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समाज

एक बार मान लिया कि अगस्‍त में बच्‍चे मरते हैं, लेकिन इतने ???

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 28 अगस्त, 2017 10:40 PM
  • 28 अगस्त, 2017 10:40 PM
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झारखंड के जमशेदपुर के सरकारी अस्पताल, महात्मा गांधी मेडिकल (एमजीएम) में कुपोषण से 52 बच्चों के मरने की खबर है. एक रिपोर्ट के अनुसार रांची के अस्पतालों में 117 दिनों में करीब 164 बच्चों की मौत हो चुकी है.

अभी जहां गोरखपुर के अस्पताल में 72 बच्चों की मौत का मामला शांत भी नहीं हुआ, कि झारखंड के जमशेदपुर के सरकारी अस्पताल, महात्मा गांधी मेडिकल (एमजीएम) में कुपोषण से 52 बच्चों के मरने की खबर आ रही है. हालांकि गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी का मामला उभर कर आया था, वहीं जमशेदपुर के अस्पताल में लापरवाही और अस्पताल में भर्ती बच्चों के लिए सही देखभाल की व्यवस्था नहीं होने की बात सामने आ रही है. इस अस्पताल में 30 दिनों में 52 नवजात बच्चों की मौत हो चुकी है. एक रिपोर्ट के अनुसार रांची के अस्पतालों में 117 दिनों में करीब 164 बच्चों की मौत हो चुकी है. अस्पताल सूत्रों के अनुसार इसका प्रमुख कारण कुपोषण बताया जा रहा है.

रांची के अस्पतालों में 117 दिनों में करीब 164 बच्चों की कुपोषण से मौत

लेकिन अब सवाल ये कि आखिर भारत को आजाद हुए 70 साल हो गए फिर भी कुपोषण से इतने बच्चे क्यों मर रहे हैं?

पिछले साल सितंबर में जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में पांच वर्ष तक के 47.8 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं. राज्य पोषण मिशन ने राज्य के पांच जिलों में विशेष अध्ययन किया था. इसमें यह खुलासा हुआ था कि अध्ययन वाले जिलों के 57.2 फीसदी बच्चे नाटे, 44.2 फीसदी कम वजन वाले तथा 16.2 फीसदी थके-हारे व कमजोर हैं. कोडरमा व दुमका जिले में एक से पांच वर्ष के 61-61 फीसदी बच्चे नाटे पाये गये. वहीं चतरा के 59.6 फीसदी बच्चे कम वजन के तथा गिरिडीह के 22.4 फीसदी बच्चे कमजोर मिले. किशोरी बालिकाओं व महिलाओं की स्थिति भी बदतर थी.

झारखंड दूसरे राज्यों से पीछे

इसी साल मार्च में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-4 के अनुसार झारखंड में सबसे ज्यादा बच्चे कुपोषण की जिंदगी जी रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक देश में...

अभी जहां गोरखपुर के अस्पताल में 72 बच्चों की मौत का मामला शांत भी नहीं हुआ, कि झारखंड के जमशेदपुर के सरकारी अस्पताल, महात्मा गांधी मेडिकल (एमजीएम) में कुपोषण से 52 बच्चों के मरने की खबर आ रही है. हालांकि गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी का मामला उभर कर आया था, वहीं जमशेदपुर के अस्पताल में लापरवाही और अस्पताल में भर्ती बच्चों के लिए सही देखभाल की व्यवस्था नहीं होने की बात सामने आ रही है. इस अस्पताल में 30 दिनों में 52 नवजात बच्चों की मौत हो चुकी है. एक रिपोर्ट के अनुसार रांची के अस्पतालों में 117 दिनों में करीब 164 बच्चों की मौत हो चुकी है. अस्पताल सूत्रों के अनुसार इसका प्रमुख कारण कुपोषण बताया जा रहा है.

