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योगी के लिए यूपी पॉलिटिक्स में अरविंद शर्मा का बढ़ता कद भारी मुसीबत है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 28 मई, 2021 10:57 PM
  • 28 मई, 2021 10:57 PM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के फेवरेट अफसर रहे अरविंद शर्मा (Arvind Sharma) के यूपी की राजनीति में बढ़ते हस्तक्षेप से योगी आदित्यनाथ (Yogi Aditynath) के लिए नयी चुनौतियां खड़ी होने का आशंका बढ़ने लगी है - लेकिन क्या वो वक्त करीब आ चुका है?

योगी आदित्यनाथ (Yogi Aditynath) को अब तक यूपी की राजनीति में अखिलेश यादव और मायावती के अलावा प्रियंका गांधी वाड्रा से ही जूझना पड़ता था, लेकिन अब दूसरी छोर पर एक नया नाम दर्ज हो गया है और मुश्किल ये है कि वो बाहर नहीं बल्कि बीजेपी के भीतर से ही है.

योगी आदित्यनाथ के नये राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी का नाम है - अरविंद शर्मा (Arvind Sharma), बीजेपी एमएलसी. यूपी के पुराने नेताओं में ऐसा कोई नहीं बचा है जो योगी आदित्यनाथ के लिए बीजेपी के भीतर ही राजनीतिक चुनौती बन जाये. योगी के खिलाफ ठाकुरवाद के आरोपों को काउंटर करते हुए ब्राह्मणों की नाराजगी से बचने के लिए बीजेपी नेतृत्व ने महेंद्र नाथ पांडेय को आम चुनाव से पहले दिल्ली से यूपी भेज दिया था, लेकिन सत्ता में वापसी के साथ ही उनको फिर से दिल्ली बुला लिया गया.

राजनाथ सिंह के 2017 में यूपी का मुख्यमंत्री बनने से इनकार के बाद तब मनोज सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला करीब करीब फाइनल हो चुका था, लेकिन तभी योगी आदित्यनाथ के नये अवतार ने सारे समीकरण गड़बड़ कर दिये. बाद में मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का उप राज्यपाल बना कर यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों के बाद भूमिहारों को मैसेज देने की कोशिश की गयी.

अरविंद शर्मा भी मनोज सिन्हा की ही बिरादरी से आते हैं और दोनों के पुश्तैनी घरों में करीब 50 किलोमीटर का ही फासला है. अरविंद शर्मा को बीजेपी सब कुछ ठीक कर देने वाले नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करने लगी है. अरविंद शर्मा मऊ के रहने वाले हैं और मनोज सिन्हा गाजीपुर के. मनोज सिन्हा गाजीपुर में माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी से 2019 में लोक सभा चुनाव हार गये थे.

जनवरी, 2021 में ही जब अरविंद शर्मा को बीजेपी ने एमएलसी बनाया तभी से कयास लगाये जाने लगे थे कि योगी आदित्यनाथ के लिए वो भविष्य में चुनौती बनने वाले हैं. गुजरात काडर के आईएएस अफसर रहे अरविंद शर्मा ने एमएलसी के लिए नामांकन भरने से थोड़ा पहले ही वीआरएस लिया था. प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) जब गुजरात के मुख्यमंत्री...

योगी आदित्यनाथ (Yogi Aditynath) को अब तक यूपी की राजनीति में अखिलेश यादव और मायावती के अलावा प्रियंका गांधी वाड्रा से ही जूझना पड़ता था, लेकिन अब दूसरी छोर पर एक नया नाम दर्ज हो गया है और मुश्किल ये है कि वो बाहर नहीं बल्कि बीजेपी के भीतर से ही है.

