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यूथ के Instagram Reels बनाने के शौक पर कहीं मौत तो नहीं मंडरा रही?

    • रमेश ठाकुर
    • Updated: 23 फरवरी, 2022 04:17 PM
  • 23 फरवरी, 2022 04:17 PM
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सोशल मीडिया पर सेंसेशन हर किसी को बनना है इसलिए युवा घंटों रील बनाने में मस्त रहते हैं, पढ़ाई-लिखाई, कामधंधे सब त्यागे हुए हैं. वैसे, रील और सेल्फी ये दोनों विधाएं मौजी हैं जिनका वास्तविक हकीकत से कोई लेना देना नहीं? लेकिन दोनों पर जानलेवा खतरे जबरदस्त मडंराए रहते हैं.

बिन बुलाई मौत के किस्से अब रोजाना सुनने और पढ़ने को मिलते हैं. सेल्फी लेने के शौक ने तो तांड़व मचाया ही हुआ था, अब रील बनाने में युवा मदहोश हैं. घंटों रील बनाने में मस्त रहते हैं, पढ़ाई-लिखाई, कामधंधे सब त्यागे हुए हैं. वैसे, रील और सेल्फी ये दोनों विधाएं मौजी हैं जिनका वास्तविक हकीकत से कोई लेना देना नहीं? लेकिन दोनों पर जानलेवा खतरे जबरदस्त मडंराए रहते हैं. जानलेवा खतरा अभी तक हम सेल्फी को लेकर ही समझा करते थे, लेकिन उससे कहीं बढ़कर हादसे कें अंदेशे रील बनाने पर मडंराते दिखते हैं. रील बनाने के संबंध में कुछ तत्कालिक दर्दनाक हादसे ऐसे हुए हैं जिन्हें मात्र सुनकर ही रोंगटे खड़े होते हैं. बीती पंद्रह फरवरी को हरियाणा के गुरूग्राम रेलवे ट्रैक पर रील बनाते चार मित्रों को ट्रेन रौंदते हुए निकल गई. चारो रील बनाने में इतने मशगूल थे कि पीछे से तेज हॉर्न बजाती आ रही एक्सप्रेस भी सुनाई नहीं दी, और देखते ही देखते चारो किशोरों के शव क्षत-विक्षत होकर ट्रैक के चारों ओर बिखर गए. घटना का दर्दनाक मंजर देखकर लोग एकाएक सहम से गए.

इंस्टाग्राम रील्स को डॉक्टर और मनोचिकित्सक एक मनोवैज्ञानिक विकार के रूप में ही देख रहे हैं

वहीं, ऐसी ही एक दूसरी घटना पिछले ही दिनों इंदौर में घटी. वहां भी सोशल मीडिया पर रील बनाने के शौक ने एक बच्चे की जान ले ली. बालक अपने घर में दोस्तों के कहने पर फांसी लगाने का डेमो दे रहा था. उसके दोस्त डेमो का रील बना रहे थे. वह कुर्सी पर चढ़ता है और फांसी का फंदा लगे में डाल लेता है, जैसे ही हाथ छोड़ता है तो कुर्सी अनबैलेंस हो जाती है जिससे वह फंदे पर झूल जाता है.

रील बना रहे उसके दोस्त जबतक कुछ समझ पाते, वह मर चुका होता है. तभी मृतक बच्चे के दोस्त भाग खड़े होते हैं. ये दोनों घटनाएं इसी माह की हैं. तीसरी एक और घटना का...

बिन बुलाई मौत के किस्से अब रोजाना सुनने और पढ़ने को मिलते हैं. सेल्फी लेने के शौक ने तो तांड़व मचाया ही हुआ था, अब रील बनाने में युवा मदहोश हैं. घंटों रील बनाने में मस्त रहते हैं, पढ़ाई-लिखाई, कामधंधे सब त्यागे हुए हैं. वैसे, रील और सेल्फी ये दोनों विधाएं मौजी हैं जिनका वास्तविक हकीकत से कोई लेना देना नहीं? लेकिन दोनों पर जानलेवा खतरे जबरदस्त मडंराए रहते हैं. जानलेवा खतरा अभी तक हम सेल्फी को लेकर ही समझा करते थे, लेकिन उससे कहीं बढ़कर हादसे कें अंदेशे रील बनाने पर मडंराते दिखते हैं. रील बनाने के संबंध में कुछ तत्कालिक दर्दनाक हादसे ऐसे हुए हैं जिन्हें मात्र सुनकर ही रोंगटे खड़े होते हैं. बीती पंद्रह फरवरी को हरियाणा के गुरूग्राम रेलवे ट्रैक पर रील बनाते चार मित्रों को ट्रेन रौंदते हुए निकल गई. चारो रील बनाने में इतने मशगूल थे कि पीछे से तेज हॉर्न बजाती आ रही एक्सप्रेस भी सुनाई नहीं दी, और देखते ही देखते चारो किशोरों के शव क्षत-विक्षत होकर ट्रैक के चारों ओर बिखर गए. घटना का दर्दनाक मंजर देखकर लोग एकाएक सहम से गए.

इंस्टाग्राम रील्स को डॉक्टर और मनोचिकित्सक एक मनोवैज्ञानिक विकार के रूप में ही देख रहे हैं

वहीं, ऐसी ही एक दूसरी घटना पिछले ही दिनों इंदौर में घटी. वहां भी सोशल मीडिया पर रील बनाने के शौक ने एक बच्चे की जान ले ली. बालक अपने घर में दोस्तों के कहने पर फांसी लगाने का डेमो दे रहा था. उसके दोस्त डेमो का रील बना रहे थे. वह कुर्सी पर चढ़ता है और फांसी का फंदा लगे में डाल लेता है, जैसे ही हाथ छोड़ता है तो कुर्सी अनबैलेंस हो जाती है जिससे वह फंदे पर झूल जाता है.

