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यूपी सरकार 3 मरे या 1621 ये मत बताइये, बस ये बताइये क्यों मरे?

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 21 मई, 2021 10:36 PM
  • 21 मई, 2021 10:36 PM
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उत्तर प्रदेश सरकार और राज्य के शिक्षक संघ के बीच जो जंग जारी है वो उत्तर प्रदेश की ओछी राजनीति का पूरा सबूत देता फिर रहा है. सबकुछ आंकड़ों में ही छिपा हुआ है, संघ हो या सरकार दोनों ही अपने मुंह मियां राम बनते नज़र आ रहे है जबकि दोनों को मुस्तैद होकर काम करना चाहिए ताकि सच सामने आ सके, और जरूरतमंद परिवारों का कुछ ही सही मगर बोझ हल्का हो सके.

उत्तर प्रदेश यूं तो वैसे ही अपनी ओछी और जाति-पाति वाली राजनीति की वजह से जाना पहचाना जाता है लेकिन इस बार तो हद ही हो गई है. इस बार की राजनीति में दो सियासी दल आमने सामने नहीं हैं बल्कि एक तरफ शिक्षक संघ है तो दूसरी तरफ वही सरकार है जिसके हाथों में सिस्टम की बागडोर है. वही सिस्टम जिसको हम सब दिन रात विकलांग कहते हैं लूला लंगड़ा कहते हैं. उत्तर प्रदेश के शिक्षक संघ का आरोप है कि उत्तर प्रदेश में हाल ही में संपन्न हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ड्यूटी करने के दौरान उसके करीब 2000 शिक्षक कोरोना की चपेट में आए हैं जिसमें 1600 से भी ज्यादा शिक्षकों की जान चली गई है. इन मौतों का जिम्मेदार राज्य सरकार और चुनाव आयोग है, जान गंवाने वाले शिक्षकों के परिवार को आर्थिक सहायता या फिर मुआवजा दिया जाए ताकि परिवार का बोझ कुछ हल्का हो सके. कोर्ट ने भी सरकार को ये निर्देश दिए थे. अब आगे का फैसला करना राज्य सरकार के पाले में था, राज्य सरकार जो आंकड़ों की बाजीगरी में माहिर हुआ करती है उसने अपने अलग ही तर्क दे डाले.

यूपी सरकार पर आरोप है कि वो पंचायत ड्यूटी में तैनात  कोरोना से मरे टीचर्स की मौत के आंकड़े छिपा रही है

सरकार ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि नियमों के मुताबिक चुनाव में ड़्यूटी कर रहे लोगों की मौत पर तब ही मुआवजे का प्रावधान है जब चुनाव ड्यूटी के खत्म होने से पहले ही मृत्यु हो जाए. यानी की चुनाव की ड्यूटी के वक्त ही किसी की मृत्यु होती है तो ही मुआवजा दिया जाएगा. ये सच है कि चुनाव आयोग द्धारा यही नियम बनाए गए हैं लेकिन राज्य सरकार बेचारी इतनी सीधी और भोली बनकर के जवाब दे जाएगी इसकी उम्मीद तो कतई नहीं की जा सकती थी.

शिक्षक संघ ने जहां 1600 से अधिक मौतों का दावा किया तो वहीं राज्य सरकार ने अपने आंकड़े देते हुए कहा कि...

उत्तर प्रदेश यूं तो वैसे ही अपनी ओछी और जाति-पाति वाली राजनीति की वजह से जाना पहचाना जाता है लेकिन इस बार तो हद ही हो गई है. इस बार की राजनीति में दो सियासी दल आमने सामने नहीं हैं बल्कि एक तरफ शिक्षक संघ है तो दूसरी तरफ वही सरकार है जिसके हाथों में सिस्टम की बागडोर है. वही सिस्टम जिसको हम सब दिन रात विकलांग कहते हैं लूला लंगड़ा कहते हैं. उत्तर प्रदेश के शिक्षक संघ का आरोप है कि उत्तर प्रदेश में हाल ही में संपन्न हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ड्यूटी करने के दौरान उसके करीब 2000 शिक्षक कोरोना की चपेट में आए हैं जिसमें 1600 से भी ज्यादा शिक्षकों की जान चली गई है. इन मौतों का जिम्मेदार राज्य सरकार और चुनाव आयोग है, जान गंवाने वाले शिक्षकों के परिवार को आर्थिक सहायता या फिर मुआवजा दिया जाए ताकि परिवार का बोझ कुछ हल्का हो सके. कोर्ट ने भी सरकार को ये निर्देश दिए थे. अब आगे का फैसला करना राज्य सरकार के पाले में था, राज्य सरकार जो आंकड़ों की बाजीगरी में माहिर हुआ करती है उसने अपने अलग ही तर्क दे डाले.