योगी आदित्यनाथ के नये राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी का नाम है - अरविंद शर्मा (Arvind Sharma), बीजेपी एमएलसी. यूपी के पुराने नेताओं में ऐसा कोई नहीं बचा है जो योगी आदित्यनाथ के लिए बीजेपी के भीतर ही राजनीतिक चुनौती बन जाये. योगी के खिलाफ ठाकुरवाद के आरोपों को काउंटर करते हुए ब्राह्मणों की नाराजगी से बचने के लिए बीजेपी नेतृत्व ने महेंद्र नाथ पांडेय को आम चुनाव से पहले दिल्ली से यूपी भेज दिया था, लेकिन सत्ता में वापसी के साथ ही उनको फिर से दिल्ली बुला लिया गया.

राजनाथ सिंह के 2017 में यूपी का मुख्यमंत्री बनने से इनकार के बाद तब मनोज सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला करीब करीब फाइनल हो चुका था, लेकिन तभी योगी आदित्यनाथ के नये अवतार ने सारे समीकरण गड़बड़ कर दिये. बाद में मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का उप राज्यपाल बना कर यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों के बाद भूमिहारों को मैसेज देने की कोशिश की गयी.

अरविंद शर्मा भी मनोज सिन्हा की ही बिरादरी से आते हैं और दोनों के पुश्तैनी घरों में करीब 50 किलोमीटर का ही फासला है. अरविंद शर्मा को बीजेपी सब कुछ ठीक कर देने वाले नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करने लगी है. अरविंद शर्मा मऊ के रहने वाले हैं और मनोज सिन्हा गाजीपुर के. मनोज सिन्हा गाजीपुर में माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी से 2019 में लोक सभा चुनाव हार गये थे.

जनवरी, 2021 में ही जब अरविंद शर्मा को बीजेपी ने एमएलसी बनाया तभी से कयास लगाये जाने लगे थे कि योगी आदित्यनाथ के लिए वो भविष्य में चुनौती बनने वाले हैं. गुजरात काडर के आईएएस अफसर रहे अरविंद शर्मा ने एमएलसी के लिए नामांकन भरने से थोड़ा पहले ही वीआरएस लिया था. प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तभी से वो अरविंद शर्मा पर भरोसा करते रहे हैं - और मोदी जब दिल्ली पहुंचे तो गुजरात से जिन अफसरों को दिल्ली बुला लिया उनमें अरविंद शर्मा भी एक हैं.

यूपी में कोविड 19 से बेकाबू हो चुके हालात को संभालने के लिए अरविंद शर्मा 13 अप्रैल को वाराणसी पहुंचे और स्थिति को ऐसे संभालने में सफल रहे कि अब 'वाराणसी मॉडल' की मिसाल दी जाने लगी है.

यूपी की राजनीति में एमएलसी बनाकर अरविंद शर्मा की एंट्री ही खास रणनीति के तहत हुई थी, लेकिन यूपी में कोविड 19 पर काबू पाने को लेकर जिस वाराणसी मॉडल की तारीफ प्रधानमंत्री मोदी गुजरात तक कर रहे हैं, उसके बाद से शर्मा का कद और बढ़ गया है.

वाराणसी में कोविड 19 प्रबंधन में लगे डॉक्टरों और अफसरों से मुलाकात में प्रधानमंत्री ने रूंधे गले से आंसू रोक कर लोगों से कनेक्ट होने की जो कोशिश की थी, मान कर चलना होगा उसी को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अरविंद शर्मा को सौंपी जानी है - लेकिन क्या ये अभी हो जाएगा या 2022 के चुनाव नतीजे आने के बाद?

योगी की मुसीबत कितनी बढ़ेगी

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में बहुत सी बातें कॉमन नजर आती हैं. कट्टरवादी हिंदू नेता की छवि के साथ ही दोनों ही नौकरशाहों पर हद से ज्यादा यकीन करते हैं.

ऐसे समझ लें कि दोनों की ही सरकारों में महत्वपूर्ण फैसलों या नाजुक घड़ी में कोर टीम में नौकरशाहों का ही बोलबाला देखने को मिलता है और मंत्रियों का नंबर तो बहुत बाद में आता है.

गुजरात के मुख्यमंत्री रहते जैसी चुनौती आनंदी बेन पटेल के सामने आयी थी, योगी आदित्यनाथ भी उसी स्थिति में पहुंच चुके हैं!