रांची के अस्पतालों में 117 दिनों में करीब 164 बच्चों की कुपोषण से मौत

लेकिन अब सवाल ये कि आखिर भारत को आजाद हुए 70 साल हो गए फिर भी कुपोषण से इतने बच्चे क्यों मर रहे हैं?

पिछले साल सितंबर में जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में पांच वर्ष तक के 47.8 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं. राज्य पोषण मिशन ने राज्य के पांच जिलों में विशेष अध्ययन किया था. इसमें यह खुलासा हुआ था कि अध्ययन वाले जिलों के 57.2 फीसदी बच्चे नाटे, 44.2 फीसदी कम वजन वाले तथा 16.2 फीसदी थके-हारे व कमजोर हैं. कोडरमा व दुमका जिले में एक से पांच वर्ष के 61-61 फीसदी बच्चे नाटे पाये गये. वहीं चतरा के 59.6 फीसदी बच्चे कम वजन के तथा गिरिडीह के 22.4 फीसदी बच्चे कमजोर मिले. किशोरी बालिकाओं व महिलाओं की स्थिति भी बदतर थी.

झारखंड दूसरे राज्यों से पीछे

इसी साल मार्च में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-4 के अनुसार झारखंड में सबसे ज्यादा बच्चे कुपोषण की जिंदगी जी रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक देश में कम वजन के कारण कुपोषित बच्चों की संख्या 35.7% है. जबकि झारखंड में 47.8 प्रतिशत बच्चे कम वजन के कारण कुपोषित हैं. बिहार(43.5%) और छत्तीसगढ़(37.5%) के आंकड़े भी इस मामले में झारखंड से बेहतर हैं.

रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में हर वर्ष करीब आठ लाख बच्चे जन्म लेते हैं जिसमें 29 हजार तो अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाते. ये वैसे बच्चे हैं, जो कम वजन वाले व बेहद कमजोर होते हैं. दरअसल राज्य में जन्म लेने वाले करीब आधे (चार लाख) बच्चे  कुपोषण के शिकार होते हैं. यही वजह है कि पांच साल तक में जिन बच्चों की मौत होती है, उनमें से 45 फीसदी मौत का कारण कुपोषण होता है.

खून की कमी भी झारखंड में सबसे ज्यादा

खून की कमी के मामले में भी झारखंड देश के पांच राज्यों में शामिल है. यहां के 69.9 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी है. बिहार में 63.5 प्रतिशत बच्चों को खून की कमी है.

जांच के लिए तीन सदस्यीय टीम गठित

जांच के लिए तीन सदस्यीय टीम गठित की है जिसमें डायरेक्टर मेडिकल एंड एजुकेशन डॉ एएन मिश्रा, रीजनल डिप्टी डायरेक्टर डॉ हिमांशु भूषण और सिविल सर्जन डॉ केसी मुंडा शामिल हैं.

हालांकि कुपोषण से लड़ने के लिए मुख्यमंत्री रघुवर दास ने साल 2015 में न्युट्रिशन मिशन झारखंड (एनएमजे) योजना की घोषणा की थी जिसके तहत राज्य के सभी आंगनवाड़ी केन्द्रों में बच्चों के लिए मिड डे मील के साथ अंडे देने की घोषणा की थी लेकिन बेहतर मशीनरी नहीं होने के कारण ये योजनाएं केवल फाइलों में सिमट कर रह गई हैं.

राज्य में कुपोषण की समस्या के निदान के लिए समाज कल्याण, महिला एवं बाल विकास विभाग के तहत योजनाएं चलती हैं. स्वास्थ्य परीक्षण के माध्यम से इनकी मॉनिटरिंग की व्यवस्था भी है. फिर भी यह कड़वा सच है कि कुपोषण की समस्या आज भयावह रूप में है. बच्चों के स्तर पर यह अधिक है. जन्म से ही बहुतेरे बच्चों में कुपोषण की समस्या रहती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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