बाहरी दिल्ली के बवना औद्योगिक क्षेत्र के सेक्टर-5 में अवैध रूप से चल रही पटाखे की एक फैक्ट्री में भीषण आग से शनिवार को 17 मजदूर जिंदा जलकर मर गए. मरने वालों में 9 महिलाएँ तथा 1 नाबालिग लड़की भी है. आग लगने के बाद फैक्टरी में मौजूद लोगों की क्या स्थिति रही होगी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जान बचाने के लिए कुछ श्रमिकों ने सीढ़ी के नीचे छुपने का प्रयत्न किया, तो कोई पहली मंजिल की की ओर भाग गया. लेकिन आग की भयावहता ऐसी थी कि जो जहाँ छुपा, वहीं आग की चपेट में जिंदा जलकर मर गया. आग की भयावहता को इससे भी समझा जा सकता है कि शव इतनी बुरी तरह से झुलस गए हैं कि इससे उनकी पहचान तक नहीं हो पा रही थी.
काफी मुश्किल से अब तक 7 शवों की पहचान हो पाई है. जीवित बचे मजदूरों के अनुसार आग के समय लगभग 45 मजदूर काम कर रहे थे, ऐसे में लगभग 23 श्रमिक अभी भी लापता हैं. दिल्ली सरकार ने मृतकों के परिवारों को 5-5 लाख रुपये और घायल हुए परिवारों को 1-1 लाख रुपये सहायता राशि देने की घोषणा की है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी दिल्ली के बवाना में फैक्ट्री में आग लगने की घटना में लोगों की मौत होने पर दुख जताया है. उन्होंने ट्वीट कर भी अपना दुख प्रकट किया है, वहीं दिल्ली सरकार ने मामले के जांच के आदेश दिए हैं.
अब प्रश्न उठता है कि आखिर इन 17 मौतों का जिम्मेदार कौन है? देश भर के औद्योगिक क्षेत्रों से आग से जनहानि के समाचार लगातार आते रहते हैं, परंतु इससे संबंधित नियमों को लेकर कोई ठोस व्यवस्था क्यों नहीं दिखती? कुछ दिन पूर्व ही मुंबई के कमला मिल आग हादसे में 15 लोग जिंदा जलकर मर गए थे, उसके बाद अब दिल्ली में यह घटना. इसके पूर्व नवंबर 2017 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली में ऊंचाहार एनटीपीसी में बॉयलर फटने से भड़की आग में 26 लोग जिंदा जलकर मर गए थे, जबकि 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. इससे स्पष्ट है कि पहले के इन भीषण हादसों से भी हमारे नीति निर्माताओं ने कोई सीख नहीं ली. बवाना औद्योगिक क्षेत्र के इस अवैध फैक्ट्री में आगजनी पर काबू पाने के लिए प्रारंभिक स्तर पर ऐसे कोई उपकरण नहीं थे, जिससे तुरंत आग पर काबू पाया जा सके. यही कारण है कि मजदूर चाह कर भी कुछ नहीं कर पाए. बारूद होने के कारण चंद मिनटों में ही आग ने पूरे फैक्ट्री को अपनी चपेट में ले लिया. जिस कारखाने में आग लगी उसके मालिक ने दिल्ली दमकल से अनापत्ति प्रमाण पत्र भी नहीं लिया था. राजधानी दिल्ली, जहाँ सत्ता के सभी सर्वोच्च केंद्र मौजूद हैं, अगर वहाँ यह स्थिति है, तो देश के दूर-दराज के औद्योगिक केंद्रों में आग से निपटने के लिए कैसी व्यवस्था होगी, इसकी महज कल्पना ही की जा सकती है. दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्र के इस ह्रदय विदारक घटना के बाद औद्योगिक क्षेत्रों में आग से बचाव के उपाय व परिसर की जांच पर सवाल खड़े हो रहे हैं. जिस स्थान पर आग लगी है, वहाँ पटाखे का गोदाम है, जबकि दिल्ली में पटाखा निर्माण और उसका भंडारण दोनों अवैध है. इसके बावजूद यहाँ हो रहे पटाखे कारोबार पर किसी भी सक्षम ऑथोरिटी को भनक नहीं लगी, यह काफी आश्चर्यजनक है. हैरानी की बात यह है कि इस पटाखा फैक्ट्री के गोदाम में आने जाने के लिए केवल एक ही रास्ता था. इस वजह से आग लगने के बाद भी कर्मचारी गोदाम से समय रहते नहीं निकल नहीं पाए. गोदाम के अंदर महिलाओं की लाश एक दूसरे के ऊपर पड़ी मिली. कई महिलाएँ गोदाम में उसी स्थान पर मृत मिली हैं, जहाँ पर वे बैठकर काम कर रही थीं. इससे स्पष्ट है कि यदि दो रास्ते होते तो शायद कुछ और लोगों की जान बचाई जा सकती थी.
सबसे दुखद बात यह है कि इस अवैध फैक्ट्री में आग बुझाने के लिए रेत तक का इंतजाम नहीं था. फैक्ट्री के अंदर आग बुझाने के लिए बाल्टियों में भरी रेत आग सुरक्षा के बुनियादी संरचनाओं में से एक है. यह महंगा भी नहीं है, जिसे उपलब्ध कराना फैक्ट्री मालिक के लिए कठिन हो. इस तरह अगर इस फैक्ट्री में आग से संबंधित आपदा संकट से निपटने के लिए एक भी इंतजाम नहीं था.
प्लास्टिक फैक्ट्री में आखिर पटाखों का अवैध निर्माण कैसे हो रहा था? यह भी एक बड़ा सवाल बना हुआ है. पुलिस के अनुसार इस कारखाने को प्लास्टिक के दाने बनाने के लिए लाइसेंस दिया गया था, परंतु इसमें बाहर से पटाखे मंगाकर, उसकी पैंकिंग की जाती थी.
दिल्ली अग्निशमन विभाग के अधिकारी भी गोदाम के अवैध होने की बात कह रहे हैं. हांलाकि इसके मालिक के खिलाफ पहले कार्यवाई क्यों नहीं हुई? अगर यही कार्रवाई अगर पहले हो जाती तो शनिवार को यह भयावह अग्निकांड नहीं होता. दिल्ली सरकार के अनुसार दिल्ली में बवाना, नरेला, पीरागड़ी, ओखला, झिलमिल, रोहतक रोड व मायापुरी इत्यादि 22 औद्योगिक क्षेत्र हैं. इन औद्योगिक क्षेत्रों की आड़ में चल रही अवैध गतिविधियाँ खतरे का सबब बनी हुई हैं. अग्निशमन विभाग के अनुसार इस प्रकार के परिसरों में आग से बचाव के पुख्ता इंतजाम के बाद विभाग गैर अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करता है. इसके बाद ही कारोबार शुरू किया जाता है. वहीं हर तीन वर्ष में वहाँ आग के बचाव के उपाय दुरुस्त पाए जाने के बाद ही दोबारा से प्रमाणपत्र का नवीनीकरण किया जाता है. अगर इस संपूर्ण प्रक्रिया का पालन बवाना के इस अवैध कारखाने में होता तो आज इन 17 निर्दोष मजदूरों को अपने जीवन खोना नहीं पड़ता.
दिल्ली अग्निशमन विभाग और पुलिस आयुक्त के अनुसार हादसे में जिन महिला मजदूरों की मौत हुई है, उसमें कुछ नाबालिग भी बताई जा रही हैं. साथ ही कई प्रत्यक्षदर्शियों ने भी मीडिया से बात में इस बात की पुष्टि की है कि इन फैक्ट्रियों में काफी संख्या में नाबालिग लड़कियाँ भी काम करती हैं. अगर राजधानी दिल्ली में खुलेआम बाल मजदूरी हो रही है, उस पर कार्यवाई क्यों नहीं हो रही है? इस फैक्ट्री मालिक को देर रात गिरफ्तार किया गया, लेकिन उसके खिलाफ यह कार्यवाई पहले ही क्यों नहीं हुई? यह प्रश्न मेरे मन में बार-बार उठ रहा है. यह अत्यंत दुखद है. सच में देखा जाए तो बवाना अग्नि कांड ने भारतीय औद्योगिक स्थिति को लेकर हमारे अत्यंत लचर क्रियान्वयन व्यवस्था की पोल खोल दी है. अब यह आवश्यक हो गया है कि इस मामले में सभी सक्षम अधिकारियों पर कठोर कार्यवाई की जाएँ. हमारे देश में कानूनों और नियमों की कोई कमी नहीं है. आवश्यकता इस बात की है कि इसका समुचित और कठोर रूप से क्रियान्वयन हो. बवाना मामले से स्पष्ट है कि वहाँ अवैध कार्यों एवं नियमों को तोड़ने में फैक्ट्री मालिक की ओर से कोई कमी नहीं की गई थी. अगर किसी भी मामले में प्रशासन या पुलिस एक भी कार्यवाई करती, तो इस दुर्घटना को टाला जा सकता था. केवल दुर्घटनाओं के बाद जाँच कराना और मामले को टालने से समस्याओं का समाधान नहीं मिलेगा. अभी कुछ दिन पहले ही मुंबई कमला मिल आग हादसे की जांच रिपोर्ट आई, उसके बाद अब दिल्ली की दुर्घटना. इतने सारे प्रशासनिक लापरवाही के बाद बवाना अग्नि कांड को अगर सुनियोजित हत्या. कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. अगर हम शीघ्र इन मामलों पर गंभीर नहीं हुए, तो पुन:किसी ऐसे घटना की पुनरावृत्ति अवश्यंभावी है.
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