कोरोना संकट के दौरान हालात पर निगरानी रखने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की टीम में उनके भरोसेमंद काबिल अफसरों की ही फौज देखी गयी है - और योगी आदित्यनाथ भी हाल तक वैसा ही करते आ रहे थे, लेकिन बीजेपी नेताओं के ही शोर मचाने पर कोरोना पर काबू पाने के लिए टीम-11 से टीम-9 बनाने में योगी ने दो मंत्रियों को भी शामिल करना पड़ा है.

अब योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट में वैसे ही पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा के शामिल होने और बड़ी जिम्मेदारी दिये जाने की चर्चा जोरों पर है जैसे मोदी ने एस. जयशंकर सहित कुछ पूर्व नौकरशाहों को मंत्रिमंडल में जगह दी है. ध्यान देने वाली बात ये है कि योगी कैबिनेट में भी अगर ऐसा ही बदलाव होता है तो वो भी मोदी की ही मर्जी से होगी, न कि योगी की पसंद से.

अरविंद शर्मा के साल की शुरुआत में लखनऊ पहुंचने और एमएलसी बन जाने के बाद से ही उनको कोई अति महत्वपूर्ण और बड़ी जिम्मेदारी दिये जाने की चर्चा शुरू हो गयी थी. तभी यूपी में मंत्रिमंडल विस्तार की भी संभावना जतायी जा रही थी, लेकिन कोविड 19 के बढ़ते प्रकोप के कारण इसे स्थगित करना पड़ा था.

अरविंद शर्मा के वाराणसी में कोविड 19 कंट्रोल की कमान संभालने से पहले योगी आदित्यनाथ अपनों के ही निशाने पर आ चुके थे. योगी आदित्यनाथ के ही कैबिनेट सहयोगी ब्रजेश पाठक ने पत्र लिख कर प्रशासनिक कुप्रबंधन की तरफ ध्यान दिलाने की कोशिश की थी. ऐसे ही कोविड 19 के चलते अपने भाई को भी गवां चुके मोहनलालगंज से बीजेपी सांसद कौशल किशोर, सत्यदेव पचौरी, हरीश द्विवेदी और राजेंद्र अग्रवाल जैसे सांसदों ने भी शोर मचा कर दुर्व्यवस्था की तरफ योगी आदित्यनाथ का ध्यान दिलाने की कोशिश की - योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी के इन नेताओं की बातें सुनी या नहीं या सुन कर भी नजरअंदाज किया, ये अलग बात है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ साथ लगता है ये शिकायतें संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले तक जरूर पहुंचीं.

स्थिति की गंभीरता का आभास होते ही योगी आदित्यनाथ ने भाग दौड़ शुरू कर दी है. नोएडा दौरे में भी योगी आदित्यनाथ ने दिल्ली के मीडिया के जरिये अपनी बातों को आलाकमान तक पहुंचाने की कोशिश की है - और राज्य के जिलों का दौरा कर वहां के प्रशासनिक अधिकारियों को भी वाराणसी मॉडल को अपना कर आगे बढ़ने की हिदायत दे रहे हैं. योगी आदित्यनाथ ने जिलाधिकारियों को वाराणसी में अरविंद शर्मा की निगरानी में स्थापित कोविड कमांड सेंटर की तर्ज बाकी ही नियंत्रण कक्ष बनाने को कहा है. साथ ही, कामकाज की रिपोर्ट भी मुख्यमंत्री कार्यालय भेजने को कहा है.

दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी, शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन महासचिव सुनील बंसल से मीटिंग के बाद लखनऊ पहुंच कर दत्तात्रेय होसबले ने जमीनी हालात का खुद जायजा लेने का फैसला किया - और वो वस्तुस्थिति को जानने के बाद लौट भी चुके हैं.

यूपी की राज्यपाल आनंदी बेन पटले के खास तौर पर लखनऊ पहुंचने के बाद योगी आदित्यनाथ की राजभवन जाकर मुलाकात के बाद कई तरह की चर्चाएं होने लगी हैं - मंत्रिमंडल विस्तार का इंतजार तो पहले से ही है.

