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न Black न White, डर का पर्याय Fungus है, डॉक्टर्स चाहे कुछ भी कहें, कहते रहें!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 22 मई, 2021 05:49 PM
  • 22 मई, 2021 05:49 PM
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पहले बिहार अब उत्तर प्रदेश. भारत में वाइट फंगस के मामले आने के बाद भले ही इसे डॉक्टर्स द्वारा हल्का और काम हानिकारक बताया जा रहा हो लेकिन डॉक्टर्स को इसके प्रति गंभीर हो जाना चाहिए. कहीं ऐसा न हो आने वाले वक़्त में वाइट फंगस, ब्लैक फंगस को कोसों दूर छोड़ दे.

अभी भारत कोरोना वायरस की दूसरी लहर में मरे लोगों की लाशें ढंग से गिन भी नहीं पाया है और ब्लैक फंगस ने दस्तक दे दी.कोरोना के फौरन बाद हालात कितने बदतर हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत में म्यूकरमाइकोसिस (Mucormycosis) यानी ब्लैक फंगस के बढ़ते प्रकोप के बाद केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को अहम निर्देश देते हुए कहा था कि ब्लैक फंगस को महामारी कानून के तहत अधिसूचित की जाने वाली बीमारियों में शामिल करें और सभी केस रिपोर्ट किए जाएं. राज्य सरकारें केंद्र की बात का अभी ठीक से पालन भी नहीं कर पाई थीं कि वाइट फंगस के रूप में एक नई चुनौती ने दस्तक दे दी है. ब्लैक को बेहद खतरनाक मानने वाले डॉक्टर्स वाइट फंगस को देख बस यही कह रहे हैं कि 'वाइट फंगस' एक साधारण फंगस है इससे इतना घबराने की ज़रूरत नहीं है. सवाल ये नहीं है कि ब्लैक और वाइट में से कौन सा फंगस कम कम खतरनाक है और कौन सा ज्यादा ? सवाल इंसान की ज़िंदगी से जुड़ा है और बात जब जान की हो तो व्यक्ति ब्लैक और वाइट नहीं देखता है. मौजूदा परिस्थितियों में डर का पर्याय फंगस है अब डॉक्टर्स कुछ भी कहें. कहते रहें.

ब्लैक फंगस के बाद देश के सामने अगली बड़ी चुनौती वाइट फंगस है

बताते चलें कि एक ऐसे समय में जब पोस्ट कोविड म्यूकरमाइकोसिस (Mucormycosis) यानी ब्लैक फंगस इंसान की ज़िंदगी लील रहा हो. देश में वाइट फंगस के आगमन ने डॉक्टर्स और पैरा मेडिकल स्टाफ्स की चुनौती बढ़ा दी है. पहले कोविड 19 फिर ब्लैक फंगस देश के अलग अलग राज्यों में डॉक्टर्स वक़्त की दोहरी मार झेल रहे थे ऐसे में अब जबकि वाइट फंगस का पर्दापण बिहार में हो चुका है आने वाले वक्त में देश के सामने जटिलताओं की झड़ी लगी है.

वहीं जो बयान वाइट फंगस के विषय में दिए जा रहे हैं उनपर हेल्थ एक्सपर्ट्स के एक वर्ग का ये कहना है...

