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एक डरावना सच : 'शंभूलाल' अकेला नहीं है

    • शरत कुमार
    • Updated: 16 दिसम्बर, 2017 06:03 PM
  • 16 दिसम्बर, 2017 06:03 PM
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चाहें अफराजुल हत्याकांड हो या फिर पहलू खान मर्डर केस.. आए दिन होते ऐसे हादसे बता रहे हैं कि शंभूलाल जैसे हत्यारें अकेले नहीं हैं.

मैं डरा नहीं था लेकिन मैं विचलित था. परेशान था. रात को सोने गया मगर बार-बार करवटें बदलता रहा था. नींद आ ही नहीं रही थी. हर बार वीडियो में दिखा अफराजुल को काटता हुआ राजसमंद का शंभूलाल रैगर और अफराजुल के मदद के लिए गुहार लगाती चीखें दिमाग में आ जा रही थीं. सुबह हुई तब तक अलवर से खबर आई पुलिस ने एनकाउंटर में तमिल खान नाम के एक गौ तस्कर को मार गिराया है. मैंने दफ्तर फोन किया, खबर लिखवाई और फिर सोने की कोशिश की तब तक सुबह के 6:30 बज गए थे.

दफ्तर से फोन आया, "अलवर वाली घटना पर 7:00 बजे के बुलेटिन में फोन पर खबर बता देना" टेलीविजन न्यूज में इसे फोनो कहते हैं. मैंने उनसे पूछा कि राजसमंद की घटना का क्या हुआ. उन्होंने कहा ऑफर कर दिया है. मैं कहना चाह रहा था कि घटना बड़ी है इसे चलानी चाहिए, लेकिन पहली बार इतनी बड़ी घटना को चलाने के लिए कहने में मुझे संकोच आया और मैं नहीं कर पाया.

पता नहीं क्यों दिल और दिमाग बार-बार यह सोच रहा था कि जो कुछ हमने अब तक तालिबान या फिर आईएसआईएस के अधिकार वाले इलाकों से आए वीडियो में देखा था वह राजस्थान जैसे शांत प्रदेश में एक सुदूर गांव में कैसे हो सकता है. लेकिन यह सच था शाम को करीब 7:00 बजे 6 दिसंबर को यह वीडियो हमारे पास आया था. तब मैं घर पहुंचा ही था इस वीडियो को खोलकर जैसे ही मैं देखने लगा 8 साल की मेरी बिटिया मेरे पास भागते हुए आई पूछा क्या देख रहे हो पापा. मैं घबरा गया और उसे वहां ले जाने को कहा कि तुम्हें देखने लायक चीज नहीं है.

बच्चों को जब भी किसी चीज को देखने से मना करो वह देखने की करते हैं. लेकिन बड़ी मुश्किल से मैंने उससे पीछा छुड़ा कर मोबाइल में वीडियो देखता हुआ बाहर चला गया. आधा वीडियो देखा लेकिन उसके आगे देखने की हिम्मत नहीं हुई. मैंने बंद कर दिया और दफ्तर में पूछा क्या आप लोगों ने वीडियो देखा है लेकिन इस बीच...

मैं डरा नहीं था लेकिन मैं विचलित था. परेशान था. रात को सोने गया मगर बार-बार करवटें बदलता रहा था. नींद आ ही नहीं रही थी. हर बार वीडियो में दिखा अफराजुल को काटता हुआ राजसमंद का शंभूलाल रैगर और अफराजुल के मदद के लिए गुहार लगाती चीखें दिमाग में आ जा रही थीं. सुबह हुई तब तक अलवर से खबर आई पुलिस ने एनकाउंटर में तमिल खान नाम के एक गौ तस्कर को मार गिराया है. मैंने दफ्तर फोन किया, खबर लिखवाई और फिर सोने की कोशिश की तब तक सुबह के 6:30 बज गए थे.