रील बना रहे उसके दोस्त जबतक कुछ समझ पाते, वह मर चुका होता है. तभी मृतक बच्चे के दोस्त भाग खड़े होते हैं. ये दोनों घटनाएं इसी माह की हैं. तीसरी एक और घटना का ज्रिक करते हैं, पिछले महीने की है. देहरादून के पास पहाड़ी क्षेत्र में भी तीन दोस्त कार की छत पर चढ़कर शराबी फिल्म के गाने पर रील बनाते वक्त गहरी खाई में गिरकर मौत के मुंह में समा जाते हैं.

ये उदाहरण सिर्फ बानगी मात्र हैं, ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. देखा जाए तो ऐसी घटनाओं को रोकने का कोई वैकल्पिक और आधुनिक तरीका भी नहीं? शासन-प्रशासन पर भी दोष देना उचित नहीं है, वह सिर्फ जागरूक ही कर सकते हैं, प्रतिबंध तो रील बनाने पर लगा नहीं सकते. अनचाही मौत के इस तांड़व में ज्यादातर युवा ही समा रहे हैं, वह भी स्कूल-कॉलेज के.

उम्रदराज या वर्किंग तो एकाएक ऐसा नहीं करेगा, लेकिन रील बनाने का शौक युवाओं के सिर चढ़कर बोल रहा है. दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल के मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियर साइंस के निदेशक डॉ समीर मल्होत्रा की माने तो यह एक तरीके की लत है. रील बनाना या अलग-अलग पोजीशन में पोज़ करना सेल्फ ऑब्सेसिव डिसऑर्डर की श्रेणी में आता है जिसे मेंडकल साइंस में “सेल्फाइटिस’ भी कह सकते हैं.

दूसरे रूप में इसे मेंटल इलनेस भी कहेंगे, जिसमें व्यक्ति खुद में इतना खो जाता है कि उसे घर परिवार की सुध नहीं रहती. दिल्ली के सिग्नेचर ब्रिज पर ऐसी घटनाएं प्रतिदिन घटती हैं. वहां बाइक से रील बनाते वक्त युवा खुद तो हादसे का शिकार होते ही हैं, दूसरों को भी लपेट लेते हैं. कुछ दिन पहले की ही घटना है जब कुछ स्कूली बच्चे कच्चा बदाम गाने पर रील बना रहे थे, तभी पीछे से आ रहे टैंपू ने जोरदार टक्कर मार दी.

टैंपू में बैठे कई लोग गंभीर रूप से चोटिल हुए. बढ़ते हादसों को देखते हुए वहां स्थानीय पुलिस ने पेहरेदारी करनी शुरू की है, लेकिन चोरीछुपे रील के शौकीनों की कलाकारी बदस्तूर जारी है. सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर इस वक्त रील्स बनाने का ट्रेंड जबरदस्त है. कच्चा बादाम जैसे नासमझ गानों पर भी लोग वीडियो बनाने में पागल हुए पड़े हैं, इसमें युवकों के अलावा युवतियों की संख्या भी अच्छी खासी है.

हांलाकि ऐसा शौक हर कोई रखता है. लेकिन इसके संभावित खतरों से अंजान लोग ही हादसों की भेंट चढ़ते हैं. युवाओं के अलावा खाली समय मिलते ही बाकी लोग भी रील्स बनाने में लग जाते हैं. पार्कों, पटर्यटक स्थलों, खुली सड़कों आदि जगहों पर लोग घंटो लगे रहते हैं. रील की दीवानगी उन्हें दूसरे जरूरी काम भी भुला देती हैं जिसका पता ही नहीं चलता.

दरअसल, रील्स से आजकल लोग खूब हिट भी हो रहे हैं. इससे पैसा भी कमा रहे हैं. जिस रील को पसंद करते हैं तो देखते ही देखते उसे लाखों व्यूअज मिलते हैं. एक और घटना है जो सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर ये समस्या रोकी तो रोकी कैसे जाए. मर्ज तो है नहीं कि किसी दवाई को खाने से रुक जाए. राजस्थान के पाली के युवा योगेश को भी रील बनाने का बहुत शौक था.

इंस्टाग्राम पर रोजाना एकाध रील अपलोड करता था, व्यूज, कमेंट मिलने पर खुश होता था. रील बनाने में वह इतना डूबा रहता था कि पढ़ाई तो दूर, वो खाना-पीन तक भूल जाता था. एक रोज उसके पिता ने उसका फोन छीन लिया, योगेश ने गुस्से में आकर आत्महत्या कर ली. अभिभावकों को यह भी डर सताता है कि उनके डपटने से कहीं उनका बच्चा कोई गलत कदम न उठा ले.

मनोचिकित्सक भी सेल्फी और रील से संबंधित घटनाओं से परेशान है. क्योंकि इसमें काउंसलिंग की भी ज्यादा संभावनाएं नहीं हैं. समीर पारिख कहते हैं कि उनसे इस समस्या से पीड़ित कई अभिभावक संपर्क करते है. वह सबसे यही कहते हैं कि बच्चों को महंगे फोन न दें, उनपर निगरानी रखें, लेकिन ऐसी जागरूकता से फिलहाल काम चलने वाला नहीं?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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