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लोगों ने जो किया, उससे पैर दर्द करने लगा है सरदार पटेल का...

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 18 नवम्बर, 2018 04:16 PM
  • 18 नवम्बर, 2018 04:16 PM
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जो लोग भी पटेल की मूर्ति देखने आए उनमें न तो पटेल को लेकर कोई श्रद्धा थी और न ही कद्र. यदि लोगों में पटेल के प्रति श्रद्धा भाव होता तो वो मूर्ति की दुर्गति बिल्कुल भी न करते.

मैं पटेल हूं.

हां वही सरदार पटेल जिसकी मूर्ति इस वक़्त दुनिया में नंबर वन है. मेरी इस उपलब्धि पर खुश तो बहुत होगे. होना भी चाहिए. बात ही कुछ ऐसी है. मजाक थोड़े ही न है एक दिन में 27000 टूरिस्टों का घूमने आना और 2.1 करोड़ का मुनाफ देना. कोई भी जब मेरी मूर्ति बाहर से देखेगा तो खुश होगा मगर मैं खुश नहीं हूं. वजह तुम लोग हो. हां मेरे प्यारे पर्यटकों मैं तुमसे नाराज बहुत हूं और तुमसे भी ज्यादा नाराज़ हूं सरकार और उसके लिजलिजे रवैये से. कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी सरकार रिकॉर्ड बनाना तो जानती है, मगर उसे कैसे सहेजना है ये शायद उसे नहीं पता. ये सरकार का रवैया ही था जिसके कारण जिस जगह चंद लोगों को आना था वहां भीड़ उमड़ पड़ी. 

तस्वीर साफ बता रही है कि कैसे लोगों ने सरदार पटेल की मूर्ति की दुर्गति की है

मैं भूमिका बांधकर तुम्हारा समय बर्बाद नहीं करना चाहता. अच्छी बात है लोग घूमने आ रहे हैं. मगर ये कौन सी बात हुई कि अपनी फोटो के लिए किसी के जिस्म के साथ छेड़ छाड़ कर दो, उसे नुकसान पहुंचा दो. माना कि सोशल मीडिया के इस युग में जब तक सेल्फी न हो समाज और सोशल मीडिया वाले दोस्त उसे घूमना नहीं कहते. लेकिन अपने घूमने के लिए जो तुमने मेरी दुर्गति की है उसके बारे में मैं क्या ही कहूं.

घूमने के नाम पर मेरे साथ कितना जुल्म हो रहा इसके लिए मैं जामनगर से मूर्ति देखने आए चार भाइयों को बतौर उदाहरण पेश करूंगा. ये चार भाई मेरे लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थे. चारों भाइयों ने अपनी-अपनी जेब से फोन निकाला और सेल्फी लेने के लिए मेरे ऊपर चढ़ गए. ये मेरे ऊपर ऐसा चढ़े जैसे सैनिक किसी किले को फतेह करने के लिए निकला हो. उन चारों में से एक, पाउट बनाकर सेल्फी लेने के लिए इस हद तक बौराया था कि, उसे पता ही नहीं चला कि वो मेरे पैर के नाख़ून नोच रहा है. उसने...

मैं पटेल हूं.

हां वही सरदार पटेल जिसकी मूर्ति इस वक़्त दुनिया में नंबर वन है. मेरी इस उपलब्धि पर खुश तो बहुत होगे. होना भी चाहिए. बात ही कुछ ऐसी है. मजाक थोड़े ही न है एक दिन में 27000 टूरिस्टों का घूमने आना और 2.1 करोड़ का मुनाफ देना. कोई भी जब मेरी मूर्ति बाहर से देखेगा तो खुश होगा मगर मैं खुश नहीं हूं. वजह तुम लोग हो. हां मेरे प्यारे पर्यटकों मैं तुमसे नाराज बहुत हूं और तुमसे भी ज्यादा नाराज़ हूं सरकार और उसके लिजलिजे रवैये से. कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी सरकार रिकॉर्ड बनाना तो जानती है, मगर उसे कैसे सहेजना है ये शायद उसे नहीं पता. ये सरकार का रवैया ही था जिसके कारण जिस जगह चंद लोगों को आना था वहां भीड़ उमड़ पड़ी. 

तस्वीर साफ बता रही है कि कैसे लोगों ने सरदार पटेल की मूर्ति की दुर्गति की है

मैं भूमिका बांधकर तुम्हारा समय बर्बाद नहीं करना चाहता. अच्छी बात है लोग घूमने आ रहे हैं. मगर ये कौन सी बात हुई कि अपनी फोटो के लिए किसी के जिस्म के साथ छेड़ छाड़ कर दो, उसे नुकसान पहुंचा दो. माना कि सोशल मीडिया के इस युग में जब तक सेल्फी न हो समाज और सोशल मीडिया वाले दोस्त उसे घूमना नहीं कहते. लेकिन अपने घूमने के लिए जो तुमने मेरी दुर्गति की है उसके बारे में मैं क्या ही कहूं.