दफ्तर से फोन आया, "अलवर वाली घटना पर 7:00 बजे के बुलेटिन में फोन पर खबर बता देना" टेलीविजन न्यूज में इसे फोनो कहते हैं. मैंने उनसे पूछा कि राजसमंद की घटना का क्या हुआ. उन्होंने कहा ऑफर कर दिया है. मैं कहना चाह रहा था कि घटना बड़ी है इसे चलानी चाहिए, लेकिन पहली बार इतनी बड़ी घटना को चलाने के लिए कहने में मुझे संकोच आया और मैं नहीं कर पाया.

पता नहीं क्यों दिल और दिमाग बार-बार यह सोच रहा था कि जो कुछ हमने अब तक तालिबान या फिर आईएसआईएस के अधिकार वाले इलाकों से आए वीडियो में देखा था वह राजस्थान जैसे शांत प्रदेश में एक सुदूर गांव में कैसे हो सकता है. लेकिन यह सच था शाम को करीब 7:00 बजे 6 दिसंबर को यह वीडियो हमारे पास आया था. तब मैं घर पहुंचा ही था इस वीडियो को खोलकर जैसे ही मैं देखने लगा 8 साल की मेरी बिटिया मेरे पास भागते हुए आई पूछा क्या देख रहे हो पापा. मैं घबरा गया और उसे वहां ले जाने को कहा कि तुम्हें देखने लायक चीज नहीं है.

बच्चों को जब भी किसी चीज को देखने से मना करो वह देखने की करते हैं. लेकिन बड़ी मुश्किल से मैंने उससे पीछा छुड़ा कर मोबाइल में वीडियो देखता हुआ बाहर चला गया. आधा वीडियो देखा लेकिन उसके आगे देखने की हिम्मत नहीं हुई. मैंने बंद कर दिया और दफ्तर में पूछा क्या आप लोगों ने वीडियो देखा है लेकिन इस बीच एनसीआर के कई इलाकों में भूकंप के झटके आए हुए थे किसी ने वह वीडियो नहीं देखा था और मैं इस घटना से आहत था कि मैं जिद करके किसी को यह नहीं कह सका कि आप इस वीडियो को देखें.

सुबह 8:00 बजे यह खबर सभी जगह हेड लाइन में चलने लगी. उस दिन, जैसा की मैंने कहा मैं डरा नहीं था. विचलित था. परेशान था. लेकिन 14 दिसंबर की घटना वजह से मैं डर गया हूं. शंभूलाल जैसा जल्लाद अकेले नहीं है, वो तो हजारों में प्रवेश कर चुका है. जहनी तौर पर इस कदर बीमार हो चुके हैं कि इतनी बर्बर हत्याकांड को हिंदुत्व की जीत बता रहे हैं और उसकी पत्नी के खाते में आर्थिक मदद के लिए ढाई लाख रूपय पहुंच गए. गुजरात, उत्तरप्रदेश और राजस्थान के कई जिले से लोग उसके समर्थन में राजसमंद और उदयपुर में रैली करने के लिए पहुंच गए. जिस कोर्ट में बर्बर हत्यारा पेश हुआ वहां भगवा झंडा लहराने लगे. पुलिस ने रोका तो पुलिस बल और थाने पर हमला बोलकर 30 पुलिसकर्मियों को घायल कर दिया. मैं सोच रहा हूं कि जिस वीडियो को परिवार के सामने नहीं देख पाया उसे सही ठहराने वाले कौन से लोगों के मां-बाप होंगे और कौन से लोगों के बच्चे होंगे.

पहलू खान को भी दर्दनाक मौत दी थीपहले अलवर के बहरोड में गौ तस्करी के आरोप में पहलू खान को उन्मादी भीड़ ने फुटबॉल बना कर पीटा और उसकी मौत हो गई तब उस वक्त वसुंधरा सरकार ने आरोपियों को क्लीन चिट देते हुए कहा कि पहलू खान गौ तस्कर था. संघ और बीजेपी के से जुड़े आरोपियों को बचाने के लिए सरकार ने सारी ताकत लगा दी. उसके थोड़े ही दिन बाद मजदूर नेता जफर खान को प्रतापगढ़ में सरकारी अधिकारियों की मौजूदगी में कुछ लोगों ने पीट-पीटकर मार डाला. जफर खान खुले में शौच कर रहीं अपने मोहल्ले की महिलाओं के फोटोग्राफ लेने से रोकने गया था.

