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फलों का राजा आम है तो आमों का राजा अलफांसो

    • कल्याण करमाकर
    • Updated: 03 जून, 2018 06:20 PM
  • 03 जून, 2018 06:20 PM
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अलफांसो को महाराष्ट्र और गुजरात में भी खूब प्यार से खाया जाता है. और वहां इसे 'आमों का राजा' कहा जाता है.

सुबह की लंबी फ्लाइट के बाद भी अपने गृहनगर कोलकाता आने पर मैं बच्चों की तरह उत्साहित था. सिर्फ इसलिए क्योंकि मुझे मेरे शहर, मेरे राज्य का अलफांसों आम खाने के लिए मिलेगा. अलफांसों आम से मुझे प्यार है. 20 साल पहले कोलकाता से मुंबई शिफ्ट होने के बाद भी अलफांसों से मेरे प्यार बना रहा. क्योंकि इस शहर के लोग भी आमों का राजा मतलब अलफांसों ही मानते हैं.

शहर के एक महंगे रेस्त्रां में मैं खाना खाने गया. वहां खाने के बाद मुझे कई तरह के डेसर्ट परोसे गए. वेटर ने ट्रे रखते हुए कहा- 'रोशोगुल्ला, मिस्टी दोई, मिहिदाना.' फिर चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान लाते हुए बोला- 'और आम.'

मैंने छूटते ही उससे सवाल किया- 'अलफांसो?'

वो बोला- 'हां. माल आज ही आया है.'

मैं इंस्टाग्राम पर फोटो डालने ही वाला था कि रुक गया. मैं छुट्टी मनाने के लिए शहर में आया था और अपना समय लोगों की बातों का जवाब देने में नहीं लगाना चाहता था.

महाराष्ट्र और गुजरात की शान है अलफांसो-

अलफांसो को महाराष्ट्र और गुजरात में भी खुब प्यार से खाया जाता है. और वहां इसे 'आमों का राजा' कहा जाता है. लेकिन बंगाल में अलफांसो नहीं बल्कि स्थानीय आम हिमसागर लोगों का पसंदीदा होता है. कोलकाता से मुंबई शिफ्ट हुई पिया प्रोमिना दासगुप्ता बार्वे फूड इंडस्ट्री से जुड़ी हैं. वो कहती हैं कि जवानी के दिनों में कोलकाता में बाहर से आए फल शायद ही दिखते थे.

आमों का राजा अलफांसो

कश्मीर के सेबों की शेल्फ लाइफ ज्यादा होती है इसलिए वो अपवाद होते हैं और महाराष्ट्र में मिल जाते हैं. लेकिन आम तो बिल्कुल नहीं मिलने वाले. मेरे कॉलेज के दिनों में भी मैंने देखा था कि न्यू मार्केट में भी गाहे बगाहे स्ट्रॉबेरी ही मिल जाया करती थी. लेकिन आज कोलकाता और यहां न्यू मार्केट...

सुबह की लंबी फ्लाइट के बाद भी अपने गृहनगर कोलकाता आने पर मैं बच्चों की तरह उत्साहित था. सिर्फ इसलिए क्योंकि मुझे मेरे शहर, मेरे राज्य का अलफांसों आम खाने के लिए मिलेगा. अलफांसों आम से मुझे प्यार है. 20 साल पहले कोलकाता से मुंबई शिफ्ट होने के बाद भी अलफांसों से मेरे प्यार बना रहा. क्योंकि इस शहर के लोग भी आमों का राजा मतलब अलफांसों ही मानते हैं.

शहर के एक महंगे रेस्त्रां में मैं खाना खाने गया. वहां खाने के बाद मुझे कई तरह के डेसर्ट परोसे गए. वेटर ने ट्रे रखते हुए कहा- 'रोशोगुल्ला, मिस्टी दोई, मिहिदाना.' फिर चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान लाते हुए बोला- 'और आम.'

मैंने छूटते ही उससे सवाल किया- 'अलफांसो?'

वो बोला- 'हां. माल आज ही आया है.'

मैं इंस्टाग्राम पर फोटो डालने ही वाला था कि रुक गया. मैं छुट्टी मनाने के लिए शहर में आया था और अपना समय लोगों की बातों का जवाब देने में नहीं लगाना चाहता था.

महाराष्ट्र और गुजरात की शान है अलफांसो-

अलफांसो को महाराष्ट्र और गुजरात में भी खुब प्यार से खाया जाता है. और वहां इसे 'आमों का राजा' कहा जाता है. लेकिन बंगाल में अलफांसो नहीं बल्कि स्थानीय आम हिमसागर लोगों का पसंदीदा होता है. कोलकाता से मुंबई शिफ्ट हुई पिया प्रोमिना दासगुप्ता बार्वे फूड इंडस्ट्री से जुड़ी हैं. वो कहती हैं कि जवानी के दिनों में कोलकाता में बाहर से आए फल शायद ही दिखते थे.

