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UP Panchayat Election में डैमेज हुई भाजपा को शीर्ष नेतृव्य क्या कंट्रोल कर पाएगा?

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 26 मई, 2021 10:19 PM
  • 26 मई, 2021 10:02 PM
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भाजपा का शीर्ष नेतृव्य किसी भी कीमत पर उत्तर प्रदेश के चुनाव में ढील नहीं बर्दाश्त करना चाहता है यही वजह है कि अभी से ही भाजपा हाईकमान उत्तर प्रदेश में हुए डैमेज को कंट्रोल करने में जुट गया है.

देश की सबसे बड़ी आबादी वाले प्रदेश उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अब सिर्फ 9 महीने ही रह गए हैं. कोरोना वायरस के कहर के बावजूद उत्तर प्रदेश की चुनावी चर्चा जोर पकड़ती जा रही है. राजनीतिक दलों के साथ-साथ आम नागरिक भी तमाम तरह की संभावनाओं और अनुमानों पर अपना दिमाग लड़ा रहे हैं. गठबंधन और महागठबंधनों को लेकर भी कयासों का सिलसिला तेज हो गया है. मुख्य राजनीतिक पार्टियों का ज़िक्र तो है ही साथ ही साथ असदुद्दीन ओवैसी और अरविंद केजरीवाल को लेकर भी चर्चा छिड़ी हुई है. कोई इनको वोट कटुआ का खिताब दे रहा है तो कोई इनकी शान में कसीदे ही पढ़े जा रहा है. लेकिन इन सबसे हटकर बात करें राजनीतिक पंडितों के कयासों और अनुमानों की तो उत्तर प्रदेश की सीधी लड़ाई भाजपा और सपा के बीच ही नज़र आ रही है. इसके साथ ही बसपा को भी लंबी रेस का घोड़ा तो ज़रूर बताया जा रहा है लेकिन सत्ता पर बसपा सुप्रीमो मायावती का कब्जा हो जाएगा इसके आसार राजनीति के जानकारों को कम ही नजर आ रहे हैं. खैर यह तो कयास हैं हकीकत अभी दूर है. उत्तर प्रदेश में हालिया दिनों में ही कोरोना वायरस की दूसरी लहर की रफ्तार कम हुई है. अब प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार कोरोना की तीसरी लहर के खतरे को लेकर व्यापक तैयारियों में जुटी हुई है. साथ ही साथ प्रदेश की सरकार ब्लैक, व्हाइट और येलो फंगस जैसी चुनौतियों से भी लड़ रही है. प्रदेश की कमान संभाल रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शहर दर शहर का दौरा करके कोविड अस्पताल और कोरोना को लेकर तमाम तरह की व्यवस्थाओं का खुद ही जायजा ले रहे हैं.

2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा की लाज बचाने की तैयारी पार्टी ने अभी से शुरू कर दी है

ऐसे में प्रदेश सरकार के पास तो वक्त है नहीं चुनावों की तैयारियों और रणनीतियों को परखने का, तो इसकी...

देश की सबसे बड़ी आबादी वाले प्रदेश उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अब सिर्फ 9 महीने ही रह गए हैं. कोरोना वायरस के कहर के बावजूद उत्तर प्रदेश की चुनावी चर्चा जोर पकड़ती जा रही है. राजनीतिक दलों के साथ-साथ आम नागरिक भी तमाम तरह की संभावनाओं और अनुमानों पर अपना दिमाग लड़ा रहे हैं. गठबंधन और महागठबंधनों को लेकर भी कयासों का सिलसिला तेज हो गया है. मुख्य राजनीतिक पार्टियों का ज़िक्र तो है ही साथ ही साथ असदुद्दीन ओवैसी और अरविंद केजरीवाल को लेकर भी चर्चा छिड़ी हुई है. कोई इनको वोट कटुआ का खिताब दे रहा है तो कोई इनकी शान में कसीदे ही पढ़े जा रहा है. लेकिन इन सबसे हटकर बात करें राजनीतिक पंडितों के कयासों और अनुमानों की तो उत्तर प्रदेश की सीधी लड़ाई भाजपा और सपा के बीच ही नज़र आ रही है. इसके साथ ही बसपा को भी लंबी रेस का घोड़ा तो ज़रूर बताया जा रहा है लेकिन सत्ता पर बसपा सुप्रीमो मायावती का कब्जा हो जाएगा इसके आसार राजनीति के जानकारों को कम ही नजर आ रहे हैं. खैर यह तो कयास हैं हकीकत अभी दूर है. उत्तर प्रदेश में हालिया दिनों में ही कोरोना वायरस की दूसरी लहर की रफ्तार कम हुई है. अब प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार कोरोना की तीसरी लहर के खतरे को लेकर व्यापक तैयारियों में जुटी हुई है. साथ ही साथ प्रदेश की सरकार ब्लैक, व्हाइट और येलो फंगस जैसी चुनौतियों से भी लड़ रही है. प्रदेश की कमान संभाल रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शहर दर शहर का दौरा करके कोविड अस्पताल और कोरोना को लेकर तमाम तरह की व्यवस्थाओं का खुद ही जायजा ले रहे हैं.