अभी भारत कोरोना वायरस की दूसरी लहर में मरे लोगों की लाशें ढंग से गिन भी नहीं पाया है और ब्लैक फंगस ने दस्तक दे दी.कोरोना के फौरन बाद हालात कितने बदतर हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत में म्यूकरमाइकोसिस (Mucormycosis) यानी ब्लैक फंगस के बढ़ते प्रकोप के बाद केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को अहम निर्देश देते हुए कहा था कि ब्लैक फंगस को महामारी कानून के तहत अधिसूचित की जाने वाली बीमारियों में शामिल करें और सभी केस रिपोर्ट किए जाएं. राज्य सरकारें केंद्र की बात का अभी ठीक से पालन भी नहीं कर पाई थीं कि वाइट फंगस के रूप में एक नई चुनौती ने दस्तक दे दी है. ब्लैक को बेहद खतरनाक मानने वाले डॉक्टर्स वाइट फंगस को देख बस यही कह रहे हैं कि 'वाइट फंगस' एक साधारण फंगस है इससे इतना घबराने की ज़रूरत नहीं है. सवाल ये नहीं है कि ब्लैक और वाइट में से कौन सा फंगस कम कम खतरनाक है और कौन सा ज्यादा ? सवाल इंसान की ज़िंदगी से जुड़ा है और बात जब जान की हो तो व्यक्ति ब्लैक और वाइट नहीं देखता है. मौजूदा परिस्थितियों में डर का पर्याय फंगस है अब डॉक्टर्स कुछ भी कहें. कहते रहें.

ब्लैक फंगस के बाद देश के सामने अगली बड़ी चुनौती वाइट फंगस है

बताते चलें कि एक ऐसे समय में जब पोस्ट कोविड म्यूकरमाइकोसिस (Mucormycosis) यानी ब्लैक फंगस इंसान की ज़िंदगी लील रहा हो. देश में वाइट फंगस के आगमन ने डॉक्टर्स और पैरा मेडिकल स्टाफ्स की चुनौती बढ़ा दी है. पहले कोविड 19 फिर ब्लैक फंगस देश के अलग अलग राज्यों में डॉक्टर्स वक़्त की दोहरी मार झेल रहे थे ऐसे में अब जबकि वाइट फंगस का पर्दापण बिहार में हो चुका है आने वाले वक्त में देश के सामने जटिलताओं की झड़ी लगी है.

वहीं जो बयान वाइट फंगस के विषय में दिए जा रहे हैं उनपर हेल्थ एक्सपर्ट्स के एक वर्ग का ये कहना है कि लोगों में पैनिक न हो इसलिए इसे कम खतरनाक बताया जा रहा है और सारा फ़ोकस ब्लैक फंगस पर रखने को कहा जा रहा है लेकिन सच्चाई आश्वासन से काफी अलग है. माना जा रहा है कि ब्लैक की तरह वाइट भी मनुष्य को नुकसान पहुंचाने की पूरी क्षमता रखता है.

जैसा कि हम बता चुके हैं डॉक्टर्स का एक वर्ग वाइट फंगस को ब्लैक फंगस के मुकाबले ढीला बता रहा है और क्योंकि लोगों को पैनिक से बचाना है इसलिए डॉक्टर्स ये भी तर्क दे रहे हैं कि वाइट फंगस नाम की कोई बीमारी नहीं है. जो संक्रमण लोगों में हो रहा है वो और कुछ नहीं बस candidiasis है.

गौरतलब है कि भारत में वाइट फंगस का पहला मामला बिहार के पटना से आया है. हालांकि बाद में सरकार द्वारा संचालित पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (पीएमसीएच) ने वाइट फंगस से जुड़ी तमाम बातों को खारिज कर दिया था. पटना में भले ही सरकार के दबाव में सिरे से खारिज कर दिया गया हो लेकिन उत्तर प्रदेश में इस लेख को लिखे जाने तक वाइट फंगस को खारिज किये जाने की कोई सूचना नहीं आई है.

वाइट फंगस का सबसे ताजा मामला उत्तर प्रदेश में खूब जमकर सुर्खियां बटोर रहा है. वाइट फंगस को लेकर संक्रमण रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ईश्वर गिलाडा ने इंडिया टुडे से बात की है और कहा है कि, 'वाइट फंगस कुछ और नहीं बल्कि एक मिथक है जिसे लेकर बेमतलब का हव्वा बनाया जा रहा है. डॉक्टर का कहना है कि ये एक साधारण फंगल इन्फेक्शन है जो Candida नामक फंगस से होता है.

