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फेयर करने वाली क्रीमों का बाजार लवली तरीके से ढह रहा है

    • रिम्मी कुमारी
    • Updated: 14 अप्रिल, 2017 01:02 PM
  • 14 अप्रिल, 2017 01:02 PM
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हमारा देश 'गोरापन सिंड्रोम' से ग्रसित है. एक विदेशी मॉडल भारत आती है और रातों-रात स्टार बन जाती है. लेकिन अब देश में गोरापन बेचने वाली कंपनियों का तिलिस्म टूट रहा है और क्रीम की बिक्री में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है.

पुराणों में भी उल्‍लेख है. भगवान श्रीकृष्ण मां यशोदा से पूछते हैं- 'राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला?' हम उस देश में रहते हैं जहां पुरातन काल से ही गोरेपन को एक 'गुण' के रूप में माना जाता है. बाहर वालों को तो छोड़ ही दें अगर घर में ही दो बच्चों में से एक गोरा और एक काला रंग का होता है तो दोनों में भेदभाव शुरू हो जाता है.

हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता अभय देओल ने अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए ऐसे हीरो-हिरोईनों की खिंचाई की है जिन्होंने गोरापन बढ़ाने वाली क्रीम का प्रचार किया है. अपने मैसेज में अभय देओल साफ कहते हैं कि- भारत एक रेसिस्ट देश नहीं है. इसकी गवाही तो खुद लड़कियों और लड़कों में गोरापन बढ़ाने वाली क्रीम का प्रचार देते हैं. हमारे देश के नामी-गिरामी अभिनेता भी इस बाजार से बच नहीं पाए हैं.

गोरा होना सोना है

अब मसला ये है कि आखिर क्यों? क्यों हम गोरेपन को इतना भाव देते हैं कि लोग गोरा होने के दीवाने हैं. हमारे बॉलीवुड के अभिनेता-अभिनेत्रियों ने भी इस गोरेपन का भाव को बढ़ाने में काफी अहम् भूमिका निभाई है. चाहे वो फिल्मों के जरिए हो या फिर गोरापन बढ़ाने वाली क्रीम का प्रचार करके. हमारा देश गोरापन सिंड्रोम से ग्रसित है. विदेश की एक मॉडल भारत आती है और रातों-रात स्टार बन जाती है. बाजार में किसी यूरोप की महिला को देखकर जहां पुरुषों की आंखें चमक जाती हैं वहीं अफ्रीकी मूल की लड़कियों को ऐसे हैरत से देखते हैं जैसे किसी दूसरे ग्रह के प्राणी को देख लिया हो.

क्रीम का बाजार ढह रहा है

खैर अगर मानें तो शायद बाजार का ये गोरेपन का चक्रव्यूह...

पुराणों में भी उल्‍लेख है. भगवान श्रीकृष्ण मां यशोदा से पूछते हैं- 'राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला?' हम उस देश में रहते हैं जहां पुरातन काल से ही गोरेपन को एक 'गुण' के रूप में माना जाता है. बाहर वालों को तो छोड़ ही दें अगर घर में ही दो बच्चों में से एक गोरा और एक काला रंग का होता है तो दोनों में भेदभाव शुरू हो जाता है.

हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता अभय देओल ने अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए ऐसे हीरो-हिरोईनों की खिंचाई की है जिन्होंने गोरापन बढ़ाने वाली क्रीम का प्रचार किया है. अपने मैसेज में अभय देओल साफ कहते हैं कि- भारत एक रेसिस्ट देश नहीं है. इसकी गवाही तो खुद लड़कियों और लड़कों में गोरापन बढ़ाने वाली क्रीम का प्रचार देते हैं. हमारे देश के नामी-गिरामी अभिनेता भी इस बाजार से बच नहीं पाए हैं.

गोरा होना सोना है

अब मसला ये है कि आखिर क्यों? क्यों हम गोरेपन को इतना भाव देते हैं कि लोग गोरा होने के दीवाने हैं. हमारे बॉलीवुड के अभिनेता-अभिनेत्रियों ने भी इस गोरेपन का भाव को बढ़ाने में काफी अहम् भूमिका निभाई है. चाहे वो फिल्मों के जरिए हो या फिर गोरापन बढ़ाने वाली क्रीम का प्रचार करके. हमारा देश गोरापन सिंड्रोम से ग्रसित है. विदेश की एक मॉडल भारत आती है और रातों-रात स्टार बन जाती है. बाजार में किसी यूरोप की महिला को देखकर जहां पुरुषों की आंखें चमक जाती हैं वहीं अफ्रीकी मूल की लड़कियों को ऐसे हैरत से देखते हैं जैसे किसी दूसरे ग्रह के प्राणी को देख लिया हो.

क्रीम का बाजार ढह रहा है

खैर अगर मानें तो शायद बाजार का ये गोरेपन का चक्रव्यूह शायद हमारे यहां टूट रहा है. पुरुषों में गोरापन बढ़ाने की क्रीम बनाने वाली प्रमुख कंपनी इमामी का बाजार में 60 प्रतिशत शेयर है. इन कंपनियों ने माना कि अब इनका बाजार ढह रहा है. 2008-09 में जहां पुरुषों के फेयरनेस क्रीम का बाजार 375 से 450 करोड़ का था तो वहीं 2016 में ये बाजार घटकर 380 करोड़ से 390 करोड़ के बीच रह गया था. असल में 2013-14 से ही देश में गोरेपन के इस बाजार का तिलस्म टूट रहा है.

इन क्रीम का प्रचार कितना सही

महिलाओं में गोरापन बढ़ाने वाली फेयरनेस क्रीम का बाजार भी घाटे की तरफ बढ़ रहा है. जहां एक दशक पहले इनका बाजार 2000 करोड़ का था वही अब घटकर 1500 करोड़ का हो गया है. आश्चर्य की बात ये है कि गोरेपन के इस खेल का सबसे बड़ा बाजार उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र है. इन दो राज्यों में 2008-09 में 200 से 250 करोड़ की बिक्री दर्ज की गई थी. वहीं आंध्रप्रदेश (तिलंगाना सहित) और कर्नाटक में 125 से 150 करोड़ के बीच की बिक्री दर्ज की गई थी.

काला होना क्राइम नहीं

विडम्बना यही है कि हमारे यहां एक घर में ही सिर्फ चमड़े के रंग के आधार पर भी भेद शुरु हो जाता है. कोई लड़की अगर गोरी नहीं है तो उसकी शादी के लिए लड़के मिलने मुश्किल हो जाते हैं और अगर लड़का है तो 'कलुआ' जैसा नाम रख दिया जाता है. खैर बॉलीवुड की अभिनेत्री नंदिता दास, गोरेपन का भय और चमड़े के प्राकृतिक रंग के प्रति लोगों के मन में हीन भावना के खिलाफ एक 'डार्क इज ब्यूटीफूल' नाम का एक एड कैंपेन चला रही हैं. नंदिता दास इस मुद्दे पर मुखर हैं और महिलाओं को इन क्रीम कंपनियों के खिलाफ डटी हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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