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दिल्ली में 24 गुना प्रदूषण के लिए दिल्ली वाले खुद जिम्मेदार

    • शुभम गुप्ता
    • Updated: 21 अक्टूबर, 2017 12:04 PM
  • 21 अक्टूबर, 2017 12:04 PM
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सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को दरकिनार कर दिल्ली वालों का दीपावली में पटाखे जलाना, इस बात को साफ करता है कि उन्हें न तो प्रदूषण से मतलब है और न ही अपनी सेहत की चिंता है. कह सकते हैं कि यही बात निकट भविष्य में एक गहरे संकट को जन्म देगी.

सुप्रीम कोर्ट के दिल्ली में पटाखों के बैन के बाद एक बहस शुरू हुई, कई संगठनों ने इसे धर्म से भी जोड़ा कि आखिर हिन्दुओं की दिवाली बिना पटाखे फोड़े कैसे हो सकती है? मगर सुप्रीम कोर्ट ने अगर कोई फैसला दिया है तो काफी सोच समझ कर ही दिया होगा. तमाम वैज्ञानिको से प्राप्त रिपोर्ट के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला दिया कि दिल्ली में पटाखे नहीं बेचे जाएं. अगर पटाखे बिकेंगे नहीं तो फूटेंगे नहीं और फूटेंगे नहीं तो प्रदूषण होगा ही नहीं.

सुप्रीम कोर्ट के बैन के बावजूद दिल्ली में लोगों ने खूब पटाखे जलाए

मगर दिवाली के दिन सारे देश की नजरें दिल्ली की दिवाली पर थी. देशवासी देखना चाहते थे कि आखिर दिल्ली वाले अपनी दिवाली कैसे मानते हैं. साथ ही लोगों को ये भी देखना था कि इस दिवाली, दिल्ली में पटाखे फूटेंगे या नहीं. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. दिल्ली में लोगों ने जमकर पटाखे फोड़े, खूब आतिशबाज़ी की. आसमान में रात भर पटाखों से निकली रौशनी छाई रही.

तो क्या बैन के बाद भी पटाखे बिके ?

जब लोगों से पूछा गया की जब दिल्ली में पटाखे बैन है तो फिर उन्होंने पटाखे कहां से खरीदे? इस सवाल को प्रायः लोग टालते ही नजर आये.  कुछ का कहना था कि उनके पटाखे पिछले साल के हैं, कुछ का कहना था बैन होने के पहले खरीदे हैं. मगर सच तो यही था कि दिल्ली में, सुप्रीम कोर्ट के पटाखों पर बैन के बावजूद खूब पटाखे बिके. आपको बताते चलें कि आज तक ने दिल्ली एनसीआर में पटाखे बेचने को लेकर स्टिंग भी किया. यानी यहां दिल्ली पुलिस से लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस तक, सब नाकामयाब ही नजर आए.

बैन के...

सुप्रीम कोर्ट के दिल्ली में पटाखों के बैन के बाद एक बहस शुरू हुई, कई संगठनों ने इसे धर्म से भी जोड़ा कि आखिर हिन्दुओं की दिवाली बिना पटाखे फोड़े कैसे हो सकती है? मगर सुप्रीम कोर्ट ने अगर कोई फैसला दिया है तो काफी सोच समझ कर ही दिया होगा. तमाम वैज्ञानिको से प्राप्त रिपोर्ट के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला दिया कि दिल्ली में पटाखे नहीं बेचे जाएं. अगर पटाखे बिकेंगे नहीं तो फूटेंगे नहीं और फूटेंगे नहीं तो प्रदूषण होगा ही नहीं.

सुप्रीम कोर्ट के बैन के बावजूद दिल्ली में लोगों ने खूब पटाखे जलाए

मगर दिवाली के दिन सारे देश की नजरें दिल्ली की दिवाली पर थी. देशवासी देखना चाहते थे कि आखिर दिल्ली वाले अपनी दिवाली कैसे मानते हैं. साथ ही लोगों को ये भी देखना था कि इस दिवाली, दिल्ली में पटाखे फूटेंगे या नहीं. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. दिल्ली में लोगों ने जमकर पटाखे फोड़े, खूब आतिशबाज़ी की. आसमान में रात भर पटाखों से निकली रौशनी छाई रही.

