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कहानी नॉर्वे के पाकिस्तानियों की...

    • प्रवीण झा
    • Updated: 03 अक्टूबर, 2016 02:07 PM
  • 03 अक्टूबर, 2016 02:07 PM
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नॉर्वे में लगभग नौ हजार भारतीय हैं, और नब्बे हजार पाकिस्तानी. लेकिन असल कहानी और असली फर्क कुछ और है. नॉर्व में पाकिस्तान के लोगों को किस नजर से देखा जाता है...इस बारे में समझना वाकई दिलचस्प है.

नॉर्वे में लगभग नौ हजार भारतीय हैं, और नब्बे हजार पाकिस्तानी. पाकिस्तानी 70 की दशक में 'सीजनल वर्कर' की तरह आये, और धीरे-धीरे सरकार ने इनको नागरिकता दे दी. इनका कुनबा बढ़ता गया. इनकी पहली खेप मजदूरों की थी, जिनमें कुछ नशा गैंगस्टर भी बने. नॉर्वे की फिल्मों में इनका मजाक कुछ ऐसे ही उड़ता है जैसे कभी हिंदी फिल्मों में बिहारियों का.

लेकिन इनके बच्चे डॉक्टर, वकील, नेता सब बने. आज नॉर्वे के मेडिकल कॉलेजों के 10 फीसदी विद्यार्थी पाकिस्तानी हैं. मिस पाकिस्तान यहीं की मोहतरमा हैं. मो. आसिफ जो कभी नामी फास्ट बॉलर थे, ओस्लो क्लब में खेलते हैं. पर यहां पाकियों से आप पूछो, कहां से हो? कुछ कहेंगें नॉर्वे, कुछ अफगानिस्तान, कुछ भारत भी ठोक देंगे. सबको 'आइडेंटीटी क्राइसिस' है जैसे कुछ बिहारी खुद को दिल्ली वाला, कलकत्ता वाला कहते थे. पाकिस्तानी यहां गंवार माने जाते हैं, घेट्टो संस्कृति वाले.

यह भी पढ़ें- आंटी पाकिस्तान के नाम आंटी इंडिया का खुला पत्र

 हाल नॉर्वे के पाकिस्तान का...

जब यहां तेल के खजाने मिले तो इन्होनें भारत से बहुत इंजीनियर बुलाए. मुंबई में बड़ी कंपनी स्थापित कीय आईटी के लोग आये. रिसर्च वैज्ञानिक आये. डॉक्टरों में मैं गिने-चुने दस भारतीयों में हूं. जो ढंग की अंग्रेजी बोले, दिमागी लगे पर हो भूरे रंग का वो भारतीय. 'नॉर्वे आइडल' संगीत शो के जज भी भारतीय हैं. दरअसल बड़े टैक्स भरने वाले कर्मचारी भारतीय हैं, इसलिये इज्जत है. पाकिस्तानी यहां के सिस्टम को लपेटना सीख गए हैं, और सरकार को खूब चूसते हैं, टैक्स में फूटी कौड़ी नहीं देते.

नॉर्वे में लगभग नौ हजार भारतीय हैं, और नब्बे हजार पाकिस्तानी. पाकिस्तानी 70 की दशक में 'सीजनल वर्कर' की तरह आये, और धीरे-धीरे सरकार ने इनको नागरिकता दे दी. इनका कुनबा बढ़ता गया. इनकी पहली खेप मजदूरों की थी, जिनमें कुछ नशा गैंगस्टर भी बने. नॉर्वे की फिल्मों में इनका मजाक कुछ ऐसे ही उड़ता है जैसे कभी हिंदी फिल्मों में बिहारियों का.

लेकिन इनके बच्चे डॉक्टर, वकील, नेता सब बने. आज नॉर्वे के मेडिकल कॉलेजों के 10 फीसदी विद्यार्थी पाकिस्तानी हैं. मिस पाकिस्तान यहीं की मोहतरमा हैं. मो. आसिफ जो कभी नामी फास्ट बॉलर थे, ओस्लो क्लब में खेलते हैं. पर यहां पाकियों से आप पूछो, कहां से हो? कुछ कहेंगें नॉर्वे, कुछ अफगानिस्तान, कुछ भारत भी ठोक देंगे. सबको 'आइडेंटीटी क्राइसिस' है जैसे कुछ बिहारी खुद को दिल्ली वाला, कलकत्ता वाला कहते थे. पाकिस्तानी यहां गंवार माने जाते हैं, घेट्टो संस्कृति वाले.

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 हाल नॉर्वे के पाकिस्तान का...

जब यहां तेल के खजाने मिले तो इन्होनें भारत से बहुत इंजीनियर बुलाए. मुंबई में बड़ी कंपनी स्थापित कीय आईटी के लोग आये. रिसर्च वैज्ञानिक आये. डॉक्टरों में मैं गिने-चुने दस भारतीयों में हूं. जो ढंग की अंग्रेजी बोले, दिमागी लगे पर हो भूरे रंग का वो भारतीय. 'नॉर्वे आइडल' संगीत शो के जज भी भारतीय हैं. दरअसल बड़े टैक्स भरने वाले कर्मचारी भारतीय हैं, इसलिये इज्जत है. पाकिस्तानी यहां के सिस्टम को लपेटना सीख गए हैं, और सरकार को खूब चूसते हैं, टैक्स में फूटी कौड़ी नहीं देते.

ये भी खूब मजे लेते हैं. पाकी-पाकी कहकर चिढ़ाते हैं. मलाला को नोबेल पुरस्कार देकर उनकी कट्टरपंथी का मजाक उड़ाते हैं. सच पूछिए तो कभी-कभी इन लोगों पर तरस आता है कि इनके बाप-दादा मजदूर बनकर आये या गंवार थे, इसमें इनकी क्या गलती? पर फिर सोचता हूँ, सा*** पाकी!

(ये लेख सबसे पहले प्रवीण झा के फेसबुक वॉल पर प्रकाशित हुआ)

यह भी पढ़ें- उम्मीद बेकार है कि पाकिस्तान कभी सुधरेगा

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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