जिस आशा कर्मी ने उसे रजिस्टर किया होता है उसे भी 600 रूपए मिलते हैं.

बिहार में गर्भवती महिलाओं के साथ भ्रष्टाचार का एक अनोखा ही मामला सामने आया है

गर्भवती होने की बात सुनकर लीला देवी जो खुद 65 साल की हैं, उनके होश उड़ गए. वो सीधे ब्लॉक पहुंची जहां उनका और उन जैसी कई महिलाओं को गर्भवती बता कर आशा-वर्कर और उनके एजेंट पैसे खा रहें हैं.

बताइए अब बिहार का क्या होगा? जहां ब्लॉक और पंचायत लेवल पर ऐसे-ऐसे कांड हो रहें हों? बिहार गर्त में नहीं जाएगा तो क्या उसका उदय होगा? नीतीश या तेजस्वी किस में दम है कि बिहार को सुधार लें. ऊपर से नीचे तक पापी भरें बैठे हैं. वैसे इस गंदे खेल में ऊपर तक के लोग शामिल होंगे. ऐसा तो है नहीं कि ख़ाली आशा-वर्कर को 600 रुपए मिलते हैं इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी करवाने के तो ख़ाली वही इसमें...

क्या आपने कभी सुना है कि किसी महिला (Woman) ने 18 महीने में 13 बच्चों को जन्म दिया हो? नहीं सुना हो तो सुन लीजिए, बिहार में 65 साल की एक महिला ने यह कारनामा कर दिखाया है. वैसे जिन्होंने इन 13 बच्चों को जन्म दिया है उनको भी नहीं पता कि आख़िर ये कांड हुआ कैसे? उनको तो पता भी तब चला जब सरकार ने उनके एसबीआई बैंक अकाउंट में 1400 रुपए भेजे और उनका पैसा किसी और के अकाउंट में चला गया. उस स्थिति में बैंक का एक आदमी कुछ जरूरी कागजों पर अंगूठा लगाने के लिए उनके घर गया तब जाकर मालूम चला कि ऐसा भी कुछ हुआ है. कर्मचारी ने बताया कि बिहार सरकार गर्भवती महिलाओं (Delivery Scam in Bihar) को जो 1400 रुपए इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी के नाम पर देती है वो पैसा किसी दूसरे के अकाउंट में चला गया है. बता दें कि सिर्फ़ गर्भवती महिला को ही 1400 रुपए नहीं मिलते बल्कि जिस आशा कर्मी ने उसे रजिस्टर किया होता है उसे भी 600 रूपए मिलते हैं.

बिहार में गर्भवती महिलाओं के साथ भ्रष्टाचार का एक अनोखा ही मामला सामने आया है

गर्भवती होने की बात सुनकर लीला देवी जो खुद 65 साल की हैं, उनके होश उड़ गए. वो सीधे ब्लॉक पहुंची जहां उनका और उन जैसी कई महिलाओं को गर्भवती बता कर आशा-वर्कर और उनके एजेंट पैसे खा रहें हैं.

बताइए अब बिहार का क्या होगा? जहां ब्लॉक और पंचायत लेवल पर ऐसे-ऐसे कांड हो रहें हों? बिहार गर्त में नहीं जाएगा तो क्या उसका उदय होगा? नीतीश या तेजस्वी किस में दम है कि बिहार को सुधार लें. ऊपर से नीचे तक पापी भरें बैठे हैं. वैसे इस गंदे खेल में ऊपर तक के लोग शामिल होंगे. ऐसा तो है नहीं कि ख़ाली आशा-वर्कर को 600 रुपए मिलते हैं इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी करवाने के तो ख़ाली वही इसमें शामिल होगी.

ऊपर बैठे उसके आका भी इस धांधली में शामिल होंगे और पैसे लूट रहे होंगे. बात सीधी है बिहार में ज़िला, ग्राम, ब्लॉक हर लेवल पर स्कैम चलता रहताहै. किसी को नहीं पड़ी है इसकी. बिहार के स्कूल में मिड-डे मील को लेकर जो कांड होते हैं उस पर अलग से रामायण लिखी जा सकती है.

मतलब, चुनाव आने वाले हैं और कमाल की बात ये है कि किसी को ज़रा भी डर नहीं है कि ऐसे पाप हो रहें हैं. साथ ही कोई ये भी नहीं सोच रहा है कि यदि ये पाप जनता के सामने खुल गए तो क्या होगा? वैसे बिहार कि जनता भी वैसी ही है. कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता. सब अपने-अपने में मग्न हैं. सबको सब पता है लेकिन कोई बोलने को राज़ी नहीं होगा क्योंकि अगर बोल दिया तो भविष्य में जो भी मिलने वाला होगा वो मिलना बंद हो जाएगा.

बिहार में गुंडाराज तो कुछ यूं है कि किसी भी व्यक्ति के मुखिया-सरपंच के ख़िलाफ़ बोलने भर की देर है. उसे ग़ायब करवा दिया जाता है. अब जब स्थिति ऐसी हो तो सवाल ये है कि आखिर कोई बोले तो बोले क्यों ? सभी को अपनी जान की फ़िक्र है. वैसे मेरे भी लिखने से क्या ही होगा? बिहारन हूं इसलिए चुप भी नहीं हुआ जाता. मेरा राज्य डूब रहा है और कोई लौ नहीं दिख रही जो उसे बचा ले जाए. अब ये विडम्बना नहीं तो फिर और क्या है?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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