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'मैं दिल्ली आई, और मुझे तुरंत इन 5 आदतों से तौबा करना पड़ा'

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 04 नवम्बर, 2017 02:03 PM
  • 04 नवम्बर, 2017 02:03 PM
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क्या होता है जब कोई नई लड़की दिल्ली आती है तो. अपना शहर छोड़कर आई उस लड़की की जिंदगी कैसे बदल जाती है ये जानने की जरूरत है...

जिस तरह मुंबई को सपनों का शहर कहा जाता है उस तरह से दिल वालों की दिल्ली भी मशहूर है. तमाम कॉरपोरेट कंपनियों का गढ़ दिल्ली (NCR) अपने आप में अनूठा है. मैं बैतूल जैसे छोटे शहर से लेकर मुंबई जैसे महानगर तक कई शहरों में रही हूं पर दिल्ली को लेकर मेरा एक्सपीरियंस अलग ही है. मैं दिल्ली आने से पहले भोपाल में थी जो मेरे हिसाब से देश के उन चुनिंदा शहरों में से एक है जिसमें कोई भी आसानी से अपना घर बना सकता है और सुकून से रह सकता है.

- सुबह मॉर्निंग वॉक की आदत (पॉल्यूशन ज्यादा खतरनाक है)

भोपाल में सुबह बहुत हसीन होती है. कई लेक हैं और वहां दिल्ली की तरह सुबह-सुबह धुंध की चादर भी नहीं होती. दिल्ली की धुंध तो असल में पॉल्यूशन ही है जिससे सेहत खराब ही होती है. भोपाल में मॉर्निंग वॉक का मजा ही कुछ और है, लेकिन दिल्ली आने के बाद ये आदत छूट गई. कारण ये नहीं कि सुबह उठना परेशानी है. बल्कि कारण ये है कि दिल्ली की सुबह प्रदूषण से भरी होती है और ऐसे में घर से बाहर निकलना ठीक वैसा ही है जैसे सुबह-सुबह सिगरेट पीना.

- बिना चाकू या स्टन गन के घर से निकलने की आदत

जो लड़की एक बार मुंबई में रह ली उसे ये तो साफ समझ आ ही जाएगा कि बॉस मुंबई से ज्यादा सेफ शहर कोई नहीं. हां गोवा को भी इस श्रेणी में रख सकते हैं, लेकिन सेफ्टी के मामले में मुंबई काफी आगे है. दिल्ली में आने के बाद से बेफिक्र घूमने की आदत ही चली गई. पर्स में चाकू और स्टन गन हमेशा रहती है और हमेशा यही प्राथना होती है मेरी कि गलती से भी उसे इस्तेमाल करने की जरूरत न पड़े.

- कभी गालियां न सुनने की आदत

भोपाल भले ही लखनऊ जितना अदब और कायदे वाला न हो, लेकिन यकीनन वहां इस तरह से गालियां तो नहीं चलती हैं. दिल्ली में तो लोग टी-शर्ट पर भी गाली लिखवा कर...

जिस तरह मुंबई को सपनों का शहर कहा जाता है उस तरह से दिल वालों की दिल्ली भी मशहूर है. तमाम कॉरपोरेट कंपनियों का गढ़ दिल्ली (NCR) अपने आप में अनूठा है. मैं बैतूल जैसे छोटे शहर से लेकर मुंबई जैसे महानगर तक कई शहरों में रही हूं पर दिल्ली को लेकर मेरा एक्सपीरियंस अलग ही है. मैं दिल्ली आने से पहले भोपाल में थी जो मेरे हिसाब से देश के उन चुनिंदा शहरों में से एक है जिसमें कोई भी आसानी से अपना घर बना सकता है और सुकून से रह सकता है.

- सुबह मॉर्निंग वॉक की आदत (पॉल्यूशन ज्यादा खतरनाक है)

भोपाल में सुबह बहुत हसीन होती है. कई लेक हैं और वहां दिल्ली की तरह सुबह-सुबह धुंध की चादर भी नहीं होती. दिल्ली की धुंध तो असल में पॉल्यूशन ही है जिससे सेहत खराब ही होती है. भोपाल में मॉर्निंग वॉक का मजा ही कुछ और है, लेकिन दिल्ली आने के बाद ये आदत छूट गई. कारण ये नहीं कि सुबह उठना परेशानी है. बल्कि कारण ये है कि दिल्ली की सुबह प्रदूषण से भरी होती है और ऐसे में घर से बाहर निकलना ठीक वैसा ही है जैसे सुबह-सुबह सिगरेट पीना.