2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा की लाज बचाने की तैयारी पार्टी ने अभी से शुरू कर दी है

ऐसे में प्रदेश सरकार के पास तो वक्त है नहीं चुनावों की तैयारियों और रणनीतियों को परखने का, तो इसकी फिक्र खुद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने कर ली है. हाल ही में राजधानी दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व और संघ के बीच एक बैठक हुई जिसके बारे में दावा किया जा रहा है कि ये बैठक उत्तर प्रदेश की मौजूदा स्थिति और अगले साल के शुरुआती महीने में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर थी. इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, संगठन मंत्री सुनील बंसल और संघ के दत्तात्रेय होसबोले मौजूद थे.

कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि यह बैठक उत्तर प्रदेश में डैमेज कंट्रोल को लेकर हुई है. उत्तर प्रदेश में भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज है. आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा का चुनाव जीतना और सरकार बनाना बेहद महत्वपूर्ण है. खासतौर पर दिल्ली, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों को हारने और बिहार एवं मध्य प्रदेश में कड़े संघर्ष के बाद सत्ता तक पहुंचने वाली भाजपा उत्तर प्रदेश के चुनाव में हर हाल में जीत दर्ज करना चाहती है.

उत्तर प्रदेश, देश की राजनीति में एक अहम योगदान रखता है. कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश के रास्ते ही जाता है. और यह बात सौ फीसद सच भी है. भाजपा वर्ष 2014 का आम लोकसभा का चुनाव रहा हो या फिर 2019 का चुनाव, दोनों ही बार उत्तर प्रदेश के सहारे ही भाजपा केंद्र में बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब हुई है. भाजपा इसीलिए उत्तर प्रदेश के चुनाव को लेकर कोई भी ढ़िलाई नहीं करना चाहती है, खासतौर पर जब उसे यह मालूम हो कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को लेकर लोगों में भीषण नाराज़गी है.

हाल ही में संपन्न हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में इस बात पर मुहर भी लग ही चुकी है जहां भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है. भाजपा इस चुनाव में वाराणसी, मथुरा और गोरखपुर जैसे अहम जिलों में भी फिसड्डी साबित हुई है जबकि ये जिले उसके वह किले हैं जिन्हें भेद पाना आसान नहीं था. योगी आदित्यनाथ की सरकार से अगर लोगों की नाराज़गी की वजह देखी जाए तो सबसे बड़ी वजह कोरोना काल है.

वैसे तो पूरे देश में ही इस महामारी ने स्वास्थ्य विभाग और उसकी बदइंतजामी की पोल-पट्टी खोलकर रख दी है लेकिन कुछ राज्यों की सूरते हाल बद से बदतर नज़र आई है. कई राज्यों पर आंकड़ों के हेराफेरी के भी आरोप लगे हैं. उत्तर प्रदेश उन्हीं राज्यों में से एक है. उत्तर प्रदेश में ऑक्सीजन, रेमडेसिवीर इंजेक्शन, और बेड की कमी ने सरकार की खूब फजीहत कराई है. उसके बाद पंचायत चुनाव कराए जाने को लेकर भी प्रदेश सरकार कटघरे में खड़ी हुई है.