मामले के मद्देनजर डॉक्टर ये ये भी कहा है कि किसी को भी इस बात को रिपोर्ट करने की कोई ज़रूरत नहीं है कि वाइट फंगस, ब्लैक फंगस से ज्यादा खतरनाक है. बात वाइट फंगस की ब्लैक फंगस से तुलना पर हुई है तो ये बताना बहुत जरूरी है कि ब्लैक फंगस कई मायनों में बहुत खतरनाक है जो आंख और मस्तिष्क को गहरा नुकसान पहुंचाता है जिसे संभालने का एकमात्र विकल्प सर्जरी है.

ब्लैक फंगस को तमाम अलग अलग डॉक्टर्स द्वारा खतरनाक मानते हुए ये तक कह दिया गया है कि चूंकि ये मानव सिस्टम में नहीं पाया जाता है इसलिए हमने अभी तक इसके कम ही केस देखे थे. Candidiasis जल्दी पकड़ में आता है और जल्द ही इसका उपचार होता है. डॉक्टर्स ये भी मानते हैं कि ज्यादातर मामलों में ये सही हो जाता है लेकिन स्थिति तब गंभीर हो जाती है जब समय पर सही इलाज नहीं मिले.

डॉक्टर्स इस बात को लेकर एकमत है कि कमजोर इम्युनिटी वाले लोग, वो लोग जिन्हें डायबिटीज है और जो कोविड 19 की चपेट में आने के बाद स्टेरॉयड का सेवन कर रहे थे वो ब्लैक और वाइट दोनों फंगस के राडार पर हैं

फंगस तो फंगस है, क्या ब्लैक और क्या वाइट?

बताते चलें कि अब तक बिहार में वाइट फंगस के 4 मामले देखने को मिले हैं. चारों ही मरीजों का शुमार उन लोगों में है जो पोस्ट कोविड की चुनौतियों का सामना कर रहे थे. हेल्थ एक्सपर्ट्स इस बात से भी इंकार नहीं कर रहे हैं कि विषाणुजनित वायरस होने के कारण वाइट फंगस, ब्लैक फंगस जितना ही खतरनाक हो सकता है. शरीर में आने के बाद ब्लैक फंगस जहां व्यक्ति के साइनस और फेफड़ों को ही प्रभावित करता है.

तो वहीं वाइट फंगस के विषय में माना यही जा रहा है कि ये शरीर के पूरे कामकाज को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. वाइट फंगस से जुड़े कुछ मामले ऐसे भी सामने आए हैं जिसमे रोगी को कोविड जैसे लक्षण दिखाई दिए, लेकिन जब इनकी जांच कराई गई तो रिजल्ट नेगेटिव आया.

अभी शुरुआती दौर है इसलिए वाइट फंगस को हल्का कहा जा रहा है मगर जैसे हालात देश में चिकित्सीय सेवाओं के हैं हमें पूरा यकीन है आने वाले वक्त में वाइट फंगस भी ब्लैक जितना खतरनाक साबित होगा. भविष्य क्या है इसपर अभी किसी तरह की कोई बात करना जल्दबाजी है इसलिए न जहां एक तरफ हमें इंतेजार करना होगा.

तो वहीं अस्पतालों को भी पहले से कमर कस लेनी चाहिए. कहीं ऐसा न हो जब वाइट फंगस, ब्लैक फंगस की तरह महामारी का रूप ले एक देश के रूप में भारत के बास बचाने को कुछ न हो. बाकी वाइट फंगस को हल्का बताकर डॉक्टर तसल्ली भले ही कर लें लेकिन डर बना हुआ है और जब जिक्र डर का हुआ है तो ये बताना बहुत जरूरी हो जाता है कि इस दूसरी लहर में जितनी भी मौतें हुईं उनमें से ज्यादातर के मरने की एक बड़ी वजह डर था.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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