यूपी सरकार पर आरोप है कि वो पंचायत ड्यूटी में तैनात  कोरोना से मरे टीचर्स की मौत के आंकड़े छिपा रही है

सरकार ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि नियमों के मुताबिक चुनाव में ड़्यूटी कर रहे लोगों की मौत पर तब ही मुआवजे का प्रावधान है जब चुनाव ड्यूटी के खत्म होने से पहले ही मृत्यु हो जाए. यानी की चुनाव की ड्यूटी के वक्त ही किसी की मृत्यु होती है तो ही मुआवजा दिया जाएगा. ये सच है कि चुनाव आयोग द्धारा यही नियम बनाए गए हैं लेकिन राज्य सरकार बेचारी इतनी सीधी और भोली बनकर के जवाब दे जाएगी इसकी उम्मीद तो कतई नहीं की जा सकती थी.

शिक्षक संघ ने जहां 1600 से अधिक मौतों का दावा किया तो वहीं राज्य सरकार ने अपने आंकड़े देते हुए कहा कि मात्र 3 लोगों की ही जान चुनाव कराते हुए गई है. चुनाव के खत्म हो जाने के बाद के ऐसे कोई आंकड़े उनके पास मौजूद नहीं है. इन आंकड़ों के हेरफेर में पड़ने से पहले आप अपना स्टैंड क्लीयर कर लीजिए. शिक्षक संघ के अनुसार 1621 मौत और राज्य सरकार के अनुसार केवल 3 मौत ये आंकड़ों का खेल है. इसपर राजनीति हो रही है और जमकर हो रही है.

मगर अबतक दोनों ही ओर से इस पूरे प्रकरण को लेकर जांच कराए जाने की बात सामने नहीं आयी है जोकि बेहद ज़रूरी है. पंचायत चुनावों के दौरान जिन लोगों ने भी ड्यूटी की है सभी के रिकार्ड मौजूद हैं. रिकार्ड को खंगाल आसानी से इस बात को जांचा परखा जा सकता है कि कितने लोग ड्यूटी पर मौजूद थे और किसकी मौत कब हुई है, कितनों की मौत हुई है और किस तरह की मौत हुई है.

ज़ाहिर है 1621 मौतों का अगर दावा किया जा रहा है तो उनमें से सबकी मौत स्वाभाविक मौत नहीं हो सकती है. ये भी सच है कि सबकी मौत कोरोना से ही नहीं हुई होगी. यह सब कुछ जांच से साबित हो जाएगा, फिलहाल इन मौतों के आंकड़ों पर जिस तरह का खेल खेला जा रहा है वो शर्मसार कर देने वाली हरकत है. जिन परिवार ने अपना मुखिया खो दिया है या फिर जिन परिवारों ने अपने बच्चों को चुनाव ड्यूटी के बाद खो दिया है उनको संवेदनाओं की ज़रूरत है.

उनको सहारे की ज़रूरत है, उनको ज़रूरत है बोझ को कुछ हद तक बांटने की. परिवार से जब कोई कमाने वाला ही इंसान दुनिया छोड़ जाता है तो उस परिवार की क्या कंडीशन होती है इसको बताना उचित नहीं समझता इसको आप बेहतर समझ सकते हैं. मगर सवाल यह है कि आखिर इन परिवारजनों के छलनी हुए कलेजे पर मरहम रखेगा कौन, इनको सहारा कौन देगा? तो नज़र सिर्फ दो ओर ही जा पड़ती है.

पहला तो विभाग की ओर यानी शिक्षक संघ की ओर और दूसरा राज्य सरकार की ओर. मगर अफसोस की अभी तक कोई भी बेहतर तरीके से उन बेबस परिवारों की आवाज़ नहीं बन पाया है. उत्तर प्रदेश सरकार को इस पूरे प्रकरण की सही और सटीक जांच करानी चाहिए और सभी जान गंवाने वाले लोगों के परिवार को आर्थिक सहायता देनी चाहिए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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