पंचायत चुनाव में जान गंवाने वाले शिक्षकों और अधिकारियों का भी आंकड़ा न जुटा पाने और इस मसले पर खानापूर्ति करने के आरोप भी प्रदेश सरकार पर लगते आ रहे हैं. हालिया दिनों में गंगा नदी में बहती लाशें और प्रयागराज के घाट पर दफन हुए हज़ारों शव और उस लाश को नोचते हुए कुत्तों की तस्वीरें सामने आने के बाद प्रदेश सरकार की चारों ओर किरकिरी हो रही है. ये ही सबसे प्रमुख वजह प्रदेश सरकार से नाराजगी की है.

वहीं दूसरी ओर योगी सरकार को पसंद करने वालों की संख्या भी कम नहीं है. योगी सरकार की एनकाउंटर नीति, वैक्सीनेशन को प्रक्रिया के साथ शुरू करने की रणनीति, इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद कोरोना वायरस को अन्य राज्यों के मुकाबले बेहतर तरीके से कंट्रोल पाने और धीरे धीरे चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन लगाने की रणनीति को भी खूब पसंद किया जा रहा है. शीर्ष नेतृत्व ने पंचायत चुनाव का जिम्मा प्रदेश सरकार और प्रदेश नेतृत्व को सौंपा था जिसे प्रदेश सरकार ने ओवर कॉन्फिडेंस के साथ लड़ा था.

चुनाव में हार मिली तो इस बात को भाजपा आलाकमान ने भी कबूला कि हां ओवर कॉन्फिडेंस की वजह से चुनाव में हार मिली है. भाजपा का शीर्ष नेतृत्व और खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं चाहते हैं कि विधानसभा का चुनाव भी इसी ओवर कॉन्फिडेंस के साथ लड़ा जाए. भाजपा आलाकमान किसी भी तरह का रिस्क लेने को तैयार नहीं है इसी वजह से चुनाव से 9 महीना पहले ही चुनावों को लेकर नीतियां तैयार करने का कार्य शुरू हो चुका है.

भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उत्तर प्रदेश में लोगों की नाराज़गी को दूर करने के लिए मंत्रणा शुरू कर चुका है, डैमेज कंट्रोल करने के लिए उत्तर प्रदेश में कुछ अहम बदलाव होने जा रहे हैं जिसकी भनक लगने लगी है. माना जा रहा है कि जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जुलाई के पहले सप्ताह होते होते हो जाएगा, जिसके बाद प्रदेश सरकार में कुछ बदलाव होंगे. सूत्रों के हवाले से जो खबर फैली है उसमें यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खासमखास अरविंद शर्मा को अहम ज़िम्मेदारी सौंपी जा सकती है, यह उप-मुख्यमंत्री भी बनाए जा सकते हैं.

वर्तमान में केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा इस कुर्सी पर विराजमान हैं. ऐसे में ऐसा भी हो सकता है कि प्रदेश में अब तीन उप-मुख्यमंत्री हो सकते हैं लेकिन इससे भी अधिक संभावना है कि केशव प्रसाद मौर्य को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में चूंकि जाति एक अहम मुद्दा बनता है तो ऐसे में ओबीसी वोटरों पर निशाना साधने के लिए केशव मौर्या को डिप्टी सीएम के पद से हटाना भी एक घातक कदम हो सकता है.

भाजपा के लिए ये बदलाव थोड़ा टेढ़ी खीर जैसा साबित होगा. हालांकि अगला चुनाव भी भाजपा योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर लड़ेगी इस बात के पूरे संकेत नज़र आ रहे हैं ऐसे में केशव प्रसाद मौर्य और अरविंद शर्मा के बीच न्याय कर पाना भाजपा के लिए मुश्किल कार्य होगा. वहीं दिनेश शर्मा का भी एक अलग प्रभाव है जिसे नजरअंदाज करना आसान नहीं है. भाजपा का नेतृत्व किस तरह से इस डैमेज को दिल्ली में बैठकर कंट्रोल करेगा यह देखना भी दिलचस्प रहेगा.

फिलहाल सुनील बंसल दिल्ली में ही टिके हुए हैं और केशव प्रसाद मौर्य को भी दिल्ली तलब किया गया है, यानी तस्वीर साफ है कि माथापच्चियों का दौर जारी है जल्द ही बदलाव भी नज़र आने वाला है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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