आमों का राजा अलफांसो

कश्मीर के सेबों की शेल्फ लाइफ ज्यादा होती है इसलिए वो अपवाद होते हैं और महाराष्ट्र में मिल जाते हैं. लेकिन आम तो बिल्कुल नहीं मिलने वाले. मेरे कॉलेज के दिनों में भी मैंने देखा था कि न्यू मार्केट में भी गाहे बगाहे स्ट्रॉबेरी ही मिल जाया करती थी. लेकिन आज कोलकाता और यहां न्यू मार्केट में अलफांसो आसानी से मिल जाते हैं. अलफांसो अब सिर्फ कोलकाता में ही नहीं बल्कि भारत के कई बड़े शहरों में भी अपनी पहुंच बना चुका है. यहां तक की विदेशों में अब इसे भेजा जाता है.

अलफांसो समय के साथ मशहूर हुआ-

पश्चिमी भारत के सिर्फ दो ही राज्यों में उत्पादन के बावजूद आज के समय में सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा चर्चा अलफांसो की ही होती है. हां ये और बात है कि कुछ लोगों ने अपने अपने प्रांतों के हिसाब से जवाब भी दिया होगा कि अलफांसो को तो बेकार में इतनी प्रसिद्धि मिली है. लंगड़ा/केसर आदि आदि को बेस्ट बताएगा.

बीतते समय के साथ मुझे भी अलफांसो पसंद आने लगा है. लेकिन फिर भी मैं आमों के विभिन्न प्रकारों को टेस्ट करना चाहूंगा और उनके जादू को महसूस करना चाहुंगा. लेकिन मेरे प्लान में एक दिक्कत है. क्योंकि सच्चाई ये है कि मुंबई में बैठकर मुझे सभी आम नहीं मिल पाएंगे. लगंड़ा, पायरी, केसर और टोटापूरी को छोड़कर देश के किसी हिस्से का कोई और आम शायद ही यहां मिलता है. यहां तक की गोवा के भी नहीं.

मैं ये जानना चाहता था कि आखिर अन्य क्षेत्रीय आम अपने राज्य के बाहर क्यों नहीं पाए जाते. एक्सपर्ट से बात करने पर पता चला कि इसका सबसे बड़ा कारण उन फलों की शेल्फ लाइफ कम होना है. दूसरा उनको एक जगह से दूसरे जगह भेजने में आने वाली दिक्कतें. फलों और सब्जियों को ट्रांसपोर्ट करने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उदाहरण के लिए कई सब्जियों को अगर बंद डिब्बे में रख दिया जाए तो वो गैस का उत्सर्जन करने लगते हैं जिसके कारण उसके साथ दूसरे फल और सब्जियों को नहीं रख सकते.

लेकिन अलफांसों के साथ ऐसा नहीं है. अलफांसो का छिलका मोटा होता है जिससे ये जल्दी खराब नहीं होता. सिर्फ इतना ही नहीं अलफांसो, लंगड़ा और हिमसागर की तरह रेशेदार नहीं होता. इसलिए जिन्हें आम खाने की बहुत आदत नहीं है वो लंगड़ा और हिमसागर की जगह अलफांसो को चुनते हैं. साथ ही इसका अलग ही स्वाद होता है जो इसे विश्व भर में प्रसिद्ध कर रहा है.

हिलसा और अलफांसो दोनों ही अनोखे हैं.

इसी से मिलता जुलता मेरा दावा बंगाल के हिलसा मछलियों के लिए है. मछली नहीं खाने वाले लोगों के बीच भी ये बहुत प्रसिद्ध है. हिलसा और आम के बीच दूसरी जो आम बात है वो है इनके आने का मौसम. हिलसा की तरह अलफांसो भी खास मौसम में ही मिलते हैं. लंगड़ा और हिमसागर से पहले बाजार में अलफांसो गिर जाती है. और अब तो केमिकल के द्वारा पकाए गए अलफांसो आम और भी पहले बाजार में आ जाते हैं. जिससे इसकी उपलब्धता और बढ़ गई है.

असम में आपको स्थानीय आमों के कई प्रकार जैसे- माटी मीठा, मालदोई और सेंदूरी आम मिल जाएगा. हालांकि इनके पेड़ों पर कीड़े लगने का बहुत खतरा होता है इसलिए इनका आयात करने की जरुरत पड़ जाती है. वहीं दक्षिण भारत में भी आम के कई प्रकार मिलते हैं. जैसे- तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में बंगानापल्ली, मालगोवा, गुड्डू और नीलम पाए जाते हैं. कर्नाटक में बादामी और रासपुरी है. लेकिन बंगानापल्ली, बादामी और मालगोवा को छोड़कर कोई भी आम दक्षिण भारत के बाहर नहीं पाया जाता.

अब मैं अपनी सीट पर बैठकर यही सोच रहा हूं कि आखिर मैं देश में पाए जाने वाले हर आम को टेस्ट भी कर पाउंगा या नहीं. लेकिन आम की हर वेराइटी टेस्ट में बेस्ट तभी लगती है जब उसे वहीं पर जाकर खाया जाए जहां इसका जन्म हुआ है. तो आम के लिए आम आदमी की देश यात्रा. बुरा आइडिया नहीं है. है न?

(DailyO से साभार)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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