अरविंद शर्मा को जिम्मेदारी अभी या चुनाव बाद

कयास तो योगी आदित्यनाथ की कुर्सी पर खतरे के भी लगाये जा रहे थे, लेकिन लगता है दत्तात्रेय होसबले के लखनऊ दौरे के बाद ये संभावना कम हो गयी है. वैसे भी लाख दिक्कतों के बावजूद बीजेपी अभी इस स्थिति में तो बिलकुल नहीं है कि उत्तराखंड की तरह यूपी में मुख्यमंत्री बदलने के बारे में सोच सके.

बेशक योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनने के लिए बीजेपी की जरूरत है, लेकिन ये भी उतना ही बड़ा सच है कि बीजेपी को भी यूपी में योगी आदित्यनाथ की हद से ज्यादा जरूरत है.

अरविंद शर्मा वाराणसी मॉडल तैयार कर सकते हैं या लखनऊ में बैठकर सूबे के बाकी जिलों पर भी नजर रख सकते हैं, लेकिन बीजेपी को लेकर जनता में योगी आदित्यनाथ जैसी खलबली नहीं मचा सकते - न ही वैसा जोश भर सकते हैं जिसकी बीजेपी को यूपी में अभी ही नहीं अगले आम चुनाव तक जरूरत पड़ेगी.

कई मीडिया रिपोर्ट देखने से मालूम होता है कि वाराणसी के साथ साथ अरविंद शर्मा बलिया, गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़ और जौनपुर में भी कोविड 19 से पैदा हालात पर नजर रखे हुए हैं - और खुद दौरा कर जगह जगह ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर और जरूरी चीजों का इंतजाम भी कर रहे हैं.

अब सवाल है कि क्या अरविंद शर्मा को कोई बड़ी जिम्मेदारी अभी दी जाने वाली है?

सवाल के डबल जवाब मिलते हैं और यही चीज फिलहाल बीजेपी नेतृत्व के लिए कन्फ्यूजन की बड़ी वजह भी बन रही हैं. सूत्रों के हवाले तैयार न्यूज वेबसाइट द प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 'बीजेपी नेतृत्व को ही आखिरी फैसला लेना है कि अरविंद शर्मा को सरकार में कोई औपचारिक भूमिका अभी दे दी जाये या फिर चुनावों का इंतजार किया जाये?'

यूपी विधानसभा चुनाव में अब महज नौ महीने ही बचे हैं और बीजेपी के लिए यूपी विधानसभा चुनाव जीतने का मकसद सिर्फ सत्ता में वापसी भर नहीं है, बल्कि अगले आम चुनाव के लिए भी मजबूत दावेदारी सुनिश्चित करना भी है. ये बात बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा हाल ही में यूपी के बीजेपी सांसदों के साथ वर्चुअल मुलाकात में भी कह चुके हैं. देश के बाकी सांसदों की ही तरह जेपी नड्डा यूपी के सांसदों को भी बाहर निकल कर लोगों के बीच जाने और उनकी समस्याएं सुनने और आश्वस्त करने की सलाह दे चुके हैं.

अरविंद शर्मा आखिर योगी आदित्यनाथ के लिए कितनी बड़ी मुसीबत बनते हैं ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि कोई औपचारिक जिम्मेदारी उनको अभी दी जाती है या फिर चुनाव नतीजे आने के बाद के लिए रिजर्व रख लिया जाता है. अभी अरविंद शर्मा को मंत्रिमंडल में भी शामिल किया जाता है तो प्रधानमंत्री मोदी की करीबी होने के बावजूद कमान तो योगी आदित्यनाथ के हाथ में ही रहेगी.

अगर बीजेपी नेतृत्व अरविंद शर्मा को जिम्मेदारी देने को लेकर फैसला चुनावों तक टाल देता है तो ये चुनाव नतीजे ही बताएंगे कि अगली बार के लिए योगी आदित्यनाथ की दावेदारी कितनी मजबूत रह पाती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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