घूमने के नाम पर मेरे साथ कितना जुल्म हो रहा इसके लिए मैं जामनगर से मूर्ति देखने आए चार भाइयों को बतौर उदाहरण पेश करूंगा. ये चार भाई मेरे लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थे. चारों भाइयों ने अपनी-अपनी जेब से फोन निकाला और सेल्फी लेने के लिए मेरे ऊपर चढ़ गए. ये मेरे ऊपर ऐसा चढ़े जैसे सैनिक किसी किले को फतेह करने के लिए निकला हो. उन चारों में से एक, पाउट बनाकर सेल्फी लेने के लिए इस हद तक बौराया था कि, उसे पता ही नहीं चला कि वो मेरे पैर के नाख़ून नोच रहा है. उसने एक हाथ में मोबाइल लिया था तो उसका दूसरा हाथ मेरे पैर के नाखूनों पर था. उसने मेरे नाखूनों को अपने हाथ के पंजे से जकड़ रखा था.

इसे पढ़कर शायद आप लोगों को मेरे दर्द का अंदाजा न हो. एक काम करिए, इसे जरा अपने पर रख कर देखिये. उस क्षण की कल्पना करिए जब आप खड़े हों और कोई जबरन आपके पैर के नाख़ून में अंगुली डाले. यकीन मानिए नौबत हाथापाई की आ जाएगी और आप शायद सामने वाले को चार छह थप्पड़ जड़ दें. मन तो मेरा भी किया कि मैं उसकी खबर लूं और उसे छठी का दूध याद दिला दूं. मैं ऐसा करता, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर पाया. मैं मजबूर था. मैंने बस उसे वहीं ऊपर से एकटक देखा.

अभी मैं पैर के नाख़ून में घुसी अंगुली के दर्द से अपने को संभाल भी नहीं पाया था कि मेरे दूसरे पैर में कम्पन हुआ. उधर जो नजर की तो देखा कि एक 20-22 साल का लगभग 80 किलो का एक लड़का अपनी फेसबुक डीपी बदलने के लिए मेरे पंजे पर उछल- उछल कर फोटो क्लिक करा रहा है. उस समय जो मुझे दर्द हुआ, उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता. इस बिंदु पर खुद विचार करिए. सिर्फ सोचने मात्र से आपकी जान निकल जाएगी. अगर ऐसा कुछ आपके साथ हो जाए तो निश्चित तौर पर पैर की हड्डी या तो डिसलोकेट हो जाएगी या फिर टूट जाएगी.

पटेल की मूर्ति पर बेतरतीबी से चढ़े लोगों का समूह

चलिए, ये उछल कूद तो फिर भी संभाली जा सकती थी पर उनका क्या जो इससे भी ज्यादा कष्ट देने के लिए तैयार थे. अभी मैं पंजे के दर्द और नाख़ून की टीस को ढंग से महसूस भी नहीं कर पाया था कि मुझे अपनी एड़ी में कुछ गुदगुदी जैसी महसूस हुई. मेरा कद बहुत ऊंचा है. इस कारण मुझे झुकने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता, तो मैंने कनखियों से उस तरफ का रुख किया. मुझे हाथों में पत्थर उठाए हुए एक नौजवान दिखा. वो नौजवाब मेरी एड़ी के थोड़ा ऊपर कुछ लिख रहा था. उसके ऐसा करने से जहां एक तरफ मुझे गुदगुदी हुई तो वहीं तेजक दर्द भी हुआ. हां ठीक वैसा ही दर्द जैसा ब्लेड के लगने या सुई के चुभने पर होता है.

नौजवान अपना काम कर चुका था. जब मैंने उस स्थान पर गौर किया तो पता चला कि अपने प्यार को अमर बनाने के लिए भाई साहब ने 'गुड्डू लव्स दीपा' लिखा हुआ है. जैसे-जैसे भीड़ बढ़ रही थी, मेरा दर्द भी बढ़ता जा रहा था. कोई यहां बैठ रहा था. कोई वहां बैठ रहा था. कोई यहां कुछ लिख रहा था. कोई वहां कुछ लिख रहा था. कहीं हाथ पंजे को दबाए थे तो कहीं एड़ी पर लदे लोग फोटो खिंचा रहे थे.

बहुत ईमानदारी से कहूं तो मुझे इन लोगों से ज्यादा शिकायत सरकार और पीएम मोदी से है. जब इतना पैसा खर्च कर के सरकार ने मूर्ति का निर्माण कराया था तो उसके लिए ये जरूरी था कि वो मेरी सिक्योरिटी का भी पूरा ख्याल रखते. इस जालिम दुनिया से हिफाजत के लिए मुझे आधा दर्जन गार्ड्स दिए जा सकते थे. विश्वास करिए मेरा. अगर ये गार्ड्स होते तो न तो मेरा पैर जख्मी होता और न ही उसमें दर्द होता. सब कुछ सही रहता और शायद फिर सिचुएशन भी कंट्रोल में रहती.

खैर, घूमने के नाम पर मेरी मूर्ति पर तरह-तरह के जुल्म-ओ-सितम करके लोग अपने घर जा चुके हैं. मैं अपने घायल पैरों के दम पर वहीं खड़ा हूं. अपनी जवानी में कभी मैंने ग़ालिब का एक शेर पढ़ा था. आज जो मेरे साथ हुआ उसपर वो शेर याद आ गया. शेर कुछ यूं है कि

बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना,

आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना.

गिरियां चाहे है ख़राबी मेरे काशाने की,

दर-ओ-दीवार से टपके है बयाबां होना..

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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