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उस लड़की की कहानी जिसे शादी के बाद घर की चारदीवारी में घुटन होती है...

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 29 अक्टूबर, 2022 01:44 PM
  • 29 अक्टूबर, 2022 01:44 PM
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लड़की ने मायके वालों को अपनी पूरी कहानी बताई...वो कहते हैं बेटा तुम्हें ही संभालना होगा, हम क्या कर सकते हैं? तुम्हारी शादी हो गई है तुम्हें ससुराल वालों के हिसाब से रहना होगा. मेरा इस घर में दम घुटता है समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं?

एक लड़की की धूमधाम से शादी हुई. वह दुल्हन बनी और दहेज की गठरी के साथ सपनों को साथ लिए ससुराल पहुंची. उसने ख्यालों में जो अपनी दुनिया बसाई थी, उसे सच करने का समय आ गया था. मगर उसे क्या पता था कि जिंदगी के हकीकत की तपिश सबकुछ जलाकर राख कर देती है. उसके हृदय में कोमल सपने पूरा होने से पहले ही सूख चुके थे.

वह हर रोज मन ही मन कुढ़ती रहती. उसे लगा शायद यह कुछ दिनों की बात है फिर सबकुछ सही हो जाएगा. वह उस आस के सहारे जीने की कोशिश करने लगी. उसे समझ नहीं आ रहा कि पति की बेरुखी औऱ ससुराल के माहौल में वह खुद को कैसे ढाले? उसके ससुराल में ससुर औऱ घऱ में सासू मां की चलती है.

वह ठहरी शहर में रहने वाली चंचल औऱ चहकने वाली मगर ससुराल में हंसना तो दूर तेज बोलना भी मना है. वह आजाद ख्यालों वाली लड़की जो जींस, टॉप, सूट, कुर्ती में रहती थी मगर गांव के ससुराल में उसे साड़ी के घूंघट में बांध दिया गया. उसे वहां सूट-सलवार पहनना भी मना है. उसे घूमना फिरना पसंद है मगर शादी के बाद अगर वह घर से बाहर कदम रखती तो सिर्फ मायके जाने के लिए.

उसका तो मायका जाना भी कम ही होता है. वह एक बच्चे की मां बन गई मगर उसे मालूम नहीं है कि पति का साथ क्या होता है? प्रेम करना तो दूर पति तो उसका दोस्त भी नहीं बन पाया. वह हर रोज कोशिश करती की पति उससे बातें करे, उसके साथ चीजें शेयर करें मगर पति को उसकी किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता. वह ना साथ बैठता है ना कई मतलब रखता है.

आप सोच रहे होंगे कि आजकल के जमाने में भला ऐसा कहां होता है? जबकि हकीकत यह है कि यह कहानी सच्ची है

उसका एक ही काम है सिर्फ घरवालों के लिए काम करना. उनके लिए खाना बनाना, घर देखना और बच्चा संभालना. वह पढ़ी-लिखी है अपनी जिंदगी में कुछ करना चाहती थी मगर उसके ससुराल में बहुओं का बाहर...

एक लड़की की धूमधाम से शादी हुई. वह दुल्हन बनी और दहेज की गठरी के साथ सपनों को साथ लिए ससुराल पहुंची. उसने ख्यालों में जो अपनी दुनिया बसाई थी, उसे सच करने का समय आ गया था. मगर उसे क्या पता था कि जिंदगी के हकीकत की तपिश सबकुछ जलाकर राख कर देती है. उसके हृदय में कोमल सपने पूरा होने से पहले ही सूख चुके थे.

वह हर रोज मन ही मन कुढ़ती रहती. उसे लगा शायद यह कुछ दिनों की बात है फिर सबकुछ सही हो जाएगा. वह उस आस के सहारे जीने की कोशिश करने लगी. उसे समझ नहीं आ रहा कि पति की बेरुखी औऱ ससुराल के माहौल में वह खुद को कैसे ढाले? उसके ससुराल में ससुर औऱ घऱ में सासू मां की चलती है.

वह ठहरी शहर में रहने वाली चंचल औऱ चहकने वाली मगर ससुराल में हंसना तो दूर तेज बोलना भी मना है. वह आजाद ख्यालों वाली लड़की जो जींस, टॉप, सूट, कुर्ती में रहती थी मगर गांव के ससुराल में उसे साड़ी के घूंघट में बांध दिया गया. उसे वहां सूट-सलवार पहनना भी मना है. उसे घूमना फिरना पसंद है मगर शादी के बाद अगर वह घर से बाहर कदम रखती तो सिर्फ मायके जाने के लिए.

उसका तो मायका जाना भी कम ही होता है. वह एक बच्चे की मां बन गई मगर उसे मालूम नहीं है कि पति का साथ क्या होता है? प्रेम करना तो दूर पति तो उसका दोस्त भी नहीं बन पाया. वह हर रोज कोशिश करती की पति उससे बातें करे, उसके साथ चीजें शेयर करें मगर पति को उसकी किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता. वह ना साथ बैठता है ना कई मतलब रखता है.