तो क्या बैन के बाद भी पटाखे बिके ?

जब लोगों से पूछा गया की जब दिल्ली में पटाखे बैन है तो फिर उन्होंने पटाखे कहां से खरीदे? इस सवाल को प्रायः लोग टालते ही नजर आये.  कुछ का कहना था कि उनके पटाखे पिछले साल के हैं, कुछ का कहना था बैन होने के पहले खरीदे हैं. मगर सच तो यही था कि दिल्ली में, सुप्रीम कोर्ट के पटाखों पर बैन के बावजूद खूब पटाखे बिके. आपको बताते चलें कि आज तक ने दिल्ली एनसीआर में पटाखे बेचने को लेकर स्टिंग भी किया. यानी यहां दिल्ली पुलिस से लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस तक, सब नाकामयाब ही नजर आए.

बैन के बावजूद आसमान में रात भर पटाखों से निकली रौशनी छाई रहीप्रदूषण 24 गुना बढ़ा

दिवाली की रात हुए प्रदूषण ने अगली सुबह से ही अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. दिवाली पर आतिशबाजी से शहर में 24 गुना तक प्रदूषण बढ़ गया है. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमिटी यानी डीपीसीसी ने सुबह छह बजे के जो आंकड़े जारी किए हैं, उससे साफ होता है कि आतिशबाजी से दिल्ली की हवा बुरी तरह प्रदूषित हुई है. सुबह 6 बजे अलग-अलग जगहों पर प्रदूषण का स्तर अपने सामान्य स्तर से कहीं ज़्यादा ऊपर है. यहां तक कि कई जगहों पर यह 24 गुना से भी ज्यादा रिकॉर्ड किया गया.

सुबह 6 बजे  प्राप्त आंकड़ों की बात करें तो पीएम 2.5 का स्तर पीएम 10 से कहीं ज्यादा बढ़ा हुआ है. ज्ञात हो कि पीएम 2.5 वह महीन कण हैं जो हमारे फेफड़े के आखिरी सिरे तक पहुंच जाते हैं और कैंसर की वजह भी बन सकते हैं. चिंता की बात यह है कि पीएम 2.5 का स्तर इंडिया गेट जैसे इलाकों में जहां हर रोज सुबह कई लोग आते हैं वहां 15 गुने से भी ज्यादा ऊपर आया है. हालांकि इस बार पिछले साल की तुलना में, प्रदूषण 40 फिसदी तक कम हुआ है.

जिस तरह आम दिल्ली वालों ने सुप्रीम कोर्ट का अनादर किया है वो एक गहरी चिंता का विषय हैपिछले साल ऐसे थे हालात

साल 2016 में दिवाली के दौरान प्रदूषण लेवल वर्ष 2015 की तुलना में दोगुना मापा गया था. सीपीसीबी के आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान 2016 में पीएम पर्टिकुलेट मैटर 2.5 1238 पाया गया था जो कि 2015 के 435 के मुकाबले दोगुने से भी कहीं अधिक था. वर्ष 2016 में दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में दिल्ली शुरुआती 11 शहरों में शामिल था. इसमें भारत के करीब तीन शहर शामिल थे. वहीं वर्ष 2017 में टॉप 10 प्रदूषित शहरों की बात करें तो इसमें भारत के रायपुर, पटना और ग्वालियर का नाम शामिल है. 2015 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दिल्ली की एयर क्वालिटी को 'बेहद खराब' घोषित किया था. यानि ये एक हेल्थ इमरजेंसी जैसा है.

यानी कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला सही था. क्योंकि इसका नतीजा हमारे सामने है. मगर अब दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के चलते कई तरह की बीमारियां फैलेंगी. ध्यान रहे कि पिछली बार भी प्रदूषण से लोगों को काफी तकलीफ हुई थी.

आंखों में जलन तो इस प्रदूषण में एक आम बात है और देखा जाए तो इस बढ़ते प्रदूषण के जिम्मेदार दिल्ली वाले खुद हैं. कहा जा सकता है कि अगर दिल्ली वालों ने अपने बच्चों की सेहत के बारे में पहले थोड़ा सा भी सोचा होता तो आज दिल्ली की ये हालत न होती. मगर अब आगे के लिये दिल्ली वालों को प्रदूषण रोकने के लिये कई तरह की चीज़े करनी होंगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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