- बिना चाकू या स्टन गन के घर से निकलने की आदत

जो लड़की एक बार मुंबई में रह ली उसे ये तो साफ समझ आ ही जाएगा कि बॉस मुंबई से ज्यादा सेफ शहर कोई नहीं. हां गोवा को भी इस श्रेणी में रख सकते हैं, लेकिन सेफ्टी के मामले में मुंबई काफी आगे है. दिल्ली में आने के बाद से बेफिक्र घूमने की आदत ही चली गई. पर्स में चाकू और स्टन गन हमेशा रहती है और हमेशा यही प्राथना होती है मेरी कि गलती से भी उसे इस्तेमाल करने की जरूरत न पड़े.

- कभी गालियां न सुनने की आदत

भोपाल भले ही लखनऊ जितना अदब और कायदे वाला न हो, लेकिन यकीनन वहां इस तरह से गालियां तो नहीं चलती हैं. दिल्ली में तो लोग टी-शर्ट पर भी गाली लिखवा कर रखते हैं और गाहे-बगाहे गली मोहल्ले में गालियां सुनाई देती हैं.

- ट्रैफिक रूल्स का इस्तेमाल कर गाड़ी चलाने की आदत

दिल्ली के ट्रैफिक की तुलना अगर भोपाल से की जाए तो यकीनन मैं बहुत निराश हूं. दिल्ली में गाड़ी चलाना अपने आप में एक जंग है और इस जंग को हर रोज जीतना पड़ता है. कट मारने की (गाड़ी से) जो कला दिल्ली वासियों में है वो शायद ही किसी शहर के लोगों में होगी. अगर आपकी गाड़ी ठुकी है तो गलती आपकी ही निकाली जाएगी भले ही किसी और की क्यों न हो. अरे यहां तो लोग रोड पर ऐसे टहलते हैं जैसे कि पार्क हो.

- शराब और सिगरेट को बुरा मानने की आदत

देखिए छोटे शहर से होने के कारण ये मानसिकता हमेशा रहेगी कि शराब और सिगरेट रोजाना पीने वाले अच्छे इंसान नहीं होते हैं, लेकिन दिल्ली आने के बाद सोशल ड्रिंकिंग से भी मेरा सामना हुआ. जहां भोपाल में पान ठेले में सिगरेट के छल्ले उड़ाने का हक सिर्फ लड़कों का था वहीं दिल्ली में लड़कियों के लिए भी ये आम बात है. शराब और सिगरेट पीने वाले अच्छे लोग भी होते हैं और इससे उनके कैरेक्टर को बिलकुल आंका नहीं जा सकता है ये दिल्ली आकर ही मैंने सीखा. हां ये सेहत के लिए अच्छा नहीं है, लेकिन इससे कोई किसी का कैरेक्टर सर्टिफिकेट भी नहीं दे सकता है.

ये आदतें तो छूट गईं, लेकिन दिल्ली में कुछ तो ऐसा है जिससे सबका दिल लग जाए. सबसे पहली बात तो मुंबई की तुलना में यहां काम करना और रहना काफी आसान है. मुंबई में घर ढूंढने के लिए जिस जद्दोजहद से गुजरना पड़ा था वो दिल्ली में नहीं हुई. दूसरा महंगाई भी इस शहर में मुंबई से कम है. मुंबई में न तो घर आसानी से मिलते हैं और न ही सस्ते. तीसरी और सबसे अहम बात... लोकल की तुलना में मैं मेट्रो समर्थक हूं. लोकल में Near Death Experience (लगभग मरने जैसी स्थिती) भी झेला है और दिल्ली मेट्रो में सफर करना लोकल की तुलना में आसान भी है और सुरक्षित भी. हां किराया ज्यादा है, लेकिन कनेक्टिविटी दिल्ली में बेहतर है. सबसे बड़ी चीज है ये कि दिल्ली भले ही बेहद व्यस्त शहर है और मुंबई की तरह बड़ा भी है, लेकिन ये भागता कभी नहीं है. यहां लोगों के पास बहुत नहीं तो थोड़ा ही सही, लेकिन वक्त जरूर मिल जाएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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