आप सोच रहे होंगे कि आजकल के जमाने में भला ऐसा कहां होता है? जबकि हकीकत यह है कि यह कहानी सच्ची है

उसका एक ही काम है सिर्फ घरवालों के लिए काम करना. उनके लिए खाना बनाना, घर देखना और बच्चा संभालना. वह पढ़ी-लिखी है अपनी जिंदगी में कुछ करना चाहती थी मगर उसके ससुराल में बहुओं का बाहर काम करना मना है. जहां ससुर औऱ जेठ खड़े हों वहां उसका जाना मना है फिर नौकरी करना तो दूर की बात है. वह हर रोज भोर में जग जाती है और सबके सोने के बाद रात 12 बजे बेड पर जाती है औऱ सबके खाने के बाद खाती है.

वह कहती है कि मुझे इतना समय नहीं मिलता कि मैं अपने शौक पूरे कर सूकं. मेरी ज्वाइंट फैमिली है मगर बच्चे को कोई नहीं देखता. मेरे ऊपर घर की बहू औऱ मां होने की जिम्मेदारी है. उसे आज की सोच रखने वाली लड़की से बात करना भी मना है. उसकी सहेलियां तो शादी के बाद ही छूट गईं. उसे ऐसा लगता है कि वह घर के कोने में पड़ा हुआ कोई सामान है जिससे किसी को कोई मतलब नहीं है. उसकी हालत घर की नौकरानी जैसी है. अब उसकी ना कोई चाहत है ना सपनें...

वह कहती है पति को मुझसे और मेरे बच्चे से कोई मतलब नहीं रखते हैं. कई बार तो हमारी तीन-तीन, चार-चार दिन बात नहीं हो पाती. पति कहीं बाहर जाएं तो मुझे एक फोन तक नहीं करते. मुझे नहीं पता कि पति का प्यार कैसा होता है? वे मुझे कहीं बाहर लेकर नहीं जाते, घुमाना-फिराना तो दूर की बात है. वो कहते हैं कि उनको ये सब पसंद नहीं है. वे अपने परिवार में ही व्यस्त रहते हैं.

ऐसा लगता है मेरे प्रति उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है. मैं बात करके देख चुकी हूं मगर शादी के 4 सालों बाद भी उनके व्यवहार में कोई सुधार नहीं आया है. 

मैंने मायके वालों को अपनी पूरी कहानी बताई वो कहते हैं बेटा तुम्हें ही संभालना होगा, हम क्या कर सकते हैं? तुम्हारी शादी हो गई है तुम्हें ससुराल वालों के हिसाब से रहना होगा. मैं क्या करूं मुझे समझ नहीं आता? मेरा साथ देने वाला कोई नहीं है. ना मायके वाले ना ससुराल वाले. सब अपनी-अपनी दुनिया में व्यस्त हैं.

मेरा मन करता है कि मैं कहीं चली जाऊं मगर मेरा बच्चे का क्या होगा औऱ मैं जाउंगी कहां? मुझे सपोर्ट करने वाला कोई नहीं है...मैं अपने बारे में किसी को बता भी नहीं सकती, अगर इन्हें पता चला तो बहुत बुरा होगा. मेरा इस घर में दम घुटता है. ऐसा लगता है कि मैं जी नहीं रही हूं बस टाइम बीत रहा है. मैं जब दूसरे कपल की हंसती-खेलती तस्वीरें देखती हूं तो सोचती हूं मेरा ऐसा समय कब आएगा...बस इसी इंतजार में हूं कि कब सह ठीक होगा??? या फिर ऐसे ही जिंदगी बीत जाएगी. मेरी लाइफ में शायद खुशियां नहीं लिखी. किसी जन्म की पाप भोग रही हूं...

आप सोच रहे होंगे कि आजकल के जमाने में भला ऐसा कहां होता है? जबकि हकीकत यह है कि यह कहानी सही है. ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं जो गांवों, कस्बों और शहरों में अपने ससुराल में घुटकर जीने को मजबूर हैं. उन्हें नहीं पता कि वे कहां जाएंगी क्योंकि उनके पास नौकरी नहीं है. वे घर छोड़ने की कल्पना नहीं कर सकतीं क्योंकि शादी के बाद मायके वाले भी उसे पराया कर दिया है. उनके लिए तलाक के बारे में सोचना भी पाप है क्योंकि वे अपने लिए आवाज ही नहीं उठाना चाहतीं...

वे तो बस अपनी शादी को बचाने में अपनी पूरी ताकत लगा देती हैं. उसके लिए शादी की उन निशानियों को उतारना आसान नहीं है जो वे अपने माथे लेकर पैरों की उंगलियों तक सजाए बैठी हैं. वह छोड़ी हुई औरत कहलाने से डरती हैं. अब आप ही बताइए ऐसी महिलाओं को क्या करना चाहिए?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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