तब इस खबर को दबाने के लिए और जफर खान की मौत को सामान्य मौत बताने के लिए पूरा प्रशासनिक अमला लग गया था. इसी तरह जैसलमेर के लंगा मांगणियार लोक गायक आमद खान को इसलिए पीट पीट कर मार डाला क्योंकि वो ऐसी धुन नहीं बजा पाया जिससे एक आदमी के शरीर में देवी माता आ जाएं. आमद खान तो मंदिर में भजन गाने वाला था, लेकिन उसकी मौत को भी लोगों ने सियासत का रूप दे दिया और जैसलमेर में हिंदू संगठन उस आरोपी के साथ खड़े हो गए. इसी तरह से 6 दिसंबर को ही रात में अलवर पुलिस ने तमिल खान नाम के व्यक्ति का एनकाउंटर कर दिया और कहा कि वह गौ तस्करी कर रहा था. दो दिन बाद राजस्थान सरकार ने तमिल खान के एनकाउंटर करने वाले पांच पुलिसकर्मियों को राजकीय सम्मान से नवाजे जाने का ऐलान कर दिया.

ये घटनाएं है दिखने में सामान्य लग रही हैं. इनका सरलीकरण करें तो कह सकते हैं छिटपुट घटनाएं हैं इसे लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए. लेकिन सारी घटनाओं में एक बात सामान्य है कि इन सभी घटनाओं के आरोपियों को बचाने के लिए हिंदू संगठनों के साथ राजस्थान की बीजेपी सरकार खड़ी दिखती है. कानून का टूटना या फिर व्यक्ति का बेईमान होना या फिर मनुष्य का आचरण असमान्य होना कोई गंभीर चिंता की बात कभी नही रही मगर जब संस्थाएं टूटने लगें तो देश का भविष्य अंधकार मय दिखता है. जब संस्थाएं बेईमान हो जाएं तो देश को कोई बचा नहीं सकता है. यह डरावना है इसलिए डर लगता है. हमें अपने अंदर के शैतान को मारना होगा क्योंकि इंसान की फितरत लड़ने-झगड़ने और नफरत करने की होती है और उसी फितरत पर काबू पाना इंसानियत और मानवता है.

हमारे सामने लड़ने के लिए कोई उद्देश्य, कारक या कारण होना चाहिए. हमें यहां नफरत करने के लिए हिंदू और मुसलमान के रुप में आसान लक्ष्य मिल जाता है. जरा सोचिए अरब देशों में आपस में शिया और सुन्नी मुसलमान आपस में क्यों लड़ रहे हैं. पाकिस्तान में कौन से हिंदू हैं जो रोज आतंकी घटनाएं हो रही हैं. अमेरिका 100 वर्षों तक काले गोरे की लड़ाई लड़ता रहा. हो सकता है कि आज हमारे समाज में हमारे साथ मुसलमान नहीं होते तो हम अगड़ी और पिछड़ी जातियों के नाम पर लड़ते.

मार्क्स ने कहा था धर्म अफीम है. जब भी आईएसआईएस के लड़ाकों को हम चाकू से निर्दोष लोगों को हलाल करते हुए देखते थे तो मुझे लगता था धर्म के नाम पर भटके हुए इन्हीं लोगों के बारे में कल्पना कर शायद मार्क्स ने यह बात कही होगी. ISIS और तालिबान के रोंगटे खड़े कर देने वाली वारदातों के वीडियो देखकर उन्हें शैतान कहने वाले हम लोग लोगों को यह पता ही नहीं चला कि कब दबे पांव यह मानसिकता हमारे अंदर आ पहुंची. इस इस जघन्य हत्याकांड को सही ठहराने के लिए लोग धर्म के नाम पर भटके हुए कुछ इस्लामिक लड़ाकों के कारनामों का उदाहरण देते हैं, इस तरह की बातें सुनकर यही लगता है कि अगर कुत्ता आपको दांत से काटे और आप भी उसी तरह से कुत्ते को अपने दांत से काटो तो फिर आपमें और कुत्ते में क्या फर्क रह जाएगा.

हमारी बड़ी चिंता शंभूलाल रैगर नहीं है. हमारा बड़ा डर शंभूलाल रहकर नहीं है. हमारी चिंता और हमारा डर वह लोग हैं, वह भीड़ है, वह विचारधारा है जो कि 14 दिसंबर को उदयपुर में राजसमंद की बर्बर घटना को सही ठहराने के लिए पहुंचा था. इन लोगों के दुस्साहस की पराकाष्ठा देखिए, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जब अपने 4 साल के कार्यकाल पूरा होने पर सोशल मीडिया पर अपना वीडियो मैसेज डाला तो उस पर टिप्पणी में ज्यादातर लोग सरकार के कामकाज के बारे में नहीं बल्कि शंभूलाल के कारनामों को सही ठहराने के बारे में लिखे हुए थे. अब जरा सोचिए कोई मुस्लिम इसी तरह से शंभूलाल जैसा पागल हो जाए और किसी हिंदू को पकड़ कर कहीं पर इसी तरह से काट डाले तो आप क्या करेंगे. आप सोच रहे होंगे हम तो नहीं हैं, हम तो महफूज अपने घर में बैठे हैं. आप सोचते हैं कि हमें कोई क्यों काटेगा तो आप गलत है. जब शंभूलाल किसी मुसलमान को अपना शिकार बनाने निकला था तब अफराजुल को इसके बारे में पता नहीं था. अफराजुल की शंभूलाल से कोई दुश्मनी नहीं थी, उसे तो किसी मुसलमान को काटना ही था. जब कटने और काटने का सिलसिला शुरू होगा तो हम और आप खुद को महफूज नहीं कर सकते हैं. देश में कोई भी अपने आप को महफूज़ नहीं कर सकता है.

बड़ा सवाल यह है दसवीं पास शंभूलाल को इस तरह से मानसिक तौर पर किसने बीमार बनाया. पुलिस को शंभूलाल के पास से 3 पेज का अंग्रेजी में लिखा हुआ नोट मिला है जिसमें वह केवल लव जिहाद की बात नहीं कर रहा है, बल्कि PK और पद्मावती जैसे फिल्म को भी मुसलमानों की साजिश बता रहा है. यहां तक कि दलितों के मिलने वाले आरक्षण को हिंदुओं को बांटने की साजिश बता रहा है जबकि शंभूलाल खुद दलित है. गौर करने वाली बात है कि यह विचारधारा किसकी है और किन लोगों ने शंभूलाल को इन सारी बातों को भरकर इस तरह से जलाद बनाया था. पुलिस चाहे तो यह पता करना मुश्किल नहीं है लेकिन पुलिस इसे इकलौती घटना का नाम देकर राज्य के बीजेपी सरकार को बचाने में लगी है. बात डिजीटल इंडिया की करते हैं और हर महीने कहीं न कहीं हिंदू-मुसलमान की लड़ाई की वजह से इंटरनेट बंद रहता है. बैंक से लेकर राशन की दुकान तक सब इंटरनेट पर चलने लगे हैं. पांच दिनों से उदयपुर और राजसमंद जिलों में गरीबों को राशन नही बंट रहा है मगर हम लड़ रहे हैं कि हिंदू बड़ा है या मुसलमान बड़ा है. जिस डिजिटलाईजेशन को हम अपनी ताकत बनाने चले थे वही हमारा डर बन चुका है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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