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बुजुर्ग ऑटो ड्राइवर, जो पोती की पढ़ाई के लिए घर बेचकर ऑटो में ही बीता रहा था जीवन

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 26 फरवरी, 2021 08:44 PM
  • 26 फरवरी, 2021 08:44 PM
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ये दादा जी 74 साल की उम्र में भी ऑटो चलाकर (Auto Driver Deshraj) अपने परिवार का खर्चा चलाते हैं, क्योंकि इनके दोनों बेटों की मौत हो चुकी है. वहीं पोती की पढ़ाई के लिए घर भी बेच दिया है.

कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो आपको हंसने पर मजबूर करती हैं, वहीं कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो इमोशनल कर जाती हैं. अभी हाल ही में बुजुर्ग ऑटो ड्राइवर ( 74 years Auto Driver Deshraj) की एक खबर ने सबको भावुक कर दिया था. यह कोई कहानी नहीं बल्कि हकीकत है. दरअसल, एक 74 साल के बुजुर्ग दादा जी ने अपनी पोती की पढ़ाई की खातिर अपना घर बेच दिया, जो ऑटो चलाते हैं.

जिस जमाने में महिलाएं अपने अस्तित्व की लड़ाई रही हैं. यह लड़ाई किसी और से नहीं बल्कि खुद से है. ऐसे समय में इस तरह की खबर सुनकर मन को शांति मिलती है. इस हिम्मती दादा जी का नाम देशराज है, जो एक ऑटो ड्राइवर हैं.

जिस दिन पोती 80 प्रतिशत अंको के साथ 12वीं पास हुई बुजुर्ग ऑटो ड्राइवर ने किसी से किराया नहीं लिया

ये दादा जी 74 साल की उम्र में भी ऑटो चलाकर अपने परिवार का खर्चा चलाते हैं, क्योंकि इनके दोनों बेटों की मौत हो चुकी है. कहा जाता है कि एक पिता के लिए सबसे बड़ा दुख का क्षण तब होता है जब वह अपने बेटे की अर्थी उठाता है. दादाजी ने तो अपनी जिंदगी में ऐसे क्षण दो बार अनुभव किया है, लेकिन परिवार की जिम्मेदारी की वजह से बेटों के जाने का गम मनाने का इन्हें समय भी नहीं मिला.

दादाजी के अनुसार, बड़ा बेटा हमेशा की तरह ऑफिस गया था लेकिन घर नहीं लौटा. एक हफ्ते बाद उसकी लाश मिली थी. उसके अगले दिन ही वे ऑटो लेकर निकल पड़े. वहीं दो साल बाद छोटे बेटे ने भी खुदकुशी कर ली.

घर में पत्नी, बहू, पोते-पोतियों का खर्चा चलाने के लिए देशराज रोज सुबह 6 बजे से ही ऑटो चलाना शुरू कर देते हैं. 74 साल के इस बुजुर्ग के जिंदादिली को सलाम है. जिन्होंने बच्चों की पढ़ाई के लिए देर रात तक ऑटो चलाना जारी रखा. लेकिन इतनी मेहनत के बाद भी वे महीने में 10 हजार रुपये ही कमा पाते थे....

कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो आपको हंसने पर मजबूर करती हैं, वहीं कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो इमोशनल कर जाती हैं. अभी हाल ही में बुजुर्ग ऑटो ड्राइवर ( 74 years Auto Driver Deshraj) की एक खबर ने सबको भावुक कर दिया था. यह कोई कहानी नहीं बल्कि हकीकत है. दरअसल, एक 74 साल के बुजुर्ग दादा जी ने अपनी पोती की पढ़ाई की खातिर अपना घर बेच दिया, जो ऑटो चलाते हैं.

जिस जमाने में महिलाएं अपने अस्तित्व की लड़ाई रही हैं. यह लड़ाई किसी और से नहीं बल्कि खुद से है. ऐसे समय में इस तरह की खबर सुनकर मन को शांति मिलती है. इस हिम्मती दादा जी का नाम देशराज है, जो एक ऑटो ड्राइवर हैं.

जिस दिन पोती 80 प्रतिशत अंको के साथ 12वीं पास हुई बुजुर्ग ऑटो ड्राइवर ने किसी से किराया नहीं लिया

ये दादा जी 74 साल की उम्र में भी ऑटो चलाकर अपने परिवार का खर्चा चलाते हैं, क्योंकि इनके दोनों बेटों की मौत हो चुकी है. कहा जाता है कि एक पिता के लिए सबसे बड़ा दुख का क्षण तब होता है जब वह अपने बेटे की अर्थी उठाता है. दादाजी ने तो अपनी जिंदगी में ऐसे क्षण दो बार अनुभव किया है, लेकिन परिवार की जिम्मेदारी की वजह से बेटों के जाने का गम मनाने का इन्हें समय भी नहीं मिला.

दादाजी के अनुसार, बड़ा बेटा हमेशा की तरह ऑफिस गया था लेकिन घर नहीं लौटा. एक हफ्ते बाद उसकी लाश मिली थी. उसके अगले दिन ही वे ऑटो लेकर निकल पड़े. वहीं दो साल बाद छोटे बेटे ने भी खुदकुशी कर ली.

घर में पत्नी, बहू, पोते-पोतियों का खर्चा चलाने के लिए देशराज रोज सुबह 6 बजे से ही ऑटो चलाना शुरू कर देते हैं. 74 साल के इस बुजुर्ग के जिंदादिली को सलाम है. जिन्होंने बच्चों की पढ़ाई के लिए देर रात तक ऑटो चलाना जारी रखा. लेकिन इतनी मेहनत के बाद भी वे महीने में 10 हजार रुपये ही कमा पाते थे. जिसमें छह हजार पोते-पोतियों की पढ़ाई पर चला जाता और बाकी के चार हजार घर खर्च में.

दादा देशराज ने बताया था कि कई बार तो खाने की दिक्कत हो जाती. ऊपर से पोते-पोतियों की पढ़ाई और पत्नी का इलाज. एक दिन मेरी पोती ने मुझसे पूछा था, दादाजी क्या मुझे अपनी पढ़ाई रोकनी पड़ेगी? तब मैंने उससे कहा था कि नहीं, तुझे जितना पढ़ना है पढ़, मैं पढ़ाऊंगा.

हालात खराब होने लगे तो पत्नी की इलाज के लिए लोगों से मदद लेनी पड़ी. वहीं जब पोती ने बीएड करने का बोला तो मैंने घर बेचने का फैसला किया. मैंने घर से सभी लोगों को रिश्तेदार के यहां भेज दिया और खुद ऑटो में ही रहने लगा. शुरुआत में सोने में दिक्कत हुई फिर आदत पड़ गई. मेरा सपना पोती को टीचर बनाने का है.

आपने भी कहीं ना कहीं यह लाइन सुनी होगी कि, बड़ा दिल रखने के लिए बड़ा पैसा वाला होने की जरूरत नहीं होती. अब दादा जी एक ऐसा ही किस्सा बताते हैं, जब इनकी पोती 12th में 80 प्रतिशत अंकों के साथ पास हुई थी तो उन्होंने उस दिन किसी से भी ऑटो का किराया नहीं लिया था.

74 साल के इस शख्स की कहानी को 'ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे' पेज सामने लेकर आया. जिसके बाद देशराज यानी दादाजी वायरल हो गए. लोगों ने दरियादिली दिखाई और 24 लाख डोनेट करके इंसानियत की मिसाल पेश की. ऐसी खबरें हमें यकीन दिलाती हैं कि इंसानियत जिंदा है, इस दुनिया में आज भी अच्छे लोगों की कमी नहीं है. ऑटो वाले दादाजी को क्राउडफंडिंग के जरिए 24 लाख का चेक सौंप दिया गया. लोगों का कहना है कि अब दादाजी के सिर पर छत होगी.

वहीं ह्यूमन बॉम्बे ने 24 लाख का चेक दिए जाने की खबर को पावरी वाले स्टाइल में शेयर किया है. कैसे लोगों को दादाजी का जज्बा और संघर्ष दिखाई दिया और फंड में 24 लाख रुपए जुट गए. दादाजी ने चेक स्वीकार करते हुए सबका धन्यवाद किया है और कहा है कि "ये मैं हूं, देशराज, ये मेरा ऑटो और हमारी पार्टी हो रही है”.

इसलिए अगर आप भी यह समझते हैं कि दुनिया की सारी परेशानियां बस आपके पास हैं तो इस लाइन को समझिए... दुनिया में कितना गम है मेरा गम कितना कम है...यकीन रखिए एक दिन सब ठीक हो जाएगा. हां हो सके तो साग-सब्जी, ठेले वाले, कूली, मजदूर, रिक्शेवाले से मोल-भाव